Madras High Court - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Fri, 18 Oct 2024 10:13:17 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg Madras High Court - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ केस बंद किया, बंधक बनाने का आरोप झूठा पाया. https://chaupalkhabar.com/2024/10/18/supreme-court-ne-isha-foun/ https://chaupalkhabar.com/2024/10/18/supreme-court-ne-isha-foun/#respond Fri, 18 Oct 2024 10:13:17 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5266 सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दो महिलाओं को बंधक बनाए जाने के मामले में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम में जबरन बंधक बनाकर रखा …

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सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दो महिलाओं को बंधक बनाए जाने के मामले में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम में जबरन बंधक बनाकर रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि दोनों महिलाएं बालिग हैं और अपनी स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं। इस मामले में कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण पाया कि दोनों बेटियों, गीता और लता, की उम्र क्रमशः 42 और 39 वर्ष है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वे बिना किसी बाहरी दबाव के आश्रम में रह रही हैं। गीता और लता ने अपनी ओर से दिए गए बयान में यह स्पष्ट किया कि वे स्वेच्छा से ईशा फाउंडेशन के साथ जुड़ी हैं और वहां रहना उनका व्यक्तिगत निर्णय है। इस बयान के बाद, कोर्ट ने पिता के आरोपों को निराधार मानते हुए मामले को बंद कर दिया।

एस कामराज ने आरोप लगाया था कि ईशा फाउंडेशन ने उनकी दोनों बेटियों को मानसिक रूप से प्रभावित (ब्रेनवॉश) किया है, जिसके चलते वे अपनी मर्जी से परिवार से दूर रह रही हैं। उन्होंने 30 सितंबर को मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस मामले की जांच की मांग की थी। कामराज का कहना था कि उनकी बेटियों को जबरन आश्रम में रोका गया है और उन्हें परिवार से संपर्क करने से भी रोका जा रहा है। मद्रास उच्च न्यायालय ने कामराज के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए तमिलनाडु पुलिस को ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी आपराधिक मामलों की जांच करने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद, 150 पुलिसकर्मियों की एक टीम ने ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम में जांच की। पुलिस की इस जांच का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि आश्रम में कोई गैरकानूनी गतिविधि तो नहीं हो रही है और वहां रहने वाले लोग अपनी मर्जी से रह रहे हैं या नहीं।

ईशा फाउंडेशन ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और दावा किया कि गीता और लता आश्रम में अपनी मर्जी से रह रही हैं। फाउंडेशन ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें कहा गया कि पुलिस जांच अनावश्यक और बिना किसी ठोस आधार के की जा रही है। तीन अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जांच पर रोक लगा दी थी। इसके बाद, सुनवाई के दौरान दोनों बहनों ने एक बार फिर से यह कहा कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और किसी भी प्रकार का दबाव उन पर नहीं है। उन्होंने अपने पिता पर आरोप लगाते हुए कहा कि पिछले आठ सालों से वे उन्हें परेशान कर रहे हैं।

सभी तथ्यों और बयानों को सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए केस को बंद कर दिया कि दोनों महिलाएं बालिग हैं और अपनी मर्जी से जहां रहना चाहें, रह सकती हैं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस मामले में बंधक बनाने या किसी प्रकार के जबरदस्ती का कोई प्रमाण नहीं है। इस निर्णय से ईशा फाउंडेशन को बड़ी राहत मिली है, और यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों महिलाएं बिना किसी दबाव के अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही थीं।

By Neelam Singh.

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला,बच्चों की अश्लील फिल्म देखना और डाउनलोड करना अपराध https://chaupalkhabar.com/2024/09/23/supreme-courts-big-face/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/23/supreme-courts-big-face/#respond Mon, 23 Sep 2024 06:30:37 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=5059 सुप्रीम कोर्ट ने आज बच्चों की अश्लील सामग्री से जुड़े मामलों पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। शीर्ष अदालत ने साफ किया कि बच्चों की अश्लील फिल्में देखना और उन्हें डाउनलोड करना दोनों ही गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं। कोर्ट ने इस तरह के अपराधों को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो …

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सुप्रीम कोर्ट ने आज बच्चों की अश्लील सामग्री से जुड़े मामलों पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। शीर्ष अदालत ने साफ किया कि बच्चों की अश्लील फिल्में देखना और उन्हें डाउनलोड करना दोनों ही गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं। कोर्ट ने इस तरह के अपराधों को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो एक्ट) और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी एक्ट) के तहत दंडनीय माना है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले को पलटते हुए स्पष्ट निर्देश दिए हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने पहले कहा था कि बच्चों की अश्लील सामग्री को केवल देखना या डाउनलोड करना पोक्सो एक्ट और आईटी एक्ट के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि बच्चों से जुड़ी किसी भी अश्लील सामग्री को देखना या डाउनलोड करना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह कानून के तहत भी अपराध है।

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मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि बच्चों की अश्लील फिल्म देखना और डाउनलोड करना दोनों गंभीर अपराध हैं और इनके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर कुछ स्पष्ट दिशा-निर्देश भी जारी किए, ताकि इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाई जा सके और दोषियों को उचित दंड मिल सके। इस फैसले के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पोक्सो एक्ट और आईटी एक्ट के तहत बच्चों की अश्लील सामग्री से जुड़ी किसी भी गतिविधि को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में समाज की सुरक्षा और बच्चों के अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए।

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सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला उस याचिका के जवाब में दिया, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री के मामलों में कानून को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से बच्चों की सुरक्षा और अश्लील सामग्री से जुड़े मामलों में एक कड़ा संदेश गया है, जिससे समाज में जागरूकता और जिम्मेदारी का भाव विकसित होगा।

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चेन्नई में पदयात्राओं पर कड़े होंगे नियम! मद्रास हाई कोर्ट ने अधिकारियों को दिए ये आदेश https://chaupalkhabar.com/2024/06/15/on-hikes-in-chennai/ https://chaupalkhabar.com/2024/06/15/on-hikes-in-chennai/#respond Sat, 15 Jun 2024 08:55:31 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3593 चेन्नई में पदयात्राओं के नियमों को सख्त बनाने के प्रयास में मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे भक्तों द्वारा की जाने वाली पदयात्राओं को विनियमित करने की मांग वाली याचिका पर विचार करें। इस याचिका को तिरुचेंदूर के निवासी रामकुमार आदिथन ने दायर किया है। याचिकाकर्ता ने …

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चेन्नई में पदयात्राओं के नियमों को सख्त बनाने के प्रयास में मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे भक्तों द्वारा की जाने वाली पदयात्राओं को विनियमित करने की मांग वाली याचिका पर विचार करें। इस याचिका को तिरुचेंदूर के निवासी रामकुमार आदिथन ने दायर किया है। याचिकाकर्ता ने अपील की है कि तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं। रामकुमार आदिथन ने अपनी याचिका में कहा है कि तीर्थयात्रियों द्वारा विभिन्न मंदिरों और धार्मिक स्थलों की ओर पदयात्रा के दौरान अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं। विशेष रूप से, गर्मी से बचने के लिए भक्त शाम और रात के समय पैदल चलते हैं, जिससे वे तेज रफ्तार वाहनों की चपेट में आ जाते हैं। इस कारण गंभीर चोटें और कई बार मौतें भी हो जाती हैं।

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याचिकाकर्ता ने दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कुछ सिफारिशें प्रस्तुत की हैं। उन्होंने सड़कों के दाईं ओर गर्मी प्रतिरोधी पेवर ब्लॉक फुटपाथ लगाने का सुझाव दिया है, जिससे तीर्थयात्रियों को विपरीत दिशा से आने वाले वाहनों को देखने में मदद मिलेगी। यह व्यवस्था विशेष रूप से रात के समय पदयात्रा करने वाले भक्तों के लिए लाभकारी हो सकती है इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने तीर्थयात्रियों को अपनी सुरक्षा बढ़ाने के लिए फ्लोरोसेंट स्टिकर लगाने का सुझाव दिया है। ये स्टिकर भक्तों के सामान पर लगाए जा सकते हैं ताकि उनकी दृश्यता बढ़ सके और दुर्घटनाओं की संभावना कम हो। साथ ही, उन्होंने भक्तों को कलाई और सिर पर फ्लोरोसेंट बैंड पहनने की सलाह भी दी है। यह उपाय भी दृश्यता में वृद्धि और दुर्घटनाओं की रोकथाम में सहायक हो सकता है।

रामकुमार आदिथन की याचिका पर न्यायमूर्ति सुरेश कुमार और न्यायमूर्ति अरुलमुरुगन की पीठ ने विचार किया। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे याचिका में प्रस्तुत मुद्दों पर ध्यान दें और आवश्यक कदम उठाएं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि तीर्थयात्राओं के दौरान सुरक्षा मानकों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि भक्त बिना किसी भय के अपनी धार्मिक यात्रा पूरी कर सकें। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना प्रशासन का कर्तव्य है। अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पदयात्रा के रास्ते सुरक्षित हों और आवश्यक सुरक्षा उपाय लागू किए जाएं। याचिका में प्रस्तुत सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए प्रशासन को उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।

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इस प्रकार, चेन्नई में पदयात्राओं को सुरक्षित और सुगम बनाने के लिए मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने प्रशासन को ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत सिफारिशें महत्वपूर्ण हैं और उन्हें लागू करके तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। अदालत के इस निर्णय से पदयात्राओं के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिल सकती है और भक्त बिना किसी डर के अपनी धार्मिक यात्रा कर सकते हैं।

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PFI के 8 सदस्यों की जमानत रद्, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा मद्रास हाईकोर्ट का फैसला कहा आतंकवाद के आरोपियों को सिर्फ डेढ़ साल की सजा https://chaupalkhabar.com/2024/05/22/bail-of-8-members-of-pfi-cancelled/ https://chaupalkhabar.com/2024/05/22/bail-of-8-members-of-pfi-cancelled/#respond Wed, 22 May 2024 07:28:25 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=3362 सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के आठ आरोपियों की जमानत रद्द कर दी है। न्यायमूर्ति बेला माधुर्य त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की खंडपीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यह आदेश जारी किया। इस फैसले में कहा गया है कि अपराध की गंभीरता और इस तथ्य को …

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के आठ आरोपियों की जमानत रद्द कर दी है। न्यायमूर्ति बेला माधुर्य त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की खंडपीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यह आदेश जारी किया। इस फैसले में कहा गया है कि अपराध की गंभीरता और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि इन आरोपियों ने अधिकतम सजा के तौर पर केवल 1.5 वर्ष जेल में बिताए हैं, उनकी जमानत रद्द की जाती है। पीएफआई पर केंद्र सरकार ने देश में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश रचने के आरोप में प्रतिबंध लगाया है। सरकार का दावा है कि यह संगठन आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त है और देश की सुरक्षा के लिए खतरा है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार की इस दलील के समर्थन में आया है।

पिछले साल अक्टूबर में मद्रास हाईकोर्ट ने इन आठों आरोपियों को जमानत दी थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इन आरोपियों के खिलाफ आतंकवादी गिरोह से जुड़े होने या आतंकी सामग्री की मौजूदगी के पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं। जस्टिस एसएस सुंदर और जस्टिस एसएस सुंदर की खंडपीठ ने कहा था कि अभियोजन पक्ष इन आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश नहीं कर सका, जिसके चलते इन्हें जमानत दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि मद्रास हाईकोर्ट ने जमानत देने में कानून की गंभीरता और अपराध की प्रकृति को सही ढंग से नहीं आंका। उन्होंने कहा कि इन आरोपियों ने देश की सुरक्षा के खिलाफ साजिश रची है और उन्हें जमानत पर रिहा करना न्याय के हित में नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को स्वीकारते हुए कहा कि अपराध की गंभीरता और देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि ऐसे आरोपियों को जमानत न दी जाए। कोर्ट ने कहा कि इन आरोपियों ने जेल में केवल 1.5 वर्ष बिताए हैं, जो कि उनके अपराध के मुकाबले काफी कम है। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया और आठों आरोपियों की जमानत रद्द कर दी। इस फैसले के बाद पीएफआई और उसके समर्थकों के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है। सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम बताया है। सरकार का कहना है कि पीएफआई जैसे संगठन देश में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं और इन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें अदालत ने आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोपियों की जमानत रद्द कर दी। यह फैसला देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। सरकार ने इस फैसले के बाद सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहने और ऐसे संगठनों पर निगरानी रखने के निर्देश दिए हैं। पीएफआई के खिलाफ यह कार्रवाई सरकार के उस व्यापक अभियान का हिस्सा है, जिसके तहत आतंकवादी गतिविधियों में शामिल संगठनों और व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार का कहना है कि देश में आतंकवादी गतिविधियों को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसे संगठनों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पीएफआई के आठ आरोपियों के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्होंने मद्रास हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद राहत की सांस ली थी। अब उन्हें फिर से जेल जाना पड़ेगा और अपने अपराधों के लिए कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ेगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप गंभीर होते हैं और इन मामलों में जमानत देने से पहले अदालतों को अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूरी है ताकि देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था को बनाए रखा जा सके।

सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि यह फैसला देश की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि पीएफआई जैसे संगठन देश में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं और इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें अदालत ने आतंकवादी गतिविधियों के आरोपियों की जमानत रद्द कर दी है। यह फैसला देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के संदर्भ में महत्वपूर्ण है और इसे आने वाले समय में अन्य मामलों में भी एक मिसाल के रूप में देखा जाएगा।

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