SupremeCourt - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Tue, 10 Sep 2024 13:01:21 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg SupremeCourt - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और तीन अन्य को 23 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में भेजा गया https://chaupalkhabar.com/2024/09/10/ex-principal-sandeep-gho/ https://chaupalkhabar.com/2024/09/10/ex-principal-sandeep-gho/#respond Tue, 10 Sep 2024 13:01:21 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4798 पश्चिम बंगाल के चर्चित आरजी कर मेडिकल कॉलेज से जुड़े मामले में पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और तीन अन्य आरोपियों को 23 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। सीबीआई द्वारा की गई 8 दिनों की हिरासत पूरी होने के बाद उन्हें अलीपुर जज कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक …

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पश्चिम बंगाल के चर्चित आरजी कर मेडिकल कॉलेज से जुड़े मामले में पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और तीन अन्य आरोपियों को 23 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। सीबीआई द्वारा की गई 8 दिनों की हिरासत पूरी होने के बाद उन्हें अलीपुर जज कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। यह मामला अब राजनीतिक और कानूनी तौर पर गहराता जा रहा है, और इस पर वकीलों के प्रदर्शन ने भी इसे और संवेदनशील बना दिया है। सीबीआई ने इस मामले में संदीप घोष और तीन अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया था और 8 दिन की हिरासत के बाद उन्हें अलीपुर जज कोर्ट में पेश किया गया। सीबीआई कोर्ट ने सभी आरोपियों को 23 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया। उल्लेखनीय है कि इस पूरे मामले को लेकर कॉलेज प्रशासन और समाज में काफी नाराजगी है, और लोगों की निगाहें इस मामले पर टिकी हैं।

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अलीपुर में जब संदीप घोष को कोर्ट में पेश किया गया, तो वकीलों का एक बड़ा समूह उनके खिलाफ नारे लगाते हुए नजर आया। प्रदर्शनकारी वकील घोष के लिए कड़ी सजा की मांग कर रहे थे। वे फांसी की सजा की मांग करते हुए नारे लगा रहे थे। वकीलों ने कहा, “संदीप घोष को फांसी होनी चाहिए। वह बलात्कारी है, हत्यारा है, चोर है। उसे समाज के सामने शर्मिंदा किया जाना चाहिए।” प्रदर्शनकारियों की नाराजगी और आक्रोश का स्तर इस बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने कोर्ट परिसर में घोष का चेहरा दिखाने और उन्हें सजा देने की मांग की। कई वकील और छात्र इस मामले को लेकर गंभीर चिंता जता रहे हैं, और कुछ ने मांग की है कि जांच और तेज की जानी चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके।

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आरजी कर मेडिकल कॉलेज का यह मामला बेहद संवेदनशील है और इसमें शामिल सभी आरोपियों पर गंभीर आरोप लगे हुए हैं। सीबीआई द्वारा की जा रही जांच में कई अहम खुलासे हुए हैं, जिनके आधार पर इस मामले ने तूल पकड़ लिया है। संदीप घोष पर लगे आरोपों ने पश्चिम बंगाल की राजनीति और समाज दोनों में हलचल मचा दी है।सीबीआई की जांच के दौरान अब तक कई अहम दस्तावेज और गवाह सामने आए हैं, जिससे मामले की जटिलता और बढ़ गई है। अब सभी की नजरें 23 सितंबर की अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जब यह देखा जाएगा कि न्यायालय क्या फैसला करता है।

मामले के संबंध में वकीलों और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग है कि दोषियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि इस तरह के मामलों में न्याय सुनिश्चित करना जरूरी है, ताकि समाज में कानून का डर बना रहे। इस मामले ने समाज में एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि शिक्षा संस्थानों में नैतिकता और कानून का पालन कितना जरूरी है। संदीप घोष और तीन अन्य आरोपियों को अब न्यायिक हिरासत में भेजा गया है, और आगे की जांच जारी रहेगी। 23 सितंबर की सुनवाई के दौरान मामले के और भी महत्वपूर्ण पहलुओं का खुलासा होने की संभावना है, जिससे यह पता चलेगा कि दोषियों को किस तरह की सजा दी जाएगी।

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दिल्ली शराब घोटाला: ईडी-सीबीआई की कार्यशैली पर उठे सवाल, सुप्रीम कोर्ट से के कविता को मिली जमानत. https://chaupalkhabar.com/2024/08/27/delhi-liquor-scam-ed-c/ https://chaupalkhabar.com/2024/08/27/delhi-liquor-scam-ed-c/#respond Tue, 27 Aug 2024 09:40:13 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=4446 दिल्ली शराब घोटाले मामले में भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए के कविता को जमानत देने का फैसला किया। इस मामले में पहले ही दो बड़े नेता, संजय …

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दिल्ली शराब घोटाले मामले में भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए के कविता को जमानत देने का फैसला किया। इस मामले में पहले ही दो बड़े नेता, संजय सिंह और मनीष सिसोदिया, जमानत पा चुके हैं, और अब के कविता तीसरी बड़ी नेता बन गई हैं जिन्हें जमानत मिली है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जमानत के आदेश में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं।

अदालत ने एजेंसियों के चयनात्मक रुख और कुछ आरोपियों को गवाह बनाने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि अभियोजन निष्पक्ष होना चाहिए, और यह नहीं हो सकता कि जिसे आप चाहें उसे गवाह बना दें और जिसे चाहें आरोपी बना दें। उन्होंने कहा, “अगर एक व्यक्ति ने खुद को दोषी बताया है, तो उसे गवाह बनाना न्यायसंगत नहीं है। यह स्थिति दर्शाती है कि कहीं न कहीं निष्पक्षता के साथ खिलवाड़ हो रहा है।”

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जस्टिस गवई ने सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया एसवी राजू को चेतावनी भी दी कि यदि वे मेरिट के आधार पर जमानत का विरोध करते रहे, तो अदालत अपनी टिप्पणियों को आदेश में शामिल कर सकती है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन को निष्पक्ष और संतुलित रहना चाहिए, और कानून के दायरे में काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई और ईडी की जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट व अन्य दस्तावेज अदालत में पेश किए जा चुके हैं। इसलिए, आरोपी से अब और हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है। के कविता को पांच महीने से जेल में रखा गया है, जबकि जांच एजेंसियों के पास सभी सबूत पहले से मौजूद हैं। अदालत ने यह भी माना कि इस मामले का ट्रायल जल्द पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि इसमें 493 गवाहों और 50,000 पन्नों के दस्तावेजों की जांच की जानी है।

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अदालत ने मनीष सिसोदिया के मामले में दी गई अपनी टिप्पणी को दोहराते हुए कहा कि “अंडर ट्रायल” की अवधि को सजा में नहीं बदला जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि पीएमएलए (PMLA) एक्ट की धारा 45(1) के तहत महिलाओं को जमानत के लिए विशेष विचार दिया गया है, और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की उस ऑब्जर्वेशन की भी आलोचना की जिसमें कहा गया था कि पीएमएलए एक्ट महिलाओं को विशेष दर्जा नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत ठहराते हुए कहा कि महिलाओं को जमानत देने के लिए कानून में विशेष प्रावधान मौजूद है, और इस प्रावधान को ध्यान में रखकर ही फैसला लिया जाना चाहिए।

 

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Chandigarh Mayor Election : 8 वोटों को रद्द करने और 12 वोटों को मान्य ठहराने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ में किया नए मेयर का ऐलान, कुलदीप कुमार होंगे चंडीगढ़ के नए मेयर…… https://chaupalkhabar.com/2024/02/20/after-canceling-8-votes-and-validating-12-votes-supreme-court-announced-the-new-mayor-of-chandigarh-kuldeep-kumar-will-be-the-new-mayor-of-chandigarh/ https://chaupalkhabar.com/2024/02/20/after-canceling-8-votes-and-validating-12-votes-supreme-court-announced-the-new-mayor-of-chandigarh-kuldeep-kumar-will-be-the-new-mayor-of-chandigarh/#respond Tue, 20 Feb 2024 12:16:24 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=2334 चंडीगढ़ में मेयर चुनाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट के अभूतपूर्व फैसले ने एक बार फिर राजनीतिक उथल-पुथल को चरम सीमा तक पहुंचा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 8 वोटों को रद्द करने और 12 वोटों को मान्य ठहराने के बाद चंडीगढ़ के नए मेयर का ऐलान किया। इस फैसले के साथ ही यह निश्चित हो …

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चंडीगढ़ में मेयर चुनाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट के अभूतपूर्व फैसले ने एक बार फिर राजनीतिक उथल-पुथल को चरम सीमा तक पहुंचा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 8 वोटों को रद्द करने और 12 वोटों को मान्य ठहराने के बाद चंडीगढ़ के नए मेयर का ऐलान किया। इस फैसले के साथ ही यह निश्चित हो गया कि चंडीगढ़ की राजनीतिक मंच पर अब और भी तीखी बहसें शुरू होंगी।

Supreme Court says no fresh elections. What happens next in Chandigarh  mayoral polls? | Mint

 

जैसा कि जाना जाता है, चंडीगढ़ में हुए मेयर चुनाव के दौरान विवादों की लहर लगातार बढ़ती रही। जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान वीडियो फुटेज और वोटों की मान्यता के संबंध में गहरी जाँच की, तो उसमें अभूतपूर्व तरीके से फैसला सुनाया गया। इस फैसले के बाद, आम आदमी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को मेयर घोषित किया गया। इस मामले में रिटर्निंग ऑफिसर अनिल मसीह को भी सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई। उन्हें 8 अमान्य वोटों के मामले में सख्ती से निगरानी करने के लिए आदेश दिया गया। इसके अलावा, वीडियो में दिखाई गई छेड़छाड़ के मामले में भी गहरी जांच के आदेश दिए गए।

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सुप्रीम कोर्ट की बेंच के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में हुई इस सुनवाई में विवाद की बदहाली हुई। वकीलों अनोखी बहस देखने को मिली। जब बैलेट पेपर की जांच की गई, तो पता चला कि 8 अमान्य वोटों में AAP के कुलदीप कुमार को वोट मिले थे। इस जांच के बाद, वकीलों की बहस और न्यायाधीशों की सलाह के बाद फैसला आया कि अमान्य वोटों को भी मान्य मानकर गिनती दोबारा कराई जाए। इस घटना के संबंध में न्यायाधीश पारदीवाला ने कहा, “बैलेट पर टिक क्यों किया?” इसका उत्तर देते हुए, वकील मुकुल रोहतगी ने बताया कि कुछ बैलेट अवैध थे, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि ऑफिसर को चोर कहा जा सकता है।

Arvind Kejriwal's Remark After Chandigarh Mayor Quits, Councillors Switch

इस घटना के बाद वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोर्ट से री-काउंटिंग की मांग की गई है। उन्होंने और भी बड़े फैसले की मांग की, जैसे कि नए सिरे से चुनाव कराने की। चंडीगढ़ में हुए इस महत्वपूर्ण चुनाव के बाद वीडियो में छेड़छाड़ के आरोप भी उठे। इस वीडियो में बीजेपी के अल्पसंख्यक सेल के सदस्य मसीह को आप पार्षदों के लिए डाले गए बैलेट पेपर्स पर निशान लगाते हुए दिखाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस कार्य की निंदा की और इसे “लोकतंत्र का मजाक” बताया।

By Neelam Singh.

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सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार  के फ़ैसले को किया ख़ारिज सभी 11 दोषियों को वापस जाना होगा जेल   https://chaupalkhabar.com/2024/01/08/supreme-court-rejects-gujarat-governments-decision-all-11-convicts-will-have-to-go-back-to-jail/ https://chaupalkhabar.com/2024/01/08/supreme-court-rejects-gujarat-governments-decision-all-11-convicts-will-have-to-go-back-to-jail/#respond Mon, 08 Jan 2024 07:44:15 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=2134 भारतीय न्याय प्रणाली की एक महत्वपूर्ण घटना में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। यह फैसला गुजरात दंगों के मामले में 11 दोषियों के लिए सजा में छूट को लेकर है। इस फैसले ने व्यापक चर्चा और अनिश्चितता का माहौल बनाया है। मामले की मूल बात की जाए तो, यह गुजरात दंगों के …

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भारतीय न्याय प्रणाली की एक महत्वपूर्ण घटना में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। यह फैसला गुजरात दंगों के मामले में 11 दोषियों के लिए सजा में छूट को लेकर है। इस फैसले ने व्यापक चर्चा और अनिश्चितता का माहौल बनाया है। मामले की मूल बात की जाए तो, यह गुजरात दंगों के समय की है, जब बिलकिस बानो के परिवार से सात सदस्यों की खूनी हत्या हुई थी।

उस समय वह खुद 21 वर्षीय थीं और पांच महीने की गर्भवती भी थीं। उसके साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म का मामला भी था। इस मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने का फैसला पहले भी आया था, परंतु शीर्ष अदालत ने इसका फैसला नकारा है।

 

 

सोमवार को मामले में न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्‍ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की विशेष पीठ ने फैसला सुनाया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की सजा में छूट को दोबारा खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि राज्य की सरकार ने धोखाधड़ी से इस मामले में फैसला लिया था। यह फैसला अदालत की नींव को हिला देने वाला है और उसने जनता के भरोसे को भी क्षति पहुंचाई है। इस अहम फैसले में न्यायमूर्ति ने सुधारात्मक सिद्धांत को महत्व दिया है।

उन्होंने कहा कि सजा प्रतिशोध के लिए नहीं, बल्कि समाज में सुधार के लिए होती है। इससे साथ ही, उन्होंने महिलाओं के सम्मान और उनके अधिकारों को भी महत्व दिया। इस फैसले के बाद, अब सभी 11 दोषियों को वापस जेल जाना होगा। इससे पहले उन्हें सजा से छूट मिल गई थी, परंतु अब उन्हें फिर से जेल जाना होगा।

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इस घटना में न्याय प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्याय के लिए एक ऐतिहासिक पहल है। यह फैसला उन लोगों के लिए एक संदेश है जो न्याय की आशा रखते हैं। इससे सामाजिक न्याय और समानता के मामले में भी एक बड़ी उम्मीद जगी है। इस तरह के फैसले समाज में न्याय और विश्वास की मजबूती का संकेत होते हैं। यह सिद्ध करता है कि कोर्ट न्याय को बरकरार रखने के लिए सजग और संवेदनशील है।

 

 

इस फैसले से एक संदेश भी जाता है कि न्याय की राह पर चलने वालों को निरंतर समर्थन और साथ दिया जाए। इससे न्याय प्रणाली में विश्वास बढ़ता है और लोगों में उम्मीद की किरणें जगती हैं। इस घटना का न्याय को समर्थन और समाज में सुधार की दिशा में एक प्रेरणास्त्रोत बनना चाहिए।

यह फैसला वो संदेश देता है कि न्याय की राह पर आगे बढ़ने वालों को समाज में पूरा समर्थन मिलेगा। यह फैसला भारतीय समाज के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो न्याय और समानता के मामले में एक महत्त्वपूर्ण संदेश देता है। इससे न्याय प्रणाली में भरोसा और समर्थन का संदेश जाता है।

 

यह फैसला न्याय की बाज़ी में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ है और यह सिद्ध करता है कि न्यायमूर्तियों का निर्णय समाज में भरोसा और संवेदना बढ़ाता है।

 

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“सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: अनुच्छेद 370 हटाने का केंद्रीय फैसला बरकरार’’ https://chaupalkhabar.com/2023/12/11/historical-decision-of-supreme-court-central-decision-to-remove-article-370-remains-intact/ https://chaupalkhabar.com/2023/12/11/historical-decision-of-supreme-court-central-decision-to-remove-article-370-remains-intact/#respond Mon, 11 Dec 2023 10:44:06 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=1953 कश्मीर के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला देश में काफी चर्चा में है। यह निर्णय समझौते की दिशा में भारी कदम बताता है। देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायधीशों की पीठ ने सुबह 11 बजे इस मामले में फैसला पढ़ना …

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कश्मीर के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला देश में काफी चर्चा में है। यह निर्णय समझौते की दिशा में भारी कदम बताता है। देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायधीशों की पीठ ने सुबह 11 बजे इस मामले में फैसला पढ़ना शुरू किया। इस पीठ में सीजेआई के अलावा, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत शामिल थे।

गौरतलब है कि सितंबर माह में लगातार 16 दिनों तक सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के खिलाफ फैसला सुनाने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पांच जजों के तीन अलग-अलग फैसले हैं। जिन तीन फैसलों को सुनाया जाना है, उस पर सभी एकमत हैं।

 

जम्मूचीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने उस दौरान राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन पर फैसला नहीं लिया है। स्थिति के अनुसार राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति को शक्तियां हासिल हैं। उसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। संवैधानिक स्थिति यही है कि उनका उचित इस्तेमाल होना चाहिए। अनुच्छेद 356 – राज्य सरकार भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाने की बात करता है। राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र राज्य सरकार की जगह फैसले ले सकता है। संसद राज्य विधानसभा की जगह काम कर सकता है।

 

चीफ जस्टिस ने कहा कि जब राजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय समझौते पर दस्तखत किए थे, तभी जम्म-कश्मीर की संप्रभुता खत्म हो गई थी। वह भारत के तहत हो गया। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर के संविधान से ऊंचा है। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था है।

 

कश्मीर के इस ऐतिहासिक निर्णय के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में प्रमुख बिंदुओं को समझाने का प्रयास करते हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला हुआ था, जो अब संविधान के तहत समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह भी स्पष्ट होता है कि कश्मीर के अनुच्छेद 370 को हटाना संवैधानिक रूप से वैध है। यह फैसला केंद्र सरकार के पहले फैसले को बरकरार रखता है, जिसे 5 अगस्त 2019 को लागू किया गया था।

 

इस फैसले के बाद, देश में अब जल्द ही जम्मू-कश्मीर में नए चुनाव हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें सरकार को निर्देश दिया है, जो जल्दी से जल्दी नये आयाम में चुनावों को संभाल सकती है। इस ऐतिहासिक फैसले के पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 16 दिनों तक सुना। इस दौरान कोर्ट ने केंद्र और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अटॉर्नी जनरल और अन्य पक्षों के विचारों को मध्यनजर रखा।

जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 को हटाने से पहले कश्मीर को भारत के अन्न अंग के रूप में जोड़ने की प्रक्रिया को मजबूत किया गया है। इस निर्णय से कश्मीर के नागरिकों को भारत के संविधान और कानूनों का विश्वास और साथ मिलेगा। कश्मीर के इस ऐतिहासिक कदम से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत का संविधान सभी राज्यों और क्षेत्रों के लिए समान रूप से प्रभावी है। साथ ही, इससे कश्मीर में विकास और सुरक्षा की दिशा में भी नयी ऊर्जा मिलेगी।

 

यह फैसला भारतीय संविधान की महत्ता को दर्शाता है और देश की एकता और संविधानिक मूल्यों को मजबूती को बताता है। इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को भारतीय समाज में समाहित करने का अवसर भी मिलेगा। अब जब यह सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक  फैसला हो गया है, तो अब जम्मू-कश्मीर के विकास और सुरक्षा के मामले में नई दिशा में बदलाव देखने को मिल सकता है।

 

इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि भारत की सुप्रीम कोर्ट ने देश की संविधानिक मूल्यों और एकता को अपनी सर्वोच्चता मानते हुए इस मामले में न्याय दिया है। यह फैसला भारतीय संविधान के महत्त्व को दिखाता है और समान न्याय की प्राप्ति को सुनिश्चित करता है। इससे देश में सामाजिक समरसता और समानता के मूल्यों को मजबूती से बढ़ावा मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के साथ, अब जम्मू-कश्मीर में नए दिनों की आशा और नई उम्मीद की बातें हो सकती हैं। यह निर्णय देश के विकास और एकता के मामले में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

 

 

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