सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ केस बंद किया, बंधक बनाने का आरोप झूठा पाया.
सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दो महिलाओं को बंधक बनाए जाने के मामले में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम में जबरन बंधक बनाकर रखा गया है। मु
सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दो महिलाओं को बंधक बनाए जाने के मामले में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम में जबरन बंधक बनाकर रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि दोनों महिलाएं बालिग हैं और अपनी स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं। इस मामले में कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण पाया कि दोनों बेटियों, गीता और लता, की उम्र क्रमशः 42 और 39 वर्ष है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वे बिना किसी बाहरी दबाव के आश्रम में रह रही हैं। गीता और लता ने अपनी ओर से दिए गए बयान में यह स्पष्ट किया कि वे स्वेच्छा से ईशा फाउंडेशन के साथ जुड़ी हैं और वहां रहना उनका व्यक्तिगत निर्णय है। इस बयान के बाद, कोर्ट ने पिता के आरोपों को निराधार मानते हुए मामले को बंद कर दिया।
एस कामराज ने आरोप लगाया था कि ईशा फाउंडेशन ने उनकी दोनों बेटियों को मानसिक रूप से प्रभावित (ब्रेनवॉश) किया है, जिसके चलते वे अपनी मर्जी से परिवार से दूर रह रही हैं। उन्होंने 30 सितंबर को मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस मामले की जांच की मांग की थी। कामराज का कहना था कि उनकी बेटियों को जबरन आश्रम में रोका गया है और उन्हें परिवार से संपर्क करने से भी रोका जा रहा है। मद्रास उच्च न्यायालय ने कामराज के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए तमिलनाडु पुलिस को ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी आपराधिक मामलों की जांच करने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद, 150 पुलिसकर्मियों की एक टीम ने ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम में जांच की। पुलिस की इस जांच का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि आश्रम में कोई गैरकानूनी गतिविधि तो नहीं हो रही है और वहां रहने वाले लोग अपनी मर्जी से रह रहे हैं या नहीं।
ईशा फाउंडेशन ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और दावा किया कि गीता और लता आश्रम में अपनी मर्जी से रह रही हैं। फाउंडेशन ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें कहा गया कि पुलिस जांच अनावश्यक और बिना किसी ठोस आधार के की जा रही है। तीन अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जांच पर रोक लगा दी थी। इसके बाद, सुनवाई के दौरान दोनों बहनों ने एक बार फिर से यह कहा कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और किसी भी प्रकार का दबाव उन पर नहीं है। उन्होंने अपने पिता पर आरोप लगाते हुए कहा कि पिछले आठ सालों से वे उन्हें परेशान कर रहे हैं।
सभी तथ्यों और बयानों को सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए केस को बंद कर दिया कि दोनों महिलाएं बालिग हैं और अपनी मर्जी से जहां रहना चाहें, रह सकती हैं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस मामले में बंधक बनाने या किसी प्रकार के जबरदस्ती का कोई प्रमाण नहीं है। इस निर्णय से ईशा फाउंडेशन को बड़ी राहत मिली है, और यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों महिलाएं बिना किसी दबाव के अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही थीं।
By Neelam Singh.