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ईडी की इस कार्रवाई के बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं ने तुरंत मोदी सरकार पर हमला बोला। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया दी। सिसोदिया ने लिखा, “आज फिर मोदीजी ने अपने तोता-मैना को खुला छोड़ दिया है। पिछले दो सालों में इन्होंने अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह, सत्येंद्र जैन और मेरे घर पर भी छापेमारी की, लेकिन कुछ भी हासिल नहीं हुआ। अब संजीव अरोड़ा जी के घर ईडी रेड कर रही है। ये लोग आम आदमी पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हम न डरेंगे, न रुकेंगे और न ही बिकेंगे।” सिसोदिया ने यह भी कहा कि यह छापेमारी केंद्र सरकार की आम आदमी पार्टी को कमजोर करने की साजिश का हिस्सा है। उनका दावा है कि बार-बार छापेमारी करने के बावजूद कोई ठोस सबूत नहीं मिला है, लेकिन फिर भी एजेंसियां फर्जी केस बनाकर पार्टी पर दबाव डालने की कोशिश कर रही हैं।
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आप के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भी ईडी की कार्रवाई को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। सिंह ने कहा, “मोदीजी की फर्जी केस बनाने वाली मशीन 24 घंटे आप के पीछे पड़ी हुई है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई बार झूठे मामलों को लेकर इन एजेंसियों को फटकार लगाई है, लेकिन वे न्यायालय की सुनने के बजाय केवल अपने आकाओं की सुनते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि आम आदमी पार्टी के नेताओं के हौसले बुलंद हैं और मोदी सरकार की इन चालों से वे डरने वाले नहीं हैं।
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]]>The post पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नया ठिकाना, कहां रहेंगे परिवार के साथ? first appeared on chaupalkhabar.com.
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आम आदमी पार्टी के सूत्रों के अनुसार, पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता केजरीवाल को अपने घर में रहने की पेशकश कर चुके हैं। हालांकि, केजरीवाल ने इस संबंध में अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है कि वह किस आवास को चुनेंगे। उनका कहना था कि नवरात्रि के दौरान वह सीएम आवास खाली कर देंगे। केजरीवाल को करीब तीन महीने जेल में बिताने के बाद सुप्रीम कोर्ट से 13 सितंबर को जमानत मिली थी। जमानत के कुछ दिनों बाद, 17 सितंबर को उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और AAP नेता आतिशी को राजधानी की बागडोर सौंप दी। इस्तीफा देते वक्त केजरीवाल ने स्पष्ट किया था कि वह तब तक मुख्यमंत्री पद पर वापस नहीं आएंगे, जब तक दिल्ली की जनता उन्हें दोबारा चुनाव में नहीं जिताती। उनका यह बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि इससे संकेत मिलते हैं कि वह भविष्य में दिल्ली की राजनीति में सक्रिय रहेंगे।
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अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक स्थिति अभी अनिश्चित है, और उनके भविष्य के कदमों को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। इसी बीच, उनके आवास को लेकर उठे सवालों ने दिल्ली की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। उनके समर्थकों का कहना है कि केजरीवाल एक साधारण जीवन जीते हैं और उन्हें किसी आलीशान आवास की जरूरत नहीं है। वहीं, उनके विरोधियों का कहना है कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बावजूद सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाना उनके सिद्धांतों के खिलाफ है। हालांकि, केजरीवाल ने साफ किया था कि वह सरकारी आवास नवरात्रि के दौरान खाली कर देंगे। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वह और उनका परिवार किस आवास में रहने का निर्णय लेते हैं। AAP के नेताओं और समर्थकों ने उन्हें आवास की पेशकश की है, लेकिन अंतिम फैसला केजरीवाल का होगा।
अरविंद केजरीवाल की अगली चाल क्या होगी, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं, खासकर जब वह अगले चुनावों में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने की तैयारी कर रहे हैं।
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]]>The post सुप्रीम कोर्ट से केजरीवाल और आतिशी को राहत, मानहानि मामले की सुनवाई पर लगी रोक first appeared on chaupalkhabar.com.
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इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल और आतिशी की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने मानहानि के इस मामले को रद्द करने की मांग की थी। इस फैसले के बाद, दोनों नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय ने बब्बर के आरोपों को पर्याप्त मानते हुए मामले की सुनवाई को आगे बढ़ाने का फैसला किया था। राजीव बब्बर ने अरविंद केजरीवाल, आतिशी, आप नेता सुशील कुमार गुप्ता और मनोज कुमार के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था। बब्बर का आरोप था कि इन नेताओं ने भाजपा को बदनाम करने की साजिश रची और 2020 के विधानसभा चुनावों से पहले गलत बयान दिए, जिसमें कहा गया था कि भाजपा ने दिल्ली की मतदाता सूची से 30 लाख मतदाताओं के नाम हटवा दिए हैं। इनमें विशेष रूप से बनिया, मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोग शामिल थे।
फरवरी 2020 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले की कार्यवाही पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी थी, जिससे अरविंद केजरीवाल और अन्य आप नेताओं को कुछ समय के लिए राहत मिली थी। लेकिन जब मामले को पुनः शुरू किया गया, तो राऊज एवेन्यू कोर्ट ने तीन अक्टूबर 2023 को पेशी का आदेश जारी किया था, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया है।
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई इस रोक के बाद अब ट्रायल कोर्ट में इस मामले की सुनवाई तब तक नहीं होगी जब तक सुप्रीम कोर्ट इस पर अंतिम निर्णय नहीं ले लेता। केजरीवाल और आतिशी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि उन पर लगाए गए आरोप निराधार हैं और इनका उद्देश्य केवल राजनीतिक लाभ लेना है। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे क्या निर्णय लेता है। यह मामला दिल्ली की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि इस तरह के आरोप और कानूनी मामलों का सीधा असर आगामी चुनावों और राजनीतिक छवि पर पड़ सकता है।
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]]>The post दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी का बड़ा फैसला, केजरीवाल के लिए खाली रखी मुख्यमंत्री की कुर्सी, भाजपा ने उठाए सवाल. first appeared on chaupalkhabar.com.
]]>आतिशी के इस फैसले पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई है। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने आतिशी के इस कदम को संविधान और मुख्यमंत्री पद का अपमान करार दिया है। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री की कुर्सी पर इस तरह से दोहरी स्थिति पैदा करना असंवैधानिक है। आतिशी जी का यह कदम आदर्श का पालन नहीं बल्कि साफ तौर पर चापलूसी है। इससे मुख्यमंत्री पद की गरिमा और दिल्ली की जनता की भावनाओं को ठेस पहुंची है।” वीरेंद्र सचदेवा ने आप पर आरोप लगाते हुए कहा कि क्या अरविंद केजरीवाल अब रिमोट कंट्रोल से दिल्ली की सरकार चलाना चाहते हैं? उन्होंने आगे कहा कि ऐसा करना सरकार की संस्थाओं और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। भाजपा ने इस मामले में केजरीवाल से स्पष्ट जवाब की मांग की है।
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मुख्यमंत्री पद संभालने के साथ ही आतिशी ने 13 प्रमुख विभागों की जिम्मेदारी भी अपने पास रखी है। इनमें लोक निर्माण विभाग (PWD), बिजली, शिक्षा, राजस्व, वित्त, योजना, सेवाएं, सतर्कता और जल जैसे विभाग शामिल हैं। ये सभी ऐसे विभाग हैं जिनमें कामकाज की अधिकता होती है और इन विभागों का सीधा संबंध दिल्ली की जनता से है। आने वाले समय में इन विभागों में सुधार और गति लाना आतिशी के सामने बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, आतिशी के साथ मंत्रिमंडल में चार और वरिष्ठ और अनुभवी नेता शामिल हैं। इनमें गोपाल राय, कैलाश गहलोत, सौरभ भारद्वाज, इमरान हुसैन और मुकेश अहलावत प्रमुख नाम हैं। मुकेश अहलावत सुल्तानपुर माजरा से विधायक हैं और पहली बार दिल्ली के मंत्रिमंडल में शामिल किए गए हैं। इन अनुभवी साथियों की मदद से आतिशी को दिल्ली के विकास और जनता से जुड़े मुद्दों पर काम करने का अवसर मिलेगा।
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आतिशी का मुख्यमंत्री बनना दिल्ली की राजनीति में एक नया अध्याय है। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में शिक्षा और बिजली के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है, जिससे उन्हें जनता के बीच एक पहचान मिली है। आतिशी के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती दिल्ली की सरकार को सुचारू रूप से चलाना और आगामी चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) की जीत सुनिश्चित करना है। वहीं दूसरी ओर, भाजपा और अन्य विपक्षी दलों की तीखी नजरें उन पर टिकी रहेंगी। भाजपा पहले ही आतिशी के इस फैसले को असंवैधानिक करार दे चुकी है, और आगे भी इस मामले पर राजनीतिक जंग छिड़ सकती है।
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]]>The post दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी, तीसरी महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ, कैबिनेट में भी बदलाव first appeared on chaupalkhabar.com.
]]>आतिशी के मुख्यमंत्री बनने का यह सफर कई महत्वपूर्ण पड़ावों और संघर्षों से भरा रहा है। 43 वर्षीय आतिशी न केवल दिल्ली की सबसे युवा मुख्यमंत्री बनेंगी, बल्कि वह आम आदमी पार्टी की संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। उन्होंने पार्टी की नीतियों को आकार देने में अहम भूमिका निभाई है और पार्टी के विभिन्न अभियानों में उनका योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा है। अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद, आतिशी ने दिल्ली में नई सरकार बनाने का दावा पेश किया था और उनकी पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए नामित किया था।
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आतिशी की राजनीतिक यात्रा का आरंभ 2013 में हुआ, जब उन्होंने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ली। इसके बाद उन्होंने कई सामाजिक अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाई। 2015 में उन्होंने मध्य प्रदेश के जल सत्याग्रह में भी भाग लिया, जहां उनकी सक्रियता और नेतृत्व क्षमता की सराहना की गई। हालाँकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता गौतम गंभीर के खिलाफ करारी हार का सामना करना पड़ा, जिसमें वह चार लाख से अधिक मतों से हार गईं। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कालकाजी से भाजपा नेता को 11 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराकर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर ली।
मुख्यमंत्री के रूप में आतिशी की शपथ के साथ ही दिल्ली की कैबिनेट में भी कई बदलाव किए गए हैं। पार्टी द्वारा घोषित मंत्रिपरिषद में सुल्तानपुर माजरा के विधायक मुकेश अहलावत को शामिल किया गया है, जो कि अनुसूचित जाति वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह राजकुमार आनंद की जगह कैबिनेट में आए हैं। इसके अलावा, गोपाल राय, कैलाश गहलोत, सौरभ भारद्वाज और इमरान हुसैन को भी दोबारा मंत्री बनाया गया है।
दिल्ली सरकार में कुल छह मंत्रियों का प्रावधान है, जिसमें मुख्यमंत्री के साथ पांच अन्य मंत्रियों ने शपथ ली है। गोपाल राय ने शपथ ग्रहण से पहले कहा कि दिल्ली की जनता के लिए काम करना उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने कहा, “सरकार में यह बदलाव विशेष परिस्थितियों के कारण हुआ है, लेकिन हमारा लक्ष्य इन बचे हुए महीनों में लंबित कामों को तेजी से पूरा करना है।” शपथ ग्रहण से पहले आतिशी और उनके साथ प्रस्तावित मंत्रियों ने अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की। इस दौरान अरविंद केजरीवाल ने उन्हें शुभकामनाएं दीं और दिल्ली की जनता के लिए लगातार काम करने की प्रेरणा दी। मुलाकात के बाद आतिशी, अरविंद केजरीवाल और अन्य मंत्रियों के साथ शपथ ग्रहण समारोह के लिए ‘राजनिवास’ की ओर रवाना हो गईं।
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दिल्ली की राजनीति में हाल के बदलावों को लेकर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए हैं। आप नेता दिलीप पांडे ने कहा कि भाजपा ने संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर आम आदमी पार्टी के नेताओं को निशाना बनाया। उन्होंने कहा, “ईडी और सीबीआई जैसी संस्थाओं का उपयोग करके भाजपा ने आप नेताओं को गिरफ्तार कराया, लेकिन अदालतों और संविधान की बदौलत हमें न्याय मिला और भाजपा को करारा जवाब मिला।” उन्होंने कहा कि भाजपा ने दिल्ली की जनता से बदला लेने के इरादे से यह सब किया था, क्योंकि तीन बार भाजपा को दिल्ली की जनता ने नकार दिया था।
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]]>The post हरियाणा दौरे पर अरविंद केजरीवाल, आम आदमी पार्टी के समर्थन के बिना सरकार बनना मुश्किल first appeared on chaupalkhabar.com.
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उन्होंने कहा कि दिल्ली में आप सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में जो काम किया है, वही मॉडल वह हरियाणा में लागू करना चाहते हैं। उन्होंने अपने रोड शो के दौरान जनता को यह विश्वास दिलाया कि हरियाणा में भी आप उसी तरह से काम करेगी जैसे उसने दिल्ली में किया है। रोड शो के दौरान अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार की प्रमुख योजनाओं का उल्लेख किया और हरियाणा की जनता से वादा किया कि वे भी उन्हीं योजनाओं से लाभान्वित होंगे। इनमें प्रमुख रूप से पांच गारंटी शामिल हैं:
1. हरियाणा में सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने का वादा।
2. मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं और मोहल्ला क्लीनिक का मॉडल लागू करने का आश्वासन।
3. युवाओं के लिए नए रोजगार के अवसर पैदा करने की योजना।
4. महिलाओं की सुरक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए विशेष कार्यक्रम।
5. गरीबों और जरूरतमंदों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार।
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जगाधरी में रोड शो के बाद अरविंद केजरीवाल हरियाणा के अन्य प्रमुख क्षेत्रों में भी पार्टी के लिए प्रचार करेंगे। उनकी प्रचार यात्रा में डबवाली, रानिया, भिवानी, मेहम, पूंडरी, कलायत, रेवाड़ी, दादरी, असंध, बल्लभगढ़ और बादरा जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इन जगहों पर केजरीवाल पार्टी के स्थानीय उम्मीदवारों के लिए समर्थन जुटाएंगे और जनता को आम आदमी पार्टी की नीतियों और योजनाओं से अवगत कराएंगे।
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]]>The post स्वाति मालीवाल का बागी अंदाज़, पार्टी क्यों नहीं कर पा रही है सख्त कार्रवाई? first appeared on chaupalkhabar.com.
]]>मालीवाल के इस बयान के बाद, आप पार्टी ने उनसे राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने की मांग की है। यह पहला मौका नहीं है जब स्वाति मालीवाल ने पार्टी के नेताओं पर सार्वजनिक रूप से तीखे हमले किए हैं। इससे पहले भी वो आप नेतृत्व के खिलाफ बयानबाजी करती रही हैं, लेकिन इसके बावजूद पार्टी ने उन्हें अब तक बाहर का रास्ता नहीं दिखाया। सवाल उठता है कि आखिरकार क्यों पार्टी लगातार पार्टी विरोधी बयानों के बाद भी उन्हें बर्खास्त नहीं कर रही है, और अगर उन्हें पार्टी से बाहर किया जाता है तो इसका पार्टी पर क्या असर पड़ेगा?
स्वाति मालीवाल के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आप पार्टी के पास तीन प्रमुख विकल्प हैं:
1. अगर पार्टी स्वाति मालीवाल को निलंबित करती है, तो उन्हें पार्टी के निर्देशों का पालन करना होगा, लेकिन उनकी राज्यसभा सदस्यता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वो राज्यसभा में अपनी भूमिका जारी रख सकेंगी।
2. यदि पार्टी उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर देती है, तो इस स्थिति में स्वाति पार्टी से तो बाहर हो जाएंगी, लेकिन उनकी राज्यसभा सदस्यता बरकरार रहेगी। इसका नुकसान आप पार्टी को ही होगा क्योंकि संसद में उसका एक सांसद कम हो जाएगा। इसके अलावा, स्वाति मालीवाल पर पार्टी के निर्देशों का पालन करने का कोई दबाव नहीं रहेगा।
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3. पार्टी के लिए सबसे सही विकल्प यही होगा कि स्वाति मालीवाल खुद राज्यसभा से इस्तीफा दे दें। इसके अलावा, एक और तरीका यह हो सकता है कि यदि वो सदन में पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर किसी प्रस्ताव पर वोट करती हैं या वोटिंग से अनुपस्थित रहती हैं, तो पार्टी उनके खिलाफ संविधान के तहत कार्रवाई कर सकती है। इस स्थिति में पार्टी उनकी सदस्यता रद्द करवाने का प्रयास कर सकती है। पार्टी को 15 दिनों के भीतर शिकायत दर्ज करनी होती है, जिसके बाद उनके खिलाफ उचित प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
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अब सवाल यह है कि आप पार्टी स्वाति मालीवाल के खिलाफ कौन सा कदम उठाएगी। निलंबन से उनकी सदस्यता सुरक्षित रहेगी और बर्खास्तगी से पार्टी को संसद में नुकसान उठाना पड़ेगा। इसलिए पार्टी चाहती है कि या तो स्वाति खुद इस्तीफा दे दें या फिर किसी ऐसे मुद्दे पर पार्टी लाइन के खिलाफ वोट करें, जिससे पार्टी उनकी सदस्यता रद्द करवाने की स्थिति में आ सके। इस विवाद के बीच यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि स्वाति मालीवाल और आप के बीच यह रस्साकशी किस ओर जाती है, और इसका दिल्ली की राजनीति पर क्या असर होता है।
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]]>The post आतिशी मार्लेना बनीं दिल्ली की नई मुख्यमंत्री, विरोधियों के निशाने पर. first appeared on chaupalkhabar.com.
]]>मालीवाल ने अपने बयान में ये भी कहा कि आतिशी मार्लेना भले ही सिर्फ एक “डमी सीएम” हो, लेकिन ये मुद्दा सीधे तौर पर देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि दिल्ली की रक्षा हो सके, यह संकेत देते हुए कि आतिशी का मुख्यमंत्री बनना देश के लिए खतरनाक हो सकता है। बीजेपी के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने भी आतिशी की नियुक्ति पर निशाना साधते हुए इसे मनीष सिसोदिया के दबाव का नतीजा बताया। सचदेवा ने कहा कि सिसोदिया ने पहले आतिशी को विभिन्न विभागों का प्रभारी बनाया था और अब उनके दबाव में अरविंद केजरीवाल ने उन्हें मुख्यमंत्री पद सौंपा है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “पहले विभाग दिलाए, अब आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया।”
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सचदेवा के बयान में इस बात पर जोर दिया गया कि दिल्ली सरकार में आतिशी की नियुक्ति एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है, जिसमें मनीष सिसोदिया का बड़ा हाथ है। बीजेपी का मानना है कि केजरीवाल ने सिसोदिया के दबाव में आकर आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया, जबकि यह फैसला दिल्ली के लोगों के हित में नहीं है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने से कुछ नहीं बदलेगा। उन्होंने कहा, “दिल्ली का भाग्य मुख्यमंत्री बदलने से नहीं बदलेगा। असली बदलाव तब होगा जब प्रशासनिक और नीतिगत सुधार किए जाएंगे।”
हालांकि, आतिशी मार्लेना ने अभी तक इन आरोपों पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया है। लेकिन उनकी नियुक्ति ने न केवल दिल्ली की राजनीति में हलचल मचा दी है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इस फैसले पर चर्चा हो रही है। आतिशी की छवि एक शिक्षित और सामाजिक रूप से सक्रिय नेता के रूप में रही है, जिन्होंने दिल्ली सरकार के शिक्षा सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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वहीं, आम आदमी पार्टी (AAP) के समर्थकों का कहना है कि आतिशी की नियुक्ति दिल्ली के विकास के लिए सकारात्मक साबित होगी। AAP के कई नेताओं का मानना है कि आतिशी के नेतृत्व में दिल्ली की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में और सुधार होगा। अभी यह देखना बाकी है कि आतिशी मार्लेना के मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली की राजनीति किस दिशा में जाती है और क्या यह फैसला दिल्ली के लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरता है।
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]]>The post शिक्षक से लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री तक, आतिशी का सफर और उपलब्धियाँ. first appeared on chaupalkhabar.com.
]]>आतिशी का जन्म 8 जून 1981 को दिल्ली में हुआ था। उनके माता-पिता, विजय सिंह और त्रिप्ता वाही, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में प्रोफेसर थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के प्रतिष्ठित स्प्रिंगडेल्स स्कूल, पूसा रोड से हुई। बाद में उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उनकी शिक्षा का सफर यहीं नहीं रुका। उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शेवनिंग स्कॉलरशिप पर मास्टर्स करने का अवसर मिला। इसके बाद रोड्स स्कॉलरशिप के तहत भी उन्होंने ऑक्सफोर्ड से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
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राजनीति में कदम रखने से पहले आतिशी ने शिक्षा के क्षेत्र में काम किया। उन्होंने मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव में लगभग 7 वर्षों तक काम किया। इसके अलावा, आंध्र प्रदेश के ऋषि वैली स्कूल में इतिहास और अंग्रेज़ी पढ़ाया। शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें दिल्ली के शिक्षा संस्थानों में सुधार के लिए एक अहम भूमिका निभाने का अवसर दिया। उनके प्रयासों का असर दिल्ली के सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार के रूप में देखा गया।
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आतिशी ने 2013 में आम आदमी पार्टी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने 2015 से 2018 तक मनीष सिसोदिया की सलाहकार के रूप में काम किया। 2019 में उन्होंने पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, हालांकि वे गौतम गंभीर से हार गईं। लेकिन 2020 में उन्होंने कालकाजी विधानसभा सीट से जीत दर्ज की और दिल्ली विधानसभा में पहुंचीं। 9 मार्च 2023 को आतिशी पहली बार दिल्ली सरकार में मंत्री बनीं। उनके पास शिक्षा और PWD समेत 13 मंत्रालयों का प्रभार था। आतिशी का दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने का सफर उनके नेतृत्व, शिक्षा के प्रति समर्पण और जनता की सेवा में निरंतरता का प्रमाण है।
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]]>The post दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा, राजनीतिक हलचल और चुनौतियों पर विशेषज्ञों की राय first appeared on chaupalkhabar.com.
]]>केजरीवाल ने कहा कि वह इस्तीफे के बाद दिल्ली की गलियों और लोगों के बीच जाएंगे ताकि जनता से सीधे संवाद कर सकें। उन्होंने कहा कि जब तक जनता का निर्णय नहीं आता, वह मुख्यमंत्री पद नहीं संभालेंगे। इस घटनाक्रम के बाद राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठने लगा है कि आगामी विधानसभा चुनाव तक राज्य की बागडोर कौन संभालेगा।केजरीवाल की इस्तीफे की घोषणा को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसे एक “राजनीतिक नाटक” बता रही है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक विशेषज्ञ इस कदम को केजरीवाल की रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।
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सुप्रसिद्ध चुनाव विश्लेषक और नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक रामकृपाल सिंह ने इस पर अपनी राय दी। उन्होंने एबीपी न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि केजरीवाल का यह कदम किसी बड़ी राजनीतिक आंधी का संकेत नहीं है। उनका मानना है कि केजरीवाल भले ही खुद को क्रांतिकारी नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हों, लेकिन उनके लिए आगामी चुनावों में जीत की राह इतनी आसान नहीं होगी। सिंह ने कहा कि “केजरीवाल को छोड़ा गया है, न कि मुख्यमंत्री को।” इसका तात्पर्य है कि अदालत ने उन्हें जमानत दी है, लेकिन इसका सीधा अर्थ यह नहीं कि उन्हें राजनीतिक स्तर पर पूरी तरह समर्थन प्राप्त होगा।
रामकृपाल सिंह के अनुसार, आम आदमी पार्टी (आप) और अरविंद केजरीवाल के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ खड़ी हैं। नवंबर में चुनाव होने की संभावना है, लेकिन केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए चुनावी जीत सुनिश्चित करना कठिन हो सकता है। सिंह ने कहा कि केजरीवाल भगत सिंह का उदाहरण देकर खुद को एक क्रांतिकारी नेता के रूप में पेश कर रहे हैं, लेकिन यह तुलना सटीक नहीं है। उनका मानना है कि केजरीवाल वर्तमान स्थिति का लाभ उठाकर खुद को सुरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इससे उनकी चुनावी स्थिति मजबूत नहीं होगी।
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सिंह ने कहा, “अगले साल फरवरी में दिल्ली विधानसभा चुनाव होंगे। इस दौरान यह देखना होगा कि केजरीवाल अपने इस्तीफे और रणनीति के बावजूद कितनी मजबूती से चुनावी मैदान में उतरते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि आप पार्टी को इस बार कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिनसे पार पाना इतना आसान नहीं होगा।
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