केरल हाईकोर्ट ने वायनाड भूस्खलन को बताया मानवता की चेतावनी, कहा – प्रकृति के प्रति उदासीनता और लालच का परिणाम.
केरल के वायनाड जिले में हाल ही में हुए भूस्खलन ने व्यापक तबाही मचाई है, जिसमें 400 से अधिक लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं। इस घटना के बाद केरल हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया ने इस आपदा के पीछे के कारणों और उससे उत्पन्न चेतावनियों पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
केरल के वायनाड जिले में हाल ही में हुए भूस्खलन ने व्यापक तबाही मचाई है, जिसमें 400 से अधिक लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं। इस घटना के बाद केरल हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया ने इस आपदा के पीछे के कारणों और उससे उत्पन्न चेतावनियों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। केरल हाईकोर्ट ने वायनाड भूस्खलन को “मानव उदासीनता और लालच” का परिणाम बताया है, जो प्रकृति की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया है। न्यायालय ने अपने बयान में कहा कि यह घटना एक चेतावनी संकेत है, जिसे बहुत पहले ही देख लिया जाना चाहिए था। लेकिन विकास की दौड़ में इन संकेतों को नजरअंदाज कर दिया गया।
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मानव हस्तक्षेप और पर्यावरण के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करती है। न्यायमूर्ति ए के जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वी एम की पीठ ने कहा कि 2018 और 2019 में आई प्राकृतिक आपदाओं, दो वर्षों तक चली महामारी, और हाल ही में हुए भूस्खलन ने हमें हमारी गलतियों का एहसास कराया है। कोर्ट ने 30 जुलाई को हुए इस भूस्खलन के बाद स्वत: संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका शुरू की है, जिसमें राज्य सरकार की मौजूदा नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने की बात कही गई है। पीठ ने कहा कि वायनाड के तीन गांव पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं और 119 लोग अब भी लापता हैं। इस संदर्भ में, न्यायालय ने 23 अगस्त के अपने आदेश में राज्य सरकार से केरल में सतत विकास के लिए अपनी वर्तमान धारणाओं पर आत्मनिरीक्षण करने और इस संबंध में नीतियों पर फिर से विचार करने का आग्रह किया है।
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हाईकोर्ट ने अपने बयान में यह भी कहा कि न्यायालय राज्य की मौजूदा नीतियों का जायजा लेगा, विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, पर्यावरण, वन और वन्यजीवों के संरक्षण, प्राकृतिक आपदाओं की रोकथाम, प्रबंधन और शमन तथा सतत विकास लक्ष्यों के संदर्भ में। इस घटना के बाद राज्य में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और गैर-नियंत्रित विकास गतिविधियों पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता महसूस की जा रही है। केरल, जो प्राकृतिक आपदाओं से पहले ही ग्रस्त है, अब और अधिक भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए सतर्क होना चाहिए।
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इस पूरी घटना ने सरकार की नीतियों और उनके कार्यान्वयन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वायनाड भूस्खलन एक स्पष्ट संकेत है कि राज्य को अपने विकास एजेंडे में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी। सरकार के लिए यह समय है कि वह अपनी मौजूदा नीतियों पर पुनर्विचार करे और सतत विकास की दिशा में कदम उठाए। अगर अब भी सकारात्मक सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में होने वाले प्राकृतिक आपदाओं से बचना मुश्किल हो जाएगा। इस घटना ने हमें यह सिखाया है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना ही हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक है।