K Kavita - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Thu, 05 Sep 2024 11:09:28 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg K Kavita - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, सीबीआई और बचाव पक्ष की दलीलें, कोर्ट ने सुरक्षित रखा फ़ैसला. https://chaupalkhabar.com/2024/09/05/arvind-kejriwals-bail-2/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/05/arvind-kejriwals-bail-2/#respond Thu, 05 Sep 2024 11:09:28 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4677 दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर 5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति घोटाले से जुड़े मामलों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने भ्रष्टाचार के आरोपों में आरोपी बनाया है। ईडी के मामले में केजरीवाल को पहले ही …

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर 5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति घोटाले से जुड़े मामलों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने भ्रष्टाचार के आरोपों में आरोपी बनाया है। ईडी के मामले में केजरीवाल को पहले ही जमानत मिल चुकी है, लेकिन आज सीबीआई मामले में उनकी जमानत याचिका पर बहस हो रही है। इस सुनवाई के दौरान केजरीवाल की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखा, जबकि सीबीआई की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने जिरह की।

एएसजी एसवी राजू ने शुरुआत में सवाल उठाया कि केजरीवाल ने ट्रायल कोर्ट को दरकिनार कर सीधे सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका क्यों दायर की। राजू ने तर्क दिया कि मामले में पहले मनीष सिसोदिया, के कविता और अन्य आरोपी ट्रायल कोर्ट से होते हुए हाईकोर्ट पहुंचे थे, फिर अरविंद केजरीवाल को भी उसी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए था। राजू ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि केजरीवाल कोई ‘विशेष’ व्यक्ति हैं, जिन्हें अलग तरह की कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि ईडी मामले में केजरीवाल को ट्रायल कोर्ट से ही जमानत मिली थी, इसलिए उन्हें सीबीआई मामले में भी पहले ट्रायल कोर्ट जाना चाहिए।

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इसके अलावा, एएसजी राजू ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था और ट्रायल कोर्ट में जाने का विकल्प दिया था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि जमानत याचिका दायर करते समय केजरीवाल ने चार्जशीट दाखिल होने का इंतजार नहीं किया था, जो कि कानूनी दृष्टिकोण से गलत है। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट ने अभी तक गुण-दोष पर विचार नहीं किया है और अगर सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलती है, तो इससे उच्च न्यायालय की प्रक्रिया कमजोर हो जाएगी। अरविंद केजरीवाल की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलीलों की शुरुआत करते हुए कहा कि यह शायद पहला मामला है, जिसमें किसी व्यक्ति को दो बार जमानत मिल चुकी है, फिर भी उसे रिहा नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि सीबीआई ने उनके मुवक्किल को दो साल तक गिरफ्तार नहीं किया और अब अचानक उनकी गिरफ्तारी की मांग की जा रही है।

सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि केजरीवाल का नाम एफआईआर में नहीं था और उन्हें अप्रैल 2023 में एक गवाह के रूप में पूछताछ के लिए बुलाया गया था। सिंघवी ने आगे कहा कि सीबीआई ने अभी तक केजरीवाल के खिलाफ कोई नया ठोस सबूत नहीं पेश किया है। केवल एक पुराने बयान के आधार पर उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की जा रही है। सिंघवी ने यह भी तर्क दिया कि केजरीवाल न तो फ्लाइट रिस्क (भागने का खतरा) हैं, और न ही वे सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि केजरीवाल एक संवैधानिक पद पर हैं, इसलिए उनके विदेश भागने का सवाल ही नहीं उठता।

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सिंघवी ने आगे कहा कि केजरीवाल को पहले से ही तीन बार जमानत मिल चुकी है, जिसमें ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश शामिल हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि अब केजरीवाल को फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे केवल देरी होगी और मामले की सुनवाई लंबी खिंच सकती है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस भुय्यां की बेंच ने सुनवाई के दौरान कई टिप्पणियाँ कीं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यदि हाईकोर्ट को इस मामले में पहले ही आदेश देना चाहिए था जब उन्होंने नोटिस जारी किया। वहीं जस्टिस भुय्यां ने कहा कि हाईकोर्ट ने फैसला लिखने में 7 दिन का समय लिया, जबकि उन्हें तुरंत निर्णय देना चाहिए था।

जब एएसजी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उच्च न्यायालय के मनोबल को कमजोर कर सकता है, तो जस्टिस भुय्यां ने इसे खारिज करते हुए कहा कि ऐसा नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि हाईकोर्ट के पास अभी भी मामला गुण-दोष पर विचार करने का अवसर है। अंततः, जिरह के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि मामले पर फैसला सुनाया जाएगा, लेकिन एएसजी एसवी राजू ने और समय की मांग की।

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सुप्रीम कोर्ट की ईडी को फटकार, मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में आरोपी के अधिकारों पर उठाए सवाल. https://chaupalkhabar.com/2024/09/04/supreme-court-ki-ed-ko-fat/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/04/supreme-court-ki-ed-ko-fat/#respond Wed, 04 Sep 2024 13:06:22 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4657 सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों के मामले में कड़ी आलोचना की। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने की, जहां ईडी द्वारा दस्तावेजों को आरोपियों को न देने के फैसले पर सवाल उठाए गए। न्यायमूर्ति ओका और न्यायमूर्ति …

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों के मामले में कड़ी आलोचना की। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने की, जहां ईडी द्वारा दस्तावेजों को आरोपियों को न देने के फैसले पर सवाल उठाए गए। न्यायमूर्ति ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने ईडी से पूछा कि क्या जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों को आरोपी से छिपाना उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा? इस मामले की सुनवाई के दौरान मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपियों को दस्तावेजों की आपूर्ति से संबंधित अपील पर विचार किया गया। अदालत ने पूछा कि यदि आरोपी को कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ रहा है, तो क्या उसे आवश्यक दस्तावेजों से वंचित करना न्यायसंगत होगा? न्यायमूर्ति संजय करोल ने सवाल उठाते हुए कहा कि “क्या आरोपी को सिर्फ तकनीकी आधार पर दस्तावेज़ों से वंचित किया जा सकता है?” न्यायमूर्ति ने आगे कहा, “सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता? न्याय का उद्देश्य न्याय करना है, न कि आरोपी को अंधेरे में रखना।”

इस मामले में ईडी की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू पेश हुए, जिन्होंने तर्क दिया कि यदि आरोपी को दस्तावेज़ों का पता होता है, तो वह उन्हें प्राप्त करने की मांग कर सकता है। लेकिन यदि आरोपी को दस्तावेजों के बारे में पता नहीं है, तो वह सिर्फ अनुमान के आधार पर दस्तावेजों की मांग नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, “अगर आरोपी को इन दस्तावेजों के अस्तित्व के बारे में जानकारी नहीं है, तो वह इनकी मांग नहीं कर सकता।” जस्टिस अमानुल्लाह ने इस तर्क को चुनौती देते हुए कहा कि समय के साथ कानूनों में परिवर्तन हो रहा है, और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय प्रणाली सख्त न हो जाए। “हम इतने कठोर कैसे हो सकते हैं कि एक व्यक्ति अभियोजन का सामना कर रहा हो, लेकिन हम यह कहें कि दस्तावेज़ सुरक्षित हैं? क्या यह न्याय होगा?” उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य न्याय करना है, और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी को उसके खिलाफ आरोपों से संबंधित सभी दस्तावेज़ मिलें।”

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इस मामले के संदर्भ में, कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक अन्य हाई-प्रोफाइल मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें कई प्रमुख राजनीतिक नेताओं को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किया गया है। इनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया, और बीआरएस नेता के कविता शामिल हैं। इन मामलों में पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) का उपयोग किया गया है, और इस कानून की वैधता पर बार-बार सवाल उठाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में जमानत एक नियम होनी चाहिए, और जेल एक अपवाद। कोर्ट ने पीएमएलए की धारा 45 का उल्लेख करते हुए कहा कि जमानत के लिए दोहरी शर्तें हैं – प्रथम दृष्टया यह संतोष होना चाहिए कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहते हुए वह कोई और अपराध नहीं करेगा।

हालांकि, इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने आपत्ति जताते हुए कहा कि आरोपी को दस्तावेज़ों तक पहुंच का अधिकार नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, “यदि ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं है और यह स्पष्ट रूप से दोषसिद्धि का मामला है, और आरोपी सिर्फ मुकदमे में देरी करने के लिए दस्तावेज़ों की मांग कर रहा है, तो यह अधिकार नहीं दिया जा सकता।” अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट का यह फैसला महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में आरोपी के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। साथ ही, यह फैसला पीएमएलए के तहत चल रही जांचों और मामलों के लिए भी मार्गदर्शन प्रदान करेगा।

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यह मामला विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के वर्षों में पीएमएलए के तहत कई हाई-प्रोफाइल विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी हुई है, जिससे यह कानून जांच के दायरे में आ गया है। इस संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में आरोपी के अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय हो सकता है।

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दिल्ली शराब घोटाला: ईडी-सीबीआई की कार्यशैली पर उठे सवाल, सुप्रीम कोर्ट से के कविता को मिली जमानत. https://chaupalkhabar.com/2024/08/27/delhi-liquor-scam-ed-c/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/27/delhi-liquor-scam-ed-c/#respond Tue, 27 Aug 2024 09:40:13 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4446 दिल्ली शराब घोटाले मामले में भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए के कविता को जमानत देने का फैसला किया। इस मामले में पहले ही दो बड़े नेता, संजय …

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दिल्ली शराब घोटाले मामले में भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए के कविता को जमानत देने का फैसला किया। इस मामले में पहले ही दो बड़े नेता, संजय सिंह और मनीष सिसोदिया, जमानत पा चुके हैं, और अब के कविता तीसरी बड़ी नेता बन गई हैं जिन्हें जमानत मिली है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जमानत के आदेश में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं।

अदालत ने एजेंसियों के चयनात्मक रुख और कुछ आरोपियों को गवाह बनाने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि अभियोजन निष्पक्ष होना चाहिए, और यह नहीं हो सकता कि जिसे आप चाहें उसे गवाह बना दें और जिसे चाहें आरोपी बना दें। उन्होंने कहा, “अगर एक व्यक्ति ने खुद को दोषी बताया है, तो उसे गवाह बनाना न्यायसंगत नहीं है। यह स्थिति दर्शाती है कि कहीं न कहीं निष्पक्षता के साथ खिलवाड़ हो रहा है।”

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जस्टिस गवई ने सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया एसवी राजू को चेतावनी भी दी कि यदि वे मेरिट के आधार पर जमानत का विरोध करते रहे, तो अदालत अपनी टिप्पणियों को आदेश में शामिल कर सकती है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन को निष्पक्ष और संतुलित रहना चाहिए, और कानून के दायरे में काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई और ईडी की जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट व अन्य दस्तावेज अदालत में पेश किए जा चुके हैं। इसलिए, आरोपी से अब और हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है। के कविता को पांच महीने से जेल में रखा गया है, जबकि जांच एजेंसियों के पास सभी सबूत पहले से मौजूद हैं। अदालत ने यह भी माना कि इस मामले का ट्रायल जल्द पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि इसमें 493 गवाहों और 50,000 पन्नों के दस्तावेजों की जांच की जानी है।

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अदालत ने मनीष सिसोदिया के मामले में दी गई अपनी टिप्पणी को दोहराते हुए कहा कि “अंडर ट्रायल” की अवधि को सजा में नहीं बदला जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि पीएमएलए (PMLA) एक्ट की धारा 45(1) के तहत महिलाओं को जमानत के लिए विशेष विचार दिया गया है, और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की उस ऑब्जर्वेशन की भी आलोचना की जिसमें कहा गया था कि पीएमएलए एक्ट महिलाओं को विशेष दर्जा नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत ठहराते हुए कहा कि महिलाओं को जमानत देने के लिए कानून में विशेष प्रावधान मौजूद है, और इस प्रावधान को ध्यान में रखकर ही फैसला लिया जाना चाहिए।

 

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