कुर्सी विवाद: आतिशी के फैसले पर बसपा नेता भड़के, बोले – खड़ाऊ से शासन करना संविधान का अपमान.
दिल्ली की राजनीति में सोमवार, 23 सितंबर का दिन एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया, जब आम आदमी पार्टी (AAP) की नेता आतिशी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अरविंद केजरीवाल के पद छोड़ने के बाद, आतिशी को मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। परंतु, उनके शपथ ग्रहण समारोह में एक अनोखी घटना ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी।
दिल्ली की राजनीति में सोमवार, 23 सितंबर का दिन एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया, जब आम आदमी पार्टी (AAP) की नेता आतिशी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अरविंद केजरीवाल के पद छोड़ने के बाद, आतिशी को मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। परंतु, उनके शपथ ग्रहण समारोह में एक अनोखी घटना ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। इस घटना का संबंध उस खाली कुर्सी से था जिसे आतिशी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के बगल में रखा और सार्वजनिक रूप से कहा कि यह अरविंद केजरीवाल की प्रतीकात्मक कुर्सी है, जो उनके वापस आने का प्रतीक है। शपथ ग्रहण के दौरान, आतिशी ने अपनी इस अनोखी पहल को पौराणिक संदर्भ से जोड़ते हुए कहा कि उनके दिल में वही भावना है जो भरत के मन में थी जब भगवान राम वनवास पर गए थे। आतिशी ने कहा, “जैसे भरत ने भगवान राम की खड़ाऊँ रखकर अयोध्या का शासन संभाला था, वैसे ही मैं 4 महीने दिल्ली की सरकार चलाऊँगी। इस कुर्सी को अरविंद केजरीवाल का इंतजार रहेगा।” आतिशी के इस बयान के बाद राजनीति में हड़कंप मच गया। जहाँ उनके समर्थक इस प्रतीकात्मक कदम की तारीफ कर रहे थे, वहीं विपक्षी दलों ने इसे सियासी प्रपंच करार दिया।
बसपा (बहुजन समाज पार्टी) के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने इस कदम की कड़ी आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि आतिशी का यह कृत्य न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि दिल्ली की जनता का भी अपमान है। आकाश आनंद ने कहा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अरविंद केजरीवाल की प्रतीकात्मक उपस्थिति दिखाना इस बात को साबित करता है कि आतिशी का विश्वास संविधान से अधिक केजरीवाल में है। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संविधान का अपमान बताया। आकाश आनंद ने इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की तस्वीर लगाकर अरविंद केजरीवाल की खड़ाऊ रखकर अयोध्या के शासन का सपना देख रही आतिशी सिंह की यह तस्वीर गुमराह करने वाली है। यह संविधान की शपथ का उल्लंघन है, क्योंकि उनकी आस्था केजरीवाल जी के प्रति ज़्यादा दिख रही है न कि भारत के संविधान के प्रति।”
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आतिशी के इस प्रतीकात्मक कदम ने आम आदमी पार्टी की रणनीति को भी स्पष्ट किया है। आतिशी ने साफ किया कि वह केवल अगले विधानसभा चुनाव तक ही मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करेंगी। उनका यह बयान दर्शाता है कि अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक विरासत को बनाए रखने और उनकी गैरमौजूदगी में पार्टी की साख को मजबूत रखने का प्रयास किया जा रहा है। यह विवाद उस समय सामने आया जब दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जिन्हें दिल्ली शराब नीति घोटाले में जेल भेजा गया था, ने 17 सितंबर को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। आतिशी को पार्टी के विधायक दल ने सर्वसम्मति से नया मुख्यमंत्री चुना।
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आतिशी की मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति के साथ ही यह बहस भी उठी कि लोकतांत्रिक प्रणाली में इस तरह की प्रतीकात्मकता का क्या स्थान है। भारतीय संविधान के तहत, एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए, न कि किसी नेता या पार्टी प्रमुख के प्रति। बसपा जैसे विपक्षी दलों ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन बताया। हालांकि, आतिशी के समर्थकों का मानना है कि उनका यह कदम अरविंद केजरीवाल के प्रति उनके समर्पण और पार्टी की एकता का प्रतीक है। इस तरह की प्रतीकात्मकता, भले ही विवादास्पद हो, पर यह दिखाती है कि आतिशी अपने नेता के प्रति निष्ठावान हैं और उनकी गैरमौजूदगी में भी पार्टी की विचारधारा को जीवित रखना चाहती हैं।
आतिशी की चुनौती अब यह है कि वे आने वाले चार महीनों में दिल्ली की जनता का विश्वास कैसे जीतेंगी। उनकी राजनीतिक काबिलियत और नेतृत्व क्षमता का इम्तिहान अब विधानसभा चुनावों में होगा। अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी में पार्टी की नीतियों और उनकी कार्यशैली पर लोगों की नजरें होंगी।