दिल्ली महिला आयोग से 223 कर्मचारियों को निकाले जाने के मामले में हलचल बढ़ी है। इस मामले को लेकर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल वीके सक्सेना ने कठोर कदम उठाए हैं। इसका आरोप है कि दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष और आम आदमी पार्टी की सेना से जुड़ी स्वाति मालीवाल ने वित्त विभाग और दिल्ली लोकपाल की मंजूरी के बिना इन कर्मचारियों को नियुक्त किया था।
इस मामले में स्वाति मालीवाल के खिलाफ आरोप लगाया गया है कि उन्होंने संविदा कर्मचारियों के रूप में नियुक्ति दी, जो कि डीसीडब्ल्यू अधिनियम के तहत केवल 40 ही स्वीकृत थीं। इसके अलावा, उनकी नियुक्तियों में अतिरिक्त वित्तीय भार के लिए कोई मंजूरी नहीं ली गई थी और न उनके नियुक्ति से पहले जरूरी पदों की सटीक संख्या का आकलन किया गया था। जांच रिपोर्ट के अनुसार, इस कदम का प्रमुख उद्देश्य था राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करना, जिसके लिए कोई वित्तीय प्रावधान नहीं था। यह नियमों की उल्लंघन के संदर्भ में एक गंभीर मामला है।
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साथ ही, इस मामले में स्वाति मालीवाल के इस्तीफे का मुद्दा भी सामने आया है, जो कि जनवरी 2024 में हुआ था। उन्हें महिलाओं के मुद्दों पर अपना काम करते हुए देखा जाता था। उन्होंने अपनी कार्यकाल के दौरान महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के प्रति बहुत सारे कदम उठाए थे। इस मामले में सरकार के कदम को लेकर राजनीतिक विवाद भी हैं। कुछ दलों ने इसे बेहद गंभीर माना है,जबकि कुछ ने इसे सिर्फ राजनीतिक हताशा का परिणाम बताया है।
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इस विवाद को लेकर विभिन्न दलों के नेताओं ने अपने-अपने पक्ष को जताया है। आम आदमी पार्टी के नेता ने सरकार के फैसले का समर्थन किया है, जबकि अन्य दलों ने इसे नकारा है। यह मामला उस समय उजागर हुआ जब स्वाति मालीवाल ने राज्यसभा के लिए अपनी उम्मीद जताई थी, लेकिन फिर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्हें महिला आयोग के अध्यक्ष के रूप में 2015 में नियुक्त किया गया था।