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2024 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस छोड़ने पर क्या कहा अधीर रंजन चौधरी ने आईये जानते है.

लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस पार्टी के नतीजे अपेक्षाकृत बेहतर रहे, लेकिन पार्टी के कई महत्वपूर्ण और कद्दावर नेता अपनी-अपनी सीटें हार गए। इनमें सबसे चर्चित नाम पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का है।

लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस पार्टी के नतीजे अपेक्षाकृत बेहतर रहे, लेकिन पार्टी के कई महत्वपूर्ण और कद्दावर नेता अपनी-अपनी सीटें हार गए। इनमें सबसे चर्चित नाम पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का है। अधीर रंजन चौधरी बहरामपुर सीट से चुनाव हार गए, जहां उन्हें तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उम्मीदवार युसूफ पठान ने 85,022 वोटों के अंतर से हराया।

अधीर रंजन चौधरी की हार के बाद उनके पार्टी छोड़ने की अफवाहें भी जोर पकड़ने लगीं। हालांकि, अधीर रंजन चौधरी ने गुरुवार को इन अफवाहों पर विराम लगाते हुए एक बड़ा बयान दिया। कांग्रेस नेता ने स्पष्ट किया कि वह नहीं जानते कि अब उनका राजनीतिक भविष्य कैसा होगा, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी छोड़ने की अफवाहें पूरी तरह गलत हैं।

कांग्रेस नेता ने आगे बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने उन्हें फोन किया और उन्हें आगामी सीडब्ल्यूसी (कांग्रेस कार्यसमिति) की बैठक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है। उन्होंने कहा, “दिल्ली में कुछ लोग अफवाहें फैला रहे हैं कि मैं पार्टी से दूर जा रहा हूँ, लेकिन यह सच नहीं है। पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं ने मुझे फोन कर के समर्थन दिया और मैं कल दिल्ली की बैठक में जा रहा हूँ। अगर कोई मुझसे मिलना चाहता है, तो वह आ सकता है।”

ये खबर भी पढ़ें:NDA की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर फाइनल मुहर, विपक्ष पर साधा निशाना कहा “ना हारे थे ना हारे है”…

इससे पहले बहरामपुर स्थित अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए अधीर रंजन चौधरी ने कहा था कि आने वाला समय उनके लिए बहुत कठिन होगा। उन्होंने कहा, “मैं खुद को बीपीएल (Below Poverty Line) सांसद कहता हूँ। राजनीति के अलावा मेरे पास कोई और कौशल नहीं है। इसलिए आने वाले दिनों में मेरे लिए मुश्किलें खड़ी होंगी।”अधीर रंजन चौधरी की इस हार को कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। चौधरी ने बहरामपुर सीट पर लंबे समय तक कब्जा बनाए रखा था और वे इस क्षेत्र में एक मजबूत जनाधार रखते थे। उनकी हार के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जिनमें से प्रमुख है तृणमूल कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव और मतदाताओं की बदलती प्राथमिकताएँ।

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