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विपक्ष में रहकर कांग्रेस को किन चुनौतियों और प्रलोभनों से बचना चाहिए?

ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी के नेता शायद भारतीय राजनीति में बहुत प्रासंगिक न लगें, लेकिन जब 1997 से 2001 तक ब्रिटिश विपक्ष का नेतृत्व कर चुके विलियम हेग की सलाह पर ध्यान दिया जाए, तो यह कांग्रेस पार्टी और उसके नेता राहुल गांधी के लिए काफी कुछ सिखाने वाला हो सकता है।

ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी के नेता शायद भारतीय राजनीति में बहुत प्रासंगिक न लगें, लेकिन जब 1997 से 2001 तक ब्रिटिश विपक्ष का नेतृत्व कर चुके विलियम हेग की सलाह पर ध्यान दिया जाए, तो यह कांग्रेस पार्टी और उसके नेता राहुल गांधी के लिए काफी कुछ सिखाने वाला हो सकता है। हेग ने विपक्ष के नेता के रूप में अपनी भूमिका के दौरान कई गलतियां कीं, और यही अनुभव उन्होंने हाल ही में कंजर्वेटिव पार्टी को विपक्ष में जाने पर दी गई चेतावनियों में साझा किया। उनकी यह सलाह भारतीय राजनीतिक परिदृश्य, विशेष रूप से कांग्रेस के लिए भी प्रासंगिक है।

हेग का सबसे महत्वपूर्ण सुझाव यह था कि विपक्ष में रहते हुए जल्दबाजी में नीतिगत वादे नहीं करने चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि अगले चुनाव तक अर्थव्यवस्था और वैश्विक परिस्थितियों में बहुत बदलाव हो सकते हैं, इसलिए वर्तमान में किए गए वादे भविष्य में प्रासंगिक नहीं रह सकते। यही सलाह कांग्रेस के लिए भी महत्वपूर्ण है। राहुल गांधी और उनकी पार्टी ने 2024 के आम चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में कई बड़े वादे किए हैं, जो अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, लगभग 22 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष का खर्चा करेंगे। यह भारत की कुल शुद्ध कर प्राप्तियों का लगभग 85 प्रतिशत है। अगर यह वादे लागू किए जाते हैं, तो देश के वित्तीय संतुलन पर गंभीर असर पड़ेगा। ऐसे में कांग्रेस को हेग की सलाह पर ध्यान देना चाहिए और जल्दबाजी में कोई नीतिगत वादा नहीं करना चाहिए, खासकर जब उन्हें भविष्य में सत्ता में आने की उम्मीद हो।

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हेग ने यह भी कहा कि विपक्ष को लोकलुभावन नीतियों से बचना चाहिए। भारत में कांग्रेस और उसके सहयोगी दल जाति जनगणना की मांग को लेकर जोर दे रहे हैं। हालांकि, विपक्ष को इसे सभी सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत करने से बचना चाहिए। जाति जनगणना के परिणामस्वरूप प्रस्तावित आरक्षण नीति, जिसमें 50 प्रतिशत की सीमा को पार करने और सरकारी सचिवों के स्तर तक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की बातें की जा रही हैं, से देश में विभाजन और अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि क्या वह वाकई इस तरह के बड़े सामाजिक बदलावों के परिणामों को संभाल पाएगी।

हेग ने विपक्षी पार्टियों को लोकलुभावनवाद से दूर रहने की सलाह दी थी। कांग्रेस के मामले में, पार्टी पहले ही लोकलुभावन नीतियों का सहारा ले चुकी है। राहुल गांधी ने चुनावों में फ्रीबीज़ की राजनीति को अपनाया, जिसे भाजपा ने ‘रेवड़ी’ कहकर निंदा की थी, लेकिन अब भाजपा भी इस राजनीति में शामिल हो चुकी है। हेग की चेतावनी यहां कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगर कांग्रेस खुद को एक सक्षम और दीर्घकालिक सरकार के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है, तो उसे फ्रीबीज़ की राजनीति से बचना होगा। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने 2024 के चुनावों में कांग्रेस को कुछ सीटें जरूर दिलवाईं, लेकिन इसका व्यापक प्रभाव बहुत सीमित रहा। इंडियन एक्सप्रेस के एक विश्लेषण के मुताबिक, ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान कवर की गई 71 सीटों में से कांग्रेस ने केवल 23 सीटें जीतीं, जबकि 2019 में इन सीटों पर उसे 15 सीटें मिली थीं। ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के तहत कवर की गई 82 सीटों में से कांग्रेस ने 49 सीटों पर लड़ाई लड़ी और 17 सीटें जीतीं।

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हालांकि, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में यात्रा का कोई असर नहीं हुआ और यहां कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। दिल्ली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कई अन्य राज्यों में भी यात्रा का कोई विशेष चुनावी प्रभाव नहीं पड़ा। इससे यह साफ होता है कि राहुल गांधी की यात्राओं ने कुछ राज्यों में सफलता दिलाई, लेकिन इसका देशव्यापी असर सीमित रहा। जाति जनगणना पर जोर देने वाली कांग्रेस को यह भी समझना चाहिए कि इस मुद्दे पर सभी वर्गों का समर्थन नहीं मिलेगा। राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव के अनुसार, भाजपा ने उच्च जाति और मध्यम वर्ग के हिंदुओं के साथ-साथ अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के बीच अपने समर्थन को बनाए रखा है।

कांग्रेस का वोट शेयर पिछले तीन लोकसभा चुनावों में लगभग स्थिर रहा है। 2024 में इसे 21.19 प्रतिशत वोट मिले, जो 2019 के मुकाबले सिर्फ 1.7 प्रतिशत की वृद्धि है। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस को अपने सामाजिक इंजीनियरिंग प्रयासों के परिणामों को लेकर अधिक उत्साहित होने से बचना चाहिए। इंडिया ब्लॉक के सहयोगी दलों को स्थायी साथी मानना एक और गलती हो सकती है। हेग की सलाह के अनुसार, विपक्षी दलों के बीच एक साझा दुश्मन भाजपा है, जिसने उन्हें एकजुट किया है। लेकिन इनमें से कई पार्टियों की जड़ें कांग्रेस के खिलाफ लड़कर ही मजबूत हुई हैं। ऐसे में कांग्रेस को यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि ये दल उसके हमेशा के सहयोगी बने रहेंगे।

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विलियम हेग की सलाह कंजर्वेटिव पार्टी के लिए थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के लिए भी इसमें महत्वपूर्ण सीखें हैं। विपक्ष में रहकर जल्दबाजी में नीतिगत घोषणाएं करना, लोकलुभावनवाद अपनाना, और सहयोगियों पर अत्यधिक निर्भरता कांग्रेस के लिए दीर्घकालिक नुकसान का कारण बन सकती है। राहुल गांधी को इन प्रलोभनों से बचते हुए एक स्थिर और दीर्घकालिक रणनीति तैयार करनी होगी, ताकि कांग्रेस आने वाले चुनावों में एक मजबूत और सक्षम पार्टी के रूप में उभर सके।

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