Modi 3.0 - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Thu, 19 Sep 2024 12:55:07 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg Modi 3.0 - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर केजरीवाल और आप का विरोध, संजय सिंह ने भाजपा पर हमला बोला https://chaupalkhabar.com/2024/09/19/one-nation-one-election-at-kejar/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/19/one-nation-one-election-at-kejar/#respond Thu, 19 Sep 2024 12:55:07 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4995 केंद्र की मोदी सरकार ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद देश में इस मुद्दे पर चर्चा और विवाद तेज हो गए हैं। आम आदमी पार्टी (आप) ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो साझा किया है, जिसमें पार्टी …

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केंद्र की मोदी सरकार ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद देश में इस मुद्दे पर चर्चा और विवाद तेज हो गए हैं। आम आदमी पार्टी (आप) ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो साझा किया है, जिसमें पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के खिलाफ अपनी आपत्ति जताई है। अरविंद केजरीवाल ने वीडियो में कहा कि भाजपा ने हाल ही में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का नया जुमला पेश किया है और उन्होंने सवाल किया कि क्या इसकी वास्तव में आवश्यकता है? केजरीवाल ने तंज करते हुए कहा कि जब चुनाव होते हैं, तब नेता अपने वादों और आश्वासनों के साथ लोगों के दरवाजे पर आते हैं। वे हर चुनाव के समय जनता के सामने आकर मीठी बातें करते हैं और यह जनप्रतिनिधियों की एक जिम्मेदारी होती है।

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केजरीवाल ने यह भी कहा कि भाजपा के ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का मकसद केवल यह है कि नेताओं को लंबे समय तक जनता से दूर रहने का मौका मिले। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब सभी चुनाव एक साथ होंगे, तो नेता साढ़े चार साल तक ‘ऐश’ करेंगे और उसके बाद जनता को कुछ चुनावी लाभ देकर वोट मांगेंगे। उन्होंने इस स्थिति की तुलना एक तानाशाही से की, जिसमें नेताओं को बिना किसी सवाल के सत्ता में बने रहने का मौका मिलेगा। अरविंद केजरीवाल ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के बजाय ‘वन नेशन-वन एजुकेशन’ और ‘वन नेशन-वन इलाज’ की मांग की। उन्होंने कहा कि सभी नागरिकों को समान शिक्षा और समान स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए। उन्होंने यह सुझाव दिया कि सभी स्कूल और अस्पताल समान गुणवत्ता के हों, ताकि गरीब और अमीर के बीच भेदभाव समाप्त हो सके और हर किसी को बेहतर शिक्षा और इलाज मिल सके।

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आप ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के विरोध में बार-बार आवाज उठाई है। अब पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। संजय सिंह ने भाजपा पर भ्रष्टाचार और कमीशन के आरोप लगाए और कहा कि भाजपा ‘वन नेशन, वन करप्शन’ और ‘वन नेशन, वन कमीशन’ की पार्टी है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और अब देश में ऐसी तानाशाही चाहते हैं जहां पांच साल तक कोई उनसे सवाल न कर सके। संजय सिंह ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर चुनाव नहीं होते, तो यूपी में किसानों के लिए ‘काले कानून’ वापस नहीं लिए जाते और पेट्रोल, डीजल, LPG सिलेंडर की कीमतें भी नहीं घटतीं। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव के दौरान नेताओं और पार्टियों की लाचारी जनता के हित में होती है, क्योंकि यह उन्हें काम करने और जनता की समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रेरित करता है।

इस प्रकार, ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को लेकर राजनीतिक बहस जारी है और विभिन्न दल अपनी-अपनी राय प्रस्तुत कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं का यह स्पष्ट कहना है कि इस प्रस्ताव के बजाय देश को शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार की दिशा में अधिक ध्यान देना चाहिए।

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वन नेशन, वन इलेक्शन, इलेक्शन’, भारतीय चुनाव प्रणाली में बड़ा बदलाव? https://chaupalkhabar.com/2024/09/16/one-nation-one-election-election/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/16/one-nation-one-election-election/#respond Mon, 16 Sep 2024 07:29:31 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4899 ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के प्रमुख एजेंडों में से एक है। इस विचार का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। सरकार तेजी से इस दिशा में काम कर रही है, और उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी …

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के प्रमुख एजेंडों में से एक है। इस विचार का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। सरकार तेजी से इस दिशा में काम कर रही है, और उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी सरकार अपने वर्तमान कार्यकाल (मोदी 3.0) में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक पेश कर सकती है। इसका मतलब यह है कि देशभर के सभी चुनाव एक ही समय पर होंगे, जो बार-बार चुनाव कराने की प्रक्रिया को सरल बना सकता है। मोदी सरकार वर्तमान में अपने सहयोगियों के समर्थन पर निर्भर है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ जेडीयू (JDU) और तेलुगू देशम पार्टी (TDP) जैसी प्रमुख पार्टियों का सहयोग भी है। ये पार्टियां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा हैं और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विचार पर सरकार का समर्थन कर रही हैं। बताया जा रहा है कि एनडीए में शामिल सभी दल इस अवधारणा के पक्ष में हैं और इसके कार्यान्वयन के लिए तैयार हैं।

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यह विचार केवल सरकार का एजेंडा ही नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बार-बार जनता और अन्य राजनीतिक दलों के समक्ष प्रस्तुत किया है। बीजेपी के 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का वादा किया गया था। इस साल स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में पीएम मोदी ने राजनीतिक दलों से इस दिशा में साथ आने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि “समय की मांग है कि हम एक राष्ट्र, एक चुनाव के संकल्प को हासिल करें।” इससे चुनावों की प्रक्रिया को सरल और समयबद्ध बनाने की उम्मीद जताई जा रही है।

सरकार ने इस मुद्दे पर अध्ययन और विचार के लिए एक समिति गठित की, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की। इस समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, समिति ने सुझाव दिया है कि पहले लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों का आयोजन किया जाना चाहिए, जिससे सभी स्तरों के चुनाव एक निश्चित समय सीमा में संपन्न हो सकें।

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मुख्य उद्देश्य चुनावों की आवृत्ति को कम करना और संसाधनों की बचत करना है। बार-बार चुनाव कराने से सरकार और जनता दोनों पर वित्तीय और प्रशासनिक बोझ पड़ता है। एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक लागत कम होगी और विकास योजनाओं के संचालन में भी रुकावटें कम होंगी। हालांकि, इस प्रस्ताव के खिलाफ भी कुछ तर्क दिए जा रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि इससे क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान हो सकता है और स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मुद्दों के नीचे दबा दिया जाएगा। इसके अलावा, यह भी तर्क दिया जा रहा है कि एक साथ चुनाव कराने से संसदीय और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है।

 

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