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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, SC/ST में उप-वर्गीकरण को मंजूरी, नए आरक्षण नियम लागू

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक फैसले में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के भीतर उप-वर्गीकरण (sub-categorization) को मंजूरी दे दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक फैसले में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के भीतर उप-वर्गीकरण (sub-categorization) को मंजूरी दे दी है। 7 न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 के बहुमत से यह निर्णय लिया है कि अब राज्य सरकारें SC/ST वर्गों में और अधिक पिछड़े समूहों को अलग कोटा प्रदान कर सकती हैं मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि अनुसूचित जातियां एक समान रूप से समरूप समूह नहीं हैं, और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन किए बिना इनका उप-वर्गीकरण किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अनुच्छेद 341(2) और अनुच्छेद 15 व 16 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो राज्य सरकार को जातियों का उप-वर्गीकरण करने से रोकता हो।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने भी इस निर्णय का समर्थन किया, लेकिन उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य सरकारों को SC/ST वर्गों में क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करने के लिए नीति बनानी चाहिए। उनके अनुसार, कुछ उप-समूह ऐसे हैं जिन्होंने ऐतिहासिक उत्पीड़न का सामना किया है, और उन्हें आरक्षण में अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वहीं, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई। उन्होंने अपने असहमतिपूर्ण निर्णय में कहा कि राज्य सरकारों के पास जातियों का उप-वर्गीकरण करने की कानूनी शक्ति नहीं है, जब तक कि उन्हें कार्यपालिका या विधायी शक्ति से ऐसी अनुमति न दी जाए।

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फैसले में 2004 के ईवी चिन्नैया मामले को भी पलट दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों का उप-वर्गीकरण अस्वीकार्य है। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि यह जरूरी है कि SC/ST वर्गों के भीतर के सबसे अधिक पिछड़े समूहों को भी न्याय मिले, और इसके लिए उप-वर्गीकरण जरूरी है। फैसले के अनुसार, राज्य सरकारें अब उप-वर्गीकरण करते समय अनुभवजन्य आंकड़ों का सहारा ले सकती हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उप-वर्गीकरण न्यायसंगत हो। लेकिन, राज्य सरकारों को यह भी ध्यान रखना होगा कि किसी उप-श्रेणी के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जा सकता। यह निर्णय सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, क्योंकि यह उन समूहों को अधिक लाभान्वित करेगा जो अब तक आरक्षण के बावजूद अधिक पिछड़े रह गए हैं।

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इस फैसले से जहां एक ओर SC/ST के भीतर अधिक पिछड़े समूहों को लाभ मिलेगा, वहीं दूसरी ओर यह एक नई बहस को भी जन्म दे सकता है। कुछ लोग इस फैसले को सकारात्मक कार्रवाई की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं, जबकि कुछ का मानना है कि यह समाज में नए विभाजन पैदा कर सकता है। यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सामाजिक न्याय और समानता की अवधारणा को नए सिरे से परिभाषित करता है। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि भारतीय न्यायपालिका में सामाजिक न्याय के मुद्दों पर बहस और चर्चा की गुंजाइश अभी भी बहुत अधिक है।

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