India vs China - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Tue, 27 Aug 2024 06:44:51 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg India vs China - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 भारत और चीन के युद्धपोत हिंद महासागर में आमने-सामने, कोलंबो बंदरगाह पर क्यों बढ़ी दोनों देशों की नौसैनिक तैनाती? https://chaupalkhabar.com/2024/08/27/warships-of-india-and-china/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/27/warships-of-india-and-china/#respond Tue, 27 Aug 2024 06:44:51 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4432 चीन का हिंद महासागर में दबदबा बढ़ाने का प्रयास जारी है, और भारत भी अपने सामरिक हितों की रक्षा के लिए सक्रिय हो गया है। हाल ही में, भारतीय और चीनी युद्धपोतों की श्रीलंका के कोलंबो बंदरगाह पर मौजूदगी इस क्षेत्र में बढ़ते तनाव को दर्शाती है। भारतीय नौसेना का आईएनएस मुंबई, एक शक्तिशाली विध्वंसक …

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चीन का हिंद महासागर में दबदबा बढ़ाने का प्रयास जारी है, और भारत भी अपने सामरिक हितों की रक्षा के लिए सक्रिय हो गया है। हाल ही में, भारतीय और चीनी युद्धपोतों की श्रीलंका के कोलंबो बंदरगाह पर मौजूदगी इस क्षेत्र में बढ़ते तनाव को दर्शाती है।

भारतीय नौसेना का आईएनएस मुंबई, एक शक्तिशाली विध्वंसक जहाज, अपनी तीन दिवसीय यात्रा के अंतर्गत सोमवार को कोलंबो बंदरगाह पहुंचा। यह भारतीय युद्धपोत 163 मीटर लंबा है और इसमें 410 सदस्यों का चालक दल तैनात है। आईएनएस मुंबई की यह यात्रा महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि यह पहली बार है जब यह युद्धपोत श्रीलंका के बंदरगाह पर पहुंचा है। भारतीय उच्चायोग ने इस बात की पुष्टि की और बताया कि यह यात्रा भारत और श्रीलंका के बीच सामरिक संबंधों को मजबूत करने का एक प्रयास है।

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उसी दिन, चीन के तीन युद्धपोत – हे फेई, वुझिशान, और किलियानशान – भी कोलंबो बंदरगाह पर पहुंचे। चीनी लिबरेशन आर्मी का हे फेई युद्धपोत 144.50 मीटर लंबा है, जिस पर 267 सदस्यों का चालक दल तैनात है। वुझिशान, जो कि 210 मीटर लंबा है, पर 872 क्रू मेंबर मौजूद हैं। इसके अलावा, किलियानशान भी 210 मीटर लंबा चीनी युद्धपोत है, जिस पर 334 सदस्यों का चालक दल तैनात है। इन चीनी युद्धपोतों की मौजूदगी को क्षेत्र में चीन की बढ़ती सामरिक उपस्थिति के रूप में देखा जा रहा है।

आईएनएस मुंबई के कैप्टन संदीप कुमार ने बताया कि भारतीय युद्धपोत चीनी और श्रीलंकाई युद्धपोतों के साथ “पैसेज अभ्यास” में भाग लेगा। यह अभ्यास क्षेत्रीय स्थिरता को सुनिश्चित करने और क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सामरिक सहयोग को मजबूत करने के प्रयासों का हिस्सा है। इसके अलावा, भारतीय, चीनी और श्रीलंकाई नौसेनाओं के बीच खेलकूद, योग और समुद्र तट की सफाई जैसे संयुक्त कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। ये कार्यक्रम 29 अगस्त को संपन्न होंगे।

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इस घटनाक्रम से स्पष्ट है कि हिंद महासागर में सामरिक संतुलन बनाए रखने के लिए भारत और चीन दोनों सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। जबकि चीन अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए कदम बढ़ा रहा है, भारत भी अपनी रणनीति के तहत क्षेत्रीय साझेदारियों को मजबूत करने और अपनी समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के लिए तत्पर है।

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भारत ने गलवान घाटी हिंसा के बाद चीन को सिखाया सबक! ड्रैगन को ऐसे दिया करारा जवाब. https://chaupalkhabar.com/2024/06/21/india-led-galwan-valley-violence/ https://chaupalkhabar.com/2024/06/21/india-led-galwan-valley-violence/#respond Fri, 21 Jun 2024 07:20:31 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3675 गलवान घाटी में 15-16 जून 2020 की रात भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद मोदी सरकार ने चीन को सबक सिखाने के लिए कई कड़े कदम उठाए। इस झड़प में हमारे 20 जवान शहीद हो गए थे। चीनी सैनिकों ने भारतीय जवानों पर कायरतापूर्ण हमला किया था, जिसके बाद दोनों …

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गलवान घाटी में 15-16 जून 2020 की रात भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद मोदी सरकार ने चीन को सबक सिखाने के लिए कई कड़े कदम उठाए। इस झड़प में हमारे 20 जवान शहीद हो गए थे। चीनी सैनिकों ने भारतीय जवानों पर कायरतापूर्ण हमला किया था, जिसके बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते बिगड़ गए। भारत सरकार ने इस घटना का कड़ा जवाब दिया और चीन के नागरिकों को वीजा देना भी कम कर दिया। साल 2019 में करीब दो लाख चीनी नागरिकों को भारत का वीजा मिला था, लेकिन गलवान घाटी की घटना के बाद यह संख्या काफी घट गई। साल 2024 में अब तक सिर्फ दो हजार चीनी नागरिकों को ही वीजा दिया गया है। पिछले आठ महीनों में सिर्फ 1500 चीनी नागरिकों को वीजा मिला है।

भारत सरकार का मकसद सिर्फ वीजा देने तक ही सीमित नहीं है। भारत चीन पर अपनी व्यापारिक निर्भरता भी कम करने की कोशिश कर रहा है। 2024 के वित्त वर्ष में भारत ने केवल 8.93 अरब डॉलर का निर्यात चीन को किया है, जबकि जनवरी से मई तक 47 अरब डॉलर का आयात किया गया। भारत ने 2024 के वित्त वर्ष में 29.12 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक सामान का निर्यात किया, जो 2023 के वित्त वर्ष में 23.55 बिलियन डॉलर था। यह बढ़ोतरी (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) PLI योजना के कारण संभव हो पाई। इस योजना का उद्देश्य चीन एवं अन्य देशों पर भारत की निर्भरता को कम करना है।

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समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल से चीन की सरकार और वहां की एयरलाइन कंपनियां ने भारत से सीधी फ्लाइट सर्विस शुरू करने की गुहार लगाई थी। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था, ‘हम आशा करते हैं कि भारतीय पक्ष चीन के साथ मिलकर सीधी उड़ान को फिर से शुरू करेगा।’ साल 2020 के बाद से भारत में गलत गतिविधियों में लिप्त चीनी कंपनियों पर भी कार्रवाई की गई। वीवो जैसी कंपनियों ने मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य कानूनों का उल्लंघन किया था। ईडी ने वीवो पर कार्रवाई की। चीन अपनी विस्तारवाद नीति से बाज नहीं आ रहा है, इसलिए भारत को चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी ही होगी।

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एक कैबिनेट मंत्री ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि मोदी सरकार कुछ आर्थिक फायदे के लिए देश की सीमा सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल सकती। यह स्पष्ट है कि गलवान घाटी की झड़प के बाद भारत ने चीन के प्रति अपनी नीति में सख्ती दिखाई है और अपनी स्वाधीनता को प्राथमिकता दी है।

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विदेश मंत्री का पदभार संभालते ही जयशंकर द्वारा चीन-पाकिस्तान को दी गई यह नसीहत https://chaupalkhabar.com/2024/06/11/possible-to-take-over-as-foreign-minister/ https://chaupalkhabar.com/2024/06/11/possible-to-take-over-as-foreign-minister/#respond Tue, 11 Jun 2024 07:32:20 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3551 डॉ. एस. जयशंकर ने आज (11 जून) को विदेश मंत्री का कार्यभार संभाल लिया है। इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में कहा, “हम सभी को पूरा विश्वास है कि यह हमें ‘विश्व बंधु’ के रूप में स्थापित करेगा, एक ऐसा देश जो बहुत ही अशांत दुनिया में है, एक बहुत ही विभाजित दुनिया में है, …

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डॉ. एस. जयशंकर ने आज (11 जून) को विदेश मंत्री का कार्यभार संभाल लिया है। इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में कहा, “हम सभी को पूरा विश्वास है कि यह हमें ‘विश्व बंधु’ के रूप में स्थापित करेगा, एक ऐसा देश जो बहुत ही अशांत दुनिया में है, एक बहुत ही विभाजित दुनिया में है, संघर्षों और तनावों की दुनिया में है।” हालाँकि जयशंकर 2019 से ही देश के विदेश मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। जयशंकर ने पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के रिश्तों पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, “जहां तक पाकिस्तान और चीन का सवाल है, उन देशों के साथ हमारे संबंध अलग-अलग हैं और वहां की समस्याएं भी अलग-अलग हैं।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इन दोनों देशों के साथ संबंधों में विविधता और चुनौतीपूर्ण मुद्दे मौजूद हैं।

डॉ. एस. जयशंकर का विदेश मंत्री के रूप में कार्यकाल महत्वपूर्ण और घटनाओं से भरपूर रहा है। 2019 में इस पद को संभालने से पहले, वह 2015 से 2018 तक भारत के विदेश सचिव के रूप में कार्यरत थे। वह विदेश मंत्री की भूमिका निभाने वाले पहले पूर्व विदेश सचिव भी बने। इस नई जिम्मेदारी के साथ उन्होंने भारत की विदेश नीति को नई दिशा दी और वैश्विक मंच पर देश की स्थिति को मजबूत किया। जयशंकर के कार्यकाल के दौरान कई बड़ी वैश्विक घटनाएं घटीं। रूस-यूक्रेन संघर्ष, इजरायल-हमास युद्ध, और कोविड-19 महामारी जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं का सामना करना पड़ा। इन सभी चुनौतियों के बीच जयशंकर ने भारत की विदेश नीति को कुशलता से संभाला और वैश्विक मंच पर देश की स्थिति को सुदृढ़ किया।

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कोविड-19 महामारी के दौरान, उन्होंने विभिन्न देशों के साथ समन्वय स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महामारी के समय में उन्होंने वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम के तहत विभिन्न देशों को वैक्सीन प्रदान करने में भी अहम भूमिका निभाई, जिससे भारत की वैश्विक छवि और मजबूत हुई। इसके साथ ही उन्होंने महामारी के दौरान भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाए। रूस-यूक्रेन संघर्ष और इजरायल-हमास युद्ध जैसी घटनाओं के दौरान भी जयशंकर ने भारत की तटस्थ और संतुलित नीति को बनाए रखा। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सहयोग करते हुए भारत के हितों की रक्षा की और वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए अपना योगदान दिया।

जयशंकर के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिले। उन्होंने विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत किया और वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को और सुदृढ़ किया। उनके कुशल नेतृत्व और रणनीतिक दृष्टिकोण ने भारत को एक मजबूत और विश्वसनीय साझेदार के रूप में स्थापित किया। जयशंकर ने अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और बैठकों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने विभिन्न मंचों पर भारत के हितों की पुरजोर वकालत की और वैश्विक मुद्दों पर भारत के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। उनके नेतृत्व में भारत ने विभिन्न देशों के साथ व्यापार, सुरक्षा, और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत किया।

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विदेश मंत्री के रूप में डॉ. एस. जयशंकर का कार्यकाल न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण रहा है। उनके नेतृत्व में भारत ने एक मजबूत और स्थिर विदेश नीति का पालन किया और वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत किया। जयशंकर के अनुभव और दूरदर्शिता ने भारत को वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाया और भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।

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