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जनसंघ के संस्थापकों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्रद्धांजलि अर्पित की ।।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिला अंतर्गत नगला चंद्रभान नामक गाँव में हुआ था।  जब वे छोटे थे तब एक ज्योतिषी ने उनकी जन्मकुंडली देखकर यह भविष्यवाणी की थी कि वे महान विद्वान, विचारक, राजनेता और सेवाभावी होंगे, लेकिन वे विवाह नहीं करेंगे।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि “अपना संपूर्ण जीवन मां भारती की सेवा में समर्पित करने वाले अंत्योदय के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का व्यक्तित्व और कृतित्व देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।“

 

एक्स पर पोस्ट करते हुए पीएम मोदी ने लिखा की ;

“ मां भारती की सेवा में जीवनपर्यंत समर्पित रहे अंत्योदय के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का व्यक्तित्व और कृतित्व देशवासियों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बना रहेगा। उनकी जन्म-जयंती पर उन्हें मेरा सादर नमन।“

 

 

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जिसका पहला महासचिव दीनदयाल उपाध्याय को बनाया गया। दिसंबर 1967 तक वे जनसंघ की महासचिव पद पर बने रहे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उनकी कार्यक्षमता, खुफिया गतिविधियों और परिपूर्णता के गुणों से प्रभावित होकर गर्व से सम्मानपूर्वक कहा, “यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूँ।” परंतु 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अचानक निधन से जनसंध कि पुरी जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय को कंधो पर आ गइ, जिसके बाद पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने बड़ी कुशलता से संगठन को संभाला। इस तरह, उन्होंने लगभग 15 वर्षों तक जनसंघ का महासचिव पद संभाला। दिसंबर 1967 में, दीनदयाल उपाध्याय को कालीकट में भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन में जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया।

 

 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिला अंतर्गत नगला चंद्रभान नामक गाँव में हुआ था।  जब वे छोटे थे तब एक ज्योतिषी ने उनकी जन्मकुंडली देखकर यह भविष्यवाणी की थी कि वे महान विद्वान, विचारक, राजनेता और सेवाभावी होंगे, लेकिन वे विवाह नहीं करेंगे। 1934 में उनके भाई की बीमारी से अचानक मृत्यु हो गई जिस वजह से उनको गहरा आघात सहना पड़ा, उस समय दीनदयालजी बहुत छोटे थे। दीनदयाल उपाध्याय  ने अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई राजस्थान के सीकर में पूरी की।शिक्षा में उत्कृष्टता के लिए बालक दीनदयाल को सीकर के तत्कालीन नरेश ने स्वर्ण पदक, किताबों के लिए 250 रुपये और दस रुपये की मासिक छात्रवृत्ति से सम्मानित किया था ।

 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा पिलानी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। उसके बाद में वह बी.ए. की पढ़ाई करने के लिए कानपूर गए, जहां वह सनातन कॉलेज में भर्ती हो गए। वह 1937 में अपने एक दोस्त श्री बलवंत महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गए। उसी वर्ष उन्होंने बी.ए. की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास किया था| जिसके बाद वे एम.ए. की पढ़ाई के लिए आगरा चले गए |

 

आगरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सेवा करते समय श्री नानाजी देशमुख और श्री भाउ जुगडे से उनका परिचय हुआ। उसी समय दीनदयाल उपाध्याय की बहन श्रीमती रमादेवी बीमार हो गईं और आगरा चली गईं। लेकिन दुर्भाग्यवश  उनकी मृत्यु हो गइ। दीनदयाल उपाध्याय के जीवन में यह दूसरा बड़ा झटका था। जिसके कारण वह एम.ए. की परीक्षा देने में असफल रहे और उनकी छात्रवृत्ति भी समाप्त हो गई।

 

जनसंघ के राष्ट्रजीवन दर्शन का निर्माण करने वाले दीनदयाल उपाध्याय ने स्वतंत्रता की पुनःस्थापना के प्रयासों के लिए पूरी तरह से भारतीय तत्व-दृष्टि देना चाहा था। एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा को भारत को देते हुए, उन्होंने भारत की पुरानी सोच को बदल दिया। जनसंघ की आर्थिक नीति दीनदयालजी ने बनाई है। जनता का सुख या उनका विचार आर्थिक विकास का मुख्य लक्ष्य था।

विचार—स्वातंत्रय के इस युग में, मानव कल्याण के लिए कई विचारधारा का उदय हुआ है। इसमें अन्त्योदय, सर्वोदय, साम्यवाद और पूंजीवाद शामिल हैं। सनातन धर्म के जीवन-विज्ञान, जीवन-कला और जीवन-दर्शन ही मानव को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं।

 

“भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखनेवाला मानव समूह एक जन हैं,” दीनदयाल उपाध्याय ने संस्कृतिनिष्ठा को राजनैतिक जीवनदर्शन का पहला स्रोत बताया। भारतीय संस्कृति उनकी जीवन शैली, कला, साहित्य और दर्शन से अलग नहीं है। इसलिए संस्कृति भारतीय राष्ट्रवाद का आधार है। भारत की एकता इसी संस्कृति पर निर्भर करेगी।“

 

पं. दीनदयाल (Pandit Deen Dayal Upadhyay) का 11 फरवरी, 1968 को रहस्यमय तरीके से मौत हो गई. मुगलसराय के रेल यार्ड में उनकी लाश मिलने से सारे देश में शोक की लहर दौड़ गई. जिसके बाद भारतीय जगसंघ के कार्यकार्ता और नेता अपने प्रिय नेता के खोने के बाद आनाथ हो गए. पार्टी को इस शोक से उबरने में बहुत समय लगा. क्योंकी उनकी इस तरह से हुई रहस्यमय हत्या को कई लोगों ने भारत के सबसे बुरे कांडों में से एक माना है.

 

Brajesh Kumar 

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