Central govt - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Sat, 28 Sep 2024 06:46:34 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg Central govt - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 संसदीय समितियों का गठन, राहुल गांधी रक्षा समिति के सदस्य, शशि थरूर को विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी https://chaupalkhabar.com/2024/09/28/constitution-of-parliamentary-committees/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/28/constitution-of-parliamentary-committees/#respond Sat, 28 Sep 2024 06:46:34 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5142 केंद्र सरकार ने हाल ही में 24 संसदीय समितियों का गठन किया है। ये समितियां विभिन्न विभागों के कामकाज की निगरानी और समीक्षा का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं, जिससे संसद के समक्ष आने वाले विषयों पर गहन चर्चा और विचार-विमर्श हो सके। इस नई समिति संरचना में विभिन्न प्रमुख नेताओं को शामिल किया गया है, …

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केंद्र सरकार ने हाल ही में 24 संसदीय समितियों का गठन किया है। ये समितियां विभिन्न विभागों के कामकाज की निगरानी और समीक्षा का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं, जिससे संसद के समक्ष आने वाले विषयों पर गहन चर्चा और विचार-विमर्श हो सके। इस नई समिति संरचना में विभिन्न प्रमुख नेताओं को शामिल किया गया है, जिनमें राहुल गांधी, शशि थरूर, असदुद्दीन ओवैसी, और अखिलेश यादव जैसे प्रमुख नेता शामिल हैं। लोकसभा में कांग्रेस के नेता और विपक्ष के नेता राहुल गांधी को रक्षा समिति का सदस्य नियुक्त किया गया है। यह समिति देश की रक्षा से जुड़ी विभिन्न नीतियों और मुद्दों की समीक्षा करेगी। बीजेपी के वरिष्ठ नेता राधा मोहन सिंह को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। इसके साथ ही, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को विदेश मंत्रालय की संसदीय समिति में सदस्य के रूप में शामिल किया गया है, जबकि इस समिति का अध्यक्ष कांग्रेस सांसद शशि थरूर को नियुक्त किया गया है।

संसदीय समितियां सरकार के कामकाज की निगरानी और संसद में पेश किए जाने वाले विधेयकों पर सुझाव देने का कार्य करती हैं। यह समितियां संसद को सलाह और दिशा निर्देश देने के साथ-साथ विभिन्न विभागों के कार्यों की समीक्षा भी करती हैं, ताकि नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके। संसदीय समितियों का गठन दो प्रकार का होता है: स्थाई समितियां और तदर्थ समितियां। स्थाई समितियों का कार्यकाल एक साल का होता है, जबकि तदर्थ समितियों का गठन विशेष मुद्दों पर विचार के लिए किया जाता है, और उनका कार्यकाल उस मुद्दे के निपटारे तक ही सीमित होता है।

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समितियों की इस नई संरचना में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन समिति का सदस्य बनाया गया है। यह समिति वैज्ञानिक अनुसंधान, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर काम करेगी। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह को शिक्षा मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। संचार और आईटी समिति में भी नए चेहरों को जिम्मेदारी दी गई है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता अनिल बलूनी को इस समिति का सदस्य नियुक्त किया गया है। इसके अलावा, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता चरणजीत सिंह चन्नी को कृषि मंत्रालय से संबंधित स्थाई समिति का अध्यक्ष बनाया गया है।

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यह भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को किसी भी संसदीय समिति में शामिल नहीं किया गया है। यह फैसला संसद के भीतर और बाहर विभिन्न चर्चाओं का विषय बना हुआ है, क्योंकि सोनिया गांधी लंबे समय से भारतीय राजनीति की प्रमुख हस्ती रही हैं। इन समितियों का महत्व इस बात में निहित है कि ये न केवल संसद के कार्यभार को बांटने में मदद करती हैं, बल्कि सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा करके संसद को महत्वपूर्ण सुझाव देती हैं। इस प्रकार, ये समितियां संसदीय कार्यवाही के कुशल संचालन में एक अहम भूमिका निभाती हैं। इस गठन के साथ, सभी नेताओं से उम्मीद की जा रही है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में सकारात्मक योगदान देंगे और समितियों के माध्यम से देश की नीतियों में सुधार लाने में मदद करेंगे।

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वन नेशन, वन इलेक्शन, इलेक्शन’, भारतीय चुनाव प्रणाली में बड़ा बदलाव? https://chaupalkhabar.com/2024/09/16/one-nation-one-election-election/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/16/one-nation-one-election-election/#respond Mon, 16 Sep 2024 07:29:31 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4899 ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के प्रमुख एजेंडों में से एक है। इस विचार का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। सरकार तेजी से इस दिशा में काम कर रही है, और उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी …

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के प्रमुख एजेंडों में से एक है। इस विचार का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। सरकार तेजी से इस दिशा में काम कर रही है, और उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी सरकार अपने वर्तमान कार्यकाल (मोदी 3.0) में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक पेश कर सकती है। इसका मतलब यह है कि देशभर के सभी चुनाव एक ही समय पर होंगे, जो बार-बार चुनाव कराने की प्रक्रिया को सरल बना सकता है। मोदी सरकार वर्तमान में अपने सहयोगियों के समर्थन पर निर्भर है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ जेडीयू (JDU) और तेलुगू देशम पार्टी (TDP) जैसी प्रमुख पार्टियों का सहयोग भी है। ये पार्टियां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा हैं और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विचार पर सरकार का समर्थन कर रही हैं। बताया जा रहा है कि एनडीए में शामिल सभी दल इस अवधारणा के पक्ष में हैं और इसके कार्यान्वयन के लिए तैयार हैं।

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यह विचार केवल सरकार का एजेंडा ही नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बार-बार जनता और अन्य राजनीतिक दलों के समक्ष प्रस्तुत किया है। बीजेपी के 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का वादा किया गया था। इस साल स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में पीएम मोदी ने राजनीतिक दलों से इस दिशा में साथ आने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि “समय की मांग है कि हम एक राष्ट्र, एक चुनाव के संकल्प को हासिल करें।” इससे चुनावों की प्रक्रिया को सरल और समयबद्ध बनाने की उम्मीद जताई जा रही है।

सरकार ने इस मुद्दे पर अध्ययन और विचार के लिए एक समिति गठित की, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की। इस समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, समिति ने सुझाव दिया है कि पहले लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों का आयोजन किया जाना चाहिए, जिससे सभी स्तरों के चुनाव एक निश्चित समय सीमा में संपन्न हो सकें।

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मुख्य उद्देश्य चुनावों की आवृत्ति को कम करना और संसाधनों की बचत करना है। बार-बार चुनाव कराने से सरकार और जनता दोनों पर वित्तीय और प्रशासनिक बोझ पड़ता है। एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक लागत कम होगी और विकास योजनाओं के संचालन में भी रुकावटें कम होंगी। हालांकि, इस प्रस्ताव के खिलाफ भी कुछ तर्क दिए जा रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि इससे क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान हो सकता है और स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मुद्दों के नीचे दबा दिया जाएगा। इसके अलावा, यह भी तर्क दिया जा रहा है कि एक साथ चुनाव कराने से संसदीय और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है।

 

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मणिपुर हिंसा पर शिवसेना का मोदी सरकार पर हमला, ‘सामना’ के जरिए उठाए गंभीर सवाल. https://chaupalkhabar.com/2024/09/14/manipur-violence-on-shiv-sena/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/14/manipur-violence-on-shiv-sena/#respond Sat, 14 Sep 2024 06:58:57 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4860 महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक गतिविधियां तेज हो रही हैं। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) के सहयोगी दल लगातार केंद्र और राज्य सरकारों पर हमला कर रहे हैं। हाल ही में शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार को मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर …

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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक गतिविधियां तेज हो रही हैं। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) के सहयोगी दल लगातार केंद्र और राज्य सरकारों पर हमला कर रहे हैं। हाल ही में शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार को मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर घेरते हुए कई सवाल खड़े किए हैं। शिवसेना (यूबीटी) ने ‘सामना’ में प्रकाशित लेख के माध्यम से कहा कि मोदी सरकार वैश्विक मंच पर रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने की कोशिशें कर रही है, लेकिन मणिपुर में फैली हिंसा पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। लेख में दावा किया गया कि प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है और देश के अंदरूनी हालातों की अनदेखी की जा रही है।

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लेख में यह भी कहा गया कि मणिपुर हिंसा पिछले 18 महीने से जारी है, लेकिन सरकार ने इस पर कोई कारगर योजना नहीं बनाई। शिवसेना (यूबीटी) ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र सरकार के मुंह में मानो “दही जम गया है” क्योंकि अब तक इस गंभीर स्थिति पर सरकार की ओर से किसी प्रभावी कार्रवाई की घोषणा नहीं की गई है।

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‘सामना’ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मणिपुर में जारी हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके बावजूद, राज्य सरकार और केंद्र के बीच समन्वय की कमी देखी जा रही है। लेख में मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य पर भी सवाल उठाए गए। रिपोर्ट के अनुसार, राज्यपाल इस हिंसा के दौरान मणिपुर छोड़कर असम में जाकर शरण ले चुके हैं। ऐसे में केंद्र सरकार मणिपुर को अस्थिर प्रशासन के हवाले कर चुकी है। शिवसेना (यूबीटी) ने इस लेख में मांग की कि मणिपुर की स्थिति को गंभीरता से लिया जाए और देश के भीतर फैली हिंसा को रोकने के लिए केंद्र को ठोस कदम उठाने चाहिए।

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भारत द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं पर बांग्लादेश की नई सरकार की सकारात्मक प्रतिक्रिया: सहयोग जारी रहेगा. https://chaupalkhabar.com/2024/09/11/financed-by-india/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/11/financed-by-india/#respond Wed, 11 Sep 2024 07:26:54 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4809 बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के वित्तीय सलाहकार सलेहुद्दीन अहमद ने मंगलवार को भारतीय वित्तपोषित परियोजनाओं की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि यह परियोजनाएं “काफी महत्वपूर्ण” हैं और देश में नई प्रशासन व्यवस्था के बावजूद यह जारी रहेंगी। उन्होंने भारत के साथ चल रहे द्विपक्षीय सहयोग को और अधिक बढ़ाने की इच्छा जताई। यह …

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के वित्तीय सलाहकार सलेहुद्दीन अहमद ने मंगलवार को भारतीय वित्तपोषित परियोजनाओं की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि यह परियोजनाएं “काफी महत्वपूर्ण” हैं और देश में नई प्रशासन व्यवस्था के बावजूद यह जारी रहेंगी। उन्होंने भारत के साथ चल रहे द्विपक्षीय सहयोग को और अधिक बढ़ाने की इच्छा जताई। यह बयान ऐसे समय में आया है जब शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के गिरने के बाद से भारत द्वारा संचालित परियोजनाओं की समय पर क्रियान्वयन को लेकर चिंताएं उठ रही थीं। अहमद ने कहा कि नई सरकार भी इन परियोजनाओं के प्रति प्रतिबद्ध है, और इन्हें रोका नहीं जाएगा। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि इन परियोजनाओं के लिए भारत द्वारा बांग्लादेश को प्रदान की जा रही ऋण सुविधा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। भारत द्वारा वित्तपोषित इन परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग को और बढ़ाने पर सहमति बनी।

भारत बांग्लादेश में विभिन्न इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा और विकास परियोजनाओं के लिए ऋण सुविधा प्रदान कर रहा है। ये परियोजनाएं बांग्लादेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, जिसमें सड़क निर्माण, रेलवे विस्तार और विद्युत परियोजनाएं शामिल हैं। वित्तीय सलाहकार सलेहुद्दीन अहमद ने कहा कि यह परियोजनाएं बांग्लादेश की विकास प्रक्रिया के लिए बेहद जरूरी हैं और इन्हें बिना किसी रुकावट के पूरा किया जाएगा। भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा के साथ बैठक के दौरान, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के तरीकों पर भी चर्चा हुई। अहमद ने कहा कि बांग्लादेश भारत के साथ अपने सहयोग को और अधिक व्यापक बनाना चाहता है, ताकि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत हों और नए अवसरों का निर्माण हो सके।

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इस दौरान भारतीय उच्चायुक्त वर्मा ने बांग्लादेश को दी जा रही ऋण सुविधाओं पर जोर दिया और बताया कि भारत ने किसी भी ऋण सुविधा को रोका नहीं है। उन्होंने कहा, “ये परियोजनाएं बड़ी हैं और अलग-अलग स्थानों पर चल रही हैं, इसलिए ठेकेदार जल्द ही परियोजनाओं को फिर से शुरू करेंगे।” पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद इन परियोजनाओं के क्रियान्वयन पर संदेह उत्पन्न हुआ था। हालांकि, सलेहुद्दीन अहमद के बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार इन परियोजनाओं को लेकर गंभीर है और उन्हें समय पर पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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भारत और बांग्लादेश के बीच लंबे समय से चल रहे सहयोग ने दोनों देशों के विकास में योगदान दिया है। भारत द्वारा बांग्लादेश में चल रही परियोजनाओं को लेकर सकारात्मक रुख, दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास और विकास की दिशा में आगे बढ़ने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। नई अंतरिम सरकार के आने के बाद भी इन परियोजनाओं को बिना किसी रुकावट के पूरा करने की उम्मीद है, जिससे बांग्लादेश की विकास यात्रा को गति मिलेगी।

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किसानों के मुद्दों पर घिरी कंगना, अब पार्टी अध्यक्ष नड्डा ने भी किया तलब. https://chaupalkhabar.com/2024/08/29/surrounded-by-farmers-issues/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/29/surrounded-by-farmers-issues/#respond Thu, 29 Aug 2024 11:35:27 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4518 भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मंडी से सांसद और मशहूर बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत ने हाल ही में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनके आवास पर मुलाकात की। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब किसान आंदोलन पर कंगना के विवादास्पद बयान ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था। भाजपा के शीर्ष नेताओं से …

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मंडी से सांसद और मशहूर बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत ने हाल ही में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनके आवास पर मुलाकात की। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब किसान आंदोलन पर कंगना के विवादास्पद बयान ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था। भाजपा के शीर्ष नेताओं से यह उनकी पहली मुलाकात मानी जा रही है, जो उनके बयान के बाद सुर्खियों में आई है इस हफ्ते की शुरुआत में कंगना ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन पर एक विवादास्पद टिप्पणी की थी। उन्होंने दावा किया था कि यदि देश में एक मजबूत नेतृत्व न होता, तो भारत में ‘बांग्लादेश जैसी स्थिति’ पैदा हो सकती थी। कंगना ने यह टिप्पणी अपने एक साक्षात्कार के दौरान की, जिसे उन्होंने बाद में सोशल मीडिया पर भी साझा किया।

कंगना का बयान यहीं तक नहीं रुका। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि किसान आंदोलन के दौरान “शव लटक रहे थे और बलात्कार हो रहे थे।” कंगना ने इस ‘साजिश’ में चीन और अमेरिका के शामिल होने का भी दावा किया, जो विपक्षी दलों द्वारा आलोचना का शिकार बना। कंगना के इन बयानों के बाद भाजपा ने तुरंत कार्रवाई की। पार्टी ने कंगना के विचारों से असहमति व्यक्त करते हुए उनकी टिप्पणियों की निंदा की और यह स्पष्ट किया कि उन्हें पार्टी के नीतिगत मामलों पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “कंगना के बयानों से पार्टी को नुकसान हो सकता है, और इसलिए उन्हें भविष्य में ऐसे किसी भी बयान से बचने की सख्त हिदायत दी गई है।”

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इसके साथ ही, भाजपा ने एक औपचारिक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया, “भारतीय जनता पार्टी ने कंगना रनौत को भविष्य में इस तरह का कोई भी बयान देने से मना किया है।” पार्टी के इस बयान में यह भी कहा गया कि भाजपा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ के सिद्धांतों का पालन करती है और सामाजिक सद्भाव के प्रति प्रतिबद्ध है। कंगना के इस बयान पर विपक्षी दलों ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। कई विपक्षी नेताओं ने कंगना पर झूठे आरोप लगाने और जनता को भड़काने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि कंगना के बयान न केवल समाज में अशांति फैलाने वाले हैं, बल्कि यह पार्टी की छवि को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

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भाजपा ने हालांकि यह भी स्पष्ट कर दिया कि कंगना की टिप्पणियों से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है और वे पार्टी की आधिकारिक लाइन का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कंगना को यह भी चेतावनी दी कि वे अपने बयानों में सावधानी बरतें और पार्टी के नीतिगत मामलों पर बिना अनुमति के कुछ भी न कहें। कंगना रनौत को लेकर भाजपा का रुख स्पष्ट हो चुका है। पार्टी ने कंगना को सार्वजनिक मंच पर किसी भी प्रकार की नीतिगत टिप्पणी करने से मना किया है और यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि उनके बयान पार्टी की विचारधारा और नीति के अनुरूप हों।

यह देखना दिलचस्प होगा कि कंगना इस सख्त हिदायत के बाद अपने बयानों में कितनी सतर्कता बरतती हैं और भाजपा के साथ उनके संबंध किस दिशा में आगे बढ़ते हैं। उनकी यह मुलाकात राजनीतिक और फिल्मी जगत में चर्चा का विषय बन गई है, और इससे आने वाले समय में उनकी भूमिका और बयानबाजी पर नजर रखी जाएगी।

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मोदी कैबिनेट का बड़ा कदम, 12 नई स्मार्ट सिटी और 10 लाख नौकरियों की मंजूरी. https://chaupalkhabar.com/2024/08/28/modi-cabinets-big-step-12-no/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/28/modi-cabinets-big-step-12-no/#respond Wed, 28 Aug 2024 12:34:53 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4498 बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल (Union Cabinet) ने एक बड़ा कदम उठाते हुए देश में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 28,602 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश के साथ 12 नए औद्योगिक शहरों की स्थापना को मंजूरी दी। इस फैसले की घोषणा केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव (Union Minister Ashwini Vaishnav) ने मंत्रिमंडल की बैठक …

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बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल (Union Cabinet) ने एक बड़ा कदम उठाते हुए देश में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 28,602 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश के साथ 12 नए औद्योगिक शहरों की स्थापना को मंजूरी दी। इस फैसले की घोषणा केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव (Union Minister Ashwini Vaishnav) ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद की। इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य भारत की औद्योगिक क्षमताओं को नए आयाम देना और देश की आर्थिक वृद्धि को तेज करना है।

राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (NICDP) के तहत पहल

यह पहल राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (NICDP) के तहत शुरू की गई है, जिसमें 12 नए औद्योगिक शहरों की स्थापना के लिए 28,602 करोड़ रुपये का अनुमानित निवेश निर्धारित किया गया है। इन शहरों को देश के विभिन्न हिस्सों में छह प्रमुख औद्योगिक गलियारों के करीब रणनीतिक रूप से स्थापित किया जाएगा। इन शहरों का चयन इस तरह से किया गया है कि वे देश के प्रमुख आर्थिक और औद्योगिक केंद्रों के साथ अच्छे से जुड़ सकें, जिससे विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

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स्थापना के लिए चुने गए स्थान

इन औद्योगिक शहरों की स्थापना उत्तराखंड के खुरपिया, पंजाब के राजपुरा-पटियाला, महाराष्ट्र के दिघी, केरल के पलक्कड़, उत्तर प्रदेश के आगरा और प्रयागराज, बिहार के गया, तेलंगाना के जहीराबाद, आंध्र प्रदेश के ओर्वकल और कोपर्थी, तथा राजस्थान के जोधपुर-पाली में की जाएगी। ये सभी स्थान न केवल अपने क्षेत्रीय लाभ के कारण महत्वपूर्ण हैं, बल्कि देश के औद्योगिक नेटवर्क को मजबूत बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

औद्योगिक परिदृश्य में परिवर्तन

इन नए औद्योगिक शहरों की स्थापना से भारत के औद्योगिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की उम्मीद है। सरकार ने इन शहरों को वैश्विक मानकों के अनुसार स्मार्ट शहरों के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है। ये शहर आधुनिक और टिकाऊ बुनियादी ढांचे से सुसज्जित होंगे, जो कुशल औद्योगिक संचालन और लंबे समय तक स्थिरता सुनिश्चित करेंगे।

रोजगार और आर्थिक वृद्धि

सरकार की इस योजना से लगभग 10 लाख प्रत्यक्ष और 30 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार सृजन की उम्मीद है। इन औद्योगिक शहरों के माध्यम से न केवल रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी, बल्कि आर्थिक गतिविधियों में भी तेजी आएगी। इसके अलावा, इन परियोजनाओं से देश की विनिर्माण क्षमता में वृद्धि होगी, जो 1.52 लाख करोड़ रुपये के निवेश क्षमता को उत्पन्न करेगी। यह कदम देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को भी बढ़ावा देगा।

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वित्त वर्ष 2024-25 का बजट और ‘प्लग एंड प्ले’ औद्योगिक पार्क

इस योजना की परिकल्पना वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में की गई थी। बजट में घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में देश के कई शहरों में या उनके आसपास ‘प्लग एंड प्ले’ औद्योगिक पार्क विकसित करने की घोषणा की गई थी। इस तरह के औद्योगिक पार्क विनिर्माण इकाइयों के लिए आवश्यक सभी बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के साथ तैयार किए जाएंगे, ताकि वे बिना किसी रुकावट के अपना उत्पादन शुरू कर सकें।

पहले से कार्यान्वित हो रहे औद्योगिक शहर

यह ध्यान देने योग्य है कि इस योजना से पहले भी सरकार ने आठ औद्योगिक शहरों की स्थापना की थी, जो अब कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें गुजरात के धोलेरा, महाराष्ट्र के ऑरिक, मध्य प्रदेश के विक्रम उद्योगपुरी, और आंध्र प्रदेश के कृष्णपट्टनम शामिल हैं। इन शहरों में उद्योगों के लिए भूमि आवंटन का काम तेजी से चल रहा है। इसके अलावा, अन्य चार शहरों में भी सरकार का विशेष उद्देश्य वाहन (SPV) सड़क संपर्क, पानी और बिजली आपूर्ति जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण की प्रक्रिया में है।

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नए औद्योगिक शहरों का महत्व

देश में 12 नए औद्योगिक शहरों की स्थापना की घोषणा के साथ, इस तरह के शहरों की कुल संख्या 20 हो जाएगी। इन शहरों का लक्ष्य न केवल देश के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना है, बल्कि आर्थिक वृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को भी महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाना है। यह कदम भारत के औद्योगिक क्षेत्र को एक नई दिशा देने के साथ-साथ देश को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कुल मिलाकर, केंद्रीय मंत्रिमंडल का यह निर्णय भारत के औद्योगिक और आर्थिक विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। 28,602 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश के साथ 12 नए औद्योगिक शहरों की स्थापना न केवल देश की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देगी, बल्कि रोजगार सृजन, आर्थिक वृद्धि, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को भी नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी। इन औद्योगिक शहरों का निर्माण और विकास भविष्य में भारत के औद्योगिक और आर्थिक परिदृश्य को नए आयाम देगा।

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सरकार की यू-टर्न नीति, यूनिफाइड पेंशन स्कीम का विरोध और बीजेपी की राजनीतिक दिशा. https://chaupalkhabar.com/2024/08/27/government-u-turn-policy-unit/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/27/government-u-turn-policy-unit/#respond Tue, 27 Aug 2024 08:30:20 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4441 शनिवार को यूनियन कैबिनेट द्वारा यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) की मंजूरी देने पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने UPS में ‘U’ को नरेंद्र मोदी सरकार के यू-टर्न का प्रतीक बताया, जबकि आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने इसे नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) से भी खराब बताया। सरकार …

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शनिवार को यूनियन कैबिनेट द्वारा यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) की मंजूरी देने पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने UPS में ‘U’ को नरेंद्र मोदी सरकार के यू-टर्न का प्रतीक बताया, जबकि आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने इसे नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) से भी खराब बताया। सरकार के प्रवक्ताओं ने पेंशन सुधारों में किसी प्रकार के यू-टर्न से इनकार किया। उनका तर्क था कि UPS एक अंशदायी (contributory) फंडेड योजना है, जबकि पुरानी पेंशन योजना (OPS) में ऐसा नहीं था। इसके बावजूद, UPS से राजकोष पर अतिरिक्त बोझ पड़ना तय है, जो किसी बहस का विषय नहीं है। लेकिन, ये निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि सरकार ने चुनावों से पहले कर्मचारियों को खुश करने के लिए NPS पर यू-टर्न लिया है, क्योंकि इस साल जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव होने वाले हैं।

पेंशन सुधारों पर यू-टर्न : पेंशन प्रणाली की समीक्षा के लिए समिति हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद गठित की गई थी। कांग्रेस के द्वारा पुरानी पेंशन योजना बहाल करने का वादा एक बड़ा कारण माना गया, जिसने बीजेपी की हार में योगदान दिया। इसके बाद, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस सरकारों ने OPS लागू किया, लेकिन इसके बावजूद वे राज्य चुनावों में सत्ता में नहीं लौट सकीं। अब बीजेपी ने UPS के रूप में एक नया पेंशन स्कीम पेश किया है, जिसमें सुनिश्चित पेंशन, महंगाई सूचकांक और सेवानिवृत्ति के समय एकमुश्त भुगतान की गारंटी दी गई है, जिससे NPS को वापस लेने का निर्णय लिया गया।

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NPS पर यू-टर्न मोदी 3.0 का पहला यू-टर्न नहीं है। राहुल गांधी का प्रभाव तब भी देखा गया जब केंद्र सरकार ने ब्यूरोक्रेसी में लैटरल एंट्री के फैसले को वापस लिया।

बीजेपी के यू-टर्न्स : NPS पर यू-टर्न मोदी 3.0 का पहला यू-टर्न नहीं है। राहुल गांधी का प्रभाव तब भी देखा गया जब केंद्र सरकार ने ब्यूरोक्रेसी में लैटरल एंट्री के फैसले को वापस लिया। यह एक मजाक बन गया है कि अगर आपको सरकार से कोई नीति बदलवानी हो या नई अपनवानी हो, तो सबसे बेहतर तरीका राहुल गांधी को इसका मुद्दा बनाना है। बीजेपी के सहयोगी भी कुछ नीतियों में बदलाव का श्रेय ले सकते हैं। जैसे, लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता केसी त्यागी ने भी लैटरल एंट्री नीति पर राहुल गांधी के विरोध का समर्थन किया था। तेलुगू देशम पार्टी ने विपक्ष की मांग का समर्थन किया था, जिसमें वक्फ बिल पर संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की बात कही गई थी, और अंततः सरकार को इसके लिए मानना पड़ा।

सरकार का संशय : तो, अगर वर्तमान में सहयोगियों या इंडिया गठबंधन से कोई खतरा नहीं है, तो मोदी सरकार के यू-टर्न का कारण क्या है? इसका उत्तर पार्टी के भीतर उत्पन्न हुए संशय में है। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को जो धक्का लगा, उसके बाद से बीजेपी नेतृत्व किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया है। आम धारणा है कि 400-पार का नारा बीजेपी के लिए महंगा साबित हुआ, क्योंकि एससी/एसटी और ओबीसी समुदाय के लोगों ने आरक्षण के प्रति पार्टी की मंशा पर संदेह जताया।

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बीजेपी का अंदरूनी संकट : बीजेपी के तीन मुख्य मुद्दों में से दो—अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण—पूरे हो चुके हैं। तीसरा मुद्दा, समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन, अब तक अधिक समर्थन नहीं जुटा पाया है। पहले दो मुद्दों के पूरा होने से भी पार्टी को चुनावी लाभ नहीं मिला। ये तीनों मुद्दे बीजेपी की राजनीति के मूल में थे। अब जबकि ये मुद्दे चुनावी रूप से फायदेमंद नहीं रहे, बीजेपी दिशाहीन दिखाई दे रही है। मोदी लहर के कमज़ोर पड़ने के साथ ही पार्टी और भी अधिक भ्रमित लग रही है। यही वो कारण है जिसके चलते सरकार बार-बार नीतिगत यू-टर्न ले रही है।

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “राहुल गांधी आपको जॉन बनियन की याद दिलाते हैं: ‘जो गिर चुका है उसे अब और गिरने का डर नहीं’।” वह जाति जनगणना, अदानी, अंबानी और अन्य मुद्दों पर बात कर सकते हैं। उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। वहीं, मोदी सरकार के यू-टर्न उनके राजनीतिक ब्रांड को कमजोर कर रहे हैं, जो कि बीजेपी का एकमात्र यूएसपी (USP) है। इस प्रकार, चाहे वह सरकार की पेंशन नीति में यू-टर्न हो, या अन्य नीतिगत मोर्चों पर बदलाव, यह साफ है कि बीजेपी एक संकट से गुजर रही है। संकट केवल नीतियों का नहीं, बल्कि उस विश्वास का भी है, जिसने पार्टी को आज तक मजबूत बनाए रखा था।

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केरल हाईकोर्ट ने वायनाड भूस्खलन को बताया मानवता की चेतावनी, कहा – प्रकृति के प्रति उदासीनता और लालच का परिणाम. https://chaupalkhabar.com/2024/08/24/kerala-high-court-wayanad-bh/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/24/kerala-high-court-wayanad-bh/#respond Sat, 24 Aug 2024 07:59:09 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4419 केरल के वायनाड जिले में हाल ही में हुए भूस्खलन ने व्यापक तबाही मचाई है, जिसमें 400 से अधिक लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं। इस घटना के बाद केरल हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया ने इस आपदा के पीछे के कारणों और उससे उत्पन्न चेतावनियों पर गहरी चिंता व्यक्त की …

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केरल के वायनाड जिले में हाल ही में हुए भूस्खलन ने व्यापक तबाही मचाई है, जिसमें 400 से अधिक लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं। इस घटना के बाद केरल हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया ने इस आपदा के पीछे के कारणों और उससे उत्पन्न चेतावनियों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। केरल हाईकोर्ट ने वायनाड भूस्खलन को “मानव उदासीनता और लालच” का परिणाम बताया है, जो प्रकृति की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया है। न्यायालय ने अपने बयान में कहा कि यह घटना एक चेतावनी संकेत है, जिसे बहुत पहले ही देख लिया जाना चाहिए था। लेकिन विकास की दौड़ में इन संकेतों को नजरअंदाज कर दिया गया।

हाईकोर्ट की यह टिप्पणी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मानव हस्तक्षेप और पर्यावरण के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करती है। न्यायमूर्ति ए के जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वी एम की पीठ ने कहा कि 2018 और 2019 में आई प्राकृतिक आपदाओं, दो वर्षों तक चली महामारी, और हाल ही में हुए भूस्खलन ने हमें हमारी गलतियों का एहसास कराया है। कोर्ट ने 30 जुलाई को हुए इस भूस्खलन के बाद स्वत: संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका शुरू की है, जिसमें राज्य सरकार की मौजूदा नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने की बात कही गई है। पीठ ने कहा कि वायनाड के तीन गांव पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं और 119 लोग अब भी लापता हैं। इस संदर्भ में, न्यायालय ने 23 अगस्त के अपने आदेश में राज्य सरकार से केरल में सतत विकास के लिए अपनी वर्तमान धारणाओं पर आत्मनिरीक्षण करने और इस संबंध में नीतियों पर फिर से विचार करने का आग्रह किया है।

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हाईकोर्ट ने अपने बयान में यह भी कहा कि न्यायालय राज्य की मौजूदा नीतियों का जायजा लेगा, विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, पर्यावरण, वन और वन्यजीवों के संरक्षण, प्राकृतिक आपदाओं की रोकथाम, प्रबंधन और शमन तथा सतत विकास लक्ष्यों के संदर्भ में। इस घटना के बाद राज्य में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और गैर-नियंत्रित विकास गतिविधियों पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता महसूस की जा रही है। केरल, जो प्राकृतिक आपदाओं से पहले ही ग्रस्त है, अब और अधिक भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए सतर्क होना चाहिए।

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इस पूरी घटना ने सरकार की नीतियों और उनके कार्यान्वयन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वायनाड भूस्खलन एक स्पष्ट संकेत है कि राज्य को अपने विकास एजेंडे में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी। सरकार के लिए यह समय है कि वह अपनी मौजूदा नीतियों पर पुनर्विचार करे और सतत विकास की दिशा में कदम उठाए। अगर अब भी सकारात्मक सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में होने वाले प्राकृतिक आपदाओं से बचना मुश्किल हो जाएगा। इस घटना ने हमें यह सिखाया है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना ही हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक है।

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कोलकाता के RG KAR MEDICAL COLLEGE में महिला डॉक्टर के दुष्कर्म और हत्या के विरोध में 10 डॉक्टरों और 190 नर्सिंग स्टाफ का तबादला. https://chaupalkhabar.com/2024/08/17/women-dr-in-rg-kar-medical-college-kolkata/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/17/women-dr-in-rg-kar-medical-college-kolkata/#respond Sat, 17 Aug 2024 09:25:06 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4354 कोलकाता के सरकारी आरजी कर अस्पताल में हाल ही में महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस भयावह घटना के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन लगातार जारी हैं, जिसमें लोगों ने न्याय की मांग की है। इस बीच, 14 अगस्त की रात को आरजी कर अस्पताल में हुई …

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कोलकाता के सरकारी आरजी कर अस्पताल में हाल ही में महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस भयावह घटना के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन लगातार जारी हैं, जिसमें लोगों ने न्याय की मांग की है। इस बीच, 14 अगस्त की रात को आरजी कर अस्पताल में हुई हिंसा और तोड़फोड़ की घटना के बाद अस्पताल के 10 डॉक्टरों और 190 नर्सिंग स्टाफ का तबादला कर दिया गया है। राज्य सरकार ने इस हिंसा की घटना के बाद कोलकाता मेडिकल कॉलेज और अन्य अस्पतालों के कई डॉक्टरों का भी तबादला किया है। शुक्रवार को बंगाल सरकार की ओर से इन तबादलों के आदेश जारी किए गए हैं। आरोप है कि ये डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ महिला चिकित्सक के साथ हुए अपराध के खिलाफ चल रहे हड़ताल में शामिल थे। डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ के तबादले का निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब वे महिला डॉक्टर के खिलाफ हुए अपराध के विरोध में सक्रिय थे।

भाजपा ने इस तबादले के फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि जिन डॉक्टरों ने राज्य सरकार की आलोचना की थी, उनका तबादला कर दिया गया है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने ममता बनर्जी की सरकार के इस फैसले को “तालिबानी फतवा” करार दिया है। पूनावाला ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा किया, जिसमें दावा किया गया है कि जिन डॉक्टरों ने इस जघन्य घटना के खिलाफ आवाज उठाई, उन्हें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश पर स्थानांतरित किया गया है। उन्होंने व्हाट्सएप चैट के स्क्रिनशॉट भी साझा किए हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि राज्य सरकार ने उन लोगों को निशाना बनाया है जो घटना के खिलाफ बोल रहे थे।

शुक्रवार को बंगाल सरकार की ओर से 10 डॉक्टरों और 190 नर्सिंग स्टाफ के तबादलों के आदेश जारी किए गए हैं। आरोप है कि ये डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ महिला चिकित्सक के साथ हुए अपराध के खिलाफ चल रहे हड़ताल में शामिल थे।

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भाजपा के आईटी सेल प्रमुख और पार्टी के बंगाल सह प्रभारी अमित मालवीय ने भी इस तबादले को लेकर राज्य सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने लिखा, “16 अगस्त को बंगाल सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने तबादलों की आठ पेज लंबी सूची जारी की है, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो गई है।” मालवीय ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी कोलकाता मेडिकल कॉलेज और कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज को अपना निशाना बना रही हैं। इन दोनों संस्थानों में वरिष्ठ चिकित्सकों को सिलीगुड़ी, तमलुक, और झाड़ग्राम जैसे स्थानों पर स्थानांतरित किया गया है। उन्होंने इसे सरकार के द्वारा एक हताशा का प्रयास करार दिया, जिसमें वरिष्ठ डॉक्टरों को डराकर उनका समर्थन प्राप्त किया जा रहा है।

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आरजी कर अस्पताल में 14-15 अगस्त की रात को हुई हिंसा की घटना ने एक नया मोड़ ले लिया। लगभग 40 लोगों के एक समूह ने अस्पताल के परिसर में घुसकर व्यापक तोड़फोड़ की और जमकर उत्पात मचाया। इस घटना के बाद अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ सुरक्षा की मांग को लेकर हड़ताल पर चला गया और प्रिंसिपल के खिलाफ माहौल बनाया। इसके अलावा, अस्पताल के जूनियर डॉक्टर भी लंबे समय से काम बंद कर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। राज्य सरकार का यह कदम उन आलोचनाओं के बीच आया है जिनमें आरोप लगाया गया है कि सरकार ने विरोध करने वाले डॉक्टरों को निशाना बनाया है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के उपाय असंतोष को दबाने और वंचितों को उनकी आवाज उठाने से रोकने के प्रयास के रूप में देखे जा सकते हैं।

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वक्फ संशोधन विधेयक की समीक्षा के लिए संसद की संयुक्त समिति का गठन, जगदंबिका पाल होंगे अध्यक्ष. https://chaupalkhabar.com/2024/08/13/summary-of-waqf-amendment-bill/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/13/summary-of-waqf-amendment-bill/#respond Tue, 13 Aug 2024 11:22:38 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4295 वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर संसद में हाल ही में बड़ी बहस और विवाद देखने को मिला है। इस विधेयक को लेकर संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा में तीव्र हंगामा हुआ। इसके बाद सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने इस विवादास्पद विधेयक को और अधिक अध्ययन और समीक्षा के लिए संसद की …

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वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर संसद में हाल ही में बड़ी बहस और विवाद देखने को मिला है। इस विधेयक को लेकर संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा में तीव्र हंगामा हुआ। इसके बाद सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने इस विवादास्पद विधेयक को और अधिक अध्ययन और समीक्षा के लिए संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया है। अब यह खबर सामने आई है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता जगदंबिका पाल को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। समिति का काम इस विधेयक के सभी प्रावधानों की गहराई से जांच करना होगा और रिपोर्ट तैयार करना होगा।

विपक्षी दलों ने लोकसभा में इस विधेयक के विभिन्न प्रावधानों पर गहरा विरोध व्यक्त किया। विशेष रूप से, उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। विधेयक में कई ऐसे प्रावधान हैं, जिनसे वक्फ बोर्डों और संबंधित हितधारकों के अधिकारों और जिम्मेदारियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो सकते हैं। विपक्ष का आरोप है कि यह विधेयक अल्पसंख्यक समुदायों के हितों के खिलाफ है और इससे उनकी संपत्तियों पर सरकार का अधिकार बढ़ सकता है।

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केंद्र सरकार ने विपक्ष के इन आरोपों और विवादों को ध्यान में रखते हुए इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति के पास भेजने का निर्णय लिया। यह समिति इस विधेयक के प्रावधानों की जांच करेगी और इसमें संभावित सुधारों के लिए सुझाव पेश करेगी। संयुक्त समिति में कुल 31 सदस्य शामिल हैं, जिनमें से 21 सदस्य लोकसभा से और 10 सदस्य राज्यसभा से हैं। लोकसभा के सदस्य जो इस समिति का हिस्सा हैं, उनमें जगदंबिका पाल के अलावा डॉ. निशिकांत दुबे, तेजस्वी सूर्या, अपराजिता सारंगी, संजय जायसवाल, दिलीप शाक्य, अभिजीत गंगोपाध्याय, डी.के. अरुणा, गौरव गोगोई, इमरान मसूद, डॉ. मोहम्मद जावेद, मोहिबुल्लाह, कल्याण बनर्जी, ए. राजा, लावु श्री कृष्ण देवरायलु, दिलेश्वर कामेत, अरविंद सावंत, सुरेश गोपीनाथ, नरेश गणपत म्हस्के, अरुण भारती और असदुद्दीन ओवैसी शामिल हैं।

राज्यसभा के सदस्यों में बृज लाल, मेधा कुलकर्णी, गुलाम अली, डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल, डॉ. सईद नसीर हुसैन, मोहम्मद नदीमुल हक, वी. वियसाई रेड्डी, एम. मोहम्मद अब्दुल्ला, संजय सिंह और डॉ. धर्मस्थल वीरेंद्र हेगड़े शामिल हैं। विधेयक की जटिलताओं और इसके प्रभावों को देखते हुए, यह संभावना है कि समिति गहन समीक्षा के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। संसद के अगले सत्र में समिति द्वारा इस विधेयक पर विस्तृत रिपोर्ट पेश की जाएगी, जो इस मुद्दे पर आगे की दिशा निर्धारित करेगी। यह रिपोर्ट विधेयक में संभावित संशोधनों और सुधारों की सिफारिश कर सकती है, जिसे फिर से संसद के दोनों सदनों में बहस के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।

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गौरतलब है कि बीते शुक्रवार को संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा और राज्यसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक पेश किया था। इसके बाद हुए विवाद और विपक्ष के विरोध को देखते हुए, सरकार ने इस विधेयक को संयुक्त समिति को सौंपने का निर्णय लिया। अधिकारियों का कहना है कि समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल की अगुवाई में जल्द ही एक औपचारिक अधिसूचना जारी की जा सकती है, जिसके बाद समिति अपने कार्य में तेजी से जुटेगी। इस विधेयक की समीक्षा और इसके संभावित प्रभावों पर नजर रखने के लिए सभी संबंधित हितधारकों और राजनीतिक दलों की निगाहें अब इस संयुक्त समिति की कार्यवाही पर लगी रहेंगी।

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