सुप्रीम कोर्ट की ईडी को फटकार, मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में आरोपी के अधिकारों पर उठाए सवाल.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों के मामले में कड़ी आलोचना की। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने की, जहां ईडी द्वारा दस्तावेजों को आरोपियों को न देने के फैसले पर सवाल उठाए गए।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों के मामले में कड़ी आलोचना की। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने की, जहां ईडी द्वारा दस्तावेजों को आरोपियों को न देने के फैसले पर सवाल उठाए गए। न्यायमूर्ति ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने ईडी से पूछा कि क्या जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों को आरोपी से छिपाना उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा? इस मामले की सुनवाई के दौरान मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपियों को दस्तावेजों की आपूर्ति से संबंधित अपील पर विचार किया गया। अदालत ने पूछा कि यदि आरोपी को कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ रहा है, तो क्या उसे आवश्यक दस्तावेजों से वंचित करना न्यायसंगत होगा? न्यायमूर्ति संजय करोल ने सवाल उठाते हुए कहा कि “क्या आरोपी को सिर्फ तकनीकी आधार पर दस्तावेज़ों से वंचित किया जा सकता है?” न्यायमूर्ति ने आगे कहा, “सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता? न्याय का उद्देश्य न्याय करना है, न कि आरोपी को अंधेरे में रखना।”
इस मामले में ईडी की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू पेश हुए, जिन्होंने तर्क दिया कि यदि आरोपी को दस्तावेज़ों का पता होता है, तो वह उन्हें प्राप्त करने की मांग कर सकता है। लेकिन यदि आरोपी को दस्तावेजों के बारे में पता नहीं है, तो वह सिर्फ अनुमान के आधार पर दस्तावेजों की मांग नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, “अगर आरोपी को इन दस्तावेजों के अस्तित्व के बारे में जानकारी नहीं है, तो वह इनकी मांग नहीं कर सकता।” जस्टिस अमानुल्लाह ने इस तर्क को चुनौती देते हुए कहा कि समय के साथ कानूनों में परिवर्तन हो रहा है, और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय प्रणाली सख्त न हो जाए। “हम इतने कठोर कैसे हो सकते हैं कि एक व्यक्ति अभियोजन का सामना कर रहा हो, लेकिन हम यह कहें कि दस्तावेज़ सुरक्षित हैं? क्या यह न्याय होगा?” उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य न्याय करना है, और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी को उसके खिलाफ आरोपों से संबंधित सभी दस्तावेज़ मिलें।”
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इस मामले के संदर्भ में, कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक अन्य हाई-प्रोफाइल मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें कई प्रमुख राजनीतिक नेताओं को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किया गया है। इनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया, और बीआरएस नेता के कविता शामिल हैं। इन मामलों में पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) का उपयोग किया गया है, और इस कानून की वैधता पर बार-बार सवाल उठाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में जमानत एक नियम होनी चाहिए, और जेल एक अपवाद। कोर्ट ने पीएमएलए की धारा 45 का उल्लेख करते हुए कहा कि जमानत के लिए दोहरी शर्तें हैं – प्रथम दृष्टया यह संतोष होना चाहिए कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहते हुए वह कोई और अपराध नहीं करेगा।
हालांकि, इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने आपत्ति जताते हुए कहा कि आरोपी को दस्तावेज़ों तक पहुंच का अधिकार नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, “यदि ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं है और यह स्पष्ट रूप से दोषसिद्धि का मामला है, और आरोपी सिर्फ मुकदमे में देरी करने के लिए दस्तावेज़ों की मांग कर रहा है, तो यह अधिकार नहीं दिया जा सकता।” अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट का यह फैसला महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में आरोपी के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। साथ ही, यह फैसला पीएमएलए के तहत चल रही जांचों और मामलों के लिए भी मार्गदर्शन प्रदान करेगा।
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यह मामला विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के वर्षों में पीएमएलए के तहत कई हाई-प्रोफाइल विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी हुई है, जिससे यह कानून जांच के दायरे में आ गया है। इस संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में आरोपी के अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय हो सकता है।