Court Room - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Fri, 18 Oct 2024 10:13:17 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.2 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg Court Room - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ केस बंद किया, बंधक बनाने का आरोप झूठा पाया. https://chaupalkhabar.com/2024/10/18/supreme-court-ne-isha-foun/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/18/supreme-court-ne-isha-foun/#respond Fri, 18 Oct 2024 10:13:17 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5266 सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दो महिलाओं को बंधक बनाए जाने के मामले में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम में जबरन बंधक बनाकर रखा …

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सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दो महिलाओं को बंधक बनाए जाने के मामले में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम में जबरन बंधक बनाकर रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि दोनों महिलाएं बालिग हैं और अपनी स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं। इस मामले में कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण पाया कि दोनों बेटियों, गीता और लता, की उम्र क्रमशः 42 और 39 वर्ष है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वे बिना किसी बाहरी दबाव के आश्रम में रह रही हैं। गीता और लता ने अपनी ओर से दिए गए बयान में यह स्पष्ट किया कि वे स्वेच्छा से ईशा फाउंडेशन के साथ जुड़ी हैं और वहां रहना उनका व्यक्तिगत निर्णय है। इस बयान के बाद, कोर्ट ने पिता के आरोपों को निराधार मानते हुए मामले को बंद कर दिया।

एस कामराज ने आरोप लगाया था कि ईशा फाउंडेशन ने उनकी दोनों बेटियों को मानसिक रूप से प्रभावित (ब्रेनवॉश) किया है, जिसके चलते वे अपनी मर्जी से परिवार से दूर रह रही हैं। उन्होंने 30 सितंबर को मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस मामले की जांच की मांग की थी। कामराज का कहना था कि उनकी बेटियों को जबरन आश्रम में रोका गया है और उन्हें परिवार से संपर्क करने से भी रोका जा रहा है। मद्रास उच्च न्यायालय ने कामराज के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए तमिलनाडु पुलिस को ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी आपराधिक मामलों की जांच करने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद, 150 पुलिसकर्मियों की एक टीम ने ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम में जांच की। पुलिस की इस जांच का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि आश्रम में कोई गैरकानूनी गतिविधि तो नहीं हो रही है और वहां रहने वाले लोग अपनी मर्जी से रह रहे हैं या नहीं।

ईशा फाउंडेशन ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और दावा किया कि गीता और लता आश्रम में अपनी मर्जी से रह रही हैं। फाउंडेशन ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें कहा गया कि पुलिस जांच अनावश्यक और बिना किसी ठोस आधार के की जा रही है। तीन अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जांच पर रोक लगा दी थी। इसके बाद, सुनवाई के दौरान दोनों बहनों ने एक बार फिर से यह कहा कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और किसी भी प्रकार का दबाव उन पर नहीं है। उन्होंने अपने पिता पर आरोप लगाते हुए कहा कि पिछले आठ सालों से वे उन्हें परेशान कर रहे हैं।

सभी तथ्यों और बयानों को सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए केस को बंद कर दिया कि दोनों महिलाएं बालिग हैं और अपनी मर्जी से जहां रहना चाहें, रह सकती हैं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस मामले में बंधक बनाने या किसी प्रकार के जबरदस्ती का कोई प्रमाण नहीं है। इस निर्णय से ईशा फाउंडेशन को बड़ी राहत मिली है, और यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों महिलाएं बिना किसी दबाव के अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही थीं।

By Neelam Singh.

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‘जीवनसाथी चुनने का अधिकार छिनता है, बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी’ https://chaupalkhabar.com/2024/10/18/right-to-choose-life-partner/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/18/right-to-choose-life-partner/#respond Fri, 18 Oct 2024 09:45:43 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5263 शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह निषेध अधिनियम को लेकर सुनवाई करते हुए इस विषय पर गंभीर चिंता जताई। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने कहा कि बाल विवाह की घटनाएँ न केवल कानून का उल्लंघन करती हैं, बल्कि यह …

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शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह निषेध अधिनियम को लेकर सुनवाई करते हुए इस विषय पर गंभीर चिंता जताई। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने कहा कि बाल विवाह की घटनाएँ न केवल कानून का उल्लंघन करती हैं, बल्कि यह व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा और पसंद के जीवनसाथी चुनने के अधिकार का भी हनन करती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को व्यक्तिगत कानूनों से नहीं रोका जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि सभी को अपने जीवनसाथी को चुनने का अधिकार है और यह अधिकार हर व्यक्ति को संविधान के तहत प्राप्त है। इस सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह रोकने के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किए। पीठ ने कहा कि कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए यह आवश्यक है कि संबंधित अधिकारियों को बाल विवाह के अपराधियों को दंडित करते समय नाबालिगों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

समुदाय-आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर जोर दिया कि निवारक रणनीतियाँ विभिन्न समुदायों के अनुसार बनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बाल विवाह निषेध कानून तभी सफल होगा जब बहु-क्षेत्रीय समन्वय हो। इसके लिए कानून प्रवर्तन अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।

कानून में खामियां
कोर्ट ने यह भी माना कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में कुछ खामियां हैं। यह अधिनियम बाल विवाह को रोकने और समाज से इसके उन्मूलन के लिए बनाया गया था, जो पहले के 1929 के बाल विवाह निरोधक अधिनियम की जगह आया।

वैवाहिक दुष्कर्म पर चर्चा
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म के संबंध में भी चर्चा की। कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के उन प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर विचार करने का निर्णय लिया, जो पति को अपनी पत्नी (जो नाबालिग नहीं है) को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने पर अभियोजन से छूट प्रदान करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश
बाल विवाह नियंत्रण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित दिशानिर्देश जारी किए:

अधिकारियों की विशेष ट्रेनिंग होनी चाहिए।
हर समुदाय के लिए अलग तरीके अपनाए जाएं।
केवल दंडात्मक तरीके से सफलता नहीं मिलती।
लोगों में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
समाज की वास्तविक स्थिति को समझते हुए रणनीति बनाई जाए।
बाल विवाह निषेध कानून को व्यक्तिगत कानूनों से ऊपर रखने का मसला संसद में विचाराधीन है।

By Neelam Singh.

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तिरुपति लड्डू मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, एसआईटी जांच का आदेश https://chaupalkhabar.com/2024/10/04/tirupati-laddu-case-in-s/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/04/tirupati-laddu-case-in-s/#respond Fri, 04 Oct 2024 08:10:00 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5215 सुप्रीम कोर्ट में तिरुपति लड्डू में कथित रूप से पशु चर्बी की मिलावट के मामले की सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति बीआर गवई के नेतृत्व वाली पीठ ने इस मामले में एक नई स्वतंत्र विशेष जांच टीम (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया है। अदालत का यह कदम करोड़ों भक्तों की आस्था और भावनाओं को ध्यान में …

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सुप्रीम कोर्ट में तिरुपति लड्डू में कथित रूप से पशु चर्बी की मिलावट के मामले की सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति बीआर गवई के नेतृत्व वाली पीठ ने इस मामले में एक नई स्वतंत्र विशेष जांच टीम (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया है। अदालत का यह कदम करोड़ों भक्तों की आस्था और भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है, क्योंकि आरोपों के बाद लोगों की धार्मिक मान्यताओं को ठेस पहुंची है।

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एसआईटी की जांच के माध्यम से इस विवाद को निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से सुलझाया जाएगा। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “हम यह आदेश इसलिए दे रहे हैं क्योंकि इस मामले में लाखों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है। उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच आवश्यक है।” अदालत ने एसआईटी में 5 सदस्यों की टीम गठित करने का निर्देश दिया है, जिसमें दो सदस्य केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से, दो सदस्य आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस से और एक सदस्य खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) का विशेषज्ञ होगा। यह टीम मामले की गहन जांच करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि लड्डू में मिलावट के आरोपों की सच्चाई का पता चले।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि तिरुपति लड्डू, जिसे तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के भगवान वेंकटेश्वर को चढ़ाया जाता है, से जुड़े मिलावट के आरोप न केवल कानूनी बल्कि धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी गंभीर हैं। आरोपों से देश और विदेश में भगवान वेंकटेश्वर के लाखों भक्तों की आस्था को ठेस पहुंची है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला केवल कानूनी विवाद तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे राजनीतिक दायरे से भी दूर रखना आवश्यक है। जस्टिस गवई ने टिप्पणी की थी कि “भगवान को राजनीति से दूर रखें,” जो पिछले सुनवाई के दौरान की गई थी।

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अदालत ने यह भी देखा कि इस मामले में प्रयोगशाला से आई जांच रिपोर्ट स्पष्ट नहीं है। यह आशंका व्यक्त की गई कि जिस घी का परीक्षण किया गया था, वह अस्वीकार्य घी हो सकता है, जिससे रिपोर्ट पर भरोसा करना मुश्किल हो गया है। अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि आस्था और धार्मिक मान्यताओं का सवाल है, इसलिए जांच की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक नई और स्वतंत्र एसआईटी का गठन किया गया है। अदालत ने इस मामले को राजनीतिक रंग देने के प्रयासों को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला किसी राजनीतिक ड्रामा में तब्दील नहीं होना चाहिए। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि यदि जांच स्वतंत्र और निष्पक्ष होगी, तो जनता में विश्वास उत्पन्न होगा और यह सुनिश्चित होगा कि तिरुपति लड्डू के प्रसाद में कोई भी अनियमितता नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने वकील को लगाई फटकार, कोर्ट के कार्यों में हस्तक्षेप पर सख्त चेतावनी. https://chaupalkhabar.com/2024/10/03/chief-justice-of-the-supreme-court/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/03/chief-justice-of-the-supreme-court/#respond Thu, 03 Oct 2024 10:56:03 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5204 3 अक्टूबर को भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण घटना घटी, जब मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने एक वकील को सख्त फटकार लगाई। मामला तब सामने आया जब वकील ने कोर्ट के आदेशों की सत्यता की जांच करने के लिए कोर्ट मास्टर से संपर्क किया। इस पर सीजेआई ने नाराजगी …

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3 अक्टूबर को भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण घटना घटी, जब मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने एक वकील को सख्त फटकार लगाई। मामला तब सामने आया जब वकील ने कोर्ट के आदेशों की सत्यता की जांच करने के लिए कोर्ट मास्टर से संपर्क किया। इस पर सीजेआई ने नाराजगी जाहिर करते हुए वकील के आचरण पर सवाल उठाया और इसे न्यायालय के कार्यों में अनुचित हस्तक्षेप बताया।

वकील ने बेंच से कहा कि उसने कोर्ट में लिखे गए आदेश के विवरण को कोर्ट मास्टर से क्रॉस-चेक किया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सीजेआई ने कहा, “आपने यह पूछने की हिम्मत कैसे की कि मैंने कोर्ट में क्या लिखा? आप कोर्ट मास्टर से पूछने का साहस कैसे कर सकते हैं?” उन्होंने इसे एक गंभीर मामला बताया और कहा कि ऐसी हरकतें बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। सीजेआई ने आगे कहा, “कल आप मेरे घर आ जाएंगे और मेरे निजी सचिव से पूछेंगे कि मैं क्या कर रहा हूं। क्या वकीलों ने अपना विवेक खो दिया है?” उन्होंने वकील को सावधान करते हुए कहा कि भले ही वह कुछ दिनों बाद सेवानिवृत्त हो जाएंगे, लेकिन तब तक वह कोर्ट के प्रभारी हैं और इस प्रकार की अनुचित कार्यवाहियों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे।

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सीजेआई ने वकीलों को सख्त चेतावनी दी कि इस प्रकार की चालें और तरकीबें फिर से अदालत में न आजमाई जाएं। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं और उनकी जगह न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को अगला सीजेआई नियुक्त किया जाएगा। हालांकि, सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले भी मुख्य न्यायाधीश ने न्यायिक प्रक्रियाओं में अनुशासन और सम्मान को बनाए रखने पर जोर दिया। यह घटना इस बात का संकेत देती है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में भी अदालत की गरिमा और उसके नियमों की सख्त सुरक्षा सुनिश्चित की है।

यह पहली बार नहीं है जब मुख्य न्यायाधीश ने वकीलों के आचरण पर सवाल उठाया हो। कुछ समय पहले भी सीजेआई ने वकीलों को फटकार लगाते हुए कहा था कि वे एक ही मामले को बार-बार बेंच के सामने लाकर तारीख मांगने का प्रयास करते हैं। सीजेआई ने इसे “अदालत को बरगलाने” का प्रयास बताया था और कहा था कि वकील इस प्रकार की चालबाजियों से कोर्ट को धोखा नहीं दे सकते। उन्होंने इस नए चलन पर नाराजगी जाहिर की थी, जिसमें वकील अलग-अलग समय पर एक ही मामले को प्रस्तुत करते हैं और बेंच के फैसले में हस्तक्षेप करने की कोशिश करते हैं। यह एक नई प्रवृत्ति है, जिसे अदालत बर्दाश्त नहीं करेगी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा था, “अलग-अलग वकील एक ही मामले को सूचीबद्ध करने के लिए पेश होते हैं और जज की जरा सी असावधानी में तारीख प्राप्त कर लेते हैं। यह एक उभरती हुई प्रथा है, जिसे समाप्त किया जाना चाहिए।”

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इस पूरी घटना ने न्यायिक व्यवस्था में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने के महत्व को रेखांकित किया। सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान हमेशा न्यायिक प्रक्रियाओं की पवित्रता को बनाए रखने पर जोर दिया है और यह घटना उसी दिशा में एक और कदम थी।

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दिल्ली में वायु प्रदूषण, सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, कहा- सिर्फ चर्चा हो रही है, कार्रवाई नहीं https://chaupalkhabar.com/2024/10/03/air-pollution-in-delhi/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/03/air-pollution-in-delhi/#respond Thu, 03 Oct 2024 09:53:58 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5199 सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण पर गहरी चिंता जताई। न्यायालय ने कहा कि हर साल दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन …

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सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण पर गहरी चिंता जताई। न्यायालय ने कहा कि हर साल दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के निर्देशों का पालन करने वालों पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो रही है। न्यायमूर्ति एएस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “हर कोई जानता है कि इस मामले में सिर्फ चर्चा हो रही है, और कुछ भी ठोस नहीं किया जा रहा है। यह एक कड़वी सच्चाई है।” पीठ में न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति एजी मसीह भी शामिल थे।

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पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने सीएक्यूएम से हलफनामा दायर करने को कहा था, जिसमें पराली जलाने से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण मांगा गया था। कोर्ट ने इस पर फोकस किया कि पराली जलाना, दिल्ली में खराब हवा के प्रमुख कारणों में से एक है, लेकिन इसके समाधान के लिए अब तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को आयोग की संरचना के बारे में जानकारी दी। लेकिन इस पर न्यायमूर्ति ओका ने तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की पिछले नौ महीनों में केवल तीन बार बैठक हुई, और इनमें भी पराली जलाने पर कोई चर्चा नहीं हुई। जस्टिस ओका ने कहा, “आखिरी बैठक 29 अगस्त को हुई थी, जबकि पूरे सितंबर में कोई बैठक नहीं हुई।”

अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि जब इस समिति में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी भी शामिल हैं, जो नियमों को लागू करने की जिम्मेदारी रखते हैं, तब भी कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया। न्यायमूर्ति ओका ने नाराजगी जताई कि 29 अगस्त के बाद से अब तक एक भी बैठक नहीं हुई है। उन्होंने कहा, “जब नियमों को लागू करने की बात आती है, तो कार्रवाई में इस प्रकार की गंभीरता दिखाई दे रही है।” न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह ने भी इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, “क्या यही गंभीरता दिखाई जा रही है?” उन्होंने यह सवाल उठाया कि सुरक्षा और प्रवर्तन पर एक उप-समिति की बैठक केवल 11 सदस्यों के साथ क्यों आयोजित की गई।

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सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि उन्होंने एक लोक सेवक के आदेशों की अवज्ञा से संबंधित धारा के तहत एफआईआर दर्ज की है। इस पर न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि सरकार ने मुकदमा चलाने के लिए सबसे हल्का प्रावधान चुना है। उन्होंने कहा, “सीएक्यूएम अधिनियम की धारा 14 और धारा 15 के तहत कठोर कदम उठाने के प्रावधान हैं, लेकिन आपने इनका इस्तेमाल नहीं किया।”

सरकारी वकील ने तर्क दिया कि कठोर कदम इसलिए नहीं उठाए गए क्योंकि वायु प्रदूषण का स्तर धीरे-धीरे कम हो रहा है। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक सख्त नियमों को जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया जाएगा, तब तक कोई भी इन समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेगा। अदालत ने कहा कि आदेशों का सही तरीके से कार्यान्वयन होना जरूरी है, नहीं तो ये सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएंगे।

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बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि, अतिक्रमण हटाने के निर्देश https://chaupalkhabar.com/2024/10/01/bulldozer-action-on-sup/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/01/bulldozer-action-on-sup/#respond Tue, 01 Oct 2024 07:56:39 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5173 सुप्रीम कोर्ट में आज उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में हो रही बुलडोजर कार्रवाई को लेकर फिर से सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और अतिक्रमण चाहे सड़क पर हो, जल निकायों पर हो या फिर रेल …

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सुप्रीम कोर्ट में आज उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में हो रही बुलडोजर कार्रवाई को लेकर फिर से सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और अतिक्रमण चाहे सड़क पर हो, जल निकायों पर हो या फिर रेल पटरियों के आसपास, उसे हटाना आवश्यक है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी धार्मिक ढांचे को अतिक्रमण के नाम पर बख्शा नहीं जाएगा, और इसके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और कानून सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बुलडोजर कार्रवाई या अतिक्रमण विरोधी अभियानों के दौरान किसी विशेष धर्म या समुदाय को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। ये निर्देश हर धर्म के लोगों के लिए समान रूप से लागू होंगे।

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कोर्ट में अपराध के आरोपी लोगों के खिलाफ की जाने वाली बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हो रही थी। कई राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई को लेकर लगातार विवाद हो रहा है, जिसे ‘बुलडोजर न्याय’ के रूप में भी संदर्भित किया जा रहा है। राज्य सरकारों का कहना है कि केवल अवैध संरचनाओं को ही ध्वस्त किया जा रहा है, लेकिन कुछ समुदायों का आरोप है कि इस कार्रवाई में उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश सरकारों की ओर से अदालत में पेश हुए, ने कहा कि अवैध निर्माण को हटाने की कार्रवाई किसी भी आरोपी व्यक्ति के अपराध की स्थिति पर निर्भर नहीं करती है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यहां तक कि जघन्य अपराधों जैसे बलात्कार या आतंकवाद के मामलों में भी बुलडोजर का इस्तेमाल कानून के अनुसार ही किया जाता है और केवल अवैध निर्माणों को ही हटाया जाता है।

न्यायालय ने इस पर सवाल उठाया कि क्या किसी व्यक्ति का अपराधी होना या उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना, अवैध निर्माण ध्वस्त करने का आधार हो सकता है? इस पर मेहता ने साफ तौर पर कहा, “बिल्कुल नहीं।” न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि अवैध निर्माणों के लिए कानून स्पष्ट होना चाहिए और यह किसी व्यक्ति की आस्था, धर्म या विश्वास पर निर्भर नहीं होना चाहिए। साथ ही, नोटिस जारी करने की प्रक्रिया पर भी जोर दिया गया। अदालत ने कहा कि बुलडोजर कार्रवाई से पहले संबंधित लोगों को उचित समय के भीतर नोटिस दिया जाना चाहिए। इस पर मेहता ने जवाब देते हुए कहा कि नगरपालिकाओं के कानून में नोटिस जारी करने का प्रावधान है, लेकिन इसे और सुसंगठित करने की जरूरत है।

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कोर्ट ने सुझाव दिया कि नगरपालिकाओं और पंचायतों के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल की व्यवस्था होनी चाहिए, जहां लोग अपने मामलों की जानकारी प्राप्त कर सकें और यह प्रक्रिया पारदर्शी हो सके। इससे अवैध निर्माण और अतिक्रमण को हटाने की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की भ्रामक जानकारी या अन्यायपूर्ण कार्रवाई से बचा जा सकेगा।

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सुप्रीम कोर्ट से केजरीवाल और आतिशी को राहत, मानहानि मामले की सुनवाई पर लगी रोक https://chaupalkhabar.com/2024/09/30/supreme-court-to-kejriwa-2/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/30/supreme-court-to-kejriwa-2/#respond Mon, 30 Sep 2024 10:55:41 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5166 सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और वर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी को एक मानहानि मामले में सोमवार को बड़ी राहत दी। कोर्ट ने मामले की सुनवाई कर रही ट्रायल कोर्ट में चल रही कार्यवाही पर रोक लगा दी है। यह मामला बीजेपी नेता राजीव बब्बर द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने केजरीवाल और …

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सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और वर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी को एक मानहानि मामले में सोमवार को बड़ी राहत दी। कोर्ट ने मामले की सुनवाई कर रही ट्रायल कोर्ट में चल रही कार्यवाही पर रोक लगा दी है। यह मामला बीजेपी नेता राजीव बब्बर द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने केजरीवाल और अन्य ‘आप’ नेताओं पर मानहानि का आरोप लगाया था। दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने इस मामले में तीन अक्टूबर को अरविंद केजरीवाल और आतिशी को पेश होने का आदेश दिया था। बब्बर की ओर से यह दावा किया गया था कि इन नेताओं द्वारा सार्वजनिक रूप से दिए गए बयानों के कारण भाजपा की छवि धूमिल हुई है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी इस समन पर रोक लगाते हुए दोनों नेताओं को फिलहाल राहत दी है।

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इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल और आतिशी की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने मानहानि के इस मामले को रद्द करने की मांग की थी। इस फैसले के बाद, दोनों नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय ने बब्बर के आरोपों को पर्याप्त मानते हुए मामले की सुनवाई को आगे बढ़ाने का फैसला किया था। राजीव बब्बर ने अरविंद केजरीवाल, आतिशी, आप नेता सुशील कुमार गुप्ता और मनोज कुमार के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था। बब्बर का आरोप था कि इन नेताओं ने भाजपा को बदनाम करने की साजिश रची और 2020 के विधानसभा चुनावों से पहले गलत बयान दिए, जिसमें कहा गया था कि भाजपा ने दिल्ली की मतदाता सूची से 30 लाख मतदाताओं के नाम हटवा दिए हैं। इनमें विशेष रूप से बनिया, मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोग शामिल थे।

फरवरी 2020 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले की कार्यवाही पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी थी, जिससे अरविंद केजरीवाल और अन्य आप नेताओं को कुछ समय के लिए राहत मिली थी। लेकिन जब मामले को पुनः शुरू किया गया, तो राऊज एवेन्यू कोर्ट ने तीन अक्टूबर 2023 को पेशी का आदेश जारी किया था, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया है।

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई इस रोक के बाद अब ट्रायल कोर्ट में इस मामले की सुनवाई तब तक नहीं होगी जब तक सुप्रीम कोर्ट इस पर अंतिम निर्णय नहीं ले लेता। केजरीवाल और आतिशी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि उन पर लगाए गए आरोप निराधार हैं और इनका उद्देश्य केवल राजनीतिक लाभ लेना है। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे क्या निर्णय लेता है। यह मामला दिल्ली की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि इस तरह के आरोप और कानूनी मामलों का सीधा असर आगामी चुनावों और राजनीतिक छवि पर पड़ सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति लड्डू विवाद पर सुनवाई की, कहा – भगवान को राजनीति से दूर रखा जाए https://chaupalkhabar.com/2024/09/30/supreme-court-in-tirupati/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/30/supreme-court-in-tirupati/#respond Mon, 30 Sep 2024 09:56:16 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5160 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तिरुपति लड्डू प्रसादम से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई की। इस विवाद में आरोप लगाया गया था कि तिरुमाला मंदिर में दिए जाने वाले प्रसिद्ध तिरुपति लड्डू प्रसादम में मिलावट की गई थी। कोर्ट ने कहा कि भगवान के प्रसाद से जुड़ा यह मामला संवेदनशील है, और इस पर राजनीति नहीं …

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तिरुपति लड्डू प्रसादम से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई की। इस विवाद में आरोप लगाया गया था कि तिरुमाला मंदिर में दिए जाने वाले प्रसिद्ध तिरुपति लड्डू प्रसादम में मिलावट की गई थी। कोर्ट ने कहा कि भगवान के प्रसाद से जुड़ा यह मामला संवेदनशील है, और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार के वकील से भी कुछ अहम सवाल किए, जिनमें प्रेस में दिए गए बयान और एसआईटी जांच की प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की तरफ से दी गई रिपोर्टों पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि लैब टेस्ट रिपोर्ट से यह पता चलता है कि घी का जो सैंपल जांच के लिए भेजा गया था, वह पहले ही रिजेक्ट किया हुआ घी था। इसके अलावा, कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि एसआईटी (विशेष जांच दल) जांच के आदेश के बावजूद प्रेस में बयान देने की जरूरत क्या थी? सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, “जब एसआईटी जांच जारी है, तो जांच के नतीजे आने से पहले प्रेस में जाने की क्या आवश्यकता थी?” इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव, जो सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने अदालत में कहा कि वे एक भक्त के रूप में अदालत में आए हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लड्डू प्रसादम में संदूषण के आरोप बेहद गंभीर हैं और इसके चलते प्रेस में दिए गए बयान के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

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राजशेखर राव ने कहा कि तिरुपति लड्डू से जुड़े विवाद में धार्मिक और सांप्रदायिक सौहार्द्र पर खतरा मंडरा सकता है, क्योंकि प्रसाद पर लगाए गए आरोप न सिर्फ भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं बल्कि इस विवाद के चलते सांप्रदायिक तनाव भी पैदा हो सकता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि भगवान के प्रसाद पर लगाए गए आरोप चिंता का विषय हैं। कोर्ट ने यह सुझाव दिया कि सॉलिसिटर जनरल इस बात पर कोर्ट की मदद करें कि पहले से गठित एसआईटी जांच को जारी रखा जाए या किसी स्वतंत्र एजेंसी से इस मामले की जांच कराई जाए।

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कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 3 अक्टूबर को तय की और कहा कि इस दौरान सभी पक्ष संयम बरतें और जांच प्रक्रिया पूरी होने तक कोई बयानबाजी न करें। जस्टिस ने स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर सार्वजनिक बयानबाजी से मामला और उलझ सकता है, इसलिए सभी संबंधित पक्षों को बयान देने में सतर्क रहना चाहिए। तिरुपति लड्डू विवाद की जड़ में यह आरोप है कि आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी सरकार के कार्यकाल के दौरान तिरुमाला मंदिर के लड्डू प्रसादम में पशु उत्पादों की मिलावट की गई थी। रिपोर्टों के अनुसार, लड्डू में इस्तेमाल किए गए घी के सैंपल की जांच में पाया गया कि उसमें लार्ड (सुअर की चर्बी), टैलो (गाय की चर्बी), और मछली के तेल की मिलावट थी। इन आरोपों ने भक्तों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि तिरुपति लड्डू भगवान वेंकटेश्वर का प्रसाद है और इसकी पवित्रता पर सवाल खड़े करना आस्था से खिलवाड़ माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कहा कि जांच निष्पक्ष होनी चाहिए और इस पर कोई भी अंतिम निर्णय जांच की रिपोर्ट के आधार पर ही लिया जाएगा।

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मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने वकील को फटकारा, कोर्ट रूम में ‘Yeah’ कहने पर जताई नाराज़गी https://chaupalkhabar.com/2024/09/30/chief-justice-d-y-chan/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/30/chief-justice-d-y-chan/#respond Mon, 30 Sep 2024 08:36:05 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5158 सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने आज एक सुनवाई के दौरान एक वकील को अनुचित शब्दों के चयन पर कड़ी फटकार लगाई। मामला तब सामने आया जब एक वकील ने अपनी दलील के बाद अनौपचारिक रूप से ‘Yeah’ (हां) का उपयोग किया। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा …

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सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने आज एक सुनवाई के दौरान एक वकील को अनुचित शब्दों के चयन पर कड़ी फटकार लगाई। मामला तब सामने आया जब एक वकील ने अपनी दलील के बाद अनौपचारिक रूप से ‘Yeah’ (हां) का उपयोग किया। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें इस तरह के शब्दों से “एलर्जी” है। उन्होंने वकील को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि यह कोर्ट रूम है, कोई कैफे नहीं जहां आप ऐसे अनौपचारिक शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

मामला उस समय गंभीर हो गया जब वकील ने अपनी दलील पेश करते हुए कहा, “हां, तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई ने मुझे क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने के लिए कहा था।” वकील के ‘Yeah’ कहने पर सीजेआई ने बीच में ही उसकी बात को काटते हुए कहा, “आप कोर्ट में हैं, कॉफी शॉप में नहीं। कृपया ‘Yeah’ शब्द का उपयोग न करें।” यह टिप्पणी सीजेआई के उस व्यवहार को दर्शाती है जिसमें वे अदालत में अनुशासन और औपचारिकता पर जोर देते हैं।

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वकील जिस मामले की दलील दे रहे थे, वह भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई से संबंधित था। वकील ने आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति गोगोई ने एक अवैध बयान के आधार पर उनकी सेवा समाप्ति से जुड़ी याचिका को गलत तरीके से खारिज कर दिया था। वकील का दावा था कि इस फैसले में “कानून की गंभीर त्रुटियां” थीं, जिसके चलते वह न्याय के लिए अपनी याचिका दोबारा पेश कर रहे थे। इस याचिका में वकील ने न्यायमूर्ति गोगोई को प्रतिवादी के रूप में जोड़ा था और अदालत से राहत की मांग की थी। इसके साथ ही, उन्होंने न्यायमूर्ति गोगोई के खिलाफ एक आंतरिक जांच की भी मांग की थी, जिसका विरोध मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने किया।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा, “चाहे सही हो या गलत, सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम फैसला आ चुका है। आपकी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई है, और अब आपको क्यूरेटिव दाखिल करना होगा।” सीजेआई ने वकील से यह भी कहा कि वह अब कोई नया रास्ता नहीं तलाश सकते क्योंकि उनकी पुनर्विचार याचिका पहले ही खारिज हो चुकी है। वकील की ओर से यह बयान भी दिया गया कि वह क्यूरेटिव याचिका दाखिल नहीं करना चाहते, जिसके जवाब में मुख्य न्यायाधीश ने दोहराया कि अब यही कानूनी रास्ता बचा है।

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इस पूरी घटना ने एक बार फिर अदालत में शिष्टाचार और औपचारिक भाषा की महत्ता को उजागर किया है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की सख्त प्रतिक्रिया ने यह स्पष्ट कर दिया कि अदालत में किसी भी तरह की अनौपचारिकता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अदालत के अनुशासन और शिष्टाचार के नियमों का पालन करना सभी वकीलों के लिए अनिवार्य है, और कोर्टरूम में भाषाई औपचारिकता की कमी को गंभीरता से लिया जाएगा।

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सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने पर सीएक्यूएम की कार्रवाई पर जताई नाराजगी, प्रभावी कदम उठाने की मांग. https://chaupalkhabar.com/2024/09/27/supreme-court-sanction-water/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/27/supreme-court-sanction-water/#respond Fri, 27 Sep 2024 11:37:45 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5130 सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को रोकने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा उठाए गए कदमों पर कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए गए प्रयासों की समीक्षा करते हुए आयोग के कामकाज पर सवाल उठाए और कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे, जिनका अधिकारी सही …

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को रोकने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा उठाए गए कदमों पर कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए गए प्रयासों की समीक्षा करते हुए आयोग के कामकाज पर सवाल उठाए और कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे, जिनका अधिकारी सही जवाब नहीं दे सके। कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 18 अक्टूबर की तारीख तय की है। हर साल सर्दियों के मौसम में दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण पराली जलाना माना जाता है। इस मुद्दे पर जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई की। कोर्ट में इस दौरान वकीलों और जजों के बीच कुछ गंभीर बहस हुई, जिसमें कोर्ट ने पराली जलाने के रोकथाम के प्रयासों पर सवाल उठाए।

सुनवाई के दौरान जस्टिस अभय ओका ने अधिकारियों से पूछा, “क्या आपने सीएक्यूएम एक्ट की धारा 11 के तहत समितियों का गठन किया है?” इस पर आयोग के अध्यक्ष ने जवाब दिया कि हां, समितियां बनाई गई हैं और हर तीन महीने में बैठक होती है। इस पर जस्टिस ओका ने सवाल किया, “क्या यह पर्याप्त है? हम आज एक गंभीर प्रदूषण समस्या के सामने खड़े हैं।” उन्होंने यह भी पूछा कि धारा 12 के तहत कितने निर्देश पारित किए गए हैं, और क्या उन निर्देशों के तहत कोई ठोस परिणाम सामने आया है। आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि 82 निर्देश पारित किए गए हैं, लेकिन प्रदूषण की समस्या अब भी बनी हुई है। जस्टिस ओका ने आगे पूछा कि “क्या इन निर्देशों से समस्या में कोई कमी आई है?” इस पर अध्यक्ष ने जवाब दिया कि पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब तक अधिनियम की धारा 14 के तहत कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक निर्देश कागजों तक ही सीमित रहेंगे।

कोर्ट ने यह भी माना कि पराली जलाने की समस्या केवल निर्देशों से हल नहीं हो सकती। जस्टिस ओका ने किसानों की समस्याओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि पूरी फसल एक साथ तैयार हो जाती है और किसान चाहते हैं कि धान की फसल को जल्दी से जल्दी हटाकर अगली फसल के लिए खेत तैयार किया जाए। पराली जलाने का एक मुख्य कारण यह भी है कि फसल काटने के बाद खेतों में बची हुई पराली को हटाने के लिए मशीनों की कमी है।

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इस पर जस्टिस ओका ने कहा कि “पराली जलाने के लिए कोई प्रभावी और टिकाऊ विकल्प होना चाहिए।” कोर्ट ने इस दिशा में नए उपकरणों और तकनीकों के इस्तेमाल पर जोर दिया, ताकि पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके। सप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीएक्यूएम की स्थापना वायु गुणवत्ता प्रबंधन और उससे जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए की गई थी। हालांकि, आयोग का कामकाज उस स्तर का नहीं है, जैसा कि उम्मीद की गई थी। कोर्ट ने माना कि आयोग ने कुछ कदम उठाए हैं और रिपोर्टें भी दर्ज की हैं, लेकिन उन कदमों का धरातल पर सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हुआ है।

सुनवाई के दौरान यह भी बताया गया कि केंद्र सरकार ने पराली जलाने के विकल्प के रूप में किसानों को कुछ उपकरण मुहैया कराए हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि इन उपकरणों का सही और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जाए, ताकि पराली जलाने की समस्या का स्थायी समाधान हो सके। कोर्ट ने कहा कि तीन साल हो गए हैं और आयोग ने अब तक केवल 85 से 87 निर्देश जारी किए हैं। बावजूद इसके, निर्देशों का पालन न होने पर किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है।

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कोर्ट ने सीएक्यूएम के अधिकारियों से कहा कि अधिनियम की धारा 14 के तहत कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए ताकि निर्देशों का पालन सुनिश्चित हो सके। कोर्ट ने कहा कि जब तक अधिकारियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह समस्या यूं ही बनी रहेगी। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समितियां अधिक सक्रिय हों और तीन महीने में एक बार की बैठक के बजाय अधिक बार मिलें। सुप्रीम कोर्ट ने अंत में कहा कि आयोग को अपनी सिफारिशों और निर्देशों का बेहतर पालन सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि वह अगली सुनवाई से पहले एक विस्तृत अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करे, जिसमें उठाए गए कदमों और उनके परिणामों का जिक्र हो।

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