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बांग्लादेश: सेना को मिली मजिस्ट्रेटी शक्तियां, कानून व्यवस्था सुधारने की कोशिश.

बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों से चल रही हिंसा और अस्थिर राजनीतिक हालातों के बीच, अंतरिम सरकार ने सेना को अस्थायी तौर पर मजिस्ट्रेटी शक्तियां प्रदान की हैं। यह फैसला कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने और विध्वंसक कृत्यों पर रोक लगाने के उद्देश्य से लिया गया है।

बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों से चल रही हिंसा और अस्थिर राजनीतिक हालातों के बीच, अंतरिम सरकार ने सेना को अस्थायी तौर पर मजिस्ट्रेटी शक्तियां प्रदान की हैं। यह फैसला कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने और विध्वंसक कृत्यों पर रोक लगाने के उद्देश्य से लिया गया है। लोक प्रशासन मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी अधिसूचना के मुताबिक, सेना के कमीशंड अधिकारियों को यह शक्तियां तत्काल प्रभाव से 17 सितंबर 2024 से अगले 60 दिनों के लिए दी गई हैं। यह फैसला तब आया है जब बांग्लादेश में लगातार बढ़ती हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास पर्याप्त संसाधनों और कर्मचारियों की कमी है। सेना को दी गई ये शक्तियां नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी समझी जा रही हैं ताकि देश में शांति और स्थिरता स्थापित की जा सके।

बांग्लादेश की स्वामित्व वाली बीएसएस समाचार एजेंसी के अनुसार, गृह सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) मोहम्मद जहांगीर आलम चौधरी ने बुधवार को बताया कि पिछले कुछ हमलों के बाद से कई पुलिस अधिकारी अपनी ड्यूटी पर लौट नहीं पाए हैं। इससे कानून व्यवस्था बनाए रखने में मुश्किलें आ रही हैं। चौधरी ने यह भी स्पष्ट किया कि जो पुलिसकर्मी अब तक अपनी सेवाओं में शामिल नहीं हुए हैं, उन्हें अब ड्यूटी पर वापस लौटने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस स्थिति को देखते हुए, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सेना को मजिस्ट्रेटी शक्तियों से सशक्त किया है। ये शक्तियां सेना को गिरफ्तारी, हिरासत, और जरूरी स्थिति में बल प्रयोग की अनुमति देती हैं। इस कदम का उद्देश्य देश में फिर से हिंसा भड़कने की संभावनाओं को खत्म करना है।

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सेना को दी गई मजिस्ट्रेटी शक्तियों में गिरफ्तार करने, हिरासत में लेने, और जरूरत पड़ने पर गोली चलाने का भी अधिकार शामिल है। सेना को ये शक्तियां कानून व्यवस्था सुधारने के लिए दी गई हैं, ताकि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा, बांग्लादेश की सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि इन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा। बांग्लादेश के कानून सलाहकार आसिफ नजरुल ने कहा कि सेना के जवान इन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करेंगे, और जैसे ही स्थिति सामान्य होगी, इन शक्तियों की जरूरत नहीं रहेगी। सरकार ने यह भी कहा है कि यह कानून केवल 60 दिनों के लिए लागू रहेगा, और उसके बाद इसे खत्म कर दिया जाएगा।

हिंसा और अराजकता के बीच, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने संवैधानिक सुधार आयोग में भी बदलाव किए हैं। सुप्रीम कोर्ट के वकील शाहदीन मलिक की जगह बांग्लादेशी-अमेरिकी प्रोफेसर अली रियाज को इस आयोग का प्रमुख नियुक्त किया गया है। इस बदलाव की घोषणा मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के निर्देश पर की गई। यूनुस ने न्यायपालिका, चुनाव प्रणाली, प्रशासन, पुलिस, भ्रष्टाचार विरोधी आयोग और संविधान में व्यापक सुधार के लिए कुल छह आयोगों के गठन की घोषणा की थी। अली रियाज के नेतृत्व में संवैधानिक सुधार आयोग अब बांग्लादेश की राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में सुधार के लिए काम करेगा।

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बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों से आरक्षण के मुद्दे को लेकर छात्र आंदोलन कर रहे थे। यह आंदोलन देशभर में फैल गया था, जिसके चलते कई जगहों पर हिंसा और झड़पें देखने को मिलीं। बांग्लादेश की तत्कालीन सरकार ने इस स्थिति को संभालने के लिए सेना को तैनात किया था। 19 जुलाई 2024 की रात को पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद हिंसा की घटनाएं बढ़ती रहीं। 5 अगस्त 2024 को हुई भारी हिंसा के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर चली गईं। उनके इस्तीफे के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई थी।

शेख हसीना के इस्तीफे के तीन दिन बाद, 8 अगस्त 2024 को मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ। इस सरकार का मुख्य उद्देश्य देश में शांति और स्थिरता बहाल करना और संवैधानिक सुधारों को अमल में लाना है। हालांकि, अंतरिम सरकार के गठन के बावजूद, बांग्लादेश में स्थिति अभी भी अराजक बनी हुई है। देशभर में हिंसा और उपद्रव को नियंत्रित करने के लिए अब भी सेना के जवान तैनात हैं। अंतरिम सरकार का प्रयास है कि कानून व्यवस्था में सुधार किया जाए और देश को फिर से शांति की ओर ले जाया जाए।

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