दिल्ली में वायु प्रदूषण, सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, कहा- सिर्फ चर्चा हो रही है, कार्रवाई नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण पर गहरी चिंता जताई। न्यायालय ने कहा कि हर साल दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण पर गहरी चिंता जताई। न्यायालय ने कहा कि हर साल दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के निर्देशों का पालन करने वालों पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो रही है। न्यायमूर्ति एएस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “हर कोई जानता है कि इस मामले में सिर्फ चर्चा हो रही है, और कुछ भी ठोस नहीं किया जा रहा है। यह एक कड़वी सच्चाई है।” पीठ में न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति एजी मसीह भी शामिल थे।
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पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने सीएक्यूएम से हलफनामा दायर करने को कहा था, जिसमें पराली जलाने से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण मांगा गया था। कोर्ट ने इस पर फोकस किया कि पराली जलाना, दिल्ली में खराब हवा के प्रमुख कारणों में से एक है, लेकिन इसके समाधान के लिए अब तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को आयोग की संरचना के बारे में जानकारी दी। लेकिन इस पर न्यायमूर्ति ओका ने तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की पिछले नौ महीनों में केवल तीन बार बैठक हुई, और इनमें भी पराली जलाने पर कोई चर्चा नहीं हुई। जस्टिस ओका ने कहा, “आखिरी बैठक 29 अगस्त को हुई थी, जबकि पूरे सितंबर में कोई बैठक नहीं हुई।”
अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि जब इस समिति में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी भी शामिल हैं, जो नियमों को लागू करने की जिम्मेदारी रखते हैं, तब भी कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया। न्यायमूर्ति ओका ने नाराजगी जताई कि 29 अगस्त के बाद से अब तक एक भी बैठक नहीं हुई है। उन्होंने कहा, “जब नियमों को लागू करने की बात आती है, तो कार्रवाई में इस प्रकार की गंभीरता दिखाई दे रही है।” न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह ने भी इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, “क्या यही गंभीरता दिखाई जा रही है?” उन्होंने यह सवाल उठाया कि सुरक्षा और प्रवर्तन पर एक उप-समिति की बैठक केवल 11 सदस्यों के साथ क्यों आयोजित की गई।
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सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि उन्होंने एक लोक सेवक के आदेशों की अवज्ञा से संबंधित धारा के तहत एफआईआर दर्ज की है। इस पर न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि सरकार ने मुकदमा चलाने के लिए सबसे हल्का प्रावधान चुना है। उन्होंने कहा, “सीएक्यूएम अधिनियम की धारा 14 और धारा 15 के तहत कठोर कदम उठाने के प्रावधान हैं, लेकिन आपने इनका इस्तेमाल नहीं किया।”
सरकारी वकील ने तर्क दिया कि कठोर कदम इसलिए नहीं उठाए गए क्योंकि वायु प्रदूषण का स्तर धीरे-धीरे कम हो रहा है। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक सख्त नियमों को जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया जाएगा, तब तक कोई भी इन समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेगा। अदालत ने कहा कि आदेशों का सही तरीके से कार्यान्वयन होना जरूरी है, नहीं तो ये सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएंगे।