बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में एक सांसद वाली पार्टी को क्यों दीं पांच सीटें? चिराग पासवान के साथ होने से क्या हो सकता है नफा-नुकसान?
लोकसभा चुनाव के घोषित होने के साथ ही, राज्य में टिकटों का बंटवारा हो गया है, जिसने नए दांव को प्रकट किया है। न केवल नीतीश कुमार की भाजपा, बल्कि अन्य राजनीतिक दलों ने भी इस चुनाव में अपने दावों को मजबूत किया है।
बिहार की राजनीति ने फिर से उस उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे है। लोकसभा चुनाव के घोषित होने के साथ ही, राज्य में टिकटों का बंटवारा हो गया है, जिसने नए दांव को प्रकट किया है। न केवल नीतीश कुमार की भाजपा, बल्कि अन्य राजनीतिक दलों ने भी इस चुनाव में अपने दावों को मजबूत किया है। इस चुनाव में, बीजेपी 17 सीटों पर उम्मीदवार लड़ाएगी, जबकि 16 सीटें जदयू को दी गई हैं। इसके अलावा, चिराग पासवान की पार्टी, लोक जन शक्ति पार्टी (राम विलास), 5 सीटों पर मैदान में होगी। इसके अलावा, एक सीट उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी को दी गई है।
आगामी चुनाव के महत्वपूर्ण मोर्चे में से एक चिराग पासवान का है। बीजेपी ने बिहार एनडीए में चिराग पासवान पर बड़ा दांव लगाया है और उनके चाचा पशुपति पारस को किनारे लगा दिया है। इससे सवाल उठता है कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए चिराग पासवान को 5 सीटों पर लड़ने के लिए क्यों चुना? और क्यों राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति पारस) को एक भी सीट नहीं दी गई? चिराग पासवान, जो अपनी पार्टी के एकमात्र सांसद हैं, जिन्होने बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिछले चुनावों में उनका रवैया और प्रभाव साफ़ रूप से दिखा है। खासकर 2020 के विधानसभा चुनाव में, चिराग पासवान ने नीतीश कुमार की भाजपा के खिलाफ उम्मीदवारों को खड़ा किया, जिससे उनकी पार्टी ने बिहार में बड़ा उत्तरदायित्व उठाया। चिराग पासवान की पार्टी ने विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर तीसरे और चौथे स्थान पर आई, जिससे उनका प्रभाव व्यापक रूप से बढ़ा।
2020 विधानसभा चुनाव में, चिराग पासवान की पार्टी ने बिहार में कई सीटों पर अन्य दलों को बड़ा नुकसान पहुंचाया। उनके उम्मीदवारों ने दूसरे स्थान पर आने वाले उम्मीदवारों को हराया, जिससे उनकी पार्टी का दबदबा बढ़ा। विशेष रूप से, उनकी पार्टी ने 120 सीटों पर दूसरे स्थान पर आने वाले उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। चिराग पासवान की पार्टी के आंकड़ों की बात करें, तो विधानसभा चुनाव में उन्हें कुल 23,83,457 वोट मिले थे, जोकि उनका वोट प्रतिशत 5.66 फीसदी था। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि चिराग पासवान ने बिहार की राजनीति में बड़ा उतार-चढ़ाव लाया है और अगर वे मैदान में नहीं होते, तो चुनाव का परिणाम भिन्न हो सकता था।
इस बीच, बीजेपी ने चिराग पासवान को विपक्षी दलों के साथ एक मजबूत दांव पर ले आया है। उनकी पार्टी को 5 सीटों पर उम्मीदवार लड़ने के लिए चुना गया है, जिससे वे चुनाव में अभिन्न भूमिका निभा सकें। इसके विपरीत, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति पारस) को एक भी सीट नहीं दी गई है। यह चुनाव के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय है, जिससे बीजेपी ने अपने रणनीतिक दायरे को बढ़ाने का प्रयास किया है।
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चिराग पासवान के बड़े दांव और बीजेपी के निर्णय के पीछे कई कारण हैं। चिराग पासवान की पार्टी ने पिछले चुनावों में बिहार की राजनीति में बड़ा उतार-चढ़ाव लाया है और उनका प्रभाव विस्तार गया है। उनके आंकड़े और वोट की संख्या इसे साबित करते हैं कि उनकी पार्टी का कार्यकर्ता और समर्थकों की भरपूर समर्थन है। इसी बीच, बीजेपी ने चिराग पासवान को एक महत्वपूर्ण दांव पर ले आया है, जिससे उनकी पार्टी को चुनाव में बड़ा फायदा हो सकता है। इसी तरह, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी को एक सीट भी नहीं दी गई है, जिससे बीजेपी ने उनके प्रभाव को कम करने का प्रयास किया है। यह निर्णय भी बीजेपी के राजनीतिक दायरे को बढ़ाने के उद्देश्य के साथ-साथ अन्य राजनीतिक दलों को कमजोर करने के लिए किया गया है।
चुनाव में बिहार की राजनीति में इस नए दौर के साथ, बीजेपी ने अपने प्रभाव को और बढ़ाने का प्रयास किया है। चिराग पासवान की पार्टी को महत्वपूर्ण सीटों पर उम्मीदवार लड़ने के लिए चुना गया है, जिससे वे चुनाव में बड़ा उत्तरदायित्व उठा सकें। इसके विपरीत, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी को कोई सीट नहीं दी गई है, जिससे बीजेपी ने उनके प्रभाव को कम करने का प्रयास किया है। इससे स्पष्ट है कि बीजेपी ने इस चुनाव के लिए एक नई रणनीति अपनाई है, जिसमें वे राजनीतिक दायरे को विस्तारित करने के साथ-साथ अपने प्रतिद्वंद्वियों को भी कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं।