High court - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Mon, 09 Sep 2024 11:27:46 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg High court - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 69 हजार शिक्षक भर्ती, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक, 23 सितंबर को अगली सुनवाई https://chaupalkhabar.com/2024/09/09/69-thousand-teacher-recruitment-supri/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/09/69-thousand-teacher-recruitment-supri/#respond Mon, 09 Sep 2024 11:27:46 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4764 उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षक भर्ती के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब भी मांगा है और अगली सुनवाई के लिए 23 सितंबर 2024 की तारीख निर्धारित की है। इस दौरान, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य …

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उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षक भर्ती के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब भी मांगा है और अगली सुनवाई के लिए 23 सितंबर 2024 की तारीख निर्धारित की है। इस दौरान, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षकारों को अपनी दलीलें प्रस्तुत करनी होंगी। इस मामले में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की तीन सदस्यीय पीठ ने रवि कुमार सक्सेना और अन्य 51 याचिकाकर्ताओं द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई की। पीठ ने यूपी सरकार और यूपी बेसिक शिक्षा बोर्ड के सचिव को नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही अदालत ने सभी पक्षकारों से 23 सितंबर तक इस मामले में सात पन्नों में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

यह मामला तब शुरू हुआ जब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों की अनदेखी के आरोप पर सुनवाई की। हाईकोर्ट ने 2019 में आयोजित इस भर्ती की चयन सूची को रद्द करते हुए निर्देश दिया था कि नई चयन सूची तैयार की जाए। कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि तीन माह के भीतर इस नई सूची को जारी किया जाए। हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक, यदि नई सूची के जारी होने से किसी वर्तमान में कार्यरत सहायक शिक्षक पर नकारात्मक असर पड़ता है, तो उन्हें मौजूदा शैक्षणिक सत्र का लाभ दिया जाए ताकि उनकी नौकरी पर सीधा असर न पड़े और छात्रों की पढ़ाई बाधित न हो।

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इसके अलावा, हाईकोर्ट ने 6800 आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की सूची को खारिज करने के एकल पीठ के आदेश को भी बरकरार रखा। यह सूची 5 जनवरी 2022 को जारी की गई थी। जबकि 69 हजार अभ्यर्थियों की मूल चयन सूची 1 जून 2020 को जारी हुई थी। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने महेंद्र पाल और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया था। इन याचिकाओं में 6800 आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की सूची को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने एकल पीठ के आदेश को सही ठहराते हुए सरकार को तीन महीने के भीतर नई चयन सूची जारी करने का निर्देश दिया था।

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इस फैसले के बाद सरकार को 69 हजार अभ्यर्थियों की चयन सूची को रद्द कर नई सूची तैयार करने का आदेश मिला था। इसका असर वर्तमान में कार्यरत कई शिक्षकों पर पड़ने की संभावना थी, जिसके चलते इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से इस पर जवाब दाखिल करने को कहा है और अगली सुनवाई 23 सितंबर को तय की है। इस दौरान, सरकार और अन्य पक्षकारों को इस मुद्दे पर अपनी दलीलें कोर्ट में प्रस्तुत करनी होंगी।

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सभी हड़ताली डॉक्टरों को काम पर लौटने का दिया निर्देश, कहा कि तुरंत काम पर लोटे सभी डाक्टर्स https://chaupalkhabar.com/2024/08/17/madhya-pradesh-high-court-ne-s/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/17/madhya-pradesh-high-court-ne-s/#respond Sat, 17 Aug 2024 10:57:44 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4356 शनिवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य के डॉक्टरों को हड़ताल समाप्त कर और तुरंत काम पर लौटने का आदेश दिया। इस आदेश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति राज मोहन सिंह की खंडपीठ नरसिंहपुर निवासी अंशुल तिवारी द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया गया। याचिकाकर्ता के …

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शनिवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य के डॉक्टरों को हड़ताल समाप्त कर और तुरंत काम पर लौटने का आदेश दिया। इस आदेश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति राज मोहन सिंह की खंडपीठ नरसिंहपुर निवासी अंशुल तिवारी द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया गया। याचिकाकर्ता के वकील संजय अग्रवाल और अधिवक्ता अंजू अग्रवाल ने बताया कि कोर्ट ने डॉक्टरों को निर्देश दिया कि वे अपनी मांगों और समस्याओं को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें, लेकिन हड़ताल तत्काल प्रभाव से समाप्त करें। अदालत ने अभी विस्तृत आदेश नहीं दिया है, लेकिन आदेश आने तक डॉक्टरों को अपनी सेवाओं पर लौटने का निर्देश दिया गया है।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में कार्यरत सैकड़ों रेजिडेंट डॉक्टरों ने शुक्रवार से आपातकालीन सेवाओं को रोक दिया था और हड़ताल पर चले गए थे। डॉक्टरों का यह हड़ताल कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला चिकित्सक के साथ हुए कथित दुष्कर्म और हत्या के विरोध में थी। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने इस घटना के खिलाफ 17 अगस्त को सुबह छह बजे से 24 घंटे के लिए गैर-आपातकालीन सेवाओं को बंद करने की घोषणा की थी। इस घोषणा के बाद, मध्य प्रदेश के डॉक्टरों ने भी हड़ताल शुरू कर दी, जिसमें उन्होंने आपातकालीन सेवाओं को भी शामिल कर लिया।

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उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राज्य सरकार और संबंधित विभागों को नोटिस जारी करते हुए 24 घंटे के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा था। इस नोटिस में अदालत ने डॉक्टरों द्वारा की गई हड़ताल और उससे प्रभावित हो रही स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी हड़ताल, विशेष रूप से आपातकालीन सेवाओं को बंद करना, जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है।

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इस मामले में डॉक्टरों के प्रतिनिधियों का कहना है कि वे महिला डॉक्टर के साथ हुए अन्याय के खिलाफ खड़े हो रहे हैं और उनकी मांग है कि इस घटना में शामिल दोषियों को कड़ी सजा दी जाए। डॉक्टरों ने कहा कि उनका विरोध सिर्फ एक दिन का था, लेकिन इसे मजबूरन बढ़ाना पड़ा क्योंकि उन्हें न्याय की उम्मीद नहीं दिख रही थी। हालांकि, उच्च न्यायालय के आदेश के बाद डॉक्टरों को अपनी मांगें और शिकायतें अदालत में पेश करने का मौका दिया गया है, और हड़ताल समाप्त कर काम पर लौटने का निर्देश दिया गया है। अभी इस मामले पर अदालत द्वारा विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा की जा रही है, जिसमें डॉक्टरों की शिकायतों पर विचार किया जाएगा।

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कोलकाता कांड के बीच केंद्र सरकार का अहम कदम, डॉक्टरों पर हिंसा के मामले में 6 घंटे के भीतर FIR दर्ज होगी. https://chaupalkhabar.com/2024/08/16/kolkata-center-of-scandal/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/16/kolkata-center-of-scandal/#respond Fri, 16 Aug 2024 09:29:38 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4334 कोलकाता के RG Kar Medical College में बुधवार को रात आधी रात के समय कुछ अज्ञात लोगों द्वारा अस्पताल परिसर में घुसकर आपातकालीन विभाग में तोड़फोड़ की गयी । इस घटना पर स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गहरी चिंता व्यक्त की गयी हैऔर डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर सरकार अब एक्शन मोड में आ चुकी है। स्वास्थ्य …

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कोलकाता के RG Kar Medical College में बुधवार को रात आधी रात के समय कुछ अज्ञात लोगों द्वारा अस्पताल परिसर में घुसकर आपातकालीन विभाग में तोड़फोड़ की गयी । इस घटना पर स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गहरी चिंता व्यक्त की गयी हैऔर डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर सरकार अब एक्शन मोड में आ चुकी है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि अगर डॉक्टरों पर कोई हमला या हिंसा होती है तो संबंधित संस्थानों को घटना के छह घंटे के अंदर एफआईआर दर्ज करवानी होगी। मंत्रालय ने इस संबंध में सभी स्वास्थ्य संस्थानों को एक मेमो जारी किया है। इसके तहत, अगर किसी भी डॉक्टर पर हमला होता है, तो एफआईआर को समय पर दर्ज कराना अनिवार्य होगा।

गौरतलब है कि बुधवार रात को आरजी कर अस्पताल के पास पुलिस बैरिकेड तोड़कर एक भीड़ अस्पताल परिसर में घुस गई। इस दौरान उन्होंने कई कुर्सियों और बोर्डों को तोड़ दिया। यह तोड़फोड़ उस समय की गई जब जूनियर डॉक्टरों के लिए न्याय की मांग को लेकर बड़ी संख्या में महिलाएं कोलकाता की सड़कों पर प्रदर्शन कर रही थीं। इस स्थिति ने अस्पताल में अराजकता पैदा कर दी और मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।

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आरजी कर अस्पताल में हुई इस तोड़फोड़ की घटना पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी चिंता जताई है। कोर्ट ने राज्य की मशीनरी को इस मामले को संभालने में पूरी तरह नाकाम बताया और सुझाव दिया कि बेहतर होगा कि अस्पताल को बंद कर दिया जाए। इसके साथ ही, अस्पताल में मौजूद मरीजों को किसी अन्य अस्पताल में शिफ्ट करने की सलाह भी दी गई है।

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स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकार की ओर से इस घटना पर गंभीर कार्रवाई की जा रही है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके और डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इस समय अस्पताल प्रशासन और पुलिस को मिलकर इस स्थिति को सुलझाने और भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

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“मनीष सिसोदिया की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई से न्यायमूर्ति संजय कुमार ने खुद को किया अलग, नई पीठ करेगी 15 जुलाई को विचार” https://chaupalkhabar.com/2024/07/11/manish-sisodia-bail/ https://chaupalkhabar.com/2024/07/11/manish-sisodia-bail/#respond Thu, 11 Jul 2024 11:00:12 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3895 दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय कुमार ने खुद को मामले से अलग कर लिया है। यह याचिकाएं सिसोदिया ने आबकारी नीति घोटाला मामलों में अपनी जमानत पुनर्जीवित करने के लिए दायर की थीं। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, संजय करोल और संजय कुमार की पीठ …

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दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय कुमार ने खुद को मामले से अलग कर लिया है। यह याचिकाएं सिसोदिया ने आबकारी नीति घोटाला मामलों में अपनी जमानत पुनर्जीवित करने के लिए दायर की थीं। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, संजय करोल और संजय कुमार की पीठ ने यह फैसला सुनाया कि न्यायमूर्ति कुमार व्यक्तिगत कारणों से इस मामले की सुनवाई नहीं करना चाहेंगे। जैसे ही सुनवाई शुरू हुई, न्यायमूर्ति खन्ना ने बताया कि न्यायमूर्ति कुमार को कुछ व्यक्तिगत परेशानी है, जिसके चलते वे इस मामले की सुनवाई से अलग हो रहे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी, जो सिसोदिया का पक्ष रख रहे थे, ने पीठ से मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। उन्होंने जोर दिया कि इस मामले में समय की अहमियत है, क्योंकि अभी तक दोनों मामलों में सुनवाई नहीं हुई है। इसके जवाब में पीठ ने कहा कि दूसरी पीठ 15 जुलाई को इस पर विचार करेगी।

इससे पहले, 4 जून को सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया की जमानत याचिकाओं पर विचार करने से इंकार कर दिया था। यह याचिकाएं सीबीआई और ईडी द्वारा दर्ज मामलों के संबंध में थीं, जो कथित दिल्ली शराब नीति घोटाले से जुड़ी थीं। सिसोदिया ने पहले दिल्ली उच्च न्यायालय के 21 मई के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें दोनों केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांचे गए मामलों में उनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। मनीष सिसोदिया द्वारा उच्च न्यायालय में निचली अदालत के 30 अप्रैल के आदेश को चुनौती दी गयी थी। जिसके बाद इस आदेश में 2021-22 के लिए अब रद्द की गई दिल्ली आबकारी नीति के निर्माण और क्रियान्वयन में कथित अनियमितताओं से जुड़े मामलों में उनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए सिसोदिया ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जहां उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।

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पिछले साल, 30 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया को कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से संबंधित भ्रष्टाचार और धन शोधन मामलों में जमानत देने से इंकार कर दिया था। अदालत ने कहा था कि थोक शराब डीलरों को 338 करोड़ रुपये के ‘अप्रत्याशित लाभ’ का आरोप सबूतों द्वारा ‘अस्थायी रूप से समर्थित’ था। सीबीआई ने 26 फरवरी, 2023 को सिसोदिया को इस शराब नीति मामले में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया था। इसके बाद, नौ मार्च, 2023 को ईडी ने भी सीबीआई की एफआईआर से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें गिरफ्तार किया। इन गिरफ्तारियों के बाद सिसोदिया ने 28 फरवरी, 2023 को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।

सुप्रीम कोर्ट की यह ताजा कार्रवाई मनीष सिसोदिया के लिए एक और झटका है, क्योंकि उनकी जमानत की उम्मीदों को एक और धक्का लगा है। आबकारी नीति घोटाले में उनकी कथित भूमिका को लेकर जांच एजेंसियों द्वारा दर्ज मामलों में उनकी जमानत याचिकाओं पर अभी तक कोई फैसला नहीं आया है। इस मामले की अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी, जब एक नई पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति कुमार नहीं होंगे, इस पर विचार करेगी। इस मामले में समय की अहमियत को देखते हुए, सिसोदिया और उनके वकील इस तारीख का इंतजार कर रहे हैं, ताकि वे अपनी याचिकाओं पर पुनर्विचार करवा सकें। न्यायालय का यह निर्णय उनके लिए कितना महत्वपूर्ण साबित होगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा।

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“सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता का अधिकार” https://chaupalkhabar.com/2024/07/10/history-of-supreme-court/ https://chaupalkhabar.com/2024/07/10/history-of-supreme-court/#respond Wed, 10 Jul 2024 08:34:41 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3885 मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को अब सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का अधिकार मिल गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि यह कानून सभी धर्मों की महिलाओं पर लागू होता है। सीआरपीसी की धारा 125 में पत्नी, संतान और माता-पिता के …

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मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को अब सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का अधिकार मिल गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि यह कानून सभी धर्मों की महिलाओं पर लागू होता है। सीआरपीसी की धारा 125 में पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण के अधिकार को स्पष्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को उनके पति से गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार मिला है। इस फैसले को जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनाया। दोनों जजों ने अलग-अलग फैसले दिए, लेकिन मुख्य मुद्दा यही था कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि सिर्फ विवाहित महिलाओं पर। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि भरण-पोषण दान नहीं बल्कि विवाहित महिलाओं का अधिकार है और यह सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे वे किसी भी धर्म की हों।

इस फैसले की पृष्ठभूमि में तेलंगाना हाईकोर्ट का मामला था, जिसमें मोहम्मद अब्दुल समद को अपनी तलाकशुदा पत्नी को हर महीने 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था। अब्दुल समद ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं हैं और उन्हें मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों को लागू करना चाहिए। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 का उद्देश्य भरण-पोषण सुनिश्चित करना है और यह सभी महिलाओं पर लागू होता है। यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है क्योंकि मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता नहीं मिल पाता था या सिर्फ इद्दत की अवधि तक मिलता था। इद्दत एक इस्लामिक परंपरा है, जिसके अनुसार तलाकशुदा महिला तीन महीने तक शादी नहीं कर सकती है। इस अवधि के दौरान ही उन्हें गुजारा भत्ता मिलता था।

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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सभी महिलाओं के लिए समानता और न्याय का प्रतीक है। यह साबित करता है कि कानून धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता और सभी महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण का अधिकार सभी महिलाओं का है और इसे किसी धर्म विशेष के आधार पर सीमित नहीं किया जा सकता। इस फैसले के बाद मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को न्याय पाने की राह आसान हो जाएगी और उन्हें अपने जीवन यापन के लिए उचित भरण-पोषण मिल सकेगा। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों और उनके जीवन स्तर को सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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‘आखिर सरकार को क्यों है इसमें दिलचस्पी ‘ संदेशखाली केस में TMC को सुप्रीम कोर्ट से मिला झटका, जारी रहेगी CBI जांच. https://chaupalkhabar.com/2024/07/08/why-does-the-government-have-to-do-this/ https://chaupalkhabar.com/2024/07/08/why-does-the-government-have-to-do-this/#respond Mon, 08 Jul 2024 08:50:26 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3866 पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने कोलकाता हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने संदेशखाली में महिलाओं के यौन शोषण, जमीन हथियाने और राशन घोटाले से जुड़े सभी मामलों की …

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पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने कोलकाता हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने संदेशखाली में महिलाओं के यौन शोषण, जमीन हथियाने और राशन घोटाले से जुड़े सभी मामलों की सीबीआई जांच का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने सरकार की याचिका खारिज कर दी। सुनवाई के दौरान जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने राज्य सरकार से सवाल किया कि इस मामले में उन्हें इतनी दिलचस्पी क्यों है और वे किसे बचाने का प्रयास कर रहे हैं?

हाईकोर्ट के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि संदेशखाली में महिलाओं के यौन शोषण, जमीन हथियाने और राशन घोटाले जैसे गंभीर मामलों की सीबीआई जांच आवश्यक है। राज्य सरकार ने अपने तर्क में कहा था कि हाईकोर्ट के आदेश से पुलिस बल और पूरे राज्य तंत्र का मनोबल गिरा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पश्चिम बंगाल सरकार को बड़ा धक्का लगा है, क्योंकि इससे साफ हो गया है कि हाईकोर्ट के आदेश को मान्यता मिली है और अब इन मामलों की जांच सीबीआई द्वारा की जाएगी।

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने सरकार की याचिका खारिज कर दी। सुनवाई के दौरान जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने राज्य सरकार से सवाल किया कि इस मामले में उन्हें इतनी दिलचस्पी क्यों है और वे किसे बचाने का प्रयास कर रहे हैं?

राज्य सरकार की दलील थी कि स्थानीय पुलिस और अन्य राज्य एजेंसियां इन मामलों की जांच के लिए सक्षम हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को नकार दिया। कोर्ट का कहना था कि इस तरह के गंभीर और संवेदनशील मामलों में निष्पक्ष जांच जरूरी है, जिसे सीबीआई जैसे केंद्रीय एजेंसी द्वारा ही सुनिश्चित किया जा सकता है। इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। विपक्ष ने इस फैसले का स्वागत करते हुए ममता बनर्जी सरकार पर सवाल उठाए हैं कि वे किसे बचाने की कोशिश कर रहे थे। दूसरी ओर, ममता बनर्जी सरकार का कहना है कि वे सिर्फ राज्य के प्रशासनिक तंत्र के मनोबल को बनाए रखना चाहते थे और किसी को बचाने का कोई इरादा नहीं था।

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इस फैसले का संदेश यह है कि न्यायपालिका की नजर में निष्पक्ष जांच सर्वोपरि है और इसे सुनिश्चित करने के लिए अगर केंद्रीय एजेंसियों की मदद लेनी पड़े तो इसमें कोई बुराई नहीं है। राज्य सरकार को इस फैसले से सबक लेना चाहिए और भविष्य में ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।

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CM ममता बनर्जी के खिलाफ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हाईकोर्ट में दायर किया गया मानहानि का मुकदमा https://chaupalkhabar.com/2024/06/29/cm-backlash-against-mamata-banerjee/ https://chaupalkhabar.com/2024/06/29/cm-backlash-against-mamata-banerjee/#respond Sat, 29 Jun 2024 07:43:49 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3788 पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। हाल ही में, राज्यपाल ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में ममता बनर्जी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया है। CM ममता बनर्जी ने एक दिन पहले ही कहा था कि पश्चिम बंगाल की महिलाओं ने उनसे शिकायत …

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पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। हाल ही में, राज्यपाल ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में ममता बनर्जी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया है। CM ममता बनर्जी ने एक दिन पहले ही कहा था कि पश्चिम बंगाल की महिलाओं ने उनसे शिकायत की थी कि वह सब राजभवन की गतिविधियों के कारण वहां जाने से डरती हैं। इस बयान के बाद राज्यपाल ने कानूनी कदम उठाया है। राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने शुक्रवार को ममता बनर्जी के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर किया। गुरुवार को, ममता बनर्जी ने दावा किया था कि महिलाओं ने उन्हें बताया है कि वे हाल ही की घटनाओं के कारण राजभवन जाने से डरती हैं। इस बयान पर बोस ने तीखी प्रतिक्रिया दी और इसे “गलत और बदनाम करने वाला” करार दिया। राज्यपाल ने कहा कि जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसी धारणा न बनाएं।

सूत्रों के अनुसार, राज्यपाल ने ममता बनर्जी और कुछ टीएमसी नेताओं के खिलाफ भी मानहानि का मुकदमा दायर किया है, जिन्होंने इसी तरह की टिप्पणियाँ की थीं। 2 मई को, राजभवन की एक संविदा महिला कर्मचारी द्वारा बोस पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया गया था, और जिसके पश्चात कोलकाता पुलिस द्वारा मामले की जांच शुरू कर दी गयी थी। TMC की राज्यसभा सांसद डोला सेन द्वारा कहा गया कि वह इस मामले पर अपनी पार्टी के नेतृत्व से चर्चा किए बिना टिप्पणी नहीं कर सकतीं। उन्होंने कहा, “वास्तव में क्या हुआ, यह जानने के लिए मुझे अपनी पार्टी के नेतृत्व से बात करनी होगी। यह काफी संवेदनशील मामला है।

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BJP के वरिष्ठ नेता राहुल सिन्हा द्वारा बोस के फैसले का समर्थन किया गया । उनके द्वारा कहा गया, “मुझे लगता है कि राज्यपाल बोस ने सही फैसला लिया है। यह फैसला उन्हें बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था। परन्तु मैं इसके लिए उनका पूरा समर्थन करता हूं।” वहीं, माकपा के वरिष्ठ नेता सुजान चक्रवर्ती द्वारा कहा कि बोस और बनर्जी के बीच टकराव से राज्य को कोई फायदा नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा, “यह वास्तव में हमें नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसा लगता है कि उनके द्वारा अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को भुला दिया गया हैं। उन्होंने जो कृत्य राष्ट्रीय स्तर पर पश्चिम बंगाल की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं।”

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राज्य सचिवालय में एक प्रशासनिक बैठक के समय ,cm ममता बनर्जी द्वारा गुरुवार को दावा किया गया कि “महिलाओं ने उन्हें कहा है कि वह हाल ही में हुई घटनाओं के कारण राजभवन जाने से डरती हैं।” इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बोस ने ममता बनर्जी की आलोचना की और कहा कि जनप्रतिनिधियों को ऐसी गलत धारणाएं नहीं बनानी चाहिए। कुल मिलाकर, पश्चिम बंगाल में राजनीतिक माहौल गरम है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच बढ़ते तनाव ने राज्य की राजनीति में नई चुनौतियों को जन्म दिया है। इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी बंटी हुई हैं। अब देखना यह होगा कि न्यायालय का फैसला क्या आता है और इससे राज्य की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है।

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ED द्वारा HC में दी दलीलें कहा कोर्ट का फैसला गलत, केजरीवाल को जमानत देना अनुचित; हमारी बात अनसुनी, नहीं देखे गये दस्तावेज https://chaupalkhabar.com/2024/06/21/ed-by-hc-in-given-gini-dali/ https://chaupalkhabar.com/2024/06/21/ed-by-hc-in-given-gini-dali/#respond Fri, 21 Jun 2024 08:45:16 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3681 दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत को लेकर एक नया मोड़ आया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने केजरीवाल को मिली जमानत के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। विशेष अदालत ने गुरुवार को केजरीवाल को जमानत दी थी, लेकिन अब हाई कोर्ट ने ईडी की याचिका पर सुनवाई पूरी होने तक …

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत को लेकर एक नया मोड़ आया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने केजरीवाल को मिली जमानत के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। विशेष अदालत ने गुरुवार को केजरीवाल को जमानत दी थी, लेकिन अब हाई कोर्ट ने ईडी की याचिका पर सुनवाई पूरी होने तक उनकी रिहाई पर रोक लगा दी है।

गुरुवार को राउज एवेन्यू स्थित विशेष अदालत की अवकाशकालीन बेंच ने केजरीवाल को जमानत दी थी। हालांकि, ईडी ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए तुरंत हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जस्टिस सुधीर कुमार जैन और रविंदर डुडेजा की अवकाशकालीन पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए विशेष अदालत से आदेश की कॉपी और फाइल मंगवाई। कोर्ट ने ईडी की प्राथमिक दलीलें सुनने के बाद केस को तुरंत सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और सुनवाई पूरी होने तक बेल ऑर्डर पर रोक लगा दी। सुनवाई के दौरान, केजरीवाल के वकील विक्रम चौधरी ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर ईडी की टिप्पणी पर आपत्ति जताई। चौधरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को कुछ समय के लिए बेल दी थी और ट्रायल कोर्ट जज ने इस आदेश का जिक्र किया था। उन्होंने यह भी पूछा कि इस मामले को अवकाशकालीन बेंच के सामने उठाने की इतनी जल्दबाजी क्यों थी। चौधरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि केजरीवाल दोषी करार नहीं दिए गए हैं, उनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है और मामला लंबे समय से लंबित है। इस पर कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने की बात कही।

ईडी की ओर से पेश एएसजी एसवी राजू ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने उनकी दलीलों और दस्तावेजों पर ठीक से विचार नहीं किया। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने भारीभरकम दस्तावेजों को देखते हुए उन्हें अप्रासंगिक मान लिया, जो कि गलत है। एएसजी ने कहा कि कोर्ट ने बिना दस्तावेजों को देखे कैसे कह दिया कि वे प्रासंगिक नहीं हैं। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश में कई तथ्यात्मक गलतियाँ थीं। जैसे, ईसीआईआर (Enforcement Case Information Report) 22 अगस्त 2022 को दर्ज किया गया था, लेकिन इसे जुलाई 2022 में ही दाखिल कर दिया गया था। ईडी ने कहा कि ये सभी तथ्य अदालत के सामने प्रस्तुत किए गए थे, लेकिन उन पर विचार नहीं किया गया।

ईडी ने तर्क दिया है कि उन्हें उचित तरीके से सुना नहीं गया और उन्हें ट्रायल कोर्ट में अपनी दलीलें रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया।

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एएसजी ने यह भी तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने पहले के आदेश में कहा था कि केजरीवाल की गिरफ्तारी में कोई बदनीयती नहीं थी, जबकि ट्रायल कोर्ट ने इसे गलत बताया। यह हाई कोर्ट के आदेश के विपरीत था। उन्होंने कहा कि यदि बेल के लिए अप्रासंगिक सामग्री पर विचार किया गया है, तो इसे खारिज किया जा सकता है। ईडी ने तर्क दिया कि उन्हें उचित तरीके से सुना नहीं गया और उन्हें ट्रायल कोर्ट में अपनी दलीलें रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया। एएसजी ने कहा कि उनकी सभी दलीलें नहीं सुनी गईं और उन्हें जल्दी से अपनी बात खत्म करने को कहा गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें लिखित जानकारी देने की अनुमति नहीं दी गई थी।

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अरविंद केजरीवाल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने ईडी की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। एएसजी ने अपनी दलीलों में कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश को तुरंत खारिज किया जाए और मामले की जल्दी सुनवाई की जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि ईडी को सही तरीके से दलील रखने का मौका नहीं मिला। स्पेशल जज न्याय बिंदु ने केजरीवाल को जमानत दी थी और ईडी की 48 घंटे की रोक की मांग को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि जमानत बॉन्ड शुक्रवार को ड्यूटी जज के सामने पेश किया जा सकता है। हालांकि, अब हाई कोर्ट ने ईडी की याचिका स्वीकार करते हुए केजरीवाल की रिहाई पर रोक लगा दी है। यह मामला अब हाई कोर्ट में लंबित है, जहां सभी पक्षों को अपनी दलीलें रखने का मौका मिलेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत क्या निर्णय लेती है और केजरीवाल की जमानत को लेकर क्या अंतिम फैसला आता है।

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केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से अंतर‍िम जमानत म‍िलते ही… स‍िंघवी ने भरी अदालत में जज से की यह बड़ी मांग, सुप्रीम कोर्ट बोला- ना… ना https://chaupalkhabar.com/2024/05/10/kejriwal-to-supreme-court/ https://chaupalkhabar.com/2024/05/10/kejriwal-to-supreme-court/#respond Fri, 10 May 2024 11:33:15 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3180 सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में जमानत देने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। केजरीवाल को 1 जून तक अंतरिम जमानत दी गई है, जिसके बाद उन्हें 2 जून को सरेंडर करना होगा। पिछले महीने ही दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस मामले में उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए कहा …

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सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में जमानत देने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। केजरीवाल को 1 जून तक अंतरिम जमानत दी गई है, जिसके बाद उन्हें 2 जून को सरेंडर करना होगा। पिछले महीने ही दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस मामले में उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए कहा था कि वे जमानत प्राप्त कर सकते हैं। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आगे के प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गुरुवार को केजरीवाल की जमानत के खिलाफ विरोध जताया था। ईडी ने कहा कि राजनेता को किसी विशेषाधिकार का दावा नहीं करना चाहिए और वे अपराध करने पर सामान्य नागरिकों की तरह ही गिरफ्तार होने चाहिए। इस मामले में केजरीवाल को 2 जून को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया है।

सुप्रीम कोर्ट से जमानत प्राप्त करने के बाद, केजरीवाल के वकील ने कोर्ट से यह अनुरोध किया कि उन्हें वोटिंग दिन के बाद जमानत दी जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुरोध को खारिज कर दिया और जमानत की सुनवाई पर ध्यान केंद्रित किया। यह मामला दिल्ली सरकार की 2021-22 की आबकारी नीति के निर्माण और क्रियान्वयन से संबंधित है। इसमें भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप हैं। अभी हाईकोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को बरकरार रखने के फैसले को चुनौती दी गई है, और सुप्रीम कोर्ट इस मामले को ध्यान में रख रही है।

केजरीवाल की गिरफ्तारी का मामला 21 मार्च को ईडी ने दर्ज किया था। इसके बाद से ही उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के तहत सुनवाई किया जा रहा है। उन्हें अंतरिम जमानत मिलने के बाद भी कोर्ट ने उन्हें 2 जून तक हिरासत में बनाए रखने का निर्णय लिया है। इस मामले में केजरीवाल के समर्थकों और उनके विरोधियों के बीच तनाव बढ़ गया है। कुछ लोग उन्हें निर्दोष मानते हैं जबकि कुछ उनके खिलाफ हैं। इस मामले में अब उनकी आगे की सुनवाई का इंतजार है और कोर्ट का फैसला देखा जा रहा है।

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इस संदर्भ में, दिल्ली की जनता और राजनीतिक दल भी गंभीरता से मामले का सामना कर रहे हैं। वे सुनवाई के परिणाम का इंतजार कर रहे हैं और न्यायिक प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं। अरविंद केजरीवाल के मामले में जमानत प्राप्त करने के बाद, उन्हें 2 जून तक सरेंडर करना होगा। इसके बाद उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। इस मामले में अब कोर्ट के फैसले का इंतजार है, जो केजरीवाल की भविष्य को निर्धारित करेगा।

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