दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तिहाड़ जेल से रिहाई के दो दिन बाद रविवार को सीएम पद से इस्तीफा देने की घोषणा की, जिससे दिल्ली की राजनीति में खलबली मच गई है। केजरीवाल ने कहा कि वह अगले दो दिनों में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देंगे और जनता के फैसले तक मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं संभालेंगे। उनकी इस घोषणा ने दिल्ली की सियासी गलियारों में चर्चाओं को और तेज कर दिया है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।
केजरीवाल ने कहा कि वह इस्तीफे के बाद दिल्ली की गलियों और लोगों के बीच जाएंगे ताकि जनता से सीधे संवाद कर सकें। उन्होंने कहा कि जब तक जनता का निर्णय नहीं आता, वह मुख्यमंत्री पद नहीं संभालेंगे। इस घटनाक्रम के बाद राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठने लगा है कि आगामी विधानसभा चुनाव तक राज्य की बागडोर कौन संभालेगा।केजरीवाल की इस्तीफे की घोषणा को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसे एक “राजनीतिक नाटक” बता रही है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक विशेषज्ञ इस कदम को केजरीवाल की रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।
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सुप्रसिद्ध चुनाव विश्लेषक और नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक रामकृपाल सिंह ने इस पर अपनी राय दी। उन्होंने एबीपी न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि केजरीवाल का यह कदम किसी बड़ी राजनीतिक आंधी का संकेत नहीं है। उनका मानना है कि केजरीवाल भले ही खुद को क्रांतिकारी नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हों, लेकिन उनके लिए आगामी चुनावों में जीत की राह इतनी आसान नहीं होगी। सिंह ने कहा कि “केजरीवाल को छोड़ा गया है, न कि मुख्यमंत्री को।” इसका तात्पर्य है कि अदालत ने उन्हें जमानत दी है, लेकिन इसका सीधा अर्थ यह नहीं कि उन्हें राजनीतिक स्तर पर पूरी तरह समर्थन प्राप्त होगा।
रामकृपाल सिंह के अनुसार, आम आदमी पार्टी (आप) और अरविंद केजरीवाल के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ खड़ी हैं। नवंबर में चुनाव होने की संभावना है, लेकिन केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए चुनावी जीत सुनिश्चित करना कठिन हो सकता है। सिंह ने कहा कि केजरीवाल भगत सिंह का उदाहरण देकर खुद को एक क्रांतिकारी नेता के रूप में पेश कर रहे हैं, लेकिन यह तुलना सटीक नहीं है। उनका मानना है कि केजरीवाल वर्तमान स्थिति का लाभ उठाकर खुद को सुरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इससे उनकी चुनावी स्थिति मजबूत नहीं होगी।
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सिंह ने कहा, “अगले साल फरवरी में दिल्ली विधानसभा चुनाव होंगे। इस दौरान यह देखना होगा कि केजरीवाल अपने इस्तीफे और रणनीति के बावजूद कितनी मजबूती से चुनावी मैदान में उतरते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि आप पार्टी को इस बार कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिनसे पार पाना इतना आसान नहीं होगा।