KC tyagi - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Sat, 07 Sep 2024 07:27:50 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg KC tyagi - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 जद(यू) में अंदरूनी कलह, भाजपा के साथ गठबंधन और विचारधारा के बीच फंसी नीतीश कुमार की पार्टी. https://chaupalkhabar.com/2024/09/07/internal-strife-in-jdu-bjp/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/07/internal-strife-in-jdu-bjp/#respond Sat, 07 Sep 2024 07:27:50 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4721 जनता दल (यूनाइटेड) [जद(यू)] के भीतर इस समय सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी में दो धड़ों के बीच सत्ता संघर्ष उभर कर सामने आया है। एक ओर वे नेता हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन को बनाए रखने के पक्षधर हैं, जबकि दूसरी …

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जनता दल (यूनाइटेड) [जद(यू)] के भीतर इस समय सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी में दो धड़ों के बीच सत्ता संघर्ष उभर कर सामने आया है। एक ओर वे नेता हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन को बनाए रखने के पक्षधर हैं, जबकि दूसरी ओर वे नेता हैं जो पार्टी की मूल विचारधारा पर समझौता करने के खिलाफ हैं। यह विवाद तब खुलकर सामने आया जब जद(यू) के वरिष्ठ नेता और मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। केसी त्यागी ने मोदी सरकार के कुछ फैसलों, जैसे सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री, समान नागरिक संहिता, और सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण पर दिए गए फैसले का खुलकर विरोध किया। इसके अलावा, इजरायल और फिलिस्तीन पर भारत की विदेश नीति को लेकर भी उन्होंने तीखे सवाल उठाए। हालांकि, त्यागी के ये बयान जद(यू) की विचारधारा के अनुरूप ही थे, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि भाजपा के साथ पार्टी के समीकरण को बिगड़ने से रोकने के लिए उन पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया।

भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर जद(यू) के भीतर विवाद और भी गहरा हो गया है, खासकर तब जब पार्टी ने संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक का समर्थन किया। वक्फ संपत्ति पर कानून में संशोधन को लेकर पार्टी के अंदर मतभेद उभरकर सामने आए। कुछ नेताओं ने इस विधेयक का विरोध यह कहकर किया कि यह जद(यू) की मूल विचारधारा के खिलाफ है। पार्टी के वरिष्ठ नेता ललन सिंह ने संसद में विधेयक का समर्थन किया, जबकि जद(यू) के अन्य नेता, जैसे विजय कुमार चौधरी, इससे असहमत थे। चौधरी ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय की चिंताओं को दूर किए बिना इस विधेयक को पारित नहीं किया जाना चाहिए। नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले विजय कुमार चौधरी के इस बयान को पार्टी की आधिकारिक स्थिति के रूप में देखा गया। दूसरी ओर, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ज़मा खान ने मुस्लिम बच्चों के लिए नए स्कूल और वक्फ भूमि पर 21 मदरसों के निर्माण की योजना की घोषणा करके ललन सिंह के बयान का असर कम करने की कोशिश की।

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जद(यू) के अंदर यह सत्ता संघर्ष इस बात का संकेत है कि पार्टी के नेता अगले साल के विधानसभा चुनाव और नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत को ध्यान में रखते हुए अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी के एक नेता ने बताया कि एक धड़ा भाजपा के साथ गठबंधन बनाए रखने के पक्ष में है, जबकि दूसरा धड़ा मानता है कि भाजपा की मजबूरी है, इसलिए जद(यू) को अपनी पहचान और विचारधारा पर कायम रहना चाहिए। इस विभाजन के बीच पार्टी के कुछ नेता अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भाजपा के साथ मधुर संबंध बनाए रखना चाहते हैं। हालांकि, नीतीश कुमार एक अनुभवी और चतुर राजनेता हैं। वे पहले भी पार्टी के भीतर असहमति रखने वाले नेताओं, जैसे जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव, को दरकिनार कर चुके हैं। पिछले साल ललन सिंह ने नीतीश कुमार के साथ मतभेदों की अफवाहों के चलते पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। हालांकि, पार्टी ने इन अफवाहों का खंडन किया था। नीतीश कुमार ने अपने करीबी सहयोगी संजय झा को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है, ताकि विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को मजबूत किया जा सके।

विधानसभा चुनाव से पहले जद(यू) के सामने चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। वक्फ विधेयक पर मतभेद, त्यागी का इस्तीफा, और पार्टी के भीतर के असंतोष ने जद(यू) को एक कठिन स्थिति में डाल दिया है। पार्टी के अंदर की एक और घटना, जिसने असंतोष को और बढ़ा दिया, वह थी 22 अगस्त को राज्य कार्यकारिणी सदस्यों की सूची का अचानक बदलाव। पहली सूची में 251 सदस्यों के नाम थे, लेकिन कुछ ही घंटों में इसे वापस लेकर नई सूची जारी की गई, जिसमें सदस्यों की संख्या घटाकर 115 कर दी गई। इस बदलाव ने पार्टी के अंदर और भी असंतोष पैदा कर दिया, क्योंकि ललन सिंह और अशोक चौधरी के कई समर्थकों को नई सूची से हटा दिया गया था। पार्टी ने इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि यह बदलाव उन नेताओं को हटाने के लिए किया गया, जो लोकसभा चुनावों के दौरान सक्रिय नहीं थे या जिनका प्रदर्शन असंतोषजनक था। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, यह कदम सत्ता संतुलन बनाने के लिए उठाया गया था। अशोक चौधरी ने जहानाबाद संसदीय सीट पर हार के लिए भूमिहारों को जिम्मेदार ठहराते हुए विवाद खड़ा कर दिया। उनका बयान जद(यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार को पसंद नहीं आया, जिन्होंने उनकी आलोचना की और कहा कि नीतीश कुमार कभी जाति आधारित राजनीति नहीं करते हैं।

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बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है। वे कुर्मी-कुशवाहा और अत्यंत पिछड़ी जातियों के गठबंधन के कारण राज्य की राजनीति में एक मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। हालांकि, पार्टी के अंदर चल रहे इस सत्ता संघर्ष को देखते हुए, नीतीश कुमार को जल्द से जल्द पार्टी के भीतर की दरारों को दूर करना होगा। नीतीश कुमार के नेतृत्व पर चर्चा करते हुए, पूर्व भाजपा उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने एक बार कहा था, “नीतीश कुमार हमेशा अपने मौजूदा साथी को मात देने के लिए दो खिड़कियां खुली रखते हैं।” इस बात को ध्यान में रखते हुए, विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार इस समय की चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी तरह सक्षम हैं और उन्होंने पहले भी ऐसे कई राजनीतिक संकटों का सामना किया है।

पार्टी के सांसद रामप्रीत मंडल ने कहा, “त्यागी ने अवांछित रुख अपनाया, लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की संवेदनशीलता को देखते हुए पार्टी में आखिरकार नीतीश जी के विचार ही चलेंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे नेता क्या सोचते हैं।”

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