1993 से 2024: ममता बनर्जी के नेतृत्व पर बलात्कार मामलों की छाया, कैसे 31 साल पहले हुए एक रेप पर ममता की कसम ने डुबोया था वामपंथ का सूरज।
पश्चिम बंगाल में इन दिनों एक घटना ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है। कोलकाता में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए रेप और मर्डर के मामले ने न केवल राज्य, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। लोग इस जघन्य अपराध के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं, और ममता बनर्जी की सरकार पर सवालों की बौछार हो रही है।
पश्चिम बंगाल में इन दिनों एक घटना ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है। कोलकाता में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए रेप और मर्डर के मामले ने न केवल राज्य, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। लोग इस जघन्य अपराध के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं, और ममता बनर्जी की सरकार पर सवालों की बौछार हो रही है। इस घटना के कारण 11 दिनों से राज्य में लगातार विरोध प्रदर्शन जारी है, और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इस मामले की जांच सीबीआई के हाथों में है, लेकिन अब भी कई अनसुलझे सवाल बाकी हैं। इस घटना ने 31 साल पुरानी एक और घटना की यादें ताजा कर दी हैं, जिसमें ममता बनर्जी का एक अहम किरदार था और तब भी सरकार सवालों के घेरे में थी।
1993 के शुरुआती दिनों में पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु की वामपंथी सरकार थी। उसी दौरान नदिया जिले में एक दिव्यांग लड़की के साथ बलात्कार की घटना हुई थी। इस घटना ने राज्य में हड़कंप मचा दिया और ज्योति बसु की सरकार पर हमले शुरू हो गए। ममता बनर्जी, जो उस समय एक उभरती हुई नेता थीं, पीड़िता को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार के सचिवालय, राइटर्स बिल्डिंग, पहुंच गईं। ममता ने आरोप लगाया कि दोषियों को राजनीतिक संबंधों के कारण गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है और उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से मुलाकात की मांग की। जब उनकी मांग पूरी नहीं हुई, तो उन्होंने सीएम के चेंबर के सामने धरना देना शुरू कर दिया।
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जब ज्योति बसु ने ममता बनर्जी से मुलाकात करने से इंकार कर दिया, तो पुलिस ने उन्हें और पीड़िता को बलपूर्वक सचिवालय से बाहर निकाल दिया। ममता को महिला पुलिसकर्मियों ने घसीटते हुए सीढ़ियों से नीचे उतारा, जिससे उनके कपड़े भी फट गए थे। इस घटना के बाद ममता ने कसम खाई कि वह दोबारा तभी इस इमारत में कदम रखेंगी जब वह मुख्यमंत्री बनेंगी। 18 साल के संघर्ष के बाद, ममता ने 20 मई 2011 को मुख्यमंत्री के रूप में इस इमारत में प्रवेश किया, और पश्चिम बंगाल में वामपंथ की जड़ें हिला दीं। ममता बनर्जी ने 18 सालों तक वामपंथी सरकार के खिलाफ लगातार धरने और विरोध प्रदर्शन किए। उनके इस संघर्ष ने वामपंथी शासन की नींव को हिला दिया और अंततः ममता बनर्जी सत्ता में आईं। कहा जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु ममता की राजनीति से इतने नाराज थे कि उन्होंने कभी सार्वजनिक रूप से उनका नाम तक नहीं लिया। वे हमेशा उन्हें ‘वह महिला’ कहकर संबोधित करते थे।
ममता बनर्जी का राजनीतिक करियर संघर्ष और विवादों से भरा रहा है। हाल के कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में हुए डॉक्टर के रेप-मर्डर मामले ने ममता को फिर से सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी की भूमिका पर बलात्कार के मामलों में सवाल उठे हों। हंसखाली में एक घटना हुई थी, जिसमें ममता ने रेप की घटना को “अफेयर” कहकर खारिज कर दिया था। इसी तरह, कामुदनी में हुई एक बलात्कार की घटना का विरोध कर रहे लोगों को उन्होंने माकपा समर्थक बता दिया था। ममता बनर्जी के कार्यकाल में बलात्कार के मामलों पर उनके विवादित बयान अक्सर सुर्खियों में रहे हैं, खासकर जब आरोप उनकी पार्टी के सदस्यों पर लगे हों। ममता ने अपनी सत्ता के वर्षों के दौरान कई बलात्कार के मामलों को “झूठा” करार दिया है। एक महिला नेता के रूप में जब उनसे बलात्कार के मामलों पर जवाब मांगा जाता है, तो वे खुद को पीड़िता के रूप में प्रस्तुत करती हैं। यदि विपक्ष उन पर सवाल उठाता है, तो ममता उल्टा उन पर ही आरोप लगाने से भी नहीं चूकतीं।
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कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के रेप-मर्डर के मामले ने ममता बनर्जी के नेतृत्व को एक बार फिर से कठघरे में खड़ा कर दिया है। बलात्कार के मामलों में उनकी सरकार की भूमिका और उनके द्वारा दिए गए बयान आज भी लोगों की स्मृतियों में ताजा हैं। पश्चिम बंगाल की जनता, जो ममता बनर्जी के संघर्ष और साहस की गवाह रही है, अब उन्हीं से सवाल पूछ रही है कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों पर उनका रवैया इतना निष्क्रिय क्यों है। क्या आज ममता बनर्जी उसी तरह का साहस दिखा पाएंगी जैसा उन्होंने 1993 में दिखाया था, यह सवाल हर किसी के मन में उठ रहा है।