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BJP से बेटिकट हुए वरुण गांधी, क्या छोड़ दिया पीलीभीत का मैदान?

पीलीभीत सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने वरुण गांधी का टिकट काटकर उन्हें चुनाव मैदान से हटा दिया है। इसके बजाय, पार्टी ने जितिन प्रसाद को उम्मीदवार बनाया है।

पीलीभीत सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने वरुण गांधी का टिकट काटकर उन्हें चुनाव मैदान से हटा दिया है। इसके बजाय, पार्टी ने जितिन प्रसाद को उम्मीदवार बनाया है। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पार्टी के द्वारा लिया गया है। पीलीभीत सीट के चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री जितिन प्रसाद को चुनावी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका देने का फैसला किया गया है।

जितिन प्रसाद, जो पहले से ही शाहजहांपुर और धौरहरा लोकसभा सीटों से सांसद रह चुके हैं, होली के दिन पीलीभीत पहुंचे। वहां उन्होंने सिख समाज के लोगों के साथ बैठक की और बीजेपी कार्यकर्ताओं से मिलकर चुनावी रणनीतियों पर चर्चा की। जितिन प्रसाद ने पीलीभीत को महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र मानते हुए कहा कि पूरे देश-प्रदेश की नजरें इस सीट पर हैं। जितिन ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर वरुण गांधी की जगह उम्मीदवार बनाए जाने के बाद संगठन की गतिविधियों को तेजी से बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि पार्टी के कार्यकर्ता अपने काम में निष्ठावान रहेंगे और पीलीभीत सीट को बीजेपी के लिए जीत के रूप में साबित करेंगे।

वरुण गांधी ने पीलीभीत से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। उन्होंने अपने समर्थकों को इस बारे में सूचित किया है। इस निर्णय के बाद, उनके समर्थकों में कोई उत्साह या सक्रियता नहीं दिख रही है। उन्होंने अपने करीबी लोगों को बताया है कि उनके साथ छल हुआ है और अब वह चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगे। बीजेपी ने वरुण के नाम के साथ जितिन प्रसाद को पीलीभीत सीट से उम्मीदवार बनाने का निर्णय लिया है। इस निर्णय के साथ ही, पार्टी ने मेनका गांधी को सुल्तानपुर सीट से टिकट दिया है। यह चुनाव पहले चरण में हैं, जिसमें पीलीभीत समेत यूपी की आठ सीटें शामिल हैं।

मेनका गांधी को सुल्तानपुर सीट से टिकट दिया है। यह चुनाव पहले चरण में हैं, जिसमें पीलीभीत समेत यूपी की आठ सीटें शामिल हैं।

वरुण गांधी को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में या दूसरे दल से चुनाव मैदान में उतरने की संभावना है। यदि ऐसा होता है, तो बीजेपी इसे सहजता से लेगी, जिससे मेनका गांधी को नकारात्मक असर पड़ सकता है। वरुण गांधी के कई मौकों पर अपनी पार्टी और सरकार की लाइन के विपरीत खड़े होने की रिपोर्टें आई हैं। वह नए कृषि कानूनों से लेकर कोरोना महामारी तक, कई मौकों पर अपनी सरकार के विरोध में बोले हैं।

वर्ष 2016 में बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक से पहले प्रयागराज में ‘न अपराध, न भ्रष्टाचार… अबकी बार बीजेपी सरकार’ के पोस्टर लगे थे। यह पोस्टर उन्हें बीजेपी के आगे केंद्र सरकार के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट करने के लिए किया गया था। लेकिन इसे वरुण गांधी की ओर से खुद को सीएम फेस के तौर पर प्रोजेक्ट करने का रूप माना गया। योगी सरकार ने जब अमेठी में उनके पिता संजय गांधी के नाम पर अमेठी के अस्पताल का लाइसेंस सस्पेंड किया था, तो वरुण गांधी ने भी इसे लेकर कड़ा प्रतिक्रिया दी थी।

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वरुण गांधी को कई मौकों पर पार्टी की लाइन के खिलाफ बोलने के लिए जाना जाता है। उन्हें पार्टी ने 2016 में पश्चिम बंगाल में संगठन का काम सौंपा था, लेकिन उन्होंने इसमें कोई रुचि नहीं दी। उन्होंने अपने प्रियजनों की सीट से भी दूरी बनाए रखी है। वरुण गांधी के आगे की सियासी राह के बारे में विभिन्न रायें हैं। कुछ लोग उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में या कांग्रेस से चुनाव लड़ने की सलाह दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी इस विषय पर अलग-अलग डिबेट चल रही है।

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लोकसभा चुनाव के पहले चरण में देश की 102 लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है। इसके लिए नॉमिनेशन की अंतिम तारीख 27 मार्च है। बीजेपी के उम्मीदवार जितिन प्रसाद 27 मार्च को पीलीभीत से नामांकन करेंगे। पीलीभीत सीट पर 1996 से ही मेनका गांधी का दबदबा रहा है। मेनका 1989 में जनता दल के टिकट पर इसी सीट से पहली बार संसद पहुंची थीं। बीजेपी ने 1991 में इस सीट से जीत हासिल की लेकिन 1996 में फिर मेनका को जीत मिली और तब से अब तक इस सीट से वह खुद या उनके बेटे वरुण गांधी ही लोकसभा पहुंचते रहे हैं। वरुण गांधी के अगले कदम के बारे में अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

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