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सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने पर सीएक्यूएम की कार्रवाई पर जताई नाराजगी, प्रभावी कदम उठाने की मांग.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को रोकने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा उठाए गए कदमों पर कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए गए प्रयासों की समीक्षा करते हुए आयोग के कामकाज पर सवाल उठाए और कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे, जिनका अधिकारी सही जवाब नहीं दे सके।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को रोकने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा उठाए गए कदमों पर कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए गए प्रयासों की समीक्षा करते हुए आयोग के कामकाज पर सवाल उठाए और कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे, जिनका अधिकारी सही जवाब नहीं दे सके। कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 18 अक्टूबर की तारीख तय की है। हर साल सर्दियों के मौसम में दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण पराली जलाना माना जाता है। इस मुद्दे पर जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई की। कोर्ट में इस दौरान वकीलों और जजों के बीच कुछ गंभीर बहस हुई, जिसमें कोर्ट ने पराली जलाने के रोकथाम के प्रयासों पर सवाल उठाए।

सुनवाई के दौरान जस्टिस अभय ओका ने अधिकारियों से पूछा, “क्या आपने सीएक्यूएम एक्ट की धारा 11 के तहत समितियों का गठन किया है?” इस पर आयोग के अध्यक्ष ने जवाब दिया कि हां, समितियां बनाई गई हैं और हर तीन महीने में बैठक होती है। इस पर जस्टिस ओका ने सवाल किया, “क्या यह पर्याप्त है? हम आज एक गंभीर प्रदूषण समस्या के सामने खड़े हैं।” उन्होंने यह भी पूछा कि धारा 12 के तहत कितने निर्देश पारित किए गए हैं, और क्या उन निर्देशों के तहत कोई ठोस परिणाम सामने आया है। आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि 82 निर्देश पारित किए गए हैं, लेकिन प्रदूषण की समस्या अब भी बनी हुई है। जस्टिस ओका ने आगे पूछा कि “क्या इन निर्देशों से समस्या में कोई कमी आई है?” इस पर अध्यक्ष ने जवाब दिया कि पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब तक अधिनियम की धारा 14 के तहत कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक निर्देश कागजों तक ही सीमित रहेंगे।

कोर्ट ने यह भी माना कि पराली जलाने की समस्या केवल निर्देशों से हल नहीं हो सकती। जस्टिस ओका ने किसानों की समस्याओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि पूरी फसल एक साथ तैयार हो जाती है और किसान चाहते हैं कि धान की फसल को जल्दी से जल्दी हटाकर अगली फसल के लिए खेत तैयार किया जाए। पराली जलाने का एक मुख्य कारण यह भी है कि फसल काटने के बाद खेतों में बची हुई पराली को हटाने के लिए मशीनों की कमी है।

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इस पर जस्टिस ओका ने कहा कि “पराली जलाने के लिए कोई प्रभावी और टिकाऊ विकल्प होना चाहिए।” कोर्ट ने इस दिशा में नए उपकरणों और तकनीकों के इस्तेमाल पर जोर दिया, ताकि पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके। सप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीएक्यूएम की स्थापना वायु गुणवत्ता प्रबंधन और उससे जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए की गई थी। हालांकि, आयोग का कामकाज उस स्तर का नहीं है, जैसा कि उम्मीद की गई थी। कोर्ट ने माना कि आयोग ने कुछ कदम उठाए हैं और रिपोर्टें भी दर्ज की हैं, लेकिन उन कदमों का धरातल पर सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हुआ है।

सुनवाई के दौरान यह भी बताया गया कि केंद्र सरकार ने पराली जलाने के विकल्प के रूप में किसानों को कुछ उपकरण मुहैया कराए हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि इन उपकरणों का सही और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जाए, ताकि पराली जलाने की समस्या का स्थायी समाधान हो सके। कोर्ट ने कहा कि तीन साल हो गए हैं और आयोग ने अब तक केवल 85 से 87 निर्देश जारी किए हैं। बावजूद इसके, निर्देशों का पालन न होने पर किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है।

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कोर्ट ने सीएक्यूएम के अधिकारियों से कहा कि अधिनियम की धारा 14 के तहत कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए ताकि निर्देशों का पालन सुनिश्चित हो सके। कोर्ट ने कहा कि जब तक अधिकारियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह समस्या यूं ही बनी रहेगी। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समितियां अधिक सक्रिय हों और तीन महीने में एक बार की बैठक के बजाय अधिक बार मिलें। सुप्रीम कोर्ट ने अंत में कहा कि आयोग को अपनी सिफारिशों और निर्देशों का बेहतर पालन सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि वह अगली सुनवाई से पहले एक विस्तृत अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करे, जिसमें उठाए गए कदमों और उनके परिणामों का जिक्र हो।

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