SupremeCourtOfIndia - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com Tue, 12 Mar 2024 10:19:58 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://chaupalkhabar.com/wp-content/uploads/2024/08/cropped-Screenshot_2024-08-04-18-50-20-831_com.whatsapp-edit-32x32.jpg SupremeCourtOfIndia - chaupalkhabar.com https://chaupalkhabar.com 32 32 मुस्लिम लीग ने सुप्रीम कोर्ट में सीएए कानून के खिलाफ याचिका दायर की, CAA पर रोक लगाने की मांग। https://chaupalkhabar.com/2024/03/12/muslim-league-filed-a-petition-in-the-supreme-court-against-the-caa-law-demanding-a-ban-on-caa/ https://chaupalkhabar.com/2024/03/12/muslim-league-filed-a-petition-in-the-supreme-court-against-the-caa-law-demanding-a-ban-on-caa/#respond Tue, 12 Mar 2024 10:19:58 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=2564 भारतीय राजनीति में हाल ही में एक महत्वपूर्ण और विवादित मुद्दा उभरा है – सीएए (नागरिकता संशोधन) कानून। इस कानून के पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से तेजी से चर्चा हो रही है। सीएए कानून के खिलाफ विरोध उसकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण को लेकर है, जबकि पक्ष के वक्ताओं का कहना है …

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भारतीय राजनीति में हाल ही में एक महत्वपूर्ण और विवादित मुद्दा उभरा है – सीएए (नागरिकता संशोधन) कानून। इस कानून के पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से तेजी से चर्चा हो रही है। सीएए कानून के खिलाफ विरोध उसकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण को लेकर है, जबकि पक्ष के वक्ताओं का कहना है कि यह एक कदम है असमानता के खिलाफ।

 

SC to Hear on October 31 Pleas Challenging Constitutional Validity of CAA

सीएए कानून की मुख्य विशेषता यह है कि यह भारत की नागरिकता को लेकर धार्मिक आधार पर एक सीमा स्थापित करता है। इसके अनुसार, भारत के तीन पड़ोसी देशों – पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले यहां आए थे।

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इसके विपरीत, मुस्लिम समुदाय के लोगों को इस सुविधा का लाभ नहीं मिलेगा। विरोधी दलों का मुख्य आरोप है कि सीएए कानून धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देता है और संविधान के मूल तत्वों का उल्लंघन करता है। उनका कहना है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के नाते ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जो किसी धर्म के लोगों को अन्य से अलग करे।

Challenge to CAA: Supreme Court to batch of petitions on Wednesday -  Oneindia News

विपक्ष के साथ ही, सीएए कानून के पक्ष में यह दावा किया जाता है कि यह एक प्रयास है धार्मिक परिस्थितियों से जुड़े लोगों को भारत में सुरक्षित और स्थिरता प्रदान करने का। उनका मानना है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के सदस्यों के लिए धार्मिक और सामाजिक प्रताड़ना की घटनाएं हो रही हैं, और इसलिए इन लोगों को भारत में स्थायी आश्रय प्रदान करने की आवश्यकता है। सीएए कानून को लेकर विवाद को बढ़ाने वाला एक और मुद्दा है कि इसके तहत नागरिकता के अधिकार को छीना जा सकता है। यह भी एक बड़ा कदम है जो विरोधी दलों ने उठाया है। उनका दावा है कि नागरिकता को छीना जाना उनके मौजूदा अधिकारों का हनन होगा और उन्हें समानता के आधार पर नागरिकता के अधिकारों का लाभ नहीं मिलेगा।

 

No stay on CAA, larger Supreme Court bench to hear 144 petitions; Centre  gets 4 weeks

 

सीएए कानून के विरोध में विभिन्न धर्मनिरपेक्ष समूहों और राजनीतिक दलों के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों का भी समर्थन है। वे इसे धार्मिक और सांस्कृतिक असमानता को बढ़ावा देने वाला मानते हैं और इसके खिलाफ उठ खड़े हो रहे, इसके विपरीत सीएए कानून के पक्ष में यह दावा किया जाता है कि यह एक ऐतिहासिक कदम है जो धार्मिक और सामाजिक असमानता को खत्म करने की दिशा में है।

सीएए कानून के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाएं दायर की गई हैं। इस मामले में, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने सीएए को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की है, जिसमें वह इस कानून की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हैं। आईयूएमएल के मुताबिक, किसी भी कानून की संवैधानिकता तब तक लागू नहीं होनी चाहिए जब तक कि वह स्पष्ट रूप से विधायित ना हो। अभी तक सीएए कानून के विरोध में अनेक प्रदर्शन और आंदोलन हुए हैं, और इस विवाद में और भी तेजी आनी चाहिए।

 

By Neelam Singh 

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मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर कानून में संशोधन को रद्द करने की मांग, SC में याचिका दायर, https://chaupalkhabar.com/2024/01/02/petition-filed-in-sc-demanding-repeal-of-amendment-in-law-on-appointment-of-chief-election-commissioner/ https://chaupalkhabar.com/2024/01/02/petition-filed-in-sc-demanding-repeal-of-amendment-in-law-on-appointment-of-chief-election-commissioner/#respond Tue, 02 Jan 2024 07:10:12 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=2100 चुनावी प्रक्रिया और नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार द्वारा की गई मुख्य बदलावों ने सामान्य लोगों की ध्यान बाधित किया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका द्वारा मांग की गई है कि चुनाव आयोग के नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पैनल में मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाए। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट …

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चुनावी प्रक्रिया और नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार द्वारा की गई मुख्य बदलावों ने सामान्य लोगों की ध्यान बाधित किया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका द्वारा मांग की गई है कि चुनाव आयोग के नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पैनल में मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाए। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, और चीफ जस्टिस को इस प्रक्रिया में शामिल होने का आदेश दिया था।

 

सरकार द्वारा संशोधित कानून ने इस प्रक्रिया को फिर से व्यवस्थित किया है, जहां सीजेआई को नियुक्ति पैनल से हटा दिया गया और उनकी जगह प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, और एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया। यह संशोधन कानूनी व्यवस्था को लेकर जानवरी में याचिका दायर की गई थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने पहले का आदेश दिया था कि चुनाव आयोग की नियुक्ति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, और चीफ जस्टिस को शामिल किया जाए। इसका मकसद चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय को सुनिश्चित करना था। हालांकि, नए संशोधन ने इस प्रक्रिया में बदलाव किए हैं और अब सीजेआई को नियुक्ति पैनल से हटा दिया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। इससे पहले की तुलना में, यह बदलाव कई सवाल उठाता है।

 

इस संशोधन से पूछे जाने वाले सवालों में से एक है कि क्या यह प्रक्रिया सरकारी हस्तक्षेप का रास्ता नहीं बन सकता? नियुक्ति प्रक्रिया में सरकारी हस्तक्षेप से चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्न उठते हैं। अब, सुप्रीम कोर्ट को इस याचिका पर विचार करना होगा कि क्या सरकार द्वारा किए गए संशोधन ने चुनावी प्रक्रिया में तंत्रांतरित किया है? क्या इससे चुनावी प्रक्रिया में न्याय और पारदर्शिता की भावना पर धारा डाली जा सकती है?

 

यह संशोधन सरकार के तर्कों का परीक्षण भी करता है। क्या सरकार के तर्क समाज की हितैषी नीतियों के साथ मेल खाते हैं या वे तंत्रिका हैं? सरकार के तर्कों और याचिका में दी गई मांग के बीच एक संतुलन ढूंढना होगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मुद्दे पर बहुत महत्वपूर्ण होगा। चुनावी प्रक्रिया और नियुक्ति प्रक्रिया में सुनिश्चित पारदर्शिता और न्याय ही लोकतंत्र की मजबूती होती है।

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“सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: अनुच्छेद 370 हटाने का केंद्रीय फैसला बरकरार’’ https://chaupalkhabar.com/2023/12/11/historical-decision-of-supreme-court-central-decision-to-remove-article-370-remains-intact/ https://chaupalkhabar.com/2023/12/11/historical-decision-of-supreme-court-central-decision-to-remove-article-370-remains-intact/#respond Mon, 11 Dec 2023 10:44:06 +0000 https://chaupalkhabar.com/?p=1953 कश्मीर के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला देश में काफी चर्चा में है। यह निर्णय समझौते की दिशा में भारी कदम बताता है। देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायधीशों की पीठ ने सुबह 11 बजे इस मामले में फैसला पढ़ना …

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कश्मीर के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला देश में काफी चर्चा में है। यह निर्णय समझौते की दिशा में भारी कदम बताता है। देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायधीशों की पीठ ने सुबह 11 बजे इस मामले में फैसला पढ़ना शुरू किया। इस पीठ में सीजेआई के अलावा, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत शामिल थे।

गौरतलब है कि सितंबर माह में लगातार 16 दिनों तक सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के खिलाफ फैसला सुनाने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पांच जजों के तीन अलग-अलग फैसले हैं। जिन तीन फैसलों को सुनाया जाना है, उस पर सभी एकमत हैं।

 

जम्मूचीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने उस दौरान राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन पर फैसला नहीं लिया है। स्थिति के अनुसार राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति को शक्तियां हासिल हैं। उसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। संवैधानिक स्थिति यही है कि उनका उचित इस्तेमाल होना चाहिए। अनुच्छेद 356 – राज्य सरकार भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाने की बात करता है। राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र राज्य सरकार की जगह फैसले ले सकता है। संसद राज्य विधानसभा की जगह काम कर सकता है।

 

चीफ जस्टिस ने कहा कि जब राजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय समझौते पर दस्तखत किए थे, तभी जम्म-कश्मीर की संप्रभुता खत्म हो गई थी। वह भारत के तहत हो गया। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर के संविधान से ऊंचा है। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था है।

 

कश्मीर के इस ऐतिहासिक निर्णय के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में प्रमुख बिंदुओं को समझाने का प्रयास करते हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला हुआ था, जो अब संविधान के तहत समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह भी स्पष्ट होता है कि कश्मीर के अनुच्छेद 370 को हटाना संवैधानिक रूप से वैध है। यह फैसला केंद्र सरकार के पहले फैसले को बरकरार रखता है, जिसे 5 अगस्त 2019 को लागू किया गया था।

 

इस फैसले के बाद, देश में अब जल्द ही जम्मू-कश्मीर में नए चुनाव हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें सरकार को निर्देश दिया है, जो जल्दी से जल्दी नये आयाम में चुनावों को संभाल सकती है। इस ऐतिहासिक फैसले के पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 16 दिनों तक सुना। इस दौरान कोर्ट ने केंद्र और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अटॉर्नी जनरल और अन्य पक्षों के विचारों को मध्यनजर रखा।

जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 को हटाने से पहले कश्मीर को भारत के अन्न अंग के रूप में जोड़ने की प्रक्रिया को मजबूत किया गया है। इस निर्णय से कश्मीर के नागरिकों को भारत के संविधान और कानूनों का विश्वास और साथ मिलेगा। कश्मीर के इस ऐतिहासिक कदम से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत का संविधान सभी राज्यों और क्षेत्रों के लिए समान रूप से प्रभावी है। साथ ही, इससे कश्मीर में विकास और सुरक्षा की दिशा में भी नयी ऊर्जा मिलेगी।

 

यह फैसला भारतीय संविधान की महत्ता को दर्शाता है और देश की एकता और संविधानिक मूल्यों को मजबूती को बताता है। इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को भारतीय समाज में समाहित करने का अवसर भी मिलेगा। अब जब यह सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक  फैसला हो गया है, तो अब जम्मू-कश्मीर के विकास और सुरक्षा के मामले में नई दिशा में बदलाव देखने को मिल सकता है।

 

इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि भारत की सुप्रीम कोर्ट ने देश की संविधानिक मूल्यों और एकता को अपनी सर्वोच्चता मानते हुए इस मामले में न्याय दिया है। यह फैसला भारतीय संविधान के महत्त्व को दिखाता है और समान न्याय की प्राप्ति को सुनिश्चित करता है। इससे देश में सामाजिक समरसता और समानता के मूल्यों को मजबूती से बढ़ावा मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के साथ, अब जम्मू-कश्मीर में नए दिनों की आशा और नई उम्मीद की बातें हो सकती हैं। यह निर्णय देश के विकास और एकता के मामले में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

 

 

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