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राज्यसभा में भाजपा को झटका, ताकत घटकर 86 सीटें, महत्वपूर्ण बिल पास कराने के लिए मित्र दलों पर निर्भरता बढ़ी

राज्यसभा में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को एक बड़ा झटका लगा है। चार मनोनीत सदस्यों की सेवानिवृत्ति के बाद अब भाजपा के पास उच्च सदन में मात्र 86 सीटें रह गई हैं, जबकि एनडीए के सदस्यों की कुल संख्या 101 हो गई है।

राज्यसभा में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को एक बड़ा झटका लगा है। चार मनोनीत सदस्यों की सेवानिवृत्ति के बाद अब भाजपा के पास उच्च सदन में मात्र 86 सीटें रह गई हैं, जबकि एनडीए के सदस्यों की कुल संख्या 101 हो गई है। इस परिवर्तन से आगामी बजट सत्र में महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। राज्यसभा की कुल क्षमता 245 सीटों की है, जिनमें से 19 सीटें वर्तमान में खाली हैं। इनमें 4 सीटें जम्मू-कश्मीर की हैं, जहां विधानसभा चुनाव के बाद ही राज्यसभा चुनाव होंगे। शेष 15 सीटों में 4 सीटें नामित सदस्यों की हैं और 11 सीटों पर महाराष्ट्र, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, त्रिपुरा, राजस्थान, हरियाणा और असम में चुनाव होना है। भाजपा के लिए मनोनीत श्रेणी की खाली सीटों को जल्द से जल्द भरना महत्वपूर्ण है, ताकि मित्र दलों पर निर्भरता को कम किया जा सके।

जो चार मनोनीत सदस्य सेवानिवृत्त हुए हैं, उनमें राकेश सिन्हा, राम शकल, सोनल मानसिंह और महेश जेठमलानी शामिल हैं। इन सदस्यों ने राज्यसभा में मनोनीत होने के बाद औपचारिक रूप से भाजपा का साथ दिया था। मनोनीत श्रेणी में गुलाम अली एक और ऐसे सदस्य हैं जो भाजपा का समर्थन करते हैं और वे सितंबर 2028 में सेवानिवृत्त होंगे। भाजपा को महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराने के लिए एनडीए के सात गुटनिरपेक्ष मनोनीत सदस्यों, दो निर्दलीय और एआईएडीएमके और वाईएसआरसीपी जैसे मित्र दलों के समर्थन की आवश्यकता होगी। मौजूदा सदन में, सात गुटनिरपेक्ष सदस्यों ने खुद को भाजपा का हिस्सा नहीं बताया है, लेकिन सत्ताधारी पार्टी के किसी भी कानून या प्रस्ताव को पारित कराने में उनका समर्थन महत्वपूर्ण है।

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आगामी बजट सत्र में भाजपा को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई कदम उठाने होंगे। इसके लिए पार्टी को मनोनीत श्रेणी की खाली सीटों को शीघ्रता से भरना होगा। इसके अतिरिक्त, पार्टी को अपने मित्र दलों के समर्थन को सुनिश्चित करने के लिए भी प्रयास करने होंगे। राज्यसभा में मौजूदा स्थिति भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। पार्टी को अपने विधायी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए न केवल अपनी रणनीति को पुनः मूल्यांकित करना होगा, बल्कि मित्र दलों के साथ तालमेल भी बिठाना होगा। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इन चुनौतियों का सामना कैसे करती है और अपनी ताकत को फिर से कैसे बढ़ाती है।

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