हरीश साल्वे समेत 600 वकीलों ने CJI को लिखी चिट्ठी, न्यायपालिका पर एक खास ग्रुप बना रहा दबाव…
इन वकीलों ने अपनी चिट्ठी में बताया कि एक विशेष ग्रुप का गठन हुआ है, जो न्यायपालिका के निर्णयों को प्रभावित करने के लिए प्रयासरत है। विशेष रूप से उन मामलों में, जिनमें नेताओं की संलग्नता होती है या फिर जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, मेंदू को इन वकीलों ने उचित नहीं माना है।
समाज में न्यायिक संस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो समाज के न्याय और व्यवस्था को सुनिश्चित करती है। न्यायपालिका के निर्णयों का भरोसा जनता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समाज में विश्वास का एक मुख्य स्रोत है। हाल ही में, भारतीय न्यायपालिका में एक चिंता का विषय उठा है, जिसमें कुछ वकीलों ने एक चिट्ठी में लिखकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को सार्वजनिक रूप से संदेश दिया है।
इन वकीलों ने अपनी चिट्ठी में बताया कि एक विशेष ग्रुप का गठन हुआ है, जो न्यायपालिका के निर्णयों को प्रभावित करने के लिए प्रयासरत है। विशेष रूप से उन मामलों में, जिनमें नेताओं की संलग्नता होती है या फिर जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, मेंदू को इन वकीलों ने उचित नहीं माना है। इस ग्रुप के कार्यों और उनकी चालाकी से, वे न्यायपालिका के संरचना और विश्वास को खतरे में डालते हैं।सीजेआई को चिट्ठी लिखने वाले वकीलों के बीच वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पिंकी आनंद समेत देश के 600 से अधिक वकील शामिल हैं। उनका कहना है कि इस ग्रुप का उद्देश्य न्यायपालिका को कमजोर करना है और उसे राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों के लिए इस्तेमाल करना है।
उनकी चिट्ठी में आलेखित है कि इस ग्रुप के द्वारा कई तरीकों से न्यायपालिका के काम पर दबाव डाला जाता है, जैसे कि न्यायपालिका के इतिहास को दोषारोपण करना, अदालतों की गतिविधियों पर सवाल उठाना और जनता के विश्वास को कमजोर करना।वकीलों का कहना है कि यह ग्रुप न्यायपालिका के निर्णयों को अपने पॉलिटिकल एजेंडे के आधार पर सराहना या आलोचना करता है। इस ग्रुप का मानना है कि ‘माई वे या हाईवे’ वाली थ्योरी और बेंच फिक्सिंग की थ्योरी सही है। उनका आरोप है कि ये व्यक्ति भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद अदालत में उनका बचाव करते हैं, और अगर उनकी पसंदीदा गवाही नहीं मिलती है तो वे उदाहरण के रूप में अदालत कीआलोचना करते हैं। चिट्ठी में यह भी दावा किया गया है कि कुछ तत्व जजों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं, और कुछ चुनिंदा मामलों में अपने पक्ष का फैसला करवाने के लिए उन्हें दबाव डाला जा रहा है।
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इसके अलावा, इन गतिविधियों का असर सोशल मीडिया पर भी देखा गया है, जिससे भ्रांतियां और गलत जानकारी प्रसारित होती है। इन वकीलों का मानना है कि इस तरह की गतिविधियां न्यायपालिका को राजनीतिक और व्यक्तिगत कारणों से प्रभावित करने का प्रयास है, जो किसी भी समय स्वीकार्य नहीं होता।चिट्ठी में इस ग्रुप की गतिविधियों के बारे में एक और बात भी उजागर की गई है, जिसमें यह बताया गया है कि इनकी गतिविधियां चुनावी समय में अधिक सक्रिय होती हैं। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान भी, इस ग्रुप की गतिविधियों में एक वृद्धि देखी गई थी।
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वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह इस तरह की गतिविधियों से न्यायपालिका को संरक्षित रखने के लिए कठोर कदम उठाएं।इन वकीलों ने चिट्ठी में न्यायपालिका के समर्थन में एकजुट रुख अपनाने का आह्वान किया है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायपालिका लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ बनी रहे।