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कांग्रेस ने सहयोगी दलों और TMC ने ECI को लिखी चिट्ठी माँगा जवाब चुनाव के डेटा देने में इतने दिनों की देरी क्यों?

चुनावी प्रक्रिया और चुनाव आयोग की निष्क्रियता के बारे में बढ़ती चिंता के बीच, भारतीय राजनीति के दिनमान समाचार में एक नया मोड़ आया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया गठबंधन के साथी दलों को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें उन्होंने चुनाव आयोग के तर्कहीन रवैये को लेकर गंभीर संदेह जताया है।

चुनावी प्रक्रिया और चुनाव आयोग की निष्क्रियता के बारे में बढ़ती चिंता के बीच, भारतीय राजनीति के दिनमान समाचार में एक नया मोड़ आया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया गठबंधन के साथी दलों को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें उन्होंने चुनाव आयोग के तर्कहीन रवैये को लेकर गंभीर संदेह जताया है। उनके अनुसार, वोटिंग के अंतिम प्रतिशत के आंकड़े जारी करने में हो रही देरी और विसंगतियां चुनाव की स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रकृति पर सवाल उठाती हैं। खड़गे ने चिट्ठी में यह भी कहा है कि ये चुनाव केवल राजनीतिक दलों के लिए ही नहीं हैं, बल्कि यह ‘लोकतंत्र और संविधान’ को बचाने की लड़ाई है।

खड़गे के इस नजरिए को लेकर, चुनाव आयोग की तरफ से आंकड़ों की जारी करने में हुई देरी के पीछे का कारण बताने की मांग उचित है। पिछले चुनावों में आयोग ने आंकड़ों को 24 घंटे के अंदर जारी किया था, लेकिन इस बार क्यों देरी हो रही है, यह बहुत सोचने वाला प्रश्न है। खड़गे ने यह मांग भी उठाई है कि आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों में कई विसंगतियां हैं, जो कि चुनाव प्रक्रिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठाती हैं। तृणमूल कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने भी इस बात पर सवाल उठाया है कि आखिर चुनाव आयोग को इतनी देरी क्यों हुई। तृणमूल कांग्रेस ने भी चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखी है, जिसमें उन्होंने सटीक आंकड़ों की मांग की है, साथ ही मतदान रिपोर्टों के जारी होने में हुई देरी का स्पष्टीकरण भी मांगा है।

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चुनावी प्रक्रिया में हुई देरी के बावजूद, वोटिंग के आंकड़ों के जारी होने के बाद, आयोग ने बताया है कि पहले चरण में 66.14 प्रतिशत और दूसरे चरण में 66.71 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है। इसे लेकर, चुनाव आयोग ने तत्परता दिखाई है चुनावी प्रक्रिया में हुई देरी और आंकड़ों में विसंगतियों के बावजूद, चुनाव आयोग को लोकतंत्र की रक्षा और निष्पक्षता के लिए सख्ती से काम करना चाहिए। राजनीतिक दलों के साथ साथ, नागरिक समाज का भी यह कर्तव्य है कि वे चुनावी प्रक्रिया में सटीकता और निष्पक्षता की मांग करें, ताकि लोकतंत्र की मूल भूमिका को बनाए रखा जा सके।

 

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