भोजशाला की सच्चाई का खुलासा, एएसआई की रिपोर्ट में मिले महत्वपूर्ण साक्ष्य.
अंततः वह समय आ गया जब ऐतिहासिक भोजशाला की सच्चाई उजागर होने जा रही है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने सोमवार को एमपी हाई कोर्ट की इंदौर बेंच में धार भोजशाला की अपनी विस्तृत सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की। यह रिपोर्ट अब बहुप्रतीक्षित है, क्योंकि इसके आधार पर ही भोजशाला के ऐतिहासिक महत्व और वास्तविकता का खुलासा होगा।
अंततः वह समय आ गया जब ऐतिहासिक भोजशाला की सच्चाई उजागर होने जा रही है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने सोमवार को एमपी हाई कोर्ट की इंदौर बेंच में धार भोजशाला की अपनी विस्तृत सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की। यह रिपोर्ट अब बहुप्रतीक्षित है, क्योंकि इसके आधार पर ही भोजशाला के ऐतिहासिक महत्व और वास्तविकता का खुलासा होगा। 11 मार्च को इंदौर हाईकोर्ट ने एएसआई को भोजशाला में 500 मीटर के दायरे में वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। यह सर्वेक्षण 22 मार्च से 27 जून तक चला, जिसमें ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) की तकनीकों का उपयोग किया गया। 98 दिन तक चले इस सर्वेक्षण के दौरान कई खोदाई हुई, जिनकी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी की गई।
रिपोर्ट में देवी-देवताओं की मूर्तियों का विशेष उल्लेख हो सकता है। एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. आलोक त्रिपाठी के निर्देशन में इस सर्वेक्षण को अंजाम दिया गया। इस दौरान लगभग 1700 से अधिक पुरावशेषों की खोज की गई, जिनमें 37 देवी-देवताओं की मूर्तियां भी शामिल हैं। इनमें मां वाग्देवी की खंडित मूर्ति सबसे खास मानी जा रही है। सर्वेक्षण के दौरान मिली 37 मूर्तियों में भगवान श्रीकृष्ण, जटाधारी भोलनाथ, हनुमान, शिव, ब्रह्मा, वाग्देवी, भगवान गणेश, माता पार्वती, और भैरवनाथ की मूर्तियां प्रमुख हैं। भोजशाला मुक्ति यज्ञ के संयोजक गोपाल शर्मा और याचिकाकर्ता आशीष गोयल के अनुसार, अब तक मिले साक्ष्य भोजशाला को एक मंदिर के रूप में स्थापित कर रहे हैं।
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रिपोर्ट की अहमियत को देखते हुए हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई 22 जुलाई को निर्धारित की गई है। इस रिपोर्ट के आधार पर आगे की कानूनी कार्यवाही की दिशा तय होगी। एएसआई ने अपनी रिपोर्ट को बड़ी सावधानी और विस्तृत विश्लेषण के साथ तैयार किया है, जो भोजशाला के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। भोजशाला का संबंध राजा भोज (1000-1055 ई.) से है। कुछ हिंदू संगठनों का दावा है कि यह स्थल देवी वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर है, जबकि मुस्लिम समाज इसे कमाल मौलाना मस्जिद के रूप में पहचानता है। इस मुद्दे ने मध्य प्रदेश की राजनीति में अहम स्थान बना लिया है, और दोनों समुदायों के बीच इसे लेकर मतभेद और तनाव भी देखने को मिलते हैं।
भोजशाला न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण स्थल है। इसके उत्खनन में मिले पुरावशेष और मूर्तियां इसकी पुरातात्त्विक धरोहर को समृद्ध करते हैं। मां वाग्देवी की खंडित मूर्ति और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों का मिलना इस स्थल के धार्मिक महत्व को और बढ़ाता है। एएसआई की रिपोर्ट ने भोजशाला की ऐतिहासिक सच्चाई को उजागर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 22 जुलाई को होने वाली सुनवाई में इस रिपोर्ट के आधार पर ही न्यायालय द्वारा मामले की दिशा तय की जाएगी। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस रिपोर्ट के खुलासे से भोजशाला के विवाद को किस तरह सुलझाया जाता है और इस ऐतिहासिक स्थल के भविष्य का निर्धारण कैसे होता है।