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केजरीवाल की जमानत शर्तों पर BJP का तंज, अखिलेश ने दिया करारा जवाब: ‘ये किसी अपराधी की नहीं

अरविंद केजरीवाल की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली की राजनीति में एक बड़ा मोड़ लेकर आया है। भाजपा और विपक्ष के बीच इस मुद्दे पर टकराव साफ दिखाई दे रहा है। कोर्ट ने केजरीवाल की जमानत तो मंजूर कर ली है, लेकिन उन पर लगाई गई शर्तों से उनका कार्यभार सीमित हो गया है। इस स्थिति में देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में दिल्ली की राजनीति में और क्या नए मोड़ आते हैं

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले के मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। शुक्रवार को कोर्ट ने उन्हें 6 शर्तों के साथ जमानत दी है। हालांकि, यह राहत कई दिनों बाद मिली है, लेकिन इसके साथ ही एक नई राजनीतिक बहस भी छिड़ गई है। भाजपा और विपक्ष के बीच इस मुद्दे को लेकर तीखी नोकझोंक शुरू हो गई है। भाजपा नेताओं ने जहां सीएम केजरीवाल पर तीखे प्रहार किए हैं, वहीं विपक्षी दलों ने उनके समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की है। इस फैसले के बाद भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने अरविंद केजरीवाल की जमानत की शर्तों पर सवाल उठाते हुए उनके खिलाफ सख्त टिप्पणी की। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “ये किसी कुख्यात अपराधी की नहीं बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत की शर्तें हैं। जब कार्यालय नहीं जा सकते, फाइलों पर साइन नहीं कर सकते, तो मुख्यमंत्री क्यों बने हुए हैं?”

मालवीय ने केजरीवाल के आलीशान सरकारी आवास पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वो जनता के पैसे से बने बंगले में रह रहे हैं, लेकिन कोई सरकारी काम नहीं कर सकते। उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री बने रहने का क्या हक है? उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई है। वहीं, भाजपा के इन हमलों के जवाब में विपक्षी दलों ने केजरीवाल के पक्ष में मोर्चा संभाल लिया है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने अमित मालवीय के बयान का कड़ा विरोध करते हुए कहा, “दिल्ली के लोकप्रिय और जन कल्याणकारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी की जमानत संविधान की जीत है।”

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अखिलेश यादव ने आगे लिखा, “संविधान का दुरुपयोग करने वाले ही ऐसे सवाल उठाते हैं। न्याय की प्रक्रिया में विश्वास रखने वाले लोग जानते हैं कि सच्चाई हमेशा जीतती है।” उनके इस बयान को विपक्ष के कई अन्य नेताओं ने भी समर्थन दिया है। विपक्ष ने इसे न्यायिक प्रक्रिया की जीत बताया है और कहा है कि सीएम केजरीवाल को फंसाने की कोशिश की जा रही थी, जो नाकाम हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को जमानत देते हुए कुछ सख्त शर्तें भी लगाई हैं। पहली शर्त यह है कि वो मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकते हैं। इसके अलावा, उन्हें फाइलों पर हस्ताक्षर करने की भी अनुमति नहीं दी गई है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि केजरीवाल गवाहों से संपर्क नहीं कर सकते हैं और जांच में पूरा सहयोग करना होगा।

इसके अलावा, कोर्ट ने 10 लाख रुपये का मुचलका भरने की शर्त रखी है। कोर्ट ने कहा है कि अगर इन शर्तों का उल्लंघन किया गया, तो उनकी जमानत रद्द की जा सकती है। इन शर्तों के चलते दिल्ली की राजनीति में नए सवाल खड़े हो गए हैं, क्योंकि एक मुख्यमंत्री अगर अपने दफ्तर नहीं जा सकता और कोई सरकारी निर्णय नहीं ले सकता, तो उसका कार्यभार कैसे चलेगा? भाजपा का तर्क है कि अगर मुख्यमंत्री अपने दफ्तर नहीं जा सकते, फाइलों पर साइन नहीं कर सकते और नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते, तो ऐसे में उनका मुख्यमंत्री बने रहना जनहित के खिलाफ है। भाजपा नेता और प्रवक्ता लगातार इसे मुद्दा बनाकर सीएम केजरीवाल के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

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वहीं, विपक्षी दल इस पूरे मामले को भाजपा की राजनीतिक चाल बता रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता से घबराई हुई है, इसलिए वो इस तरह के हथकंडे अपना रही है। विपक्ष का कहना है कि केजरीवाल को फंसाने की साजिश रची गई थी, लेकिन न्यायालय ने उन्हें जमानत देकर इस साजिश को नाकाम कर दिया है।

 

 

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