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निर्मला सीतारमण और उदयनिधि स्टालिन में हुई ज़बरदस्त बहस, कहा कि एक नेता को अपनी जुबान के प्रयोग पर संयम रखना चाहिए।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और उदयनिधि स्टालिन की ज़बरदस्त बहस हुई निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के 'बाप के पैसे' वाले तंज का उत्तर देते हुए उदयनिधि को अपने शब्दों को सोच समझ कर प्रयोग करने की सलाह दी।

राजनीति एक ऐसा मैदान है जहां जुबानी जंग अक्सर चरम पर होती है। नेताओं के तीखे बयान अक्सर सनसनी खेज बन जाते हैं, जिन्हें बाद में अफसोस होता है, और कई बार माफी तक मांगनी पड़ती है। यह जुबानी युद्ध उस समय और रोचक हो जाता है, जब दूसरा व्यक्ति भी उसी मोड़ में आ जाता है। शुक्रवार को हुई एक प्रेस कांफ्रेंस में एक ऐसा ही वाक्य हुआ जब राजनीतिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस ज़ुबानी दंगल में परिवर्तित हो गयी ।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और उदयनिधि स्टालिन की ज़बरदस्त बहस हुई निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के ‘बाप के पैसे’ वाले तंज का उत्तर देते हुए उदयनिधि को अपने शब्दों को सोच समझ कर प्रयोग करने की सलाह दी। उदयनिधि के द्वारा वित्त मंत्रालय के लिए यह बात कही गयी थी कि वित्त मंत्रालय कथित तौर पर यह जवाब दें कि तमिलनाडु को आख़िर क्यों उसके हिस्से की धनराशि प्रदान नहीं की जा रही जबकि तमिलनाडु के लोग केवल अपने द्वारा भुगतान किए गए कर का हिस्सा माँग रहे है।

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इस कांफ्रेंस में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक संवाददाता सम्मेलन में एक सवाल के जवाब में अपनी दृष्टि साझा की। जब उन्हें तमिलनाडु सरकार के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के बयान को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने जवाब देते हुए एक महत्वपूर्ण बात साझा की। उन्होंने कहा कि एक नेता को अपनी जुबान के प्रयोग पर संयम रखना चाहिए। उन्हें किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से पहले मुद्दे को समझ लेना चाहिए। यह न केवल नेता की राजनीतिक छवि के लिए बहतर होता है बल्कि जनता पर उनके नज़रिए को भी बताता है।

राजनीति में हर बोले जाने वाले शब्द का महत्व होता है। जब तक हर शब्द सोच-समझकर नहीं बोला जाता, तब तक उनका प्रभाव भी समझा नहीं जा सकता। नेता अपनी जबान को संयमित रखकर बोलना चाहिए, क्योंकि वे समाज के प्रति जिम्मेदारी रखते हैं।

इस संवाददाता सम्मेलन में निर्मला सीतारमण ने तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के एक बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें बोलने से पहले विचार करना चाहिए कि उनके शब्दों का क्या प्रभाव हो सकता है। उन्होंने जताया कि राजनीति में हर शब्द का वजन होता है, और उसे ध्यान में रखना जरूरी है।

 

निर्मला सीतारमण ने उदयनिधि स्टालिन के बयान को लेकर एक सार्थक बात कही कि नेता अपनी ज़बान पर नियंत्रण रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं। राजनीति में किसी के भी माता-पिता के बारे में बोलना उचित नहीं होता। वे उदयनिधि को सलाह देते हुए बताई कि वे युवा हैं और राजनीति में आगे बढ़ना चाहते हैं, इसलिए वे अपनी ज़बान को संयमित रखें और विचार से पहले बोलें।

इसके साथ ही, निर्मला सीतारमण ने राज्य को बाढ़ और बारिश की स्थिति में मदद पहुंचाने के बारे में भी बात की। वह बताई कि राज्य को 900 करोड़ रुपये की मदद मिली है और जरूरत पड़ने पर यह रकम बढ़ाई जा सकती है, लेकिन यह पैसा न केवल उनका है, न ही उदयनिधि स्टालिन का, बल्कि यह जनता का है, और उनके हित में खर्च हो रहा है।

राजनीति में ज़बानी युद्ध का प्रभाव समझाना बहुत महत्वपूर्ण है। नेताओं को अपने शब्दों के प्रभाव को समझते हुए बोलना चाहिए, ताकि उनके बयानों से समाज में सही दिशा में प्रभाव हो सके।

 

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