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दिल्ली शराब घोटाला: ईडी-सीबीआई की कार्यशैली पर उठे सवाल, सुप्रीम कोर्ट से के कविता को मिली जमानत.

दिल्ली शराब घोटाले मामले में भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए के कविता को जमानत देने का फैसला किया।

दिल्ली शराब घोटाले मामले में भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए के कविता को जमानत देने का फैसला किया। इस मामले में पहले ही दो बड़े नेता, संजय सिंह और मनीष सिसोदिया, जमानत पा चुके हैं, और अब के कविता तीसरी बड़ी नेता बन गई हैं जिन्हें जमानत मिली है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जमानत के आदेश में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं।

अदालत ने एजेंसियों के चयनात्मक रुख और कुछ आरोपियों को गवाह बनाने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि अभियोजन निष्पक्ष होना चाहिए, और यह नहीं हो सकता कि जिसे आप चाहें उसे गवाह बना दें और जिसे चाहें आरोपी बना दें। उन्होंने कहा, “अगर एक व्यक्ति ने खुद को दोषी बताया है, तो उसे गवाह बनाना न्यायसंगत नहीं है। यह स्थिति दर्शाती है कि कहीं न कहीं निष्पक्षता के साथ खिलवाड़ हो रहा है।”

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जस्टिस गवई ने सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया एसवी राजू को चेतावनी भी दी कि यदि वे मेरिट के आधार पर जमानत का विरोध करते रहे, तो अदालत अपनी टिप्पणियों को आदेश में शामिल कर सकती है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन को निष्पक्ष और संतुलित रहना चाहिए, और कानून के दायरे में काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई और ईडी की जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट व अन्य दस्तावेज अदालत में पेश किए जा चुके हैं। इसलिए, आरोपी से अब और हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है। के कविता को पांच महीने से जेल में रखा गया है, जबकि जांच एजेंसियों के पास सभी सबूत पहले से मौजूद हैं। अदालत ने यह भी माना कि इस मामले का ट्रायल जल्द पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि इसमें 493 गवाहों और 50,000 पन्नों के दस्तावेजों की जांच की जानी है।

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अदालत ने मनीष सिसोदिया के मामले में दी गई अपनी टिप्पणी को दोहराते हुए कहा कि “अंडर ट्रायल” की अवधि को सजा में नहीं बदला जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि पीएमएलए (PMLA) एक्ट की धारा 45(1) के तहत महिलाओं को जमानत के लिए विशेष विचार दिया गया है, और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की उस ऑब्जर्वेशन की भी आलोचना की जिसमें कहा गया था कि पीएमएलए एक्ट महिलाओं को विशेष दर्जा नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत ठहराते हुए कहा कि महिलाओं को जमानत देने के लिए कानून में विशेष प्रावधान मौजूद है, और इस प्रावधान को ध्यान में रखकर ही फैसला लिया जाना चाहिए।

 

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