jdu - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Mon, 16 Sep 2024 07:29:31 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg jdu - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 वन नेशन, वन इलेक्शन, इलेक्शन’, भारतीय चुनाव प्रणाली में बड़ा बदलाव? https://chaupalkhabar.com/2024/09/16/one-nation-one-election-election/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/16/one-nation-one-election-election/#respond Mon, 16 Sep 2024 07:29:31 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4899 ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के प्रमुख एजेंडों में से एक है। इस विचार का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। सरकार तेजी से इस दिशा में काम कर रही है, और उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी …

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के प्रमुख एजेंडों में से एक है। इस विचार का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। सरकार तेजी से इस दिशा में काम कर रही है, और उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी सरकार अपने वर्तमान कार्यकाल (मोदी 3.0) में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक पेश कर सकती है। इसका मतलब यह है कि देशभर के सभी चुनाव एक ही समय पर होंगे, जो बार-बार चुनाव कराने की प्रक्रिया को सरल बना सकता है। मोदी सरकार वर्तमान में अपने सहयोगियों के समर्थन पर निर्भर है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ जेडीयू (JDU) और तेलुगू देशम पार्टी (TDP) जैसी प्रमुख पार्टियों का सहयोग भी है। ये पार्टियां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा हैं और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विचार पर सरकार का समर्थन कर रही हैं। बताया जा रहा है कि एनडीए में शामिल सभी दल इस अवधारणा के पक्ष में हैं और इसके कार्यान्वयन के लिए तैयार हैं।

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यह विचार केवल सरकार का एजेंडा ही नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बार-बार जनता और अन्य राजनीतिक दलों के समक्ष प्रस्तुत किया है। बीजेपी के 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का वादा किया गया था। इस साल स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में पीएम मोदी ने राजनीतिक दलों से इस दिशा में साथ आने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि “समय की मांग है कि हम एक राष्ट्र, एक चुनाव के संकल्प को हासिल करें।” इससे चुनावों की प्रक्रिया को सरल और समयबद्ध बनाने की उम्मीद जताई जा रही है।

सरकार ने इस मुद्दे पर अध्ययन और विचार के लिए एक समिति गठित की, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की। इस समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, समिति ने सुझाव दिया है कि पहले लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों का आयोजन किया जाना चाहिए, जिससे सभी स्तरों के चुनाव एक निश्चित समय सीमा में संपन्न हो सकें।

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मुख्य उद्देश्य चुनावों की आवृत्ति को कम करना और संसाधनों की बचत करना है। बार-बार चुनाव कराने से सरकार और जनता दोनों पर वित्तीय और प्रशासनिक बोझ पड़ता है। एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक लागत कम होगी और विकास योजनाओं के संचालन में भी रुकावटें कम होंगी। हालांकि, इस प्रस्ताव के खिलाफ भी कुछ तर्क दिए जा रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि इससे क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान हो सकता है और स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मुद्दों के नीचे दबा दिया जाएगा। इसके अलावा, यह भी तर्क दिया जा रहा है कि एक साथ चुनाव कराने से संसदीय और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है।

 

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बिहार की राजनीतिक धारा, नीतीश और तेजस्वी की बैठक से अगले विधानसभा चुनावों की संभावनाएं. https://chaupalkhabar.com/2024/09/09/political-stream-of-bihar/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/09/political-stream-of-bihar/#respond Mon, 09 Sep 2024 10:14:53 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4758 बिहार की राजनीति ने हमेशा राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस राज्य में लंबे समय से प्रमुख भूमिका में रहे हैं। उन्होंने बार-बार गठबंधनों और राजनीतिक हितों के बीच संतुलन बनाए रखने में कुशलता दिखाई है। हाल ही में, नीतीश कुमार की तेजस्वी यादव के साथ …

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बिहार की राजनीति ने हमेशा राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस राज्य में लंबे समय से प्रमुख भूमिका में रहे हैं। उन्होंने बार-बार गठबंधनों और राजनीतिक हितों के बीच संतुलन बनाए रखने में कुशलता दिखाई है। हाल ही में, नीतीश कुमार की तेजस्वी यादव के साथ बैठक ने बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर नई अटकलें शुरू कर दी हैं। नीतीश कुमार ने 2023 में जाति सर्वेक्षण के आधार पर दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए आरक्षण को 65 प्रतिशत कर दिया था। हालांकि, पटना उच्च न्यायालय ने इस फैसले को रद्द कर दिया, और मामला सुप्रीम कोर्ट में है। तेजस्वी यादव ने इस फैसले को कानूनी रूप से आगे बढ़ाने का आग्रह किया, जिससे राजनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गई हैं।

नीतीश की तेजस्वी के साथ हालिया बैठक का औपचारिक बहाना नए सूचना आयुक्त के चयन पर चर्चा था। लेकिन नीतीश ने भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के शहर में होने के दौरान कहा कि उन्होंने पहले गलती की थी, जो अब नहीं होगी। यह बयान नीतीश के दोहरी रणनीति के संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें उन्होंने भाजपा से संबंध सुधारने की कोशिश की है।

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भाजपा ने नीतीश को खुश रखने के लिए केंद्रीय बजट में बिहार के लिए 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया और 2025 के राज्य चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़ने की घोषणा की। इसके बावजूद, नीतीश की पार्टी जेडी(यू) के भीतर भाजपा के प्रति सही संतुलन बनाए रखने की कोशिशें जारी हैं। जेडी(यू) के प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि तेजस्वी से मुलाकात को अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए।

इस बीच, चिराग पासवान और उनकी पार्टी ने दलित वोटों को मजबूत करने के लिए आक्रामक रुख अपनाया है। चिराग ने सुप्रीम कोर्ट के उप-कोटा आदेश का विरोध किया और दलितों के अधिकारों के मुद्दे को उठाया। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि चिराग पासवान की महत्त्वाकांक्षाओं और नीतीश कुमार की चतुर राजनीति के बीच संतुलन बनाने की कोशिशें लगातार चल रही हैं।

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नए राजनीतिक समीकरणों के बीच, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की बैठक ने यह संकेत दिया है कि बिहार की राजनीति में आगामी समय में और भी हलचल देखने को मिल सकती है। यह स्पष्ट है कि सभी प्रमुख दल अपने-अपने चुनावी हितों को ध्यान में रखते हुए रणनीतियों में बदलाव कर रहे हैं।

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जद(यू) में अंदरूनी कलह, भाजपा के साथ गठबंधन और विचारधारा के बीच फंसी नीतीश कुमार की पार्टी. https://chaupalkhabar.com/2024/09/07/internal-strife-in-jdu-bjp/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/07/internal-strife-in-jdu-bjp/#respond Sat, 07 Sep 2024 07:27:50 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4721 जनता दल (यूनाइटेड) [जद(यू)] के भीतर इस समय सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी में दो धड़ों के बीच सत्ता संघर्ष उभर कर सामने आया है। एक ओर वे नेता हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन को बनाए रखने के पक्षधर हैं, जबकि दूसरी …

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जनता दल (यूनाइटेड) [जद(यू)] के भीतर इस समय सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी में दो धड़ों के बीच सत्ता संघर्ष उभर कर सामने आया है। एक ओर वे नेता हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन को बनाए रखने के पक्षधर हैं, जबकि दूसरी ओर वे नेता हैं जो पार्टी की मूल विचारधारा पर समझौता करने के खिलाफ हैं। यह विवाद तब खुलकर सामने आया जब जद(यू) के वरिष्ठ नेता और मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। केसी त्यागी ने मोदी सरकार के कुछ फैसलों, जैसे सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री, समान नागरिक संहिता, और सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण पर दिए गए फैसले का खुलकर विरोध किया। इसके अलावा, इजरायल और फिलिस्तीन पर भारत की विदेश नीति को लेकर भी उन्होंने तीखे सवाल उठाए। हालांकि, त्यागी के ये बयान जद(यू) की विचारधारा के अनुरूप ही थे, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि भाजपा के साथ पार्टी के समीकरण को बिगड़ने से रोकने के लिए उन पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया।

भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर जद(यू) के भीतर विवाद और भी गहरा हो गया है, खासकर तब जब पार्टी ने संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक का समर्थन किया। वक्फ संपत्ति पर कानून में संशोधन को लेकर पार्टी के अंदर मतभेद उभरकर सामने आए। कुछ नेताओं ने इस विधेयक का विरोध यह कहकर किया कि यह जद(यू) की मूल विचारधारा के खिलाफ है। पार्टी के वरिष्ठ नेता ललन सिंह ने संसद में विधेयक का समर्थन किया, जबकि जद(यू) के अन्य नेता, जैसे विजय कुमार चौधरी, इससे असहमत थे। चौधरी ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय की चिंताओं को दूर किए बिना इस विधेयक को पारित नहीं किया जाना चाहिए। नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले विजय कुमार चौधरी के इस बयान को पार्टी की आधिकारिक स्थिति के रूप में देखा गया। दूसरी ओर, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ज़मा खान ने मुस्लिम बच्चों के लिए नए स्कूल और वक्फ भूमि पर 21 मदरसों के निर्माण की योजना की घोषणा करके ललन सिंह के बयान का असर कम करने की कोशिश की।

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जद(यू) के अंदर यह सत्ता संघर्ष इस बात का संकेत है कि पार्टी के नेता अगले साल के विधानसभा चुनाव और नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत को ध्यान में रखते हुए अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी के एक नेता ने बताया कि एक धड़ा भाजपा के साथ गठबंधन बनाए रखने के पक्ष में है, जबकि दूसरा धड़ा मानता है कि भाजपा की मजबूरी है, इसलिए जद(यू) को अपनी पहचान और विचारधारा पर कायम रहना चाहिए। इस विभाजन के बीच पार्टी के कुछ नेता अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भाजपा के साथ मधुर संबंध बनाए रखना चाहते हैं। हालांकि, नीतीश कुमार एक अनुभवी और चतुर राजनेता हैं। वे पहले भी पार्टी के भीतर असहमति रखने वाले नेताओं, जैसे जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव, को दरकिनार कर चुके हैं। पिछले साल ललन सिंह ने नीतीश कुमार के साथ मतभेदों की अफवाहों के चलते पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। हालांकि, पार्टी ने इन अफवाहों का खंडन किया था। नीतीश कुमार ने अपने करीबी सहयोगी संजय झा को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है, ताकि विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को मजबूत किया जा सके।

विधानसभा चुनाव से पहले जद(यू) के सामने चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। वक्फ विधेयक पर मतभेद, त्यागी का इस्तीफा, और पार्टी के भीतर के असंतोष ने जद(यू) को एक कठिन स्थिति में डाल दिया है। पार्टी के अंदर की एक और घटना, जिसने असंतोष को और बढ़ा दिया, वह थी 22 अगस्त को राज्य कार्यकारिणी सदस्यों की सूची का अचानक बदलाव। पहली सूची में 251 सदस्यों के नाम थे, लेकिन कुछ ही घंटों में इसे वापस लेकर नई सूची जारी की गई, जिसमें सदस्यों की संख्या घटाकर 115 कर दी गई। इस बदलाव ने पार्टी के अंदर और भी असंतोष पैदा कर दिया, क्योंकि ललन सिंह और अशोक चौधरी के कई समर्थकों को नई सूची से हटा दिया गया था। पार्टी ने इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि यह बदलाव उन नेताओं को हटाने के लिए किया गया, जो लोकसभा चुनावों के दौरान सक्रिय नहीं थे या जिनका प्रदर्शन असंतोषजनक था। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, यह कदम सत्ता संतुलन बनाने के लिए उठाया गया था। अशोक चौधरी ने जहानाबाद संसदीय सीट पर हार के लिए भूमिहारों को जिम्मेदार ठहराते हुए विवाद खड़ा कर दिया। उनका बयान जद(यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार को पसंद नहीं आया, जिन्होंने उनकी आलोचना की और कहा कि नीतीश कुमार कभी जाति आधारित राजनीति नहीं करते हैं।

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बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है। वे कुर्मी-कुशवाहा और अत्यंत पिछड़ी जातियों के गठबंधन के कारण राज्य की राजनीति में एक मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। हालांकि, पार्टी के अंदर चल रहे इस सत्ता संघर्ष को देखते हुए, नीतीश कुमार को जल्द से जल्द पार्टी के भीतर की दरारों को दूर करना होगा। नीतीश कुमार के नेतृत्व पर चर्चा करते हुए, पूर्व भाजपा उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने एक बार कहा था, “नीतीश कुमार हमेशा अपने मौजूदा साथी को मात देने के लिए दो खिड़कियां खुली रखते हैं।” इस बात को ध्यान में रखते हुए, विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार इस समय की चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी तरह सक्षम हैं और उन्होंने पहले भी ऐसे कई राजनीतिक संकटों का सामना किया है।

पार्टी के सांसद रामप्रीत मंडल ने कहा, “त्यागी ने अवांछित रुख अपनाया, लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की संवेदनशीलता को देखते हुए पार्टी में आखिरकार नीतीश जी के विचार ही चलेंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे नेता क्या सोचते हैं।”

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बिहार की राजनीति में नई हलचल: नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की मुलाकात से उठी अटकलें, पुराना वीडियो बना चर्चा का केंद्र. https://chaupalkhabar.com/2024/09/06/new-solution-in-bihar-politics/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/06/new-solution-in-bihar-politics/#respond Fri, 06 Sep 2024 09:38:59 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4707 बिहार की राजनीति में हाल के दिनों में एक नई हलचल देखने को मिल रही है। 4 सितंबर 2024 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के बीच हुई मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। इस मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर तेजी से यह चर्चा शुरू हो …

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बिहार की राजनीति में हाल के दिनों में एक नई हलचल देखने को मिल रही है। 4 सितंबर 2024 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के बीच हुई मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। इस मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर तेजी से यह चर्चा शुरू हो गई है कि नीतीश कुमार एक बार फिर महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं, जिससे भाजपा और नीतीश कुमार की दोस्ती में दरार आने की संभावना जताई जा रही है।

तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के बीच यह मुलाकात अचानक और अप्रत्याशित थी, जिससे अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। इस मुलाकात के बाद राजद समर्थक सोशल मीडिया पर दावा कर रहे हैं कि नीतीश कुमार महागठबंधन में लौट सकते हैं, और इस तरह से बिहार की सियासत में नया मोड़ आ सकता है। हालांकि, इस मुलाकात का वास्तविक कारण क्या था, इसे लेकर तेजस्वी यादव ने मीडिया के सामने स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि यह मुलाकात महज एक सामाजिक बातचीत थी और इसमें कोई बड़ा राजनीतिक इशारा नहीं था।

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हालांकि, इस मुलाकात के बाद भी राजनीतिक अटकलें कम नहीं हुई हैं। सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें नीतीश कुमार और लालू यादव की मुलाकात को हाल की बताया जा रहा है। इस वीडियो को कई लोगों ने शेयर किया और इसे बिहार की सियासी स्थिति पर बड़ा असर डालने वाला बताया। लेकिन जांच में पता चला कि यह वीडियो दो साल पुराना है। यह वीडियो 5 सितंबर 2022 का है, जब नीतीश कुमार लालू यादव से मिलने राबड़ी आवास पर गए थे, और तब बिहार में महागठबंधन की सरकार थी। इसलिए, इस वीडियो की ताजगी के दावे पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही बिहार की सियासत में कई बदलाव हो सकते हैं, लेकिन फिलहाल नीतीश कुमार और भाजपा के रिश्तों में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। वर्तमान में बिहार में भाजपा और जेडीयू की डबल इंजन की सरकार है, जो अपने विकास कार्यों के लिए जानी जाती है। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने हाल ही में कहा कि भाजपा की विचारधारा पर लोगों का भरोसा पूरी तरह से है। उन्होंने यह भी कहा कि 2005 के बाद बिहार में जो विकास हुआ है, वह नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार के नेतृत्व में संभव हुआ है। उनके अनुसार, भाजपा ने जो भी वादे किए हैं, उन्हें पूरा भी किया है।

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वहीं, जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने राजद पर कटाक्ष करते हुए कहा कि लालू प्रसाद का कुशवाहा समाज के प्रति प्रेम ढकोसला है। उन्होंने दावा किया कि राजद के लुभावने भाषणों से जनता को भ्रमित किया जाता है, और कुशवाहा समाज को परिवारवादी राजनीति से बाहर रखना चाहिए। इस तरह से, बिहार की राजनीति में चल रही हलचल और सोशल मीडिया पर फैली अटकलों के बावजूद, फिलहाल कोई ठोस प्रमाण या आधिकारिक बयान नहीं आया है जो यह साबित कर सके कि नीतीश कुमार और भाजपा के रिश्तों में कोई बड़ा बदलाव होने वाला है। वर्तमान में, यह कह पाना मुश्किल है कि भविष्य में बिहार की सियासत में क्या मोड़ आएगा, लेकिन फिलहाल की स्थिति में ऐसा कोई संकेत नहीं है कि नीतीश कुमार एक बार फिर महागठबंधन में शामिल होंगे।

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भाजपा की आलोचना और जन सुराज की चुनौती,प्रशांत किशोर की राजनीति पर चर्चा. https://chaupalkhabar.com/2024/09/05/criticism-of-bjp-and-public-surra/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/05/criticism-of-bjp-and-public-surra/#respond Thu, 05 Sep 2024 10:42:15 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4684 प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जो अभी तक आधिकारिक रूप से लॉन्च नहीं हुई है, ने बिहार में प्रतिद्वंद्वी दलों के बीच ‘बी टीम’ का तमगा प्राप्त किया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने किशोर पर हमला करते हुए उनकी पार्टी को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की ‘बी टीम’ करार दिया है। यह आरोप …

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प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जो अभी तक आधिकारिक रूप से लॉन्च नहीं हुई है, ने बिहार में प्रतिद्वंद्वी दलों के बीच ‘बी टीम’ का तमगा प्राप्त किया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने किशोर पर हमला करते हुए उनकी पार्टी को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की ‘बी टीम’ करार दिया है। यह आरोप भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने अपने ट्विटर अकाउंट पर किया। मालवीय ने अपने ट्वीट में लिखा, “हिंदुस्तान की राजनीति में एक और मुस्लिम परस्त पार्टी का उदय हो चुका है। इस बार बिहार में! जैसे ही कोई हिंदू नेता कैफी या जालीदार टोपी पहन लेता है, तो समझ लेना चाहिए कि उसे मुसलमानों की भलाई नहीं, सिर्फ उनका वोट चाहिए। बिहार में जन सुराज और राजद, एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। भाजपा और एनडीए ही एकमात्र राष्ट्रवादी विकल्प है।” यह बयान भाजपा की ओर से किशोर को निशाना बनाने का नवीनतम प्रयास है, जो आगामी बिहार चुनाव के मद्देनजर हो रहा है।

भाजपा को किशोर के मुसलमानों को प्राथमिकता देने के आरोप से अधिक चिंता ऊंची जातियों के उनकी ओर आकर्षित होने की संभावनाओं को लेकर है। किशोर ने बिहार में कम से कम 40 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारने का वादा किया है। इसके अलावा, किशोर ने जुलाई में 40 महिला उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारने की घोषणा की है, जो भाजपा और उसके सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) के वोट बैंक को प्रभावित कर सकती है। भाजपा के नेतृत्व को किशोर की संगठनात्मक तैयारी और 1 करोड़ सदस्यों के साथ जन सुराज को लॉन्च करने की घोषणा ने ‘घबराहट’ में डाल दिया है। यह घटना उस समय हुई है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बावजूद भाजपा ने बिहार की पांच लोकसभा सीटें — पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर, औरंगाबाद और सासाराम — खो दी थीं।

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किशोर की घोषणा को राजद के मुस्लिम-यादव वोट बैंक को लक्षित करने की योजना के रूप में देखा गया है। बिहार की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है और वह सब बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय जनता दल को वोट देते हैं, केवल नीतीश कुमार की जेडी(यू) के समर्थकों के। इसके अलावा किशोर के भाषण का दूसरा हिस्सा यह रहा जिसमें उन्होंने कहा, की “भाजपा को हराने के लिए मुसलमानों को गांधी, आंबेडकर, लोहिया और जेपी (जयप्रकाश नारायण) की विचारधारा को अपनाना होगा” जिसे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को गंभीरता से लिया है। किशोर ने 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत में योगदान दिया था, लेकिन 2015 से 2021 तक उन्होंने भाजपा के खिलाफ लड़ने वाली पार्टियों और नेताओं की जीत में योगदान किया। किशोर का कहना है कि भाजपा ने केवल 37 प्रतिशत वोटों के साथ दिल्ली में सरकार बनाई, जबकि हिंदू आबादी 80 प्रतिशत है, इसका मतलब है कि 40 प्रतिशत हिंदुओं ने भाजपा के खिलाफ और नफरत की राजनीति के खिलाफ वोट दिया।

किशोर का उद्देश्य विपक्ष की जगह लेने का है, जैसा कि राजद के तेजस्वी यादव पर उनके लगातार हमलों से स्पष्ट है। साथ ही, उनकी नजर भाजपा के ऊंची जातियों के वोट बैंक पर भी है। राजद प्रवक्ता एजाज अहमद ने किशोर पर आरोप लगाया है कि वह भाजपा की ‘बी टीम’ हैं। “यह लोकसभा चुनावों से स्पष्ट है जब उन्होंने भाजपा और मोदी की प्रशंसा की, लेकिन उन्हें हमारे आधार का कोई वोट नहीं मिलेगा।” जन सुराज के एक पदाधिकारी द्वारा कहा गया की नीतीश कुमार एक घटती हुई ताकत हैं।और नीतीश के जाने के बाद बिहार में दो पार्टियां ही बची रहेंगी जिनमें से एक है राजद और दूसरी है भाजपा। और देखा जाए तो भाजपा अपनी विचारधारा और लोकप्रिय नेतृत्व वाले विशाल संगठन के सहारे ही वहाँ अपनी मज़बूती को बनाये हुए है। तेजस्वी के स्थान पर (जन सुराज के लिए) अधिक गुंजाइश है।”

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जुलाई में, राजद के दिग्गज नेता जगदानंद सिंह ने एक पत्र लिखकर जन सुराज को भाजपा की ‘टीम बी’ करार दिया था और राजद के सदस्यों के किशोर के प्रति निष्ठा बदलने की चिंता जताई थी। पिछले पांच महीनों में कई प्रमुख राजद नेता जैसे देवेंद्र प्रसाद यादव, रामबली चंद्रवंशी, अब्दुल मजीद और रिवाज अंसारी जन सुराज में शामिल हो चुके हैं। किशोर के साथ जुड़ने वालों में से है कर्पूरी ठाकुर की पोती डॉ. जागृति और पूर्व आईपीएस अधिकारी रही आनंद मिश्रा एव अभिनेत्री अक्षरा सिंह शामिल हैं। बीजेपी के उपाध्यक्ष ने एक मीडिया रिपोर्ट में बताया की “प्रशांत किशोर के पास पैसा और जगह है। और हर पार्टी के नेता जो नाराज़ हैं या जिन्हें टिकट नहीं मिल रहा है, वह यह सब देखकर उनके साथ आ जाएंगे। लालू के समर्थक प्रतिबद्ध हैं; यादव भाजपा को वोट नहीं देंगे। और यहां तक कि मुसलमान वोटर भी उन्हें वोट नहीं देंगे क्योंकि उन्हें मालूम है कि वह भी भाजपा को नहीं हरा सकते।”

उन्होंने कहा कि किशोर उच्च जाति के मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए वे गांधी और आंबेडकर की प्रशंसा कर रहे हैं। भाजपा के एक महासचिव ने कहा कि किशोर की यात्रा चंपारण, सारण और मिथिला जैसे भाजपा के गढ़ों में भी घूमी है। उन्होंने कहा, “वो पहले आरजेडी के गढ़ मगध और सीमांचल क्यों नहीं गए? वो जानते हैं कि ऊंची जातियों के पास राजनीति के लिए संसाधन हैं और उन्हें जीता जा सकता है।”

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भाजपा प्रदेश इकाई के एक नेता ने कहा कि किशोर बिहार में बदलाव की कहानी को आगे बढ़ाने के लिए अरविंद केजरीवाल की राह पर चल रहे हैं। उन्होंने कहा, “किशोर बदलाव की कहानी का इस्तेमाल कर रहे हैं और कह रहे हैं कि बिहारियों ने पिछले 40 सालों में सभी पार्टियों को आजमाया है — चाहे वो आरजेडी हो, जेडी(यू) हो या भाजपा। वो बदलाव, रोजगार, युवाओं के पलायन, शिक्षा की कमी और एनडीए के 25 साल के शासन के बावजूद उद्योग की कमी के बारे में अपनी बात रख रहे हैं और यह गति पकड़ रहा है।”

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नीतीश कुमार की जदयू में बड़ा फेरबदल: प्रदेश कमेटी भंग, नई कमेटियों का गठन. https://chaupalkhabar.com/2024/08/24/nitish-kumar-in-jdu-big/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/24/nitish-kumar-in-jdu-big/#respond Sat, 24 Aug 2024 10:32:43 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4428 बिहार की राजनीति में एक बार फिर बड़ा बदलाव देखने को मिला है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने शनिवार को एक अहम निर्णय लिया है। पार्टी ने प्रदेश कमेटी और राजनीतिक सलाहकार समिति को भंग कर दिया है। इसके साथ ही नई कमेटियों का गठन भी कर दिया गया है, …

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बिहार की राजनीति में एक बार फिर बड़ा बदलाव देखने को मिला है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने शनिवार को एक अहम निर्णय लिया है। पार्टी ने प्रदेश कमेटी और राजनीतिक सलाहकार समिति को भंग कर दिया है। इसके साथ ही नई कमेटियों का गठन भी कर दिया गया है, जिसमें कई नए चेहरों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने इस संबंध में एक आधिकारिक आदेश जारी किया है। जदयू के आधिकारिक एक्स (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर भी इस आदेश पत्र को साझा किया गया है। जारी किए गए आदेश में स्पष्ट किया गया है कि प्रदेश जदयू की प्रदेश कमेटी और प्रदेश राजनीतिक सलाहकार समिति को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया गया है। इसके बाद, पार्टी ने नई कमेटी का गठन करते हुए 10 उपाध्यक्ष, 49 महासचिव और 46 सचिव नियुक्त किए हैं।

इन नए पदाधिकारियों में एमएलसी ललन कुमार सराफ को कोषाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है। यह घोषणा भी जदयू के आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर की गई है। इस राजनीतिक फेरबदल के बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पूर्णिया दौरा भी सुर्खियों में रहा। हालांकि, यह दौरा अपेक्षाकृत छोटा था, लेकिन इस दौरान उन्होंने इलाके का हवाई निरीक्षण और समीक्षा बैठक की।

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नीतीश कुमार के इस दौरे के बाद से पूर्णिया में हवाई उड़ान सेवा जल्द शुरू होने की संभावना जताई जा रही है। यह इलाका सीमांचल का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन सकता है, जिससे यहां की विकास योजनाओं को और गति मिलेगी। बिहार की राजनीति में इस बदलाव को लेकर विभिन्न अटकलें लगाई जा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जदयू की यह रणनीति आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह नई पहल पार्टी के संगठन को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। नई कमेटियों के गठन के साथ, पार्टी ने साफ संदेश दिया है कि वह अपने संगठन को नए सिरे से मजबूत कर रही है और इसके लिए बड़े बदलावों से भी पीछे नहीं हटेगी। इससे जदयू के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच भी नई ऊर्जा का संचार होने की उम्मीद है, जिससे पार्टी आगामी चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हो सकेगी।

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बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा, केंद्रीय मंत्री ने दिया लिखित जवाब…. https://chaupalkhabar.com/2024/07/22/rate-of-bihar-as-special-state/ https://chaupalkhabar.com/2024/07/22/rate-of-bihar-as-special-state/#respond Mon, 22 Jul 2024 10:55:32 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4000 बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लंबे समय से चली आ रही मांग एक बार फिर ठुकरा दी गई है। केंद्र सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से साफ मना कर दिया है। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर के माध्यम से जानकारी दी कि अंतर-मंत्रालयी समूह …

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लंबे समय से चली आ रही मांग एक बार फिर ठुकरा दी गई है। केंद्र सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से साफ मना कर दिया है। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर के माध्यम से जानकारी दी कि अंतर-मंत्रालयी समूह (आईएमजी) की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार को विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता। इस उत्तर ने राज्य सरकार और जनता की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है और बिहार के विशेष राज्य का दर्जा पाने की दिशा में एक और बाधा खड़ी कर दी है। नीतीश कुमार ने कई बार इस मुद्दे को उठाया है और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की है। उनका कहना है कि इस दर्जे से बिहार को केंद्र से अधिक वित्तीय सहायता और विकास के अवसर मिलेंगे, जो कि राज्य की पिछड़ी स्थिति को सुधारने में मददगार साबित होंगे। नीतीश कुमार ने इस मुद्दे को विभिन्न मंचों पर उठाया है और केंद्र सरकार से बार-बार इस पर विचार करने की अपील की है। बावजूद इसके, उनकी मांग को बार-बार ठुकराया जा रहा है।

वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने अपने लिखित उत्तर में स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार की नीति के अनुसार विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए किसी भी राज्य को अतिरिक्त लाभ या सहायता देने की योजना नहीं है। उन्होंने कहा कि 2012 में आईएमजी द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की कोई आवश्यकता नहीं है और वर्तमान स्थिति में ऐसा कोई भी निर्णय लेना सही नहीं होगा। आईएमजी की 2012 की रिपोर्ट में बिहार की विकास आवश्यकताओं और उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का गहन विश्लेषण किया गया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि बिहार की पिछड़ी स्थिति को सुधारने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करने की जरूरत है, और विशेष दर्जा देने से इस मुद्दे का समाधान नहीं होगा। रिपोर्ट में यह सुझाव भी दिया गया था कि विशेष राज्य का दर्जा देने से राज्य के विकास में एक स्थायी समाधान नहीं निकलेगा, बल्कि यह सिर्फ एक अस्थायी उपाय साबित हो सकता है।

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बिहार के विभिन्न हिस्सों में इस निर्णय को लेकर निराशा और आक्रोश का माहौल है। कई लोग मानते हैं कि बिहार की विशेष स्थिति को देखते हुए उसे विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी कहा कि विशेष दर्जा मिलने से राज्य को आर्थिक सहायता और अन्य संसाधन प्राप्त होते, जिससे राज्य की विकास दर में तेजी आ सकती थी। राज्य सरकार और स्थानीय नेताओं ने इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार को बिहार की स्थिति को गंभीरता से लेना चाहिए और राज्य को विशेष दर्जा देने के मुद्दे पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर बिहार को विशेष दर्जा नहीं दिया जाता है, तो राज्य सरकार को और अधिक संघर्ष करना पड़ेगा और बिहार के विकास के लिए अन्य उपायों की तलाश करनी होगी।

 

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“कांवड़ यात्रा के दौरान नेम प्लेट आदेश पर विवाद, योगी सरकार की आलोचना और एनडीए में मतभेद” https://chaupalkhabar.com/2024/07/20/during-the-kanwar-yatra/ https://chaupalkhabar.com/2024/07/20/during-the-kanwar-yatra/#respond Sat, 20 Jul 2024 11:44:04 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3974 उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों और ढाबा मालिकों को नेम प्लेट लगाने के आदेश के बाद योगी सरकार की आलोचना हो रही है। इस मुद्दे पर एनडीए के भीतर भी विभिन्न मत हैं। जहां कुछ दलों ने इसका विरोध किया है, वहीं कुछ दलों ने इसका समर्थन किया है। उत्तर प्रदेश की …

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उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों और ढाबा मालिकों को नेम प्लेट लगाने के आदेश के बाद योगी सरकार की आलोचना हो रही है। इस मुद्दे पर एनडीए के भीतर भी विभिन्न मत हैं। जहां कुछ दलों ने इसका विरोध किया है, वहीं कुछ दलों ने इसका समर्थन किया है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा वाले मार्ग पर दुकानदारों और ढाबा मालिकों को अपनी दुकानों के आगे नेम प्लेट लगाने का आदेश दिया है। इस फैसले के बाद इसकी खूब आलोचना हो रही है। विपक्षी दलों ने इस फैसले को समाज को बांटने वाला बताते हुए इसका विरोध किया है। एनडीए के सहयोगी दलों में भी इसको लेकर अलग-अलग राय है। एनडीए में शामिल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (एलजेपी (आर)) ने इस फैसले का विरोध किया है। वहीं, सहयोगी पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) ने इसका समर्थन किया है और कहा है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने शनिवार को कहा कि उन्हें उत्तर प्रदेश में ‘कांवड़ यात्रा’ मार्ग पर फल विक्रेताओं को उनके स्टॉलों पर अपना नाम लिखने के लिए कहे जाने में कुछ भी गलत नहीं दिखता है।

मांझी द्वारा इस फैसले से जुड़े विवाद को लेकर पूछे गए सवालो के उत्तर में यूपी सरकार का समर्थन किया गया । इसके बाद पार्टी प्रमुख मांझी दवारा कहा गया की “मैं अन्य दलों के लिए नहीं बोल सकता, परन्तु मुझे इस तरह के आदेश में कुछ भी गलत नहीं दिखाई नहीं दिया , यदि व्यवसायों में शामिल लोगों को अपना नाम और पता प्रमुखता से उजागर करने के लिए कहा जाता है तो इसमें नुकसान ही क्या है?”जिसके बाद उन्होंने आगे कहा, की “असल में, नेम प्लेट से खरीदारों के लिए पसंदीदा स्टॉल देखना आसान हो जाएगा। और इस मामले को धर्म के चश्मे से देखना कतई गलत है।

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जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता के सी त्यागी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे का जिक्र करते हुए यूपी पुलिस के आदेश की आलोचना की थी और कहा था कि बिहार, झारखंड और कांवड़ यात्रा से जुड़े अन्य राज्यों में इसी तरह के निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। त्यागी ने कहा कि यूपी सरकार का यह कदम समाज में विभाजन पैदा कर सकता है और लोगों के बीच संदेह और अविश्वास को बढ़ा सकता है। इस फैसले के खिलाफ उठ रही आवाजों के बावजूद, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा ने अपने समर्थन को दोहराया है। मांझी का मानना है कि नेम प्लेट्स का उपयोग व्यापार में पारदर्शिता लाने और ग्राहकों के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस आदेश को धर्म के दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए।

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विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमला बोला है। उनका कहना है कि इस तरह के आदेश से समाज में धार्मिक विभाजन बढ़ सकता है। कुछ दलों का यह भी कहना है कि इस फैसले का उद्देश्य विशेष समुदाय को निशाना बनाना है। विपक्षी नेताओं ने यूपी सरकार से इस आदेश को वापस लेने की मांग की है और इसे समाज में सामंजस्य बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया है। हालांकि, योगी सरकार ने अपने आदेश का बचाव किया है। सरकार का कहना है कि यह आदेश केवल व्यापार में पारदर्शिता लाने और ग्राहकों के अनुभव को सुधारने के लिए है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस आदेश का उद्देश्य किसी भी समुदाय को निशाना बनाना नहीं है।

इस मुद्दे पर विभिन्न दलों के अलग-अलग मत होने के बावजूद, यूपी सरकार ने अपने फैसले को लागू करने की प्रतिबद्धता जताई है। सरकार का कहना है कि नेम प्लेट्स लगाने से व्यापार में पारदर्शिता आएगी और ग्राहक आसानी से अपने पसंदीदा दुकानों और स्टॉल्स को पहचान सकेंगे।

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विपक्ष की जातिगत जनगणना की मांग पर चंद्रबाबू नायडू का पलटवार, पीएम मोदी के साथ मिलकर रचा मास्टरप्लान. https://chaupalkhabar.com/2024/07/06/caste-census-of-opposition/ https://chaupalkhabar.com/2024/07/06/caste-census-of-opposition/#respond Sat, 06 Jul 2024 06:54:24 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3856 आई.एन.डी.आई. गठबंधन जहां जाति जनगणना (Caste Census) पर जोर दे रही है, वहीं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) ने एक अलग प्रकार की जनगणना की वकालत की है। टीडीपी चीफ ने स्किल सेंसस यानी कौशल जनगणना की शुरुआत करने का फैसला किया है। आंध्र प्रदेश में चंद्राबाबू नायडू सरकार जल्द ही स्किल …

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आई.एन.डी.आई. गठबंधन जहां जाति जनगणना (Caste Census) पर जोर दे रही है, वहीं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) ने एक अलग प्रकार की जनगणना की वकालत की है। टीडीपी चीफ ने स्किल सेंसस यानी कौशल जनगणना की शुरुआत करने का फैसला किया है। आंध्र प्रदेश में चंद्राबाबू नायडू सरकार जल्द ही स्किल सर्वे करने जा रही है और उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सुझाव भी मांगा है। चंद्राबाबू नायडू का मानना है कि देश में लोगों के पास मौजूद विभिन्न कौशल का डाटा इकट्ठा करना आवश्यक है। उन्होंने कहा है कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के विस्तार से देशवासियों की जिंदगी में सुधार आएगा और आर्थिक विकास को गति मिलेगी। मोदी सरकार 3.0 में कौशल और रोजगार पर विशेष जोर दिया जा रहा है, और इसी के अंतर्गत आंध्र प्रदेश का स्किल सर्वे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद टीडीपी चीफ ने कहा था कि आंध्र प्रदेश का विकास उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने केंद्र से कोई मंत्री पद की मांग नहीं की है। वाजपेयी के समय में भी टीडीपी ने मंत्रीपद की मांग नहीं की थी। चंद्राबाबू नायडू ने कहा कि जो भी पेशकश की गई थी, उसे स्वीकार कर लिया गया था। उन्होंने वाजपेयी के दौर में लोकसभा अध्यक्ष का पद स्वीकार करने को याद करते हुए कहा कि उन्होंने केवल गठबंधन के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए ऐसा किया था। चंद्राबाबू नायडू का कौशल जनगणना का विचार इस बात को रेखांकित करता है कि देश में कौशल विकास और रोजगार सृजन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उनका मानना है कि अगर हर नागरिक के पास मौजूद कौशल का सही उपयोग हो, तो यह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर लाभकारी होगा बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।

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आंध्र प्रदेश की सरकार ने इस कौशल जनगणना के लिए व्यापक तैयारी की है और इसे लागू करने के लिए आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था भी की जा रही है। चंद्राबाबू नायडू ने कहा कि स्किल सर्वे के माध्यम से राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत के बाद, टीडीपी चीफ ने बताया कि आंध्र प्रदेश की जनता की भलाई और राज्य का विकास ही उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल को बढ़ावा देकर राज्य में रोजगार के नए अवसर पैदा किए जा सकते हैं।

 

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बिहारवासियों से अनुरोध है…’, तेजस्वी ने अचानक की भावुक अपील; NDA नेता अब क्या प्रतिक्रिया देंगे? https://chaupalkhabar.com/2024/06/17/request-to-the-people-of-bihar/ https://chaupalkhabar.com/2024/06/17/request-to-the-people-of-bihar/#respond Mon, 17 Jun 2024 06:06:50 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3599 बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव लगातार राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर नीतीश सरकार पर हमलावर हैं। उन्होंने कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए फिर बिहार सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। इसके साथ उन्होंने बिहार की जनता से एक भावुक अपील भी की है। तेजस्वी यादव ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में …

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बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव लगातार राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर नीतीश सरकार पर हमलावर हैं। उन्होंने कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए फिर बिहार सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। इसके साथ उन्होंने बिहार की जनता से एक भावुक अपील भी की है। तेजस्वी यादव ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि मधुबनी में निर्ममता एवं क्रूरता की पराकाष्ठा पार कर सरकारी अपराधियों ने शिक्षक डॉ. आलोक यादव की चाकू से गोद-गोदकर हत्या कर दी। उन्होंने कहा कि इस कुशासन के राज में छात्र-छात्राएं और शिक्षक भी सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह घटना सरकार की विफलता का स्पष्ट प्रमाण है, जहां अपराधी बेखौफ होकर वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।

तेजस्वी ने आगे लिखा कि सिवान में कोचिंग जा रहे एक छात्र की गोली मारकर हत्या कर दी गई, और औरंगाबाद में कोचिंग गई एक छात्रा का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी गई। अब मधुबनी में शिक्षक की हत्या ने राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। उन्होंने कहा कि इन घटनाओं ने बिहार के लोगों के दिलों में डर और असुरक्षा की भावना को गहरा कर दिया है। तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी से इन घटनाओं पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया या कार्रवाई की अपेक्षा करना व्यर्थ है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस दुशासन की सरकार के प्रवक्ता वही पुराने और रटे-रटाए बयान देंगे, जो जनता को संतुष्ट करने में असफल रहेंगे।

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तेजस्वी ने बिहारवासियों से आग्रह किया कि वे अपने जान-माल की सुरक्षा स्वयं करें। उन्होंने कहा कि इस निकम्मी सरकार के भरोसे रहने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि यह सरकार अपराधियों को रोकने और जनता की सुरक्षा करने में पूरी तरह से विफल रही है। उन्होंने लोगों से सतर्क रहने और आत्मरक्षा के उपाय अपनाने की अपील की। तेजस्वी यादव ने अपने पोस्ट में कहा कि बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के पास ना तो अपराध रोकने की इच्छा है और ना ही कोई ठोस रणनीति। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने पहले ही सख्त कदम उठाए होते, तो इन घटनाओं को रोका जा सकता था।

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उन्होंने कहा कि बिहार की जनता को अब यह सोचने की जरूरत है कि वह किस प्रकार की सरकार चाहती है – एक ऐसी सरकार जो केवल वादे करती है और अपराधियों को खुली छूट देती है, या एक ऐसी सरकार जो जनता की सुरक्षा और समृद्धि के लिए समर्पित है। तेजस्वी ने कहा कि समय आ गया है कि बिहार के लोग इस निकम्मी सरकार के खिलाफ आवाज उठाएं और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें। तेजस्वी यादव ने अंत में कहा कि वह हमेशा बिहार की जनता के साथ खड़े रहेंगे और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने जनता से एकजुट होकर इस कुशासन के खिलाफ लड़ने का आह्वान किया और विश्वास जताया कि बिहार की जनता अपनी सुरक्षा और सम्मान के लिए सही निर्णय लेगी।

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