अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी ने राज्य मंत्री पद को अस्वीकार करते हुए कैबिनेट पद पर जोर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अभी तक कोई पद नहीं मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नई केंद्रीय सरकार में एनसीपी का कोई नेता शामिल नहीं किया गया है। रविवार को नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, और इस अवसर पर महाराष्ट्र के कई सांसदों ने मंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी को मंत्रीमंडल में कोई स्थान नहीं मिला। एनसीपी के इस निर्णय ने विपक्ष को सरकार की आलोचना का मौका दिया है। महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के नेताओं ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजित पवार पर निशाना साधा। एमवीए के नेताओं का कहना है कि एनसीपी को राज्य मंत्री पद अस्वीकार करने के बाद कैबिनेट में शामिल होने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
शपथ ग्रहण समारोह में शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना के प्रतापराव जाधव ने स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली। इसके विपरीत, अजित पवार की एनसीपी ने राज्य मंत्री पद को अस्वीकार कर दिया और केवल कैबिनेट पद पर जोर दिया। इस स्थिति पर प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना (यूबीटी) के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि मोदी कैबिनेट में एनसीपी और शिवसेना का मामूली प्रतिनिधित्व साबित करता है कि भाजपा ने उन्हें उनकी औकात दिखा दी है। राउत ने यह भी कहा, “जब आप किसी के गुलाम बनने का फैसला करते हैं तो आपको यही मिलता है।” कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने इस मामले पर कहा कि यदि अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी राज्य मंत्री पद को स्वीकार नहीं करती है, तो उन्हें भविष्य में कैबिनेट में किसी भी पद की आशा नहीं रखनी चाहिए। वडेट्टीवार, जो महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं, ने आगे कहा कि अजित पवार को देर से ही सही, यह एहसास हुआ होगा कि भाजपा अपने सहयोगियों के लिए ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की नीति रखती है।
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एनसीपी की इस स्थिति ने महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति में तनाव को बढ़ा दिया है। एक तरफ जहां एनसीपी ने अपने रुख में दृढ़ता दिखाई है, वहीं दूसरी ओर भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने अपने निर्णयों के माध्यम से स्पष्ट संदेश दिया है। एनसीपी के इस कदम का भविष्य में महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के बाद एनसीपी की यह स्थिति स्पष्ट करती है कि पार्टी अपने उद्देश्यों और मांगों को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए है। विपक्षी दलों ने इसे भाजपा की अपने सहयोगियों के प्रति नीति का उदाहरण बताया है।
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महा विकास अघाड़ी के नेताओं ने एनसीपी को सावधान करते हुए कहा कि यदि वे राज्य मंत्री पद को अस्वीकार करते हैं, तो भविष्य में उन्हें कैबिनेट में स्थान मिलने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। यह राजनीति का एक जटिल खेल है जहां निर्णय और रणनीतियों का व्यापक प्रभाव पड़ता है। एनसीपी के इस निर्णय का परिणाम क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट है कि महाराष्ट्र की राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है।