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]]>यह निर्णय न केवल सुप्रीम कोर्ट की उच्चतम अदालत के रूप में बल्कि समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। महिलाओं के खिलाफ झूठे आरोपों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण पहल है जो उन्हें संरक्षित और सुरक्षित महसूस कराएगी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने अपने फैसले में उजागर किया कि भारतीय न्याय संहिता में सुधार की आवश्यकता है, खासकर धारा 85 और 86 में। इन धाराओं में संशोधन करने से पहले इसे ध्यान से विचार करना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि न्याय प्रणाली में स्थिरता और न्याय की शानदारता बनी रहे।
फैसले के अनुसार, ये धाराएं अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, खासकर धारा 498 (ए) के समान। उन्होंने यह भी कहा कि विधायिका को नये कानून को प्रारंभ होने से पहले समय पर इस पर विचार करना चाहिए, ताकि समाज को विशेष रूप से महिलाओं की सुरक्षा और समानता की ओर एक प्रासंगिक कदम मिल सके। धारा 85 में यह बताया गया है कि अगर कोई किसी महिला के साथ क्रूरता करता है, तो उसे दंडित किया जाएगा। इसके साथ ही उसे नकद जुर्माना भी देना होगा। धारा 86 में ‘क्रूरता’ की परिभाषा विस्तार से बताई गई है। इसमें महिला के मानसिक और शारीरिक नुकसान को समाहित किया गया है।
इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा के प्रति अपनी संवेदनशीलता को दिखाया है। यह भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है जो महिलाओं को उनके अधिकारों की गारंटी प्रदान करेगा। इस निर्णय के बाद, सामाजिक संरक्षा और सुरक्षा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का महत्व बढ़ जाएगा। इससे महिलाओं को न्याय और सुरक्षा की अधिक गारंटी मिलेगी। यह निर्णय सामाजिक संवेदना और न्याय के प्रति भारतीय न्याय प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है। इससे महिलाओं को उनके अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम मिलेगा।
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