Central Drugs Standard Control Organization - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Thu, 26 Sep 2024 12:03:40 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.2 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg Central Drugs Standard Control Organization - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 CDSCO द्वारा क्वालिटी टेस्ट में फेल हुई 53 दवाएं, सनफार्मा सहित कई बड़ी कंपनियां निशाने पर. https://chaupalkhabar.com/2024/09/26/quality-test-by-cdsco/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/26/quality-test-by-cdsco/#respond Thu, 26 Sep 2024 12:03:40 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5116 केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने हाल ही में 53 दवाओं को क्वालिटी टेस्ट में फेल करार दिया है। इन दवाओं में बीपी, डायबिटीज, एसिड रिफ्लक्स, और विटामिन की प्रमुख दवाइयां शामिल हैं, जो कि भारत की कई प्रमुख फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा बनाई गई हैं। यह खुलासा स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक बड़ी चिंता …

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केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने हाल ही में 53 दवाओं को क्वालिटी टेस्ट में फेल करार दिया है। इन दवाओं में बीपी, डायबिटीज, एसिड रिफ्लक्स, और विटामिन की प्रमुख दवाइयां शामिल हैं, जो कि भारत की कई प्रमुख फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा बनाई गई हैं। यह खुलासा स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है, खासकर तब जब इनमें से कई दवाएं आमतौर पर लोगों द्वारा नियमित रूप से उपयोग की जाती हैं। CDSCO ने पेन किलर डिक्लोफेनेक, पैरासिटामोल (बुखार और दर्द निवारण की दवा), और एंटीफंगल मेडिसिन फ्लुकोनाजोल जैसी महत्वपूर्ण दवाओं को क्वालिटी टेस्ट में फेल करार दिया है। इन दवाओं का निर्माण देश की प्रमुख फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, सनफार्मा की पैंटोसिड टैबलेट, जो कि एसिड रिफ्लक्स के लिए इस्तेमाल की जाती है, भी इस लिस्ट में शामिल है।

CDSCO की इस सूची में शामिल 53 दवाओं में से अभी तक 48 दवाओं के नाम ही सार्वजनिक हुए हैं। हालांकि, इसमें एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है कि कुछ दवा कंपनियों का दावा है कि जो दवाएं फेल हुई हैं, वे उनकी नहीं हैं। इन कंपनियों का कहना है कि उनकी ब्रांड के नाम पर नकली दवाइयां बाजार में बेची जा रही हैं, जो कि टेस्ट में फेल हो गईं। यह घटना न केवल गुणवत्ता मानकों पर सवाल खड़े करती है, बल्कि नकली दवाओं के बढ़ते खतरे की ओर भी इशारा करती है।

फेल घोषित की गई दवाओं में कुछ ऐसी भी हैं जिनका उपयोग बहुत व्यापक रूप से होता है। जैसे, कैल्शियम डी3 सप्लीमेंट, जीवाणु संक्रमण और एसिड रिफ्लक्स से जुड़ी दवाएं, जो कि आमतौर पर डॉक्टरों द्वारा सिफारिश की जाती हैं, उन्हें टेस्ट में फेल पाया गया है। बीते कुछ सालों में इन दवाओं की मांग और खपत में बढ़ोतरी भी हुई है, जिससे इस समस्या की गंभीरता और भी बढ़ जाती है।

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न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ फेल हुई दवाएं एल्केम लैबोरेटरीज, हेटेरो ड्रग्स, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (एचएएल), और कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड जैसी बड़ी कंपनियों द्वारा बनाई गई थीं। इन कंपनियों के लिए यह एक बड़ा झटका है क्योंकि उनकी बनाई गई दवाओं को हमेशा उच्च गुणवत्ता के रूप में देखा जाता रहा है।

CDSCO ने इन कंपनियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है कि क्यों उनकी दवाएं क्वालिटी टेस्ट में फेल हुईं। इसके साथ ही, बाजार में मौजूद इन दवाओं के स्टॉक को तुरंत वापस लेने का आदेश भी जारी किया गया है। खासकर, हाई बीपी को रोकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली शेल्कम और पल्मोसिल इंजेक्शन, जो कि टेस्ट में फेल हो चुकी हैं, इन पर विशेष ध्यान दिया गया है।

फेल हुई दवाओं की सूची में कुछ बहुत महत्वपूर्ण नाम शामिल हैं, जिनमें शामिल हैं:
– कैल्शियम और विटामिन डी3 की दवाएं, जैसे Shelcal 500 (शेल्कल 500)
– डायबिटीज की दवाएं, जैसे Glycimet-SR (ग्लाइसिमेट-SR)
– बुखार और दर्द निवारक, जैसे पैरासिटामोल टैबलेट IP 500mg
– एसिड रिफ्लक्स की दवाएं, जैसे Pan-D (पैंटोप्रेज़ोल और डॉम्पेरिडोन)

इसके अलावा, टेस्ट में फेल हुई दवाओं की सूची में Amoxicillin and Potassium Clavulanate Tablets IP (कैलवम 25) और Rifamin 550 (रिफाक्सिमिन 550mg) जैसी एंटीबायोटिक दवाएं भी शामिल हैं। एक और बड़ी चिंता यह है कि नकली दवाएं, जो कि इन बड़ी कंपनियों के नाम पर बेची जा रही हैं, उन्होंने इस क्वालिटी टेस्ट में फेल होकर नकली दवाओं के खतरे को बढ़ा दिया है। नकली दवाओं का सेवन लोगों की सेहत के लिए अत्यधिक हानिकारक हो सकता है, और इससे इलाज के बजाय समस्या बढ़ने का खतरा रहता है।

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केंद्र सरकार ने एडवाइजरी जारी करते हुए कहा है कि कुछ एंजाइम जैसे ग्लूकोएमाइलेज, पेक्टिनेज, एमाइलेज, प्रोटीएज, अल्फा गैलेक्टोसिडेज, सेल्युलेस, लाइपेज, और ब्रोमेलैन का इस्तेमाल भी सेहत के लिए खतरे का कारण बन सकता है। सरकार ने दवा निर्माताओं और उपभोक्ताओं को इस दिशा में सतर्क रहने की सलाह दी है। यह घटना केवल दवाओं की गुणवत्ता के प्रति चिंता ही नहीं, बल्कि नकली दवाओं के तेजी से बढ़ते खतरे की ओर भी इशारा करती है। सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए भविष्य में और कड़े जांच कदम उठाने का संकेत दिया है। इसके साथ ही, दवा कंपनियों को अपनी प्रक्रियाओं में और भी पारदर्शिता लाने और गुणवत्ता मानकों का सख्ती से पालन करने की हिदायत दी गई है।

 

 

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भारत में मंकीपॉक्स का संदिग्ध मामला, स्वास्थ्य मंत्रालय की सतर्कता और तैयारियां. https://chaupalkhabar.com/2024/09/09/monkeypox-in-india/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/09/monkeypox-in-india/#respond Mon, 09 Sep 2024 07:43:23 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4753 देश में मंकीपॉक्स का एक संदिग्ध मामला सामने आने से आम लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं। यह मामला एक ऐसे व्यक्ति से जुड़ा है, जिसने हाल ही में एक देश की यात्रा की थी, जहां मंकीपॉक्स या एमपॉक्स के काफी मामले देखे गए थे। मरीज की पहचान होते ही उसे तुरंत अस्पताल के आईसोलेशन …

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देश में मंकीपॉक्स का एक संदिग्ध मामला सामने आने से आम लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं। यह मामला एक ऐसे व्यक्ति से जुड़ा है, जिसने हाल ही में एक देश की यात्रा की थी, जहां मंकीपॉक्स या एमपॉक्स के काफी मामले देखे गए थे। मरीज की पहचान होते ही उसे तुरंत अस्पताल के आईसोलेशन वार्ड में भर्ती करवा दिया गया है, और उसकी हालत फिलहाल स्थिर बताई जा रही है। इस संदिग्ध मामले को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और देश के चिकित्सा विशेषज्ञ गंभीर हैं और जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। मंकीपॉक्स, जिसे हाल ही में एमपॉक्स भी कहा जाने लगा है, कोई नई बीमारी नहीं है। यह एक वायरल बीमारी है, जो चेचक के वायरस की तरह ही फैलती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसके खतरे को भांपते हुए इसे एक ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है। अब तक यह वायरस विश्व के 116 देशों में फैल चुका है, जिसके चलते इसे गंभीरता से लिया जा रहा है।

भारत में फिलहाल यह संक्रमण अपने शुरुआती चरण में ही है, और संदिग्ध मरीज की जांच की जा रही है कि क्या उसे वास्तव में मंकीपॉक्स हुआ है या नहीं। भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि देश इस तरह के मामलों से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है, और इसके लिए सारे जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं।

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मंकीपॉक्स के लक्षण चेचक की तरह होते हैं, जैसे कि बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ में दर्द, ठंड लगना और थकान महसूस होना। इसके साथ ही त्वचा पर दाने या चकत्ते उभरते हैं, जो धीरे-धीरे फफोले या पसयुक्त घाव में बदल जाते हैं। यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है, खासकर घाव के तरल पदार्थ या संक्रमित कपड़े आदि से। इसके अलावा, यौन संपर्क से भी इस संक्रमण के फैलने की संभावना होती है। हालांकि, इस बीमारी का असर आमतौर पर 2 से 4 हफ्तों तक रहता है और संक्रमित व्यक्ति में खुद-ब-खुद ठीक होने की संभावना होती है, लेकिन कुछ गंभीर मामलों में इसे अस्पताल में इलाज की जरूरत होती है। चूंकि मंकीपॉक्स का फैलाव कोविड-19 की तरह तेज नहीं है, इसलिए इसे रोकने के लिए तुरंत और सटीक कदम उठाए जाने जरूरी होते हैं।

मंकीपॉक्स के संदिग्ध मामलों की जांच के लिए देश में टेस्टिंग किट्स की जरूरत को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आवश्यक कदम उठाए हैं। सीडीएससीओ (Central Drugs Standard Control Organization) ने मंकीपॉक्स की पहचान के लिए तीन टेस्टिंग किट्स को मंजूरी दी है। इन किट्स के जरिए मंकीपॉक्स के लक्षण जैसे चकत्ते से निकले तरल पदार्थ की जांच की जाएगी, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि मरीज मंकीपॉक्स से पीड़ित है या नहीं। आईसीएमआर (Indian Council of Medical Research) ने भी इन टेस्टिंग किट्स को हरी झंडी दे दी है, ताकि जल्दी से जल्दी मामलों की पहचान हो सके और उन्हें नियंत्रित किया जा सके। स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी कहा है कि संदिग्ध मामलों की पहचान के लिए इन टेस्टिंग किट्स का प्रयोग देशभर के विभिन्न मेडिकल केंद्रों में किया जाएगा, ताकि जल्दी और सही परिणाम मिल सकें।

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मंकीपॉक्स के इस संदिग्ध मामले के सामने आने के बाद सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय पूरी तरह सतर्क हैं। मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया है कि देश में इस तरह की आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन और क्षमता मौजूद है। मंत्रालय ने अस्पतालों और मेडिकल स्टाफ को भी आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं ताकि इस वायरस के फैलने से पहले ही नियंत्रण पाया जा सके। हाल ही में हुई स्वास्थ्य मंत्रालय की एक बैठक में यह भी कहा गया कि मंकीपॉक्स के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है, ताकि वे इसके लक्षणों को जल्दी पहचान सकें और सही समय पर इलाज करवाया जा सके। इसके अलावा, मंत्रालय ने यह भी निर्देश दिया है कि संदिग्ध मामलों की तुरंत जांच की जाए और उनके संपर्क में आए लोगों की भी निगरानी की जाए, ताकि संक्रमण को रोका जा सके।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मंकीपॉक्स के फैलाव को रोकने के लिए कुछ सरल सावधानियों का पालन करना बेहद जरूरी है। संक्रमित व्यक्ति से दूर रहना, उनके इस्तेमाल किए गए कपड़े या बिस्तर आदि का प्रयोग न करना, और यदि कोई लक्षण महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है। वहीं, इस संक्रमण से जुड़े किसी भी अफवाह से बचने और सही जानकारी के लिए केवल आधिकारिक सूत्रों पर भरोसा करना चाहिए। मंकीपॉक्स एक गंभीर संक्रमण है, लेकिन भारत की स्वास्थ्य सेवाएं इस पर नियंत्रण पाने के लिए पूरी तरह सक्षम हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों और टेस्टिंग किट्स की उपलब्धता से यह उम्मीद की जा रही है कि देश में इस संक्रमण का फैलाव नहीं होगा।

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