जम्मू कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक और आरक्षण संशोधन विधेयक
यह विधेयक वर्गों के परिभाषाओं में बदलाव लाने के साथ-साथ राज्य के नए नेतृत्व के प्रावधानों को भी समाहित करता है
हाल ही में, लोकसभा में जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक-2023 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक-2023 को ध्वनिमत से पारित किया गया है। यह विधेयक वर्गों के परिभाषाओं में बदलाव लाने के साथ-साथ राज्य के नए नेतृत्व के प्रावधानों को भी समाहित करता है । इससे आरक्षण के माध्यम से जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग समुदायों को समानता का मार्ग दिखाया गया है, यह विधेयक जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को संशोधित करके लाया गया है संशोधित विधेयक जम्मू और कश्मीर राज्य के संघ में पुनर्गठन का प्रावधान करता है। जिसमें जम्मू और कश्मीर (विधानमंडल के साथ), लद्दाख (विधानमंडल के बिना) के क्षेत्र शामिल हैं।
चुनाव से ठीक पहले इन दोनों विधेयकों के लोकसभा में पास हो जाने के बाद सत्ता के गलियारों में चर्चा होने लगी कि केंद्र सरकार इस विधेयक के जरिए जम्मू-कश्मीर की भाजपा इकाई के हाथ मजबूत करना चाहती है।
जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक-2023 के द्वारा पहले “कमज़ोर और वंचित वर्ग (सामाजिक जाति)” के रूप में जाने जाने वाले समुदायों को “अन्य पिछड़ा वर्ग” के रूप में परिभाषित किया गया है। इससे समाज में वर्गवाद के खिलाफ एक सार्थक कदम उठाया गया है। इस विधेयक के माध्यम से गुज्जरों को पहाड़ियों के समुदाय के साथ अनुसूचित जनजाति जाने का प्रावधान किया गया है, जिससे समाज में उन्हें समानता की दिशा में बढ़ावा मिलेगा।
इसी तरह, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक-2023 ने राज्य के नए प्रशासनिक संरचना को स्थापित किया है। इससे विभाजित होकर बने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों को संघ में शामिल किया गया है। इसमें कश्मीर घाटी, जम्मू-कश्मीर विधानमंडल के साथ और लद्दाख विधानमंडल के बिना शामिल हैं।
यहां तक कि पुनर्गठन विधेयक ने जम्मू और कश्मीर विधानसभा की सीटों की संख्या को बढ़ाकर 90 कर दिया है। इससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया है। इस संशोधन के तहत कुल सीटें 119 हो जाएंगी, जिनमें से खाली रहेंगी 24 सीटें वे हैं, जो पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के हैं।
साथ ही, इस विधेयक में विस्थापित कश्मीरी पंडितों और पाक अधिकृत कश्मीर के विस्थापितों के लिए भी सीटों की आरक्षण की गई है। इससे वे भी सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं में अपनी भूमिका निभा सकेंगे।
हालांकि, इस विधेयक को लेकर विभिन्न धारावाहिकों में अलग-अलग धारणाएं हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इन विधेयकों को सकारात्मक बताया है, जबकि कुछ नेताओं ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ माना है ।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) के नेता मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी ने इस विधेयरों के पारित किए जाने पर सवाल पूछते हुए कहा, ”गृहमंत्री ने चर्चा के दौरान लोगों को उनका अधिकार दिलाने की बात की है, तो मैं ये पूछना चाहता हूं कि जम्मू -कश्मीर में पिछले पांच सालों से चुनाव नहीं हो रहे हैं, क्या ये लोगों के अधिकार का हनन नहीं है?” बीजेपी जम्मू कश्मीर के जिन लोगों को मजबूत करने की बात कर रही है, वो उनके हित में नहीं है। बीजेपी की सीटों में पिछले दरवाज़े से गिनती बढ़ाना कश्मीरी पंडितों के फायदे के तक़ाज़े के मुताबिक नहीं है।
इन विधेयकों के माध्यम से राज्य में समानता और सामाजिक न्याय का संदेश दिया गया है, जो समृद्धि और सहयोग की राह पर अग्रसर होने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इसके साथ ही, राजनीतिक विवादों का रुख भी है, जो लोकतंत्रिक मूल्यों के संरक्षण में सवाल उठा रहे हैं।
यह विधेयक सिर्फ नई संरचना की रचना नहीं कर रहा, बल्कि समाज में समानता और विकास के लिए एक सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। इसे समाज के हर वर्ग तक पहुंचाने के साथ-साथ सही राजनीतिक संरचना में उनकी भागीदारी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।