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विपक्षी बहिष्कार में दरार, ममता बनर्जी के बाद हेमंत सोरेन भी नीति आयोग की बैठक में शामिल होंगे….

हाल ही में देश की राजनीति में एक नया मोड़ आया है, जब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने घोषणा की कि वे नीति आयोग की बैठक में शामिल होंगे। यह घोषणा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद आई है, जिन्होंने पहले ही बैठक में भाग लेने की घोषणा की थी।

हाल ही में देश की राजनीति में एक नया मोड़ आया है, जब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने घोषणा की कि वे नीति आयोग की बैठक में शामिल होंगे। यह घोषणा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद आई है, जिन्होंने पहले ही बैठक में भाग लेने की घोषणा की थी। यह निर्णय विपक्षी दलों के बीच मतभेद को उजागर करता है, जो नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करने का विचार कर रहे थे। नीति आयोग की बैठक का उद्देश्य विभिन्न राज्यों के विकास और नीति निर्माण पर चर्चा करना है। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होते हैं। विपक्षी दलों ने पहले इस बैठक का बहिष्कार करने का निर्णय लिया था, उनका आरोप था कि केंद्र सरकार राज्यों के अधिकारों का हनन कर रही है और नीति आयोग का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए कर रही है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वे इस बैठक में भाग लेंगी। उन्होंने कहा कि राज्य के विकास के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे नीति आयोग की बैठक में भाग लें और राज्य के मुद्दों को उठाएं। ममता बनर्जी का यह निर्णय विपक्षी दलों के बहिष्कार में पहली दरार के रूप में देखा गया। हेमंत सोरेन ने ममता बनर्जी के बाद अपनी उपस्थिति की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि राज्य के विकास के लिए इस बैठक में भाग लेना आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि झारखंड के कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने का यह एक महत्वपूर्ण मंच है और वे इसे छोड़ नहीं सकते।

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हेमंत सोरेन और ममता बनर्जी के इस निर्णय के बाद विपक्षी दलों के बीच मतभेद और गहरे हो गए हैं। कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने अभी भी बहिष्कार पर डटे रहने का निर्णय लिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह बैठक सिर्फ एक औपचारिकता है और इसमें कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जाता। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी एकता को मजबूत रखने के लिए बहिष्कार आवश्यक है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम विपक्षी एकता के लिए एक चुनौती है। ममता बनर्जी और हेमंत सोरेन का निर्णय यह दर्शाता है कि राज्यों के मुख्यमंत्री अपने राज्य के विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं, बजाय कि वे विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए एक सामूहिक निर्णय लें। विश्लेषकों का कहना है कि यह घटना विपक्षी दलों के बीच रणनीतिक मतभेद को उजागर करती है और आगामी चुनावों में इसका प्रभाव देखा जा सकता है।

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