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मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर कानून में संशोधन को रद्द करने की मांग, SC में याचिका दायर,

सरकार द्वारा संशोधित कानून ने इस प्रक्रिया को फिर से व्यवस्थित किया है, जहां सीजेआई को नियुक्ति पैनल से हटा दिया गया और उनकी जगह प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, और एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया

चुनावी प्रक्रिया और नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार द्वारा की गई मुख्य बदलावों ने सामान्य लोगों की ध्यान बाधित किया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका द्वारा मांग की गई है कि चुनाव आयोग के नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पैनल में मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाए। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, और चीफ जस्टिस को इस प्रक्रिया में शामिल होने का आदेश दिया था।

 

सरकार द्वारा संशोधित कानून ने इस प्रक्रिया को फिर से व्यवस्थित किया है, जहां सीजेआई को नियुक्ति पैनल से हटा दिया गया और उनकी जगह प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, और एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया। यह संशोधन कानूनी व्यवस्था को लेकर जानवरी में याचिका दायर की गई थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने पहले का आदेश दिया था कि चुनाव आयोग की नियुक्ति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, और चीफ जस्टिस को शामिल किया जाए। इसका मकसद चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय को सुनिश्चित करना था। हालांकि, नए संशोधन ने इस प्रक्रिया में बदलाव किए हैं और अब सीजेआई को नियुक्ति पैनल से हटा दिया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। इससे पहले की तुलना में, यह बदलाव कई सवाल उठाता है।

 

इस संशोधन से पूछे जाने वाले सवालों में से एक है कि क्या यह प्रक्रिया सरकारी हस्तक्षेप का रास्ता नहीं बन सकता? नियुक्ति प्रक्रिया में सरकारी हस्तक्षेप से चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्न उठते हैं। अब, सुप्रीम कोर्ट को इस याचिका पर विचार करना होगा कि क्या सरकार द्वारा किए गए संशोधन ने चुनावी प्रक्रिया में तंत्रांतरित किया है? क्या इससे चुनावी प्रक्रिया में न्याय और पारदर्शिता की भावना पर धारा डाली जा सकती है?

 

यह संशोधन सरकार के तर्कों का परीक्षण भी करता है। क्या सरकार के तर्क समाज की हितैषी नीतियों के साथ मेल खाते हैं या वे तंत्रिका हैं? सरकार के तर्कों और याचिका में दी गई मांग के बीच एक संतुलन ढूंढना होगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मुद्दे पर बहुत महत्वपूर्ण होगा। चुनावी प्रक्रिया और नियुक्ति प्रक्रिया में सुनिश्चित पारदर्शिता और न्याय ही लोकतंत्र की मजबूती होती है।

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