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सुप्रीम कोर्ट से मिली मनीष सिसोदिया को जमानत: 17 महीनों की कैद के बाद राहत, जानिए किन दलीलों पर आधारित है फैसला”

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है, जिससे उन्हें 17 महीनों की लंबी कैद के बाद राहत मिली है।

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है, जिससे उन्हें 17 महीनों की लंबी कैद के बाद राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और ईडी द्वारा दर्ज मामलों में सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कई महत्वपूर्ण दलीलें पेश की हैं। आइए, समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने किन आधारों पर सिसोदिया को जमानत दी है।

बिना सजा के लंबे समय तक कैद: सिसोदिया ने सीबीआई के मामले में 13 और ईडी के मामले में 14 याचिकाएं निचली अदालत में दाखिल की थीं। उन्होंने अदालत में तर्क दिया कि उन्हें बिना सजा के लंबे समय तक जेल में रखा गया है, जो कि कानून के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर जोर देते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को बिना सजा के लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। यह स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है और किसी भी अभियुक्त को त्वरित न्याय पाने का अधिकार है।

ईडी की आपत्ति को खारिज करना: सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की इस आपत्ति को भी खारिज कर दिया कि सिसोदिया की जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। अदालत ने कहा कि 17 महीने की लंबी कैद और मुकदमे की प्रक्रिया शुरू ना होने के कारण सिसोदिया को उनके सुनवाई के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। अदालत ने यह भी माना कि इस मामले में 400 से अधिक गवाह हैं और ऐसे में मुकदमे का जल्द पूरा होना संभव नहीं है।

ट्रिपल टेस्ट का प्रभाव: सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि इस मामले में “ट्रिपल टेस्ट” लागू नहीं होगा, क्योंकि यह मामला ट्रायल की देरी से संबंधित है। अदालत ने स्पष्ट किया कि लंबे समय तक कैद में रहने और ट्रायल शुरू ना होने के कारण सिसोदिया की जमानत दी गई है।

न्याय का मजाक नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सिसोदिया को वापस ट्रायल कोर्ट में भेजा जाता है, तो यह न्याय का मजाक उड़ाने जैसा होगा। अदालत ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने त्वरित न्याय के अधिकार को अनदेखा करते हुए मेरिट के आधार पर जमानत नहीं दी थी।

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जेल अपवाद है, जमानत नियम है: अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि “जेल अपवाद है, जबकि जमानत नियम है।” अदालत ने लंबे समय तक सिसोदिया को जेल में रखे जाने पर भी विचार किया और माना कि आने वाले समय में भी ट्रायल पूरा होने की संभावना नहीं है।

अपीलकर्ता को बार-बार परेशान नहीं करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सिसोदिया को फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजा जाता है, तो यह उनके साथ “सांप-सीढ़ी का खेल” खेलने जैसा होगा। अदालत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, खासकर तब जब सुनवाई में देरी का कोई ठोस प्रमाण न हो।

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स्वतंत्रता का अधिकार सर्वोपरि: अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने एएसजी की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें सिसोदिया को दिल्ली के सीएम ऑफिस जाने से रोकने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि स्वतंत्रता का अधिकार हमेशा महत्वपूर्ण है और इसे किसी भी स्थिति में नकारा नहीं जा सकता है।

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