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ममता बनर्जी का राम मंदिर को लेकर बड़ा बयान, कहा कि धर्म एक व्यक्तिगत विषय हो सकता है, लेकिन त्योहार सभी का होता है

उनका वचन है कि जब तक वे जीवित रहेंगी, तब तक वे किसी भी तरह के धार्मिक भेदभाव को बर्दाश्त नहीं करेंगी।

क्या ममता बनर्जी एक धार्मिक विवाद में बसी जंग की बात कर रही हैं या फिर कुछ और? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने राम मंदिर को लेकर एक बड़ा बयान दिया है, जो न केवल राजनीति में बदलाव ला सकता है, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता की ओर भी संकेत कर सकता है।  ममता बनर्जी ने यह बयान देते हुए कहा कि धर्म एक व्यक्तिगत विषय हो सकता है, लेकिन त्योहार सभी का होता है। वे उस उत्सव के विश्वास में हैं जो सभी को साथ लेकर चलता है और सभी धर्मों की मान्यताओं को सम्मान देता है।

उन्होंने दूसरे समुदायों की अवहेलना करने को सही नहीं माना। उनका वचन है कि जब तक वे जीवित रहेंगी, तब तक वे किसी भी तरह के धार्मिक भेदभाव को बर्दाश्त नहीं करेंगी। ममता ने उसे चुनावी नौटंकी के रूप में देखा, जहां धर्म को बेहद खेला जा रहा है। वह कहती है कि जो करना है, वो करें, लेकिन किसी भी तरह के धार्मिक विभाजन को बढ़ावा नहीं देगी।

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उन्होंने ध्यान दिलाया कि चुनावी दल आते हैं, धर्म के नाम पर बांटते हैं, लेकिन फिर भी वह बंगाल के बकाया का भुगतान नहीं करते हैं। वे इस बात को भी सामने लाती हैं कि उनकी सरकार मुफ्त राशन वातानुकूलन देती है, लेकिन दूसरी ओर दल उनकी योजनाओं में अपना चिह्न चाहते हैं। वे ध्यान देने की गुज़ारिश करती हैं कि मतदाता सूची में नाम न काटें, अन्यथा वे CAA और एनआरसी के खिलाफ उठेंगे।

 

ममता बनर्जी ने महुआ मोइत्रा के केस की भी चर्चा की और कहा कि वहीं टीएमसी की भी जीत है। उन्होंने ईडी की छापेमारी पर भी अपनी बात रखी, कहते हुए कि वे टीएमसी से डरते हैं, इसलिए वे टीएमसी नेताओं के घरों पर जाते हैं और उन्हें फर्जी मामलों में गिरफ्तार करते हैं।  यह बयान न केवल बंगाल की राजनीति में ताक़त के संकेत के रूप में खड़ा है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे राजनीतिक दल अपने हित के लिए धर्म को बाजार में ला रहे हैं।

 

ममता बनर्जी का बयान दरअसल धार्मिक सहिष्णुता की मांग और समर्थन का एक संकेत है, जो राजनीतिक दलों को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या धर्म को चुनावी मुद्दा बनाना सही है या नहीं।

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