INDIA - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Mon, 07 Oct 2024 10:51:09 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg INDIA - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 मालदीव के लिए भारत की दरियादिली, मुइज्जू के रुख में बदलाव के बाद कई महत्वपूर्ण समझौते. https://chaupalkhabar.com/2024/10/07/maldives-to-india-sea/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/07/maldives-to-india-sea/#respond Mon, 07 Oct 2024 10:51:09 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5249 मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की भारत यात्रा के दौरान द्विपक्षीय संबंधों में एक नया मोड़ आया है। अपने पहले भारत दौरे पर मुइज्जू का रुख बदला हुआ नजर आ रहा है। पहले चीन समर्थक माने जाने वाले मुइज्जू, जो ‘इंडिया आउट’ अभियान के तहत राष्ट्रपति बने थे, अब भारत को एक महत्वपूर्ण सहयोगी और …

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मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की भारत यात्रा के दौरान द्विपक्षीय संबंधों में एक नया मोड़ आया है। अपने पहले भारत दौरे पर मुइज्जू का रुख बदला हुआ नजर आ रहा है। पहले चीन समर्थक माने जाने वाले मुइज्जू, जो ‘इंडिया आउट’ अभियान के तहत राष्ट्रपति बने थे, अब भारत को एक महत्वपूर्ण सहयोगी और मित्र के रूप में देख रहे हैं। यह दौरा भारत और मालदीव के संबंधों में तनावपूर्ण दौर के बाद एक नई शुरुआत का संकेत दे रहा है, जहां दोनों देशों ने कई अहम समझौते किए हैं।

मालदीव के विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर करने के लिए भारत और मालदीव ने 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मुद्रा विनिमय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता मालदीव को विदेशी मुद्रा संकट से उबरने में मदद करेगा। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति मुइज्जू ने मालदीव में रुपे कार्ड लॉन्च किया, जिससे दोनों देशों के आर्थिक और वित्तीय संबंध और प्रगाढ़ होंगे। इस कदम से मालदीव के नागरिकों को भारत में सरलता से लेन-देन करने में सुविधा होगी।

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प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मुइज्जू के बीच हुई बातचीत के दौरान कई बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर चर्चा की गई। ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना, जो मालदीव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, को और तेजी से आगे बढ़ाने पर सहमति बनी है। इसके साथ ही थिलाफुशी में एक नए वाणिज्यिक बंदरगाह के विकास के लिए भारत का समर्थन भी जारी रहेगा, जिससे मालदीव की व्यापारिक क्षमता बढ़ेगी।

भारत ने मालदीव को एक्जिम बैंक की क्रेता ऋण सुविधाओं के तहत निर्मित 700 सामाजिक आवास इकाइयां भी सौंप दी हैं। यह कदम मालदीव में बेहतर जीवन स्तर के निर्माण में मदद करेगा और भारत-मालदीव के बीच आपसी संबंधों को और मजबूत करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर कहा कि यह साझेदारी दोनों देशों की गहरी दोस्ती का प्रतीक है और इससे द्विपक्षीय सहयोग को नई दिशा मिलेगी।

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आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए भारत और मालदीव ने मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर चर्चा शुरू करने का फैसला किया है। इस समझौते के जरिए दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों में मजबूती आएगी और मालदीव के आर्थिक विकास में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने मालदीव को भारत की पड़ोस नीति और सागर विजन में एक घनिष्ठ मित्र बताया।

पिछले साल भारत और मालदीव के रिश्तों में खटास आई थी, जब राष्ट्रपति मुइज्जू ने ‘इंडिया आउट’ अभियान के तहत चुनाव जीता था और भारत के सैन्यकर्मियों को देश से हटाने की मांग की थी। साथ ही, मालदीव के मंत्रियों द्वारा दिए गए विवादित बयानों से भी संबंधों में तनाव बढ़ा। हालांकि, समय के साथ मुइज्जू ने अपने भारत विरोधी रुख को नरम किया और भारत के साथ सहयोग बढ़ाने की दिशा में कदम उठाए। उन मंत्रियों को बर्खास्त करना और भारत को सहयोगी देश के रूप में मान्यता देना, मुइज्जू की नई रणनीति का हिस्सा है।

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भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा, वार्ता का कोई इरादा नहीं https://chaupalkhabar.com/2024/10/05/indian-foreign-minister-s-jay/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/05/indian-foreign-minister-s-jay/#respond Sat, 05 Oct 2024 11:27:40 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5234 भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर आगामी 15 और 16 अक्टूबर को पाकिस्तान में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान के दौरे पर जा रहे हैं। इस यात्रा के दौरान उन्होंने स्पष्ट किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी तरह की द्विपक्षीय वार्ता का कोई इरादा …

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भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर आगामी 15 और 16 अक्टूबर को पाकिस्तान में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान के दौरे पर जा रहे हैं। इस यात्रा के दौरान उन्होंने स्पष्ट किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी तरह की द्विपक्षीय वार्ता का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा एक बहुपक्षीय आयोजन के लिए की जा रही है और इसे केवल एससीओ शिखर सम्मेलन की अनिवार्यता के कारण ही किया जा रहा है।

जयशंकर ने एक कार्यक्रम के दौरान बताया, “यह यात्रा एक बहुपक्षीय आयोजन के लिए होगी। मैं वहां भारत-पाकिस्तान संबंधों पर चर्चा करने नहीं जा रहा हूं। मेरा उद्देश्य एससीओ का एक सक्रिय सदस्य बनना है।” उन्होंने यह भी कहा कि इस यात्रा को लेकर मीडिया का ध्यान आकर्षित होना स्वाभाविक है, लेकिन यह यात्रा किसी वार्ता के लिए नहीं है।

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पाकिस्तान इस बार एससीओ शासनाध्यक्ष परिषद (सीएचजी) की बैठक की मेज़बानी कर रहा है, और इस बैठक में सभी सदस्य देशों के नेताओं को आमंत्रित किया गया है। जयशंकर ने अपने दौरे के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यह यात्रा एक परंपरा के अनुसार है, जिसमें प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री उच्च स्तरीय बैठक के लिए जाते हैं। “इस वर्ष, यह बैठक इस्लामाबाद में हो रही है, और यह एक नया अनुभव है, जैसा कि हम पहले भी देख चुके हैं,” उन्होंने कहा।

जयशंकर ने एससीओ की कार्यप्रणाली और इसके सदस्यों की अपेक्षाओं पर चर्चा करते हुए कहा कि एससीओ अपने उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा है। इसके पीछे की मुख्य वजह आतंकवाद का मुद्दा है। उन्होंने यह भी बताया कि एक पड़ोसी देश आतंकवाद को समर्थन दे रहा है, जो इस क्षेत्र में स्थिरता के लिए खतरा बन रहा है। उन्होंने कहा, “आतंकवाद को स्वीकार नहीं किया जा सकता। हमारे पड़ोसी देश की गतिविधियों के परिणामस्वरूप स्थिति में बदलाव आएगा। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में सार्क की बैठकें नहीं हुई हैं।”

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हालांकि, जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि इसका यह मतलब नहीं है कि क्षेत्रीय गतिविधियां ठप हो गई हैं। वास्तव में, पिछले 5-6 वर्षों में भारतीय उपमहाद्वीप में क्षेत्रीय एकीकरण के कई संकेत मिले हैं। उन्होंने कहा, “अगर आप बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार और श्रीलंका के साथ हमारे संबंधों का अवलोकन करें, तो आपको पता चलेगा कि रेलवे लाइनों का पुनर्निर्माण किया जा रहा है, सड़कों का विकास हो रहा है, और बिजली ग्रिड का निर्माण हो रहा है।”

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि जयशंकर की यात्रा का मुख्य उद्देश्य एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी को सुनिश्चित करना है, न कि पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय वार्ता करना। उन्होंने अपनी बातों में यह भी जोड़ते हुए कहा कि वह एक सभ्य व्यक्ति के रूप में व्यवहार करेंगे और सम्मेलन के दौरान सभी देशों के नेताओं के साथ बातचीत का अवसर उठाएंगे।

इस यात्रा के संदर्भ में जयशंकर ने यह भी कहा, “हम क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए तैयार हैं, लेकिन आतंकवाद के मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।” इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के प्रति सजग है और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक मजबूत रुख बनाए रखेगा।

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ईरान-इजरायल तनाव, भारत पर संभावित असर और दोनों देशों के साथ व्यापारिक संबंध https://chaupalkhabar.com/2024/10/04/iran-israel-tension-on-india/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/04/iran-israel-tension-on-india/#respond Fri, 04 Oct 2024 07:26:16 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5212 मिडिल ईस्ट में चल रही ताजा घटनाओं से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव बढ़ गया है। हाल ही में, मंगलवार की रात ईरान ने इजरायल पर 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय और वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल मच गई है। इस संघर्ष के चलते तेल की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना …

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मिडिल ईस्ट में चल रही ताजा घटनाओं से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव बढ़ गया है। हाल ही में, मंगलवार की रात ईरान ने इजरायल पर 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय और वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल मच गई है। इस संघर्ष के चलते तेल की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना है, जिसका प्रभाव सीधे तौर पर भारत जैसे देशों पर पड़ सकता है। भारत, जो दोनों देशों के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध रखता है, इस तनाव के परिणामस्वरूप आर्थिक दबाव का सामना कर सकता है।

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भारत और इजरायल के बीच 1992 में राजनयिक संबंधों की शुरुआत हुई थी। तब से लेकर आज तक दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंध लगातार मजबूत होते गए हैं। वर्ष 2022-23 के दौरान, भारत और इजरायल के बीच व्यापार 10.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में रहा। भारत, एशिया में इजरायल का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, और विश्व स्तर पर सातवें स्थान पर है। भारत से इजरायल को निर्यात किए जाने वाले प्रमुख उत्पादों में मोती और कीमती पत्थर, स्पेस इक्विपमेंट, पोटेशियम क्लोराइड और मैकेनिकल उपकरण शामिल हैं। इसके अलावा, लगभग 300 इजरायली कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं, जो भारत-इजरायल संबंधों को और मजबूती प्रदान करती हैं।

भारत और ईरान के बीच भी लंबे समय से व्यापारिक संबंध रहे हैं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में यह संबंध कमजोर हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद भारत और ईरान के बीच कई आर्थिक समझौते और परियोजनाएं चल रही हैं। वर्ष 2022-23 में, ईरान भारत का 59वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा था। भारत ईरान से कच्चे तेल के साथ-साथ सूखे मेवे, रसायन और कांच के बर्तन खरीदता है। वहीं, भारत की ओर से ईरान को निर्यात किए जाने वाले प्रमुख उत्पादों में बासमती चावल, चाय और कॉफी शामिल हैं। पिछले साल, भारत ने ईरान को लगभग 15,300 करोड़ रुपये का निर्यात किया था। इसके बावजूद, ईरान के साथ भारत का व्यापार पिछले कुछ वर्षों में घटा है।

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ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते इस तनाव का असर भारत पर भी देखने को मिल सकता है। भारत, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए काफी हद तक कच्चे तेल पर निर्भर है, ईरान से तेल की आपूर्ति में रुकावट का सामना कर सकता है। इसके अलावा, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसी तरह, इजरायल के साथ व्यापार में भी रुकावट आ सकती है, जो भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार है। दोनों देशों के बीच मजबूत आर्थिक संबंध होने के बावजूद, इस युद्ध का प्रभाव भारत की व्यापारिक गतिविधियों पर भी पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, इस तनाव के कारण वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बढ़ेगी, जिससे भारतीय शेयर बाजार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

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केरल में ही क्यों आते हैं सबसे पहले वैश्विक बीमारियों के शुरुआती मामले, जैसे Covid-19 और MPox? https://chaupalkhabar.com/2024/09/27/why-do-people-come-to-kerala-only/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/27/why-do-people-come-to-kerala-only/#respond Fri, 27 Sep 2024 12:10:25 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5135 हाल ही में केरल में मंकीपॉक्स (एमपॉक्स) का दूसरा मामला सामने आया है, जिससे यह भारत में इस बीमारी का तीसरा केस बन गया है। यह 29 वर्षीय युवक संयुक्त अरब अमीरात से लौटकर केरल के एर्नाकुलम में आकर रह रहा था। उसे तेज बुखार की शिकायत हुई और जांच में मंकीपॉक्स (क्लेड-1बी स्ट्रेन) की …

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हाल ही में केरल में मंकीपॉक्स (एमपॉक्स) का दूसरा मामला सामने आया है, जिससे यह भारत में इस बीमारी का तीसरा केस बन गया है। यह 29 वर्षीय युवक संयुक्त अरब अमीरात से लौटकर केरल के एर्नाकुलम में आकर रह रहा था। उसे तेज बुखार की शिकायत हुई और जांच में मंकीपॉक्स (क्लेड-1बी स्ट्रेन) की पुष्टि हुई। इससे पहले, 18 सितंबर को मलप्पुरम में भी मंकीपॉक्स का मामला मिला था। ये मरीज भी खाड़ी देश से ही लौटा था। केरल में मंकीपॉक्स ही नहीं, निपाह वायरस का प्रकोप भी देखने को मिला है। हाल ही में एक शख्स की निपाह वायरस से मौत हो गई, जो इस वायरस के नए दौर की शुरुआत का संकेत है। 2018, 2021, 2023 में कोझिकोड और 2019 में एर्नाकुलम में भी निपाह वायरस का कहर देखा गया था।

कोविड-19 की बात की जाए, तो भारत में इसका सबसे पहला मामला भी केरल से ही सामने आया था। साल 2020 में चीन से लौटे एक छात्र में कोविड-19 का संक्रमण पाया गया था। इसके बाद से ही केरल में वैश्विक बीमारियों के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। यह सवाल उठता है कि आखिर केरल में ही क्यों सबसे पहले ये बीमारियाँ मिलती हैं? केरल में सबसे पहले वैश्विक बीमारियों के मरीज मिलने का एक मुख्य कारण है राज्य की बड़ी एनआरआई (अनिवासी भारतीय) आबादी। केरल से करीब 22 लाख लोग विदेशों में रहते हैं, जिनमें से अधिकतर लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं। ‘दक्कन हेराल्ड’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, केरल के एक बड़े हिस्से के लिए खाड़ी देश रोज़गार का प्रमुख स्रोत हैं। इसके अलावा, केरल से बड़ी संख्या में छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश भी जाते हैं।

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संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों में काम करने वाले लोगों का केरल में आना-जाना लगा रहता है। जब ये लोग विदेश से लौटते हैं, तो वहां की बीमारियां भी साथ ला सकते हैं। इसलिए जब कोई वैश्विक महामारी या संक्रमण होता है, तो केरल में सबसे पहले मामले सामने आते हैं। 2020 में भी देश का पहला कोविड-19 मरीज चीन से लौटे एक छात्र में पाया गया था। केरल का स्वास्थ्य विभाग अत्यधिक सतर्क रहता है, खासकर जब दुनिया में कोई नई बीमारी फैलती है। राज्य में हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग की सख्त व्यवस्था की जाती है, ताकि बीमारी फैलने से पहले ही उसे पकड़ा जा सके। जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंकीपॉक्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया, तो केरल के हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि एयरपोर्ट्स पर की जाने वाली स्क्रीनिंग की अपनी सीमाएं होती हैं। बुनियादी स्तर पर यह जांच की जाती है, और जब तक सरकार या डब्ल्यूएचओ की ओर से कोई बड़ी एडवाइजरी जारी नहीं होती, तब तक पूरी तरह से इस तरह की स्क्रीनिंग प्रभावी नहीं हो सकती। इसके अलावा, शुरुआती लक्षणों की पहचान करना भी कई बार मुश्किल हो जाता है, जिससे संक्रमण का पता लगने में देरी हो सकती है। केरल में एनआरआई आबादी का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि अप्रैल 2024 में हुए चुनावों के दौरान, केवल दो दिनों में 22,000 एनआरआई नागरिक अपने घर लौटे थे। वहीं, कुल एनआरआई रजिस्टर्ड वोटरों की संख्या 89,839 है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों का खाड़ी देशों से संबंध और उनका केरल में लगातार आना-जाना, राज्य को किसी भी वैश्विक बीमारी के फैलने का केंद्र बना सकता है।

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केरल की वैश्विक बीमारियों से प्रभावित होने की प्रमुख वजह वहां की बड़ी एनआरआई आबादी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मलयाली लोगों की बड़ी संख्या है। इसके अलावा, केरल राज्य का स्वास्थ्य विभाग सतर्कता बरतता है, लेकिन सीमित संसाधनों और स्क्रीनिंग की चुनौतियों के कारण यह सबसे पहले प्रभावित होता है। चाहे मंकीपॉक्स हो, निपाह वायरस या कोविड-19, केरल की स्वास्थ्य व्यवस्था उन बीमारियों से जूझने के लिए हमेशा तैयार रहती है, लेकिन इन बीमारियों का सबसे पहले पता लगने के कारण यह राज्य वैश्विक महामारी के प्रसार का केंद्र भी बन जाता है।

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चंद्रयान-4 मिशन को मिली कैबिनेट से मंजूरी, 2104.06 करोड़ रुपये का फंड स्वीकृत. https://chaupalkhabar.com/2024/09/20/chandrayaan-4-mission-found-cab/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/20/chandrayaan-4-mission-found-cab/#respond Fri, 20 Sep 2024 07:49:18 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5000 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान-4 मिशन के लिए सरकार से हरी झंडी प्राप्त कर ली है। इस महत्वाकांक्षी मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए सरकार ने 2104.06 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है। इसरो के प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने मिशन से संबंधित कुछ अहम जानकारियाँ साझा की हैं, जिनमें उन्होंने …

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान-4 मिशन के लिए सरकार से हरी झंडी प्राप्त कर ली है। इस महत्वाकांक्षी मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए सरकार ने 2104.06 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है। इसरो के प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने मिशन से संबंधित कुछ अहम जानकारियाँ साझा की हैं, जिनमें उन्होंने बताया कि इस मिशन को पूरा होने में लगभग 36 महीने का समय लगेगा। डॉ. एस. सोमनाथ के अनुसार, चंद्रयान-4* की इंजीनियरिंग प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब इसे कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। हालांकि, इसरो को इसके बाद भी कुछ अन्य प्रक्रियात्मक मंजूरियों का इंतजार रहेगा। यह मिशन अपने पूर्ववर्ती चंद्रयान-3 से कई मायनों में अलग है। चंद्रयान-3 का मुख्य लक्ष्य चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराना था, लेकिन चंद्रयान-4 के साथ एक और चुनौती जोड़ी गई है—चंद्रमा से वापस पृथ्वी तक लौटना।

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इस बार मिशन का दायरा और भी बड़ा है। चंद्रयान-4 मिशन में सैटेलाइट का कुल आकार पहले की तुलना में लगभग दोगुना हो जाएगा। इस सैटेलाइट में पाँच मुख्य मॉड्यूल होंगे जो मिशन के अलग-अलग हिस्सों को संभालेंगे। ये पाँच मॉड्यूल होंगे:

1. प्रोपल्शन मॉड्यूल: चंद्रमा तक पहुंचने और वापसी के लिए जिम्मेदार होगा।
2. डिसेंडर मॉड्यूल: चंद्रमा पर लैंडिंग के समय सक्रिय रहेगा।
3. एसेंडर मॉड्यूल: चंद्रमा से वापस पृथ्वी के लिए प्रस्थान करेगा।
4. ट्रांसफर मॉड्यूल: मॉड्यूल्स के बीच समन्वय करेगा।
5. री-एंट्री मॉड्यूल: पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश के दौरान सक्रिय होगा।

इस बार, चंद्रयान-4 को एक बार में लॉन्च नहीं किया जाएगा। इसके दो हिस्सों को अलग-अलग समय पर लॉन्च किया जाएगा और फिर अंतरिक्ष में मॉड्यूल्स को जोड़ा जाएगा, जिसे वैज्ञानिक शब्दों में डॉकिंग कहा जाता है। इस प्रकार के मिशन के लिए उच्च तकनीक और परिशुद्धता की आवश्यकता होती है, जो इसरो के वैज्ञानिकों की चुनौतीपूर्ण कार्यकुशलता को दर्शाता है।

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इसरो चीफ ने गगनयान मिशन के बारे में भी जानकारी साझा की। गगनयान, भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन, इस साल के अंत तक लॉन्च होने के लिए तैयार है। गगनयान मिशन के तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्री पहली बार अंतरिक्ष में जाएंगे। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। डॉ. सोमनाथ ने बताया कि इसरो इस वर्ष के अंत तक गगनयान को लॉन्च करने की पूरी कोशिश कर रहा है और इसकी तैयारियाँ अंतिम चरण में हैं।

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बांग्लादेश: सेना को मिली मजिस्ट्रेटी शक्तियां, कानून व्यवस्था सुधारने की कोशिश. https://chaupalkhabar.com/2024/09/19/bangladesh-army-found-me/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/19/bangladesh-army-found-me/#respond Thu, 19 Sep 2024 11:40:44 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4988 बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों से चल रही हिंसा और अस्थिर राजनीतिक हालातों के बीच, अंतरिम सरकार ने सेना को अस्थायी तौर पर मजिस्ट्रेटी शक्तियां प्रदान की हैं। यह फैसला कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने और विध्वंसक कृत्यों पर रोक लगाने के उद्देश्य से लिया गया है। लोक प्रशासन मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी अधिसूचना …

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बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों से चल रही हिंसा और अस्थिर राजनीतिक हालातों के बीच, अंतरिम सरकार ने सेना को अस्थायी तौर पर मजिस्ट्रेटी शक्तियां प्रदान की हैं। यह फैसला कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने और विध्वंसक कृत्यों पर रोक लगाने के उद्देश्य से लिया गया है। लोक प्रशासन मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी अधिसूचना के मुताबिक, सेना के कमीशंड अधिकारियों को यह शक्तियां तत्काल प्रभाव से 17 सितंबर 2024 से अगले 60 दिनों के लिए दी गई हैं। यह फैसला तब आया है जब बांग्लादेश में लगातार बढ़ती हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास पर्याप्त संसाधनों और कर्मचारियों की कमी है। सेना को दी गई ये शक्तियां नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी समझी जा रही हैं ताकि देश में शांति और स्थिरता स्थापित की जा सके।

बांग्लादेश की स्वामित्व वाली बीएसएस समाचार एजेंसी के अनुसार, गृह सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) मोहम्मद जहांगीर आलम चौधरी ने बुधवार को बताया कि पिछले कुछ हमलों के बाद से कई पुलिस अधिकारी अपनी ड्यूटी पर लौट नहीं पाए हैं। इससे कानून व्यवस्था बनाए रखने में मुश्किलें आ रही हैं। चौधरी ने यह भी स्पष्ट किया कि जो पुलिसकर्मी अब तक अपनी सेवाओं में शामिल नहीं हुए हैं, उन्हें अब ड्यूटी पर वापस लौटने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस स्थिति को देखते हुए, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सेना को मजिस्ट्रेटी शक्तियों से सशक्त किया है। ये शक्तियां सेना को गिरफ्तारी, हिरासत, और जरूरी स्थिति में बल प्रयोग की अनुमति देती हैं। इस कदम का उद्देश्य देश में फिर से हिंसा भड़कने की संभावनाओं को खत्म करना है।

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सेना को दी गई मजिस्ट्रेटी शक्तियों में गिरफ्तार करने, हिरासत में लेने, और जरूरत पड़ने पर गोली चलाने का भी अधिकार शामिल है। सेना को ये शक्तियां कानून व्यवस्था सुधारने के लिए दी गई हैं, ताकि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा, बांग्लादेश की सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि इन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा। बांग्लादेश के कानून सलाहकार आसिफ नजरुल ने कहा कि सेना के जवान इन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करेंगे, और जैसे ही स्थिति सामान्य होगी, इन शक्तियों की जरूरत नहीं रहेगी। सरकार ने यह भी कहा है कि यह कानून केवल 60 दिनों के लिए लागू रहेगा, और उसके बाद इसे खत्म कर दिया जाएगा।

हिंसा और अराजकता के बीच, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने संवैधानिक सुधार आयोग में भी बदलाव किए हैं। सुप्रीम कोर्ट के वकील शाहदीन मलिक की जगह बांग्लादेशी-अमेरिकी प्रोफेसर अली रियाज को इस आयोग का प्रमुख नियुक्त किया गया है। इस बदलाव की घोषणा मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के निर्देश पर की गई। यूनुस ने न्यायपालिका, चुनाव प्रणाली, प्रशासन, पुलिस, भ्रष्टाचार विरोधी आयोग और संविधान में व्यापक सुधार के लिए कुल छह आयोगों के गठन की घोषणा की थी। अली रियाज के नेतृत्व में संवैधानिक सुधार आयोग अब बांग्लादेश की राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में सुधार के लिए काम करेगा।

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बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों से आरक्षण के मुद्दे को लेकर छात्र आंदोलन कर रहे थे। यह आंदोलन देशभर में फैल गया था, जिसके चलते कई जगहों पर हिंसा और झड़पें देखने को मिलीं। बांग्लादेश की तत्कालीन सरकार ने इस स्थिति को संभालने के लिए सेना को तैनात किया था। 19 जुलाई 2024 की रात को पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद हिंसा की घटनाएं बढ़ती रहीं। 5 अगस्त 2024 को हुई भारी हिंसा के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर चली गईं। उनके इस्तीफे के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई थी।

शेख हसीना के इस्तीफे के तीन दिन बाद, 8 अगस्त 2024 को मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ। इस सरकार का मुख्य उद्देश्य देश में शांति और स्थिरता बहाल करना और संवैधानिक सुधारों को अमल में लाना है। हालांकि, अंतरिम सरकार के गठन के बावजूद, बांग्लादेश में स्थिति अभी भी अराजक बनी हुई है। देशभर में हिंसा और उपद्रव को नियंत्रित करने के लिए अब भी सेना के जवान तैनात हैं। अंतरिम सरकार का प्रयास है कि कानून व्यवस्था में सुधार किया जाए और देश को फिर से शांति की ओर ले जाया जाए।

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अनुच्छेद 370 पर ख्वाजा आसिफ के बयान से मचा राजनीतिक घमासान, भाजपा का कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस पर हमला https://chaupalkhabar.com/2024/09/19/article-370-on-khwaja-asif-k/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/19/article-370-on-khwaja-asif-k/#respond Thu, 19 Sep 2024 10:00:36 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4981 पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के हालिया बयान ने भारत की राजनीति में एक बार फिर से उथल-पुथल मचा दी है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली को लेकर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के रुख का समर्थन करते हुए पाकिस्तान की ओर से खुला समर्थन दिया है। पाकिस्तान के इस …

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पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के हालिया बयान ने भारत की राजनीति में एक बार फिर से उथल-पुथल मचा दी है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली को लेकर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के रुख का समर्थन करते हुए पाकिस्तान की ओर से खुला समर्थन दिया है। पाकिस्तान के इस बयान के बाद भाजपा ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस पर तीखा हमला किया है। भाजपा का कहना है कि इससे एक बार फिर साबित हो गया है कि कांग्रेस और पाकिस्तान का एजेंडा एक है। पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने यह बयान जियो न्यूज के शो ‘कैपिटल टॉक’ में दिया, जिसे वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर होस्ट करते हैं। इस शो में उनसे पूछा गया कि क्या पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली को लेकर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ खड़ा है। इसके जवाब में ख्वाजा आसिफ ने कहा कि “बिल्कुल, यहां तक ​​कि हमारी मांग भी यही है।” उनका यह बयान भारत की राजनीति में हलचल पैदा करने वाला था क्योंकि अनुच्छेद 370 और 35ए भारत के आंतरिक मामलों से जुड़ा हुआ है और इस पर पाकिस्तान का समर्थन भारतीय राजनीति में विवाद का विषय बन जाता है।

ख्वाजा आसिफ के इस बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस पर तीखा हमला बोला। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पाकिस्तान के इस बयान ने एक बार फिर कांग्रेस की “सच्चाई” को उजागर कर दिया है। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का आर्टिकल 370 और 35ए पर कांग्रेस और JKNC के समर्थन की बात ने एक बार फिर कांग्रेस को एक्सपोज कर दिया है। इस बयान से साफ हो गया है कि कांग्रेस और पाकिस्तान के इरादे भी एक हैं और एजेंडा भी।” अमित शाह ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर विशेष रूप से निशाना साधते हुए कहा, “राहुल गांधी पिछले कुछ वर्षों से भारत विरोधी ताकतों के साथ खड़े हैं। चाहे वह एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने की बात हो या भारतीय सेना के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देने की बात, राहुल गांधी और कांग्रेस का पाकिस्तान से सुर हमेशा एक रहा है।”

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अनुच्छेद 370 और 35ए जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता था, जिसे केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को हटाया था। इस फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया और इसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया। पाकिस्तान ने इस फैसले का हमेशा विरोध किया है और लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसे उठाता रहा है। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने के फैसले की आलोचना की थी और इसे जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता पर हमला बताया था। हालांकि, भाजपा और केंद्र सरकार का तर्क है कि अनुच्छेद 370 और 35ए का हटाया जाना आवश्यक था ताकि जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा में लाया जा सके और वहां विकास को बढ़ावा दिया जा सके।

अमित शाह ने स्पष्ट किया कि मोदी सरकार के रहते जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली संभव नहीं है। उन्होंने कहा, “कांग्रेस और पाकिस्तान यह भूल जाते हैं कि अब केंद्र में मोदी सरकार है। कश्मीर में न तो अनुच्छेद 370 वापस आएगा और न ही आतंकवाद।” इस पूरे विवाद के बीच कांग्रेस ने पाकिस्तान के बयान से खुद को अलग कर लिया है। कांग्रेस प्रवक्ताओं ने कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है और पाकिस्तान को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। कांग्रेस ने यह भी स्पष्ट किया कि पार्टी जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर देश की संप्रभुता और अखंडता के साथ खड़ी है।

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ख्वाजा आसिफ के इस बयान के बाद भारत में राजनीतिक गर्मी बढ़ गई है। भाजपा इसे कांग्रेस के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है, जबकि कांग्रेस अपने रुख को सही ठहराने की कोशिश कर रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर के हितों के लिए संघर्ष करती रहेगी, चाहे पाकिस्तान कुछ भी कहे। यह विवाद आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर की राजनीति और राष्ट्रीय राजनीति पर असर डाल सकता है, खासकर जब 2024 के आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं।

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नेहरू-अयूब खान के 64 साल पुराने समझौते पर मोदी सरकार का निर्णय”,भारत ने पाकिस्तान को सिंधु जल संधि की समीक्षा के लिए नोटिस भेजा. https://chaupalkhabar.com/2024/09/18/nehru-ayub-khan-64-years-old/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/18/nehru-ayub-khan-64-years-old/#respond Wed, 18 Sep 2024 12:20:34 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4967 भारत ने दशकों पुराने सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान को आधिकारिक नोटिस जारी किया है, जिसमें समझौते में संशोधन की मांग की गई है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह नोटिस पिछले महीने 30 तारीख को भेजा गया। भारत का कहना है कि बदलती परिस्थितियों के कारण इस संधि की समीक्षा करना आवश्यक हो गया …

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भारत ने दशकों पुराने सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान को आधिकारिक नोटिस जारी किया है, जिसमें समझौते में संशोधन की मांग की गई है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह नोटिस पिछले महीने 30 तारीख को भेजा गया। भारत का कहना है कि बदलती परिस्थितियों के कारण इस संधि की समीक्षा करना आवश्यक हो गया है। भारत ने इस नोटिस में कई कारण बताए हैं। इनमें प्रमुख हैं जनसंख्या वृद्धि, पर्यावरण संबंधी मुद्दे और भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विकास में तेजी लाने की आवश्यकता। भारत का मानना है कि सिंधु जल संधि के बाद से स्थितियाँ काफी बदल गई हैं, और इसे ध्यान में रखकर पुनर्विचार करना जरूरी है।

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एक और महत्वपूर्ण कारण सीमा पार से होने वाली आतंकवादी गतिविधियाँ भी हैं। भारत ने कहा कि आतंकवाद के चलते सिंधु जल संधि के सुचारू कार्यान्वयन में बाधाएँ आ रही हैं। इस कारण से संधि के उद्देश्यों की पूर्ति में रुकावट उत्पन्न हो रही है। सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित हुई थी, जिसमें विश्व बैंक की मध्यस्थता थी। उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में इस पर हस्ताक्षर किए। इस संधि के तहत भारत को रावी, ब्यास और सतलुज जैसी तीन पूर्वी नदियों का नियंत्रण प्राप्त हुआ, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, चिनाब और झेलम जैसी तीन पश्चिमी नदियों का नियंत्रण मिला।

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भारत की इस नवीनतम पहल को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच जल विवाद को सुलझाने में मदद मिल सकती है। यह मुद्दा न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी अहम है। अब देखने की बात होगी कि पाकिस्तान इस नोटिस का क्या जवाब देता है और दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के प्रबंधन पर क्या बातचीत होती है।

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भारत-अमेरिका के बढ़ते संबंधों से चीन और रूस चिंतित, वैश्विक राजनीति में नया मोड़. https://chaupalkhabar.com/2024/09/17/growing-relations-between-india-and-usa/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/17/growing-relations-between-india-and-usa/#respond Tue, 17 Sep 2024 13:40:42 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4943 भारत और अमेरिका के बीच के मजबूत होते संबंधों ने वैश्विक राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। खासकर चीन और रूस जैसे देशों के लिए यह गठबंधन चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस बढ़ती मित्रता का आधार दोनों देशों के समान विचारधारा पर आधारित है, जो विभिन्न आवाजों का आदर, समावेशिता, शांति …

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भारत और अमेरिका के बीच के मजबूत होते संबंधों ने वैश्विक राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। खासकर चीन और रूस जैसे देशों के लिए यह गठबंधन चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस बढ़ती मित्रता का आधार दोनों देशों के समान विचारधारा पर आधारित है, जो विभिन्न आवाजों का आदर, समावेशिता, शांति और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान को प्राथमिकता देती है। अमेरिकी प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी और अमेरिका के प्रबंधन एवं संसाधन के उपविदेश मंत्री, रिचर्ड वर्मा ने इस संबंध की मजबूती पर जोर दिया है। वर्मा, जो भारत में अमेरिका के राजदूत रह चुके हैं, ने हाल ही में वॉशिंगटन डीसी स्थित हडसन इंस्टीट्यूट में एक कार्यक्रम में भारत-अमेरिकी संबंधों पर विचार साझा किए। उन्होंने कहा, “भारत-अमेरिका संबंध ठोस बुनियाद और उज्ज्वल भविष्य के साथ एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं।”

रिचर्ड वर्मा के अनुसार, अमेरिका और भारत के संबंधों में हर मुद्दे पर सहमति संभव नहीं है, लेकिन यह संबंध राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल में पहले से कहीं अधिक मजबूत हुए हैं। दोनों देशों के बीच सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और वैश्विक स्थिरता को लेकर न केवल संवाद बढ़ा है, बल्कि नई-नई साझेदारियाँ भी आकार ले रही हैं। उदाहरण के तौर पर ‘क्वाड’ को देखा जा सकता है, जो अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच एक सुरक्षा सहयोग है। ‘क्वाड’ का उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देना है। हाल ही में रिचर्ड वर्मा ने इस पर भी टिप्पणी की कि यह सहयोग सिर्फ किसी देश के खिलाफ नहीं, बल्कि वैश्विक शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है।

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वर्मा ने यह भी स्वीकार किया कि भारत-अमेरिका संबंधों में चुनौतियाँ हैं, विशेषकर रूस और चीन के बढ़ते सहयोग के संदर्भ में। उन्होंने कहा, “मुझे रूस-चीन के बढ़ते सुरक्षा सहयोग को लेकर चिंता है, क्योंकि यह सहयोग रूस को यूक्रेन के खिलाफ अपने गैरकानूनी युद्ध में मदद कर सकता है।” यह साझेदारी न केवल रूस को यूक्रेन में अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में मदद कर सकती है, बल्कि चीन को भी नए सुरक्षा संसाधन उपलब्ध करा सकती है, जो कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा के लिए एक चुनौती साबित हो सकती है। यह क्षेत्र पहले से ही भू-राजनीतिक संघर्ष का केंद्र बना हुआ है, और चीन की बढ़ती आक्रामकता इसे और जटिल बना सकती है।

वर्मा ने भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक सहयोग को और अधिक मजबूत करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि आर्थिक सहयोग को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए दोनों देशों को कड़ी मेहनत करनी होगी। इससे न केवल व्यापार संबंध मजबूत होंगे, बल्कि वैश्विक स्तर पर दोनों देशों का प्रभाव भी बढ़ेगा। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि दोनों देशों को अपने सामूहिक नागरिक समाजों का समर्थन जारी रखना चाहिए ताकि बोलने की स्वतंत्रता और विभिन्न विचारों को महत्व दिया जा सके।

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क्वाड को लेकर हाल ही में हुई चर्चाओं में यह भी बताया गया कि इसका चौथा शिखर सम्मेलन अगले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा उनके डेलवेयर स्थित आवास पर आयोजित किया जाएगा। इस साल क्वाड की मेजबानी भारत को करनी थी, लेकिन अब वह इसे अगले साल आयोजित करेगा। यह शिखर सम्मेलन भारत-अमेरिका और उनके सहयोगी देशों के बीच सुरक्षा और आर्थिक रणनीतियों को मजबूत करने का एक और मौका साबित होगा।

भारत-अमेरिका संबंधों का यह नया अध्याय न केवल इन दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक राजनीति पर भी इसका व्यापक असर पड़ रहा है। चीन और रूस जैसे देशों के लिए यह एक संकेत है कि विश्व की शक्ति संरचना में बदलाव हो रहा है। जहां अमेरिका और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश मिलकर वैश्विक स्थिरता और सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं, वहीं रूस और चीन अपने-अपने हितों के लिए नई साझेदारियों को बढ़ावा दे रहे हैं। इस बदलते परिदृश्य में भारत की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है, खासकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में।

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बांग्लादेश में पाकिस्तान की मदद से परमाणु शक्ति बनने की मांग, बढ़ रहा भारत विरोध https://chaupalkhabar.com/2024/09/16/bangladesh-in-pakistan/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/16/bangladesh-in-pakistan/#respond Mon, 16 Sep 2024 05:56:04 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4891 बांग्लादेश में हाल ही में भारत विरोधी भावना तेज़ी से उभर रही है, खासकर शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद। ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शाहिदुज्जमां द्वारा की गई एक नई मांग ने इस भावना को और हवा दी है। उन्होंने अपने हालिया संबोधन में कहा कि बांग्लादेश को परमाणु शक्ति बनने के लिए पाकिस्तान …

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बांग्लादेश में हाल ही में भारत विरोधी भावना तेज़ी से उभर रही है, खासकर शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद। ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शाहिदुज्जमां द्वारा की गई एक नई मांग ने इस भावना को और हवा दी है। उन्होंने अपने हालिया संबोधन में कहा कि बांग्लादेश को परमाणु शक्ति बनने के लिए पाकिस्तान के साथ संधि करनी चाहिए। उनका मानना है कि पाकिस्तान बांग्लादेश का सबसे विश्वसनीय और भरोसेमंद सहयोगी हो सकता है और भारत से मुकाबला करने के लिए यह आवश्यक है। एक सेमिनार में बोलते हुए, प्रोफेसर शाहिदुज्जमां ने बांग्लादेश को परमाणु संपन्न बनाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि भारत के खिलाफ एक मजबूत सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता है, और इसके लिए पाकिस्तान के साथ परमाणु संधि करना सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है। उन्होंने कहा, “हमें पाकिस्तान के साथ परमाणु संधि करनी होगी। पाकिस्तान बांग्लादेश का सबसे भरोसेमंद सुरक्षा सहयोगी है, लेकिन भारत इस तथ्य को स्वीकार नहीं करना चाहता।”

प्रोफेसर शाहिदुज्जमां ने अपने विचारों को स्पष्ट करते हुए कहा कि परमाणु संपन्न होने का मतलब यह नहीं कि बांग्लादेश को खुद परमाणु हथियार विकसित करने चाहिए। उनका कहना था कि पाकिस्तान की तकनीक और विशेषज्ञता का उपयोग करके बांग्लादेश को परमाणु सक्षम होना चाहिए। उन्होंने कहा, “भारत की वर्तमान स्थिति और सोच को चुनौती देने के लिए हमें परमाणु सक्षम बनने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। पाकिस्तान के साथ इस संदर्भ में सहयोग से हम अपनी सुरक्षा को मजबूत कर सकते हैं।”

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प्रोफेसर शाहिदुज्जमां ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि बांग्लादेश के पास पाकिस्तान के सहयोग के बिना भारत से मुकाबला करने की कोई ठोस रणनीति नहीं हो सकती। उनके अनुसार, पाकिस्तान की सैन्य ताकत और उसकी मिसाइल तकनीक बांग्लादेश के लिए बेहद फायदेमंद हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत से निपटने के लिए पाकिस्तान का समर्थन आवश्यक है।

सबसे विवादास्पद टिप्पणी तब आई जब प्रोफेसर शाहिदुज्जमां ने पाकिस्तानी मिसाइलों को बांग्लादेश में तैनात करने की मांग की। उन्होंने कहा, “हमें पाकिस्तान से गौरी शॉर्ट-रेंज मिसाइलें हासिल करनी चाहिए और उन्हें उत्तरी बांग्लादेश और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में तैनात करना चाहिए। यह कदम भारत पर दबाव डालने का प्रभावी तरीका हो सकता है।”

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शेख हसीना के पद छोड़ने के बाद बांग्लादेश में भारत विरोधी बयानों की बाढ़ सी आ गई है। बड़ी संख्या में बांग्लादेशी अब पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंधों की वकालत कर रहे हैं। शाहिदुज्जमां जैसे लोग अब खुलकर यह कह रहे हैं कि भारत के प्रभाव को रोकने के लिए पाकिस्तान ही एकमात्र विकल्प है। बांग्लादेश में इस बढ़ती भारत विरोधी भावना और पाकिस्तान समर्थक विचारधारा ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को एक नए मोड़ पर ला दिया है।

 

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