अमेठी और रायबरेली – यह दो नाम न केवल चुनावी मैदानों के बल्कि भारतीय राजनीति के इतिहास में भी गहरे रंग भरे हैं। ये दो सीटें वहां की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, जो न केवल चुनावी मैदानों की होती हैं, बल्कि इसके साथ ही राजनीतिक इतिहास में भी अपनी महत्ता बनाए रखती हैं। अमेठी नाम का सम्बंध अनन्य नहीं है। यहां से राहुल गांधी और स्मृति ईरानी ने चुनावी जंगल में कई बार एक-दूसरे के साथ मुकाबला किया है। इस बार भी स्मृति ईरानी ने फिर से इस सीट के लिए अपनी उम्मीदवारी जताई हैं, जबकि रायबरेली में दूसरी बार बीजेपी ने दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है।
राहुल गांधी ने 2004 में पहली बार अमेठी से चुनाव जीता था, और उसके बाद वे लगातार तीन बार वहां से संसद सदस्य बने रहे। लेकिन 2019 में स्मृति ईरानी ने उन्हें हराकर एक बड़ा उलटफेर किया था। राहुल गांधी के वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं, जो दूसरे चरण में वोटिंग हो चुकी है। कांग्रेस ने इस बार राहुल गांधी की यूपी में सीट बदल दी है, और उन्हें रायबरेली से मैदान में उतारा गया है। जहां सोनिया गांधी ने पिछले चुनाव में जीत हासिल की थी।
रायबरेली, जो सोनिया गांधी की राजनीतिक धारा का केंद्र रहा है, अब उनकी संसदीय सीट के रूप में दिखाई नहीं देगा, क्योंकि सोनिया गांधी ने लोकसभा चुनावों में भाग नहीं लिया है। यह नहीं कहा जा सकता कि राहुल और सोनिया गांधी का अमेठी और रायबरेली से हटना उनकी राजनीतिक पारी का अंत है। राहुल गांधी ने अपनी परंपरागत सीट को छोड़कर वायनाड से चुनाव लड़ा है, जबकि सोनिया गांधी अब राजस्थान से राज्यसभा की सीट पर हैं।
सोनिया गांधी ने 2019 में घोषणा की थी कि वह लोकसभा चुनावों में अपनी उम्र के कारण भाग नहीं लेंगी, और यह उनके लिए अंतिम चुनाव होगा। उनके द्वारा 1999 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार अमेठी से चुनाव लड़ा गया था और जीत हासिल की थी। रायबरेली की बात करें, तो यह सीट कांग्रेस के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। यहां सोनिया गांधी ने बड़ी संख्या में वोट प्राप्त किए और उन्हें बार-बार संसद भेजा गया है। इस बार, जब उन्होंने चुनाव में भाग नहीं लिया, तो पार्टी ने अपने किशोरीलाल शर्मा को मैदान में उतारा है।
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यह चुनाव न केवल अमेठी और रायबरेली के लिए ही महत्वपूर्ण है, बल्कि ये दोनों ही सीटें उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दायरे में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन चुनावों के परिणाम न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति को बदल सकते हैं, बल्कि ये राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। अमेठी और रायबरेली के चुनावी रंगमंच कभी भी सीधा नहीं होता। इन्हें राजनीतिक दायरे के राजनीतिक उत्तरदाताओं की बहुमूल्य धरोहर के रूप में देखा जाता है, जो हमेशा चुनावी लड़ाई में जुटे रहते हैं। इसलिए, यहां के चुनावी परिणाम सिर्फ एक पारंपरिक चुनावी जीत-हार से ज्यादा हैं, बल्कि ये राजनीतिक परिवर्तन का परिचय भी करा सकते हैं।