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केरल में ही क्यों आते हैं सबसे पहले वैश्विक बीमारियों के शुरुआती मामले, जैसे Covid-19 और MPox?

हाल ही में केरल में मंकीपॉक्स (एमपॉक्स) का दूसरा मामला सामने आया है, जिससे यह भारत में इस बीमारी का तीसरा केस बन गया है। यह 29 वर्षीय युवक संयुक्त अरब अमीरात से लौटकर केरल के एर्नाकुलम में आकर रह रहा था।

हाल ही में केरल में मंकीपॉक्स (एमपॉक्स) का दूसरा मामला सामने आया है, जिससे यह भारत में इस बीमारी का तीसरा केस बन गया है। यह 29 वर्षीय युवक संयुक्त अरब अमीरात से लौटकर केरल के एर्नाकुलम में आकर रह रहा था। उसे तेज बुखार की शिकायत हुई और जांच में मंकीपॉक्स (क्लेड-1बी स्ट्रेन) की पुष्टि हुई। इससे पहले, 18 सितंबर को मलप्पुरम में भी मंकीपॉक्स का मामला मिला था। ये मरीज भी खाड़ी देश से ही लौटा था। केरल में मंकीपॉक्स ही नहीं, निपाह वायरस का प्रकोप भी देखने को मिला है। हाल ही में एक शख्स की निपाह वायरस से मौत हो गई, जो इस वायरस के नए दौर की शुरुआत का संकेत है। 2018, 2021, 2023 में कोझिकोड और 2019 में एर्नाकुलम में भी निपाह वायरस का कहर देखा गया था।

कोविड-19 की बात की जाए, तो भारत में इसका सबसे पहला मामला भी केरल से ही सामने आया था। साल 2020 में चीन से लौटे एक छात्र में कोविड-19 का संक्रमण पाया गया था। इसके बाद से ही केरल में वैश्विक बीमारियों के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। यह सवाल उठता है कि आखिर केरल में ही क्यों सबसे पहले ये बीमारियाँ मिलती हैं? केरल में सबसे पहले वैश्विक बीमारियों के मरीज मिलने का एक मुख्य कारण है राज्य की बड़ी एनआरआई (अनिवासी भारतीय) आबादी। केरल से करीब 22 लाख लोग विदेशों में रहते हैं, जिनमें से अधिकतर लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं। ‘दक्कन हेराल्ड’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, केरल के एक बड़े हिस्से के लिए खाड़ी देश रोज़गार का प्रमुख स्रोत हैं। इसके अलावा, केरल से बड़ी संख्या में छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश भी जाते हैं।

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संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों में काम करने वाले लोगों का केरल में आना-जाना लगा रहता है। जब ये लोग विदेश से लौटते हैं, तो वहां की बीमारियां भी साथ ला सकते हैं। इसलिए जब कोई वैश्विक महामारी या संक्रमण होता है, तो केरल में सबसे पहले मामले सामने आते हैं। 2020 में भी देश का पहला कोविड-19 मरीज चीन से लौटे एक छात्र में पाया गया था। केरल का स्वास्थ्य विभाग अत्यधिक सतर्क रहता है, खासकर जब दुनिया में कोई नई बीमारी फैलती है। राज्य में हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग की सख्त व्यवस्था की जाती है, ताकि बीमारी फैलने से पहले ही उसे पकड़ा जा सके। जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंकीपॉक्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया, तो केरल के हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि एयरपोर्ट्स पर की जाने वाली स्क्रीनिंग की अपनी सीमाएं होती हैं। बुनियादी स्तर पर यह जांच की जाती है, और जब तक सरकार या डब्ल्यूएचओ की ओर से कोई बड़ी एडवाइजरी जारी नहीं होती, तब तक पूरी तरह से इस तरह की स्क्रीनिंग प्रभावी नहीं हो सकती। इसके अलावा, शुरुआती लक्षणों की पहचान करना भी कई बार मुश्किल हो जाता है, जिससे संक्रमण का पता लगने में देरी हो सकती है। केरल में एनआरआई आबादी का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि अप्रैल 2024 में हुए चुनावों के दौरान, केवल दो दिनों में 22,000 एनआरआई नागरिक अपने घर लौटे थे। वहीं, कुल एनआरआई रजिस्टर्ड वोटरों की संख्या 89,839 है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों का खाड़ी देशों से संबंध और उनका केरल में लगातार आना-जाना, राज्य को किसी भी वैश्विक बीमारी के फैलने का केंद्र बना सकता है।

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केरल की वैश्विक बीमारियों से प्रभावित होने की प्रमुख वजह वहां की बड़ी एनआरआई आबादी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मलयाली लोगों की बड़ी संख्या है। इसके अलावा, केरल राज्य का स्वास्थ्य विभाग सतर्कता बरतता है, लेकिन सीमित संसाधनों और स्क्रीनिंग की चुनौतियों के कारण यह सबसे पहले प्रभावित होता है। चाहे मंकीपॉक्स हो, निपाह वायरस या कोविड-19, केरल की स्वास्थ्य व्यवस्था उन बीमारियों से जूझने के लिए हमेशा तैयार रहती है, लेकिन इन बीमारियों का सबसे पहले पता लगने के कारण यह राज्य वैश्विक महामारी के प्रसार का केंद्र भी बन जाता है।

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