शिवसेना (UBT) सांसद संजय राउत को मुंबई के सिवड़ी मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने आज (26 सितंबर) एक मानहानि के मामले में दोषी ठहराते हुए 15 दिन की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। यह सजा उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 500 के तहत दी गई है, जो मानहानि से संबंधित है। हालांकि, उन्हें फिलहाल जेल नहीं जाना पड़ेगा क्योंकि कोर्ट ने उनकी सजा को 30 दिनों के लिए निलंबित कर दिया है। यह मामला साल 2022 का है, जब संजय राउत ने भाजपा नेता किरीट सोमैया की पत्नी मेधा सोमैया पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने दावा किया था कि मेधा सोमैया मुंबई के मुलुंड इलाके में शौचालय घोटाले में शामिल थीं। यह आरोप बेहद संवेदनशील था, क्योंकि यह सीधे तौर पर उनकी छवि पर आक्षेप था। इस आरोप के बाद किरीट सोमैया ने संजय राउत को चुनौती दी थी कि वे अपने आरोपों के समर्थन में सबूत प्रस्तुत करें, लेकिन राउत की तरफ से कोई सबूत सामने नहीं आया।
इससे नाराज होकर मेधा सोमैया ने शिवसेना (UBT) सांसद संजय राउत पर 100 करोड़ रुपये का मानहानि का मुकदमा दायर किया। इसके बाद यह मामला कोर्ट में पहुंचा, जहां आज सिवड़ी मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया। मजिस्ट्रेट कोर्ट ने संजय राउत को 15 दिन की सजा और 25 हजार रुपये का जुर्माना सुनाया। हालांकि, फिलहाल राउत को जेल नहीं जाना होगा क्योंकि कोर्ट ने उन्हें 30 दिनों की मोहलत दी है। इस दौरान संजय राउत के वकील ने सत्र न्यायालय में अपील दायर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके साथ ही राउत 25,000 रुपये का मुचलका जमा कर कोर्ट से बाहर आ सकते हैं।
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सजा के बाद संजय राउत के वकील और उनके भाई सुनील राउत ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि इस आदेश के खिलाफ वे जल्द ही मुंबई सत्र न्यायालय में अपील करेंगे। उनका मानना है कि यह सजा असंगत है और वे इसे उच्च अदालत में चुनौती देंगे। इसके अलावा, कोर्ट ने सजा के निलंबन का आदेश दिया है, जिससे उन्हें तुरंत जेल जाने की आवश्यकता नहीं है। भारतीय दंड संहिता की धारा 500 मानहानि के मामलों से संबंधित है। इसके तहत किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने पर कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। मानहानि के मामले में आरोपित व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर कोर्ट उसे एक निश्चित अवधि के लिए जेल की सजा सुनाती है या जुर्माना लगाती है, जैसा कि इस मामले में हुआ।
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संजय राउत का यह मामला राजनीति और कानूनी विवाद के एक बड़े उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है, जहां सार्वजनिक रूप से लगाए गए आरोपों की प्रमाणिकता को चुनौती दी गई और इसे कानूनी तरीके से सुलझाया गया। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उच्च अदालत इस मामले में क्या रुख अपनाती है और संजय राउत की अपील का क्या परिणाम होता है।